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Baba's Murlis - May, 2020
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मुरली से याद के बिन्दु

प्यारे बाबा की बच्चों से चाहना...

11-05-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - तुम इन आंखों से जो कुछ देखते हो यह सब पुरानी दुनिया की सामग्री है, यह समाप्त होनी है, इसलिए इस दु:खधाम को बुद्धि से भूल जाओ”

प्रश्नः-

मनुष्यों ने बाप पर कौन-सा दोष लगाया है लेकिन वह दोष किसी का भी नहीं है?

उत्तर:-

इतना बड़ा जो विनाश होता है, मनुष्य समझते हैं भगवान ही कराता है, दु:ख भी वह देता, सुख भी वह देता।

यह बहुत बड़ा दोष लगा दिया है।

बाप कहते - बच्चे, मैं सदा सुख दाता हूँ, मैं किसी को दु:ख नहीं दे सकता।

अगर मैं विनाश कराऊं तो सारा पाप मेरे पर आ जाए।

वह तो सब ड्रामा अनुसार होता है, मैं नहीं कराता हूँ।

गीत:- रात के राही...Listen

ओम् शान्ति।

बच्चों को सिखलाने के लिए कई गीत बड़े अच्छे हैं।

गीत का अर्थ करने से वाणी खुल जायेगी।

बच्चों की बुद्धि में तो है कि हम सभी दिन की यात्रा पर हैं, रात की यात्रा पूरी होती है।

भक्ति मार्ग है ही रात की यात्रा।

अन्धियारे में धक्का खाना होता है।

आधाकल्प रात की यात्रा कर उतरते आये हो।

अभी आये हो दिन की यात्रा पर।

यह यात्रा एक ही बारी करते हो।

तुम जानते हो याद की यात्रा से हम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन फिर सतोप्रधान सतयुग के मालिक बनते हैं।

सतोप्रधान बनने से सतयुग के मालिक, तमोप्रधान बनने से कलियुग के मालिक बनते हो।

उनको कहा जाता है स्वर्ग, इनको कहा जाता है नर्क।

अब तुम बच्चे बाप को याद करते हो।

बाप से सुख ही मिलता है।

जो और कुछ बोल नहीं सकते हैं वह सिर्फ यह याद रखें - शान्तिधाम है हम आत्माओं का घर, सुखधाम है स्वर्ग की बादशाही और अभी यह है दु:खधाम, रावणराज्य।

अब बाप कहते हैं इस दु:खधाम को भूल जाओ।

भल यहाँ रहते हो परन्तु बुद्धि में यह रहे कि इन आंखों से जो कुछ देखते हैं वह सब रावणराज्य है।

इन शरीरों को देखते हैं, यह भी सारी पुरानी दुनिया की सामग्री है।

यह सारी सामग्री इस यज्ञ में स्वाहा होनी है।

वह पतित ब्राह्मण लोग यज्ञ रचते हैं तो उनमें जौं-तिल आदि सामग्री स्वाहा करते हैं।

यहाँ तो विनाश होना है। ऊंच ते ऊंच है बाप, पीछे है ब्रह्मा और विष्णु।

शंकर का इतना कोई पार्ट है नहीं।

विनाश तो होना ही है।

बाप तो विनाश उनसे कराते हैं जिस पर कोई पाप न लगे।

अगर कहें भगवान विनाश कराता है तो उस पर दोष आ जाए इसलिए यह सब ड्रामा में नूँध है।

यह बेहद का ड्रामा है, जिसको कोई जानते नहीं हैं।

रचता और रचना को कोई नहीं जानते।

न जानने कारण निधनके बन पड़े हैं।

कोई धनी है नहीं।

कोई घर में बाप नहीं होता है और आपस में लड़ते हैं तो कहते हैं तुम्हारा कोई धनी नहीं है क्या!

अभी तो करोड़ों मनुष्य हैं, इनका कोई धनीधोणी नहीं है।

नेशन-नेशन में लड़ते रहते हैं।

एक ही घर में बच्चे बाप के साथ, पुरूष स्त्री के साथ लड़ते रहते हैं।

दु:खधाम में है ही अशान्ति।

ऐसे नहीं कहेंगे भगवान बाप कोई दु:ख रचते हैं।

मनुष्य समझते हैं दु:ख-सुख बाप ही देते हैं परन्तु बाप कभी दु:ख दे न सके।

उनको कहा ही जाता है सुख-दाता तो फिर दु:ख कैसे देंगे।

बाप तो कहते हैं हम तुमको बहुत सुखी बनाते हैं।

एक तो अपने को आत्मा समझो।

आत्मा है अविनाशी, शरीर है विनाशी।

हम आत्माओं के रहने का स्थान परमधाम है, जिसको शान्तिधाम भी कहा जाता है।

यह अक्षर ठीक है।

स्वर्ग को परमधाम नहीं कहेंगे। परम माना परे ते परे।

स्वर्ग तो यहाँ ही होता है।

मूलवतन है परे ते परे, जहाँ हम आत्मायें रहती हैं।

सुख-दु:ख का पार्ट तुम यहाँ बजाते हो।

यह जो कहते हैं फलाना स्वर्ग पधारा।

यह है बिल्कुल रांग।

स्वर्ग तो यहाँ है नहीं।

अभी तो है कलियुग।

इस समय तुम हो संगमयुगी, बाकी सब हैं कलियुगी।

एक ही घर में बाप कलियुगी तो बच्चा संगमयुगी।

स्त्री संगमयुगी, पुरूष कलियुगी....... कितना फ़र्क हो जाता है।

स्त्री ज्ञान लेती, पुरूष ज्ञान नहीं लेते तो एक-दो को साथ नहीं देते।

घर में खिट-खिट हो जाती है।

स्त्री फूल बन जाती है, वह कांटे का कांटा रह जाता।

एक ही घर में बच्चा जानता है हम संगमयुगी पुरूषोत्तम पवित्र देवता बन रहे हैं, लेकिन बाप कहते शादी बरबादी कर नर्कवासी बनो।

अब रूहानी बाप कहते हैं - बच्चे, पवित्र बनो।

अभी की पवित्रता 21 जन्म चलेगी।

ये रावणराज्य ही खलास हो जाना है।

जिससे दुश्मनी होती है तो उनका एफिज़ी जलाते हैं ना।

जैसे रावण को जलाते हैं।

तो दुश्मन से कितनी घृणा होनी चाहिए।

परन्तु यह किसको मालूम नहीं कि रावण कौन है?

बहुत ही खर्चा करते हैं।

मनुष्य को जलाने के लिए इतना खर्चा नहीं करते।

स्वर्ग में तो ऐसी कोई बात होती नहीं।

वहाँ तो बिजली में रखा और खत्म।

वहाँ यह ख्याल नहीं रहता कि उनकी मिट्टी काम में आये।

वहाँ की तो रस्म-रिवाज ऐसी है जो कोई तकलीफ अथवा थकावट की बात नहीं रहती।

इतना सुख रहता है।

तो अब बाप समझाते हैं - मामेकम् याद करने का पुरूषार्थ करो।

यह याद करने की ही युद्ध है।

बाप बच्चों को समझाते रहते हैं - मीठे बच्चे, अपने ऊपर अटेन्शन का पहरा देते रहो।

माया कहाँ नाक-कान काट न जाये क्योंकि दुश्मन है ना।

तुम बाप को याद करते हो और माया तूफान में उड़ा देती है इसलिए बाबा कहते हैं हर एक को सारे दिन का चार्ट लिखना चाहिए कि कितना बाप को याद किया?

कहाँ मन भागा?

डायरी में नोट करो, कितना समय बाप को याद किया?

अपनी जांच करनी चाहिए तो माया भी देखेगी यह तो अच्छा बहादुर है, अपने पर अच्छा अटेन्शन रखते हैं।

पूरा पहरा रखना है।

अभी तुम बच्चों को बाप आकर परिचय देते हैं।

कहते हैं भल घरबार सम्भालो सिर्फ बाप को याद करो।

यह कोई उन संन्यासियों मुआफिक नहीं है।

वह भीख पर चलते हैं फिर भी कर्म तो करना पड़ता है ना।

तुम उनको भी कह सकते हो कि तुम हठयोगी हो, राजयोग सिखलाने वाला एक ही भगवान है।

अभी तुम बच्चे संगम पर हो।

इस संगमयुग को ही याद करना पड़े।

हम अभी संगमयुग पर सर्वोत्तम देवता बनते हैं।

हम उत्तम पुरूष अर्थात् पूज्य देवता थे, अब कनिष्ट बन पड़े हैं।

कोई काम के नहीं रहे हैं। अब हम क्या बनते हैं, मनुष्य जिस समय बैरिस्टरी आदि पढ़ते हैं, उस समय मर्तबा नहीं मिलता।

इम्तहान पास किया, मर्तबे की टोपी मिली।

जाकर गवर्मेन्ट की सर्विस में लगेंगे।

अभी तुम जानते हो हमको ऊंच ते ऊंच भगवान पढ़ाते हैं तो जरूर ऊंच ते ऊंच पद भी देंगे।

यह एम ऑब्जेक्ट है।

अब बाप कहते हैं मामेकम् याद करो, मैं जो हूँ, जैसा हूँ, सो समझा दिया है।

आत्माओं का बाप मैं बिन्दी हूँ, मेरे में सारा ज्ञान है, तुमको भी पहले यह ज्ञान थोड़ेही था कि आत्मा बिन्दी है।

उनमें सारा 84 जन्मों का पार्ट अविनाशी नूँधा हुआ है।

क्राइस्ट पार्ट बजाकर गये हैं, फिर जरूर आयेंगे तो सही ना।

क्राइस्ट के अभी सब जायेंगे।

क्राइस्ट की आत्मा भी अभी तमोप्रधान होगी।

जो भी ऊंच ते ऊंच धर्म स्थापक हैं, वह अब तमोप्रधान हैं।

यह भी कहते हैं मैं बहुत जन्मों के अन्त में तमोप्रधान बना, अब फिर सतोप्रधान बनते हैं।

तत् त्वम्।

तुम जानते हो - हम अभी ब्राह्मण बने हैं देवता बनने के लिए।

विराट रूप के चित्र का अर्थ कोई नहीं जानते।

अभी तुम बच्चे जानते हो आत्मा स्वीट होम में रहती है तो पवित्र है।

यहाँ आने से पतित बनी है।

तब कहते हैं - हे पतित-पावन आकर हमको पवित्र बनाओ तो हम अपने घर मुक्तिधाम में जायें।

यह भी प्वाइंट धारण करने के लिए है।

मनुष्य नहीं जानते मुक्ति-जीवनमुक्तिधाम किसको कहा जाता है।

मुक्तिधाम को शान्तिधाम कहा जाता है।

जीवन-मुक्तिधाम को सुखधाम कहा जाता है।

यहाँ है दु:ख का बंधन।

जीवनमुक्ति को सुख का संबंध कहेंगे।

अब दु:ख का बंधन दूर हो जायेगा।

हम पुरूषार्थ करते हैं ऊंच पद पाने के लिए।

तो यह नशा होना चाहिए।

हम अभी श्रीमत पर अपना राज्य-भाग्य स्थापन कर रहे हैं।

जगत अम्बा नम्बरवन में जाती है।

हम भी उनको फालो करेंगे। जो बच्चे अभी मात-पिता के दिल पर चढ़ते हैं वही भविष्य में तख्तनशीन बनेंगे।

दिल पर वह चढ़ते जो दिन-रात सर्विस में बिजी रहते हैं।

सबको पैगाम देना है कि बाप को याद करो।

पैसा-कौड़ी कुछ भी लेने का नहीं है।

वह समझते हैं यह राखी बांधने आती हैं, कुछ देना पड़ेगा।

बोलो हमको और कुछ चाहिए नहीं सिर्फ 5 विकारों का दान दो।

यह दान लेने लिए हम आये हैं इसलिए पवित्रता की राखी बांधते हैं।

बाप को याद करो, पवित्र बनो तो यह (देवता) बनेंगे।

बाकी हम पैसा कुछ भी नहीं ले सकते हैं।

हम वह ब्राह्मण नहीं हैं।

सिर्फ 5 विकारों का दान दो तो ग्रहण छूटें।

अभी कोई कला नहीं रही है।

सब पर ग्रहण लगा हुआ है।

तुम ब्राह्मण हो ना।

जहाँ भी जाओ - बोलो, दे दान तो छूटे ग्रहण।

पवित्र बनो।

विकार में कभी नहीं जाना।

बाप को याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे और तुम फूल बन जायेंगे।

तुम ही फूल थे फिर कांटे बने हो।

84 जन्म लेते-लेते गिरते ही आये हो।

अब वापिस जाना है।

बाबा ने डायरेक्शन दिया है इन द्वारा।

वह है ऊंच ते ऊंच भगवान।

उनको शरीर नहीं है।

अच्छा, ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को शरीर है?

तुम कहेंगे - हाँ, सूक्ष्म शरीर है।

परन्तु वह मनुष्यों की सृष्टि तो नहीं है।

खेल सारा यहाँ है।

सूक्ष्मवतन में नाटक कैसे चलेगा?

वैसे मूलवतन में भी सूर्य-चांद ही नहीं तो नाटक भी काहे का होगा!

यह बहुत बड़ा माण्डवा है।

पुनर्जन्म भी यहाँ होता है।

सूक्ष्मवतन में नहीं होता।

अभी तुम्हारी बुद्धि में सारा बेहद का खेल है।

अभी पता पड़ा है - हम जो देवी-देवता थे सो फिर कैसे वाम मार्ग में आते हैं।

वाम मार्ग विकारी मार्ग को कहा जाता है।

आधाकल्प हम पवित्र थे, हमारा ही हार और जीत का खेल है।

भारत अविनाशी खण्ड है।

यह कभी विनाश होता नहीं है।

आदि सनातन देवी-देवता धर्म था तो और कोई धर्म नहीं था।

तुम्हारी इन बातों को मानेंगे वह जिन्होंने कल्प पहले माना होगा।

5 हज़ार वर्ष से पुरानी चीज़ कोई होती नहीं।

सतयुग में फिर तुम पहले जाकर अपने महल बनायेंगे।

ऐसे नहीं कि सोनी-द्वारिका कोई समुद्र के नीचे है वह निकल आयेगी।

दिखलाते हैं सागर से देवतायें रत्नों की थालियाँ भरकर देते थे।

वास्तव में ज्ञान सागर बाप है जो तुम बच्चों को ज्ञान रत्न की थालियाँ भरकर दे रहे हैं।

दिखाते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई।

ज्ञान रत्नों से झोली भरी।

शंकर के लिए कहते - भांग-धतूरा पीता था, फिर उनके आगे जाकर कहते झोली भर दो, हमको धन दो।

तो देखो शंकर की भी ग्लानि कर दी है।

सबसे जास्ती ग्लानि करते हैं हमारी।

यह भी खेल है जो फिर भी होगा।

इस नाटक को कोई जानते नहीं।

मैं आकर आदि से अन्त तक सारा राज़ समझाता हूँ।

यह भी जानते हो ऊंचे ते ऊंच बाप है।

विष्णु सो ब्रह्मा, ब्रह्मा सो विष्णु कैसे बनते हैं - यह कोई समझ न सके।

अभी तुम बच्चे पुरूषार्थ करते हो कि हम विष्णु कुल का बनें।

विष्णुपुरी का मालिक बनने के लिए तुम ब्राह्मण बने हो।

तुम्हारी दिल में है - हम ब्राह्मण अपने लिए सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी राजधानी स्थापन कर रहे हैं श्रीमत पर।

इसमें लड़ाई आदि की कोई बात नहीं।

देवताओं और असुरों की लड़ाई कभी होती नहीं।

देवतायें हैं सतयुग में। वहाँ लड़ाई कैसे होगी।

अभी तुम ब्राह्मण योगबल से विश्व के मालिक बनते हो।

बाहुबल वाले विनाश को प्राप्त हो जायेंगे।

तुम साइलेन्स बल से साइंस पर विजय पाते हो।

अब तुमको आत्म-अभिमानी बनना है।

हम आत्मा हैं, हमको जाना है अपने घर।

आत्मायें तीखी हैं।

अभी एरोप्लेन ऐसा निकाला है जो एक घण्टे में कहाँ से कहाँ चला जाता है।

अब आत्मा तो उनसे भी तीखी है।

चपटी में आत्मा कहाँ की कहाँ जाकर जन्म लेती है।

कोई विलायत में भी जाकर जन्म लेते हैं।

आत्मा सबसे तीखा रॉकेट है।

इसमें मशीनरी आदि की कोई बात नहीं।

शरीर छोड़ा और यह भागा।

अब तुम बच्चों की बुद्धि में है हमको घर जाना है, पतित आत्मा तो जा न सके।

तुम पावन बनकर ही जायेंगे बाकी तो सब सजायें खाकर जायेंगे।

सजायें तो बहुत मिलती हैं।

वहाँ तो गर्भ महल में आराम से रहते हैं।

बच्चों ने साक्षात्कार किया है।

कृष्ण का जन्म कैसे होता है, कोई गंद की बात नहीं।

एकदम जैसे रोशनी हो जाती है।

अभी तुम बैकुण्ठ के मालिक बनते हो तो ऐसा पुरूषार्थ करना चाहिए।

शुद्ध पवित्र खान-पान होना चाहिए।

दाल भात सबसे अच्छा है।

ऋषिकेश में संन्यासी एक खिड़की से लेकर चले जाते, हाँ कोई कैसे, कोई कैसे होते हैं।

अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपने ऊपर अटेन्शन का पूरा-पूरा पहरा देना है।

माया से अपनी सम्भाल करनी है।

याद का सच्चा-सच्चा चार्ट रखना है।

2) मात-पिता को फालो कर दिलतख्तनशीन बनना है।

दिन-रात सर्विस पर तत्पर रहना है।

सबको पैगाम देना है कि बाप को याद करो।

5 विकारों का दान दो तो ग्रहण छूटे।

वरदान:-

बाप की याद द्वारा

असन्तोष की परिस्थितियों में,

सदा सुख व सन्तोष की अनुभूति करने वाले

महावीर भव

सदा बाप की याद में रहने वाले हर परिस्थिति में सदा सन्तुष्ट रहते हैं क्योंकि नॉलेज की शक्ति के आधार पर पहाड़ मुआफिक परिस्थिति भी राई अनुभव होती है, राई अर्थात् कुछ नहीं।

चाहे परिस्थिति असन्तोष की हो, दु:ख की घटना हो लेकिन दु:ख की परिस्थिति में सुख की स्थिति रहे तब कहेंगे महावीर।

कुछ भी हो जाए, नथिंगन्यु के साथ-साथ बाप की स्मृति से सदा एकरस स्थिति रह सकती है, फिर दु:ख अशान्ति की लहर भी नहीं आयेगी।

स्लोगन:-

अपना दैवी स्वरूप सदा स्मृति में रहे तो कोई की भी व्यर्थ नज़र नहीं जा सकती।