कल्प-कल्प बच्चों को कहा जाता है और बच्चे जानते हैं, दिल होती है कि जल्दी सतयुग हो जाए तो इस दु:ख से छूट जायें।
परन्तु ड्रामा बहुत धीरे-धीरे चलने वाला है।
बाप धीरज देते हैं बाकी थोड़े रोज़ हैं।
बड़ो-बड़ों द्वारा भी आवाज़ सुनते रहेंग़े दुनिया बदलनी है।
जो भी बड़े-बड़े हैं पोप जैसे वह भी कहते हैं दुनिया बदलने वाली है।
अच्छा फिर पीस कैसे होगी?
इस समय सब लूनपानी हैं।
अभी हम क्षीरखण्ड हो रहे हैं।
उस तरफ दिन-प्रतिदिन लूनपानी होते जाते हैं।
आपस में लड़ झगड़ कर खत्म होने वाले हैं, तैयारियाँ हो रही हैं।
यह ड्रामा का चक्र अब पूरा होता है।
पुरानी दुनिया पूरी होती है।
नई दुनिया की स्थापना हो रही है।
नई दुनिया सो पुरानी, पुरानी सो नई दुनिया फिर बनेगी।
इसको दुनिया का चक्र कहा जाता है जो फिरता रहता है।
ऐसे नहीं, लाखों वर्ष बाद पुरानी दुनिया नई होगी।
नहीं।
तुम बच्चे अच्छी रीति जान चुके हो, भक्ति बिल्कुल ही अलग है।
भक्ति का कनेक्शन रावण के साथ है।
ज्ञान का कनेक्शन राम के साथ है।
यह तुम अभी समझ रहे हो।
अभी बाप को बुलाते भी हैं - हे पतित-पावन आओ, आकर नई दुनिया स्थापन करो।
नई दुनिया में जरूर सुख होता है।
अब बच्चे छोटे अथवा बड़े सब जान गये हैं कि अभी घर चलना है।
यह नाटक पूरा होता है।
हम फिर से सतयुग में जायेंगे फिर 84 जन्मों का चक्र लगाना है।
स्व आत्मा को दर्शन होता है - सृष्टि चक्र का अर्थात् आत्मा को ज्ञान का तीसरा नेत्र मिला है, उसको कहा जाता है त्रिनेत्री।
अभी तुम त्रिनेत्री हो और सभी मनुष्यों को यह स्थूल नेत्र हैं।
ज्ञान का नेत्र कोई को नहीं है।
त्रिनेत्री बनें तब त्रिकालदर्शी बनें क्योंकि आत्मा को ज्ञान मिलता है ना।
आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
संस्कार आत्मा में रहते हैं।
आत्मा अविनाशी है।
अब बाप कहते हैं नाम-रूप से न्यारा बनो।
अपने को अशरीरी समझो। देह नहीं समझो।
यह भी जानते हो हम आधाकल्प से परमात्मा को याद करते आये हैं।
इसमें जब जास्ती दु:ख होता है तब जास्ती याद करते हैं, अभी कितना दु:ख है।
आगे इतना दु:ख नहीं था।
जब से बाहर वाले आये हैं तब से यह राजायें लोग भी आपस में लड़े हैं। जुदा-जुदा हुए हैं।
सतयुग में तो एक ही राज्य था।
अभी हम सतयुग से लेकर कलियुग अन्त तक हिस्ट्री-जॉग्राफी समझ रहे हैं।
सतयुग-त्रेता में एक ही राज्य था।
ऐसे एक ही डिनायस्टी कोई की होती नहीं।
क्रिश्चियन में भी देखो फूट है, वहाँ तो सारा विश्व एक के हाथ में रहता है।
वह सिर्फ सतयुग-त्रेता में ही होता है।
यह बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी अभी तुम्हारी बुद्धि में है।
और कोई सतसंग में हिस्ट्री-जॉग्राफी अक्षर नहीं सुनेंगे।
वहाँ तो रामायण, महाभारत आदि ही सुनते हैं।
यहाँ वह बातें हैं नहीं।
यहाँ है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी।
तुम्हारी बुद्धि में है ऊंच ते ऊंच हमारा बाप है।
बाप का शुक्रिया है जिसने सारा ज्ञान सुनाया है।
एक आत्माओं का झाड़ है, दूसरा है मनुष्यों का झाड़।
मनुष्यों के झाड़ में ऊपर में कौन हैं?
ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर ब्रह्मा को ही कहेंगे।
यह जानते हैं ब्रह्मा मुख्य है परन्तु ब्रह्मा के पीछे क्या हिस्ट्री-जॉग्राफी है, यह कोई नहीं जानते।
अभी तुम्हारी बुद्धि में है - ऊंच ते ऊंच बाप रहते भी हैं परमधाम में।
फिर सूक्ष्मवतन का भी तुमको मालूम है।
मनुष्य ही फ़रिश्ता बनते हैं, इसलिए सूक्ष्मवतन दिखाया है।
तुम आत्मायें जाती हो, शरीर तो सूक्ष्मवतन में नहीं जायेगा।
जाते कैसे हैं, उनको कहा जाता है तीसरा नेत्र, दिव्य-दृष्टि अथवा ध्यान भी कहते हैं।
तुम ध्यान में ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को देखते हो।
लोग दिखलाते हैं - शंकर के आंख खोलने से विनाश हो जाता है।
अब इनसे तो कोई समझ न सके।
अभी तुम जानते हो विनाश तो ड्रामा अनुसार होना ही है।
आपस में लड़कर विनाश हो जायेंगे।
बाकी शंकर क्या करते हैं!
यह ड्रामा अनुसार नाम रख दिया है।
तो समझाना पड़ता है।
ब्रह्मा-विष्णु-शंकर तीन हैं।
स्थापना के लिए ब्रह्मा को रखा है, पालना के लिए विष्णु को, विनाश के लिए शंकर को रख दिया है।
वास्तव में यह बना बनाया ड्रामा है।
शंकर का पार्ट कुछ भी है नहीं।
ब्रह्मा और विष्णु का पार्ट तो सारे कल्प में है।
ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा।
ब्रह्मा के भी 84 जन्म पूरे हुए तो विष्णु के भी पूरे हुए।
शंकर तो जन्म-मरण से न्यारा है इसलिए शिव और शंकर को फिर मिला दिया है।
वास्तव में शिव का तो बहुत पार्ट है, पढ़ाते हैं।
भगवान को कहा जाता है नॉलेजफुल।
अगर वह प्रेरणा से कार्य करता तो सृष्टि चक्र का ज्ञान कैसे देता!
इसलिए बाप समझाते हैं - बच्चे, प्रेरणा की तो कोई बात ही नहीं।
बाप को तो आना पड़ता है।
बाप कहते - बच्चे, मेरे में सृष्टि चक्र का ज्ञान है।
मेरे को यह पार्ट मिला हुआ है इसलिए मुझे ही ज्ञान सागर नॉलेजफुल कहते हैं।
नॉलेज किसको कहा जाता है, वह तो जब मिले तब पता पड़े।
मिला ही नहीं है तो अर्थ का कैसे मालूम पड़े।
आगे तुम भी कहते थे ईश्वर प्रेरणा करते हैं।
वह सब कुछ जानते हैं।
हम जो पाप करते हैं, ईश्वर देखते हैं।
बाबा कहते हैं यह धन्धा मैं नहीं करता हूँ।
यह तो जैसा कर्म करते हैं उसकी खुद ही सज़ा भोगते हैं, मैं किसको नहीं देता हूँ।
न कोई प्रेरणा से सज़ा दूँगा।
मैं प्रेरणा से करूँ तो जैसे मैंने सज़ा दी।
कोई को कहना कि इनको मारो, यह भी दोष है।
कहने वाला भी फँस पड़े।
शंकर प्रेरणा दे तो वह भी फँस जाए।
बाप कहते हैं मैं तो तुम बच्चों को सुख देने वाला हूँ।
तुम मेरी महिमा करते हो - बाबा आकर दु:ख हरो।
मैं थोड़ेही दु:ख देता हूँ।
अब तुम बच्चे बाप के सम्मुख बैठे हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए!
यहाँ डायरेक्ट भासना आती है।
बाबा हमको पढ़ाते हैं।
इनको मेला कहा जाता है।
सेन्टर्स पर तुम जाते हो वहाँ कोई आत्माओं, परमात्मा का मेला नहीं कहेंगे।
आत्माओं परमात्मा का मेला यहाँ लगता है।
यह भी तुम जानते हो मेला लगा हुआ है।
बाप बच्चों के बीच में आये हैं।
आत्मायें सब यहाँ है।
आत्मा ही याद करती हैं कि बाप आये।
यह सबसे अच्छा मेला है।
बाप आकर सब आत्माओं को रावण राज्य से छुड़ा देते हैं।
ये मेला अच्छा हुआ ना, जिससे मनुष्य पारसबुद्धि बनते हैं।
उन मेलों पर तो मनुष्य मैले हो जाते हैं।
पैसे बरबाद करते रहते हैं, मिलता कुछ भी नहीं।
उनको मायावी, आसुरी मेला कहा जायेगा।
यह है ईश्वरीय मेला। रात-दिन का फ़र्क है।
तुम भी आसुरी मेले में थे।
अभी हो ईश्वरीय मेले में। तुम ही जानते हो बाबा आया हुआ है।
सब जान जाएं तो पता नहीं कितनी भीड़ हो जाए।
इतने मकान आदि रहने के लिए कहाँ से लायेंगे!
पिछाड़ी में गाते हैं ना - अहो प्रभू तेरी लीला।
कौन-सी लीला?
सृष्टि के बदलने की लीला।
यह है सबसे बड़ी लीला।
पुरानी दुनिया खत्म होने से पहले नई दुनिया की स्थापना होती है इसलिए हमेशा किसको भी समझाओ तो पहले स्थापना, विनाश फिर पालना कहना है।
जब स्थापना पूरी होती है तब फिर विनाश शुरू होता है, फिर पालना होगी।
तो तुम बच्चों को यह खुशी रहती है - हम स्वदर्शन चक्रधारी ब्राह्मण हैं।
फिर हम चक्रवर्ती राजा बनते हैं।
यह कोई को पता नहीं, इन देवताओं का राज्य कहाँ गया।
नाम-निशान गुम हो गया है।
देवता के बदले अपने को हिन्दू कह देते हैं।
हिन्दुस्तान में रहने वाले हिन्दू हैं।
लक्ष्मी-नारायण को तो ऐसे कभी नहीं कहेंगे।
उन्हों को तो देवता कहा जाता है।
तो अब इस मेले में ड्रामा अनुसार तुम आये हो।
यह ड्रामा में नूँध है। धीरे-धीरे वृद्धि होती रहेगी।
तुम्हारा जो कुछ पार्ट चल रहा है फिर कल्प बाद चलेगा।
यह चक्र फिरता रहता है।
फिर रावण राज्य में आसुरी पालना होगी।
तुम अभी ईश्वरीय बच्चे हो फिर दैवी बच्चे फिर क्षत्रिय बनेंगे।
तुम जो अपवित्र प्रवृत्ति वाले बन गये थे सो फिर पवित्र प्रवृत्ति वाले बनते हो।
हैं तो यह भी दैवी गुण वाले मनुष्य ना।
बाकी इतनी भुजायें आदि दे दी हैं, विष्णु कौन हैं, यह कोई बता न सके।
महालक्ष्मी की भी पूजा करते हैं।
जगत अम्बा से कभी धन नहीं मांगते हैं।
धन जास्ती मिल गया तो कहेंगे लक्ष्मी की पूजा की इसलिए उसने भण्डारा भर दिया।
यहाँ तो तुम जगत अम्बा से पा रहे हो परमपिता परमात्मा शिव द्वारा, देने वाला वह है।
तुम बच्चे बापदादा से भी लक्की हो।
देखो, जगदम्बा का कितना मेला लगता है, ब्रह्मा का इतना नहीं।
ब्रह्मा को तो एक ही जगह बिठा दिया है, अजमेर में बड़ा मन्दिर है।
देवियों के मन्दिर बहुत हैं क्योंकि इस समय तुम्हारी बहुत महिमा है।
तुम भारत की सेवा करते हो।
पूजा भी तुम्हारी जास्ती होती है।
तुम लकी हो।
जगत अम्बा के लिए ऐसे कभी नहीं कहेंगे कि वह सर्वव्यापी है।
तुम्हारी महिमा होती रहती है।
ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी सर्वव्यापी नहीं कहते, मुझे कह देते कण-कण में है, कितनी ग्लानि करते हैं।
तुम्हारी मैं कितनी महिमा बढ़ाता हूँ।
भारत माता की जय कहते हैं ना।
भारत माता तो तुम हो ना।
धरनी नहीं।
धरनी आदि जो अब तमोप्रधान है, सतयुग में सतोप्रधान हो जाती है इसलिए कहते हैं देवताओं के पैर पतित दुनिया में नहीं आते।
जब सतोप्रधान धरनी होती है तब आते हैं।
अभी तुमको सतोप्रधान बनना है।
श्रीमत पर चलते बाप को याद करते रहेंगे तो ऊंच पद पायेंगे।
यह ख्याल रखना है।
याद करेंगे तो विकर्म विनाश होंगे।
श्रीमत मिलती रहती है।
सतयुग में तो तुम्हारी आत्मा पवित्र कंचन हो जाती है तो शरीर भी कंचन मिलता है।
सोने में खाद पड़ती है तो फिर जेवर भी ऐसा बनता है।
आत्मा झूठी तो शरीर भी झूठा।
खाद पड़ने से सोने का मूल्य भी कम हो जाता है।
तुम्हारा मूल्य अब कुछ भी नहीं है।
पहले तुम विश्व के मालिक 24 कैरेट थे।
अभी 9 कैरेट कहेंगे।
यह बाप बच्चों से रूहरिहान करते हैं।
बच्चों को बैठ बहलाते हैं, जो तुम सुनते-सुनते चेंज हो जाते हो।
मनुष्य से देवता बन जाते हो।
वहाँ हीरे-जवाहरातों के महल होंगे, स्वर्ग तो फिर क्या!
वहाँ के शूबीरस आदि भी तुम पीकर आते हो।
वहाँ के फल ही इतने बड़े-बड़े होते हैं।
यहाँ तो मिल न सकें।
सूक्ष्मवतन में तो कुछ है नहीं।
अभी तुम प्रैक्टिकल में जाते हो।
यह है आत्मा और परमात्मा का मेला, इनसे तुम उज्जवल बनते हो।
तुम बच्चे जब यहाँ आते हो तो फ्री हो, घर-बार धन्धे आदि का कोई फुरना नहीं है।
तो यहाँ तुमको याद की यात्रा में रहने का चांस अच्छा है।
वहाँ तो घर-घाट आदि याद आता रहेगा।
यहाँ तो कुछ है नहीं।
रात को दो बजे उठ-कर यहाँ बैठ जाओ।
सेन्टर्स पर तो रात को तुम जा नहीं सकते।
यहाँ तो सहज है।
शिवबाबा की याद में आकर बैठो, और कोई याद न आये।
यहाँ तुमको मदद भी मिलेगी। सवेरे (जल्दी) सो जाओ फिर सवेरे उठो।
3 से 5 बजे तक आकर बैठो।
बाबा भी आ जायेंगे, बच्चे खुश होंगे।
बाबा है योग सिखलाने वाला।
यह भी सीखने वाला है तो दोनों बाप और दादा आ जायेंगे फिर यहाँ और वहाँ योग में बैठने के फ़र्क का भी पता पड़ेगा।
यहाँ कुछ भी याद नहीं पड़ेगा, इसमें फायदा बहुत है।
बाबा राय देते हैं - यह बहुत अच्छा हो सकता है।
अब देखें बच्चे उठ सकते हैं?
कइयों को सवेरे उठने का अभ्यास है।
तुम्हारा सन्यास है 5 विकारों का और वैराग्य है सारी पुरानी दुनिया से।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-