ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे स्वीट चिल्ड्रेन, मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना।
तुम बच्चे ही जानते हो कि आधाकल्प जिस माशुक को याद किया है, आखरीन वह मिले हैं।
दुनिया यह नहीं जानती कि हम कोई आधाकल्प भक्ति करते हैं, माशूक बाप को पुकारते हैं।
हम आशिक हैं, वह माशूक है - यह भी कोई नहीं जानते।
बाप कहते हैं रावण ने तुमको बिल्कुल ही तुच्छ बुद्धि बना दिया है।
खास भारतवासियों को।
तुम देवी-देवता थे यह भी भूल गये हो, तो तुच्छ बुद्धि हुए।
अपने धर्म को भूल जाना, यह है तुच्छ बुद्धि का काम।
अभी यह सिर्फ तुम ही जानते हो।
हम भारतवासी स्वर्गवासी थे। यह भारत स्वर्ग था।
थोड़ा ही समय हुआ है।
1250 वर्ष तो सतयुग था और 1250 वर्ष रामराज्य चला।
उस समय अथाह सुख था।
सुख को याद कर रोमांच खड़े हो जाने चाहिए।
सतयुग, त्रेता...... यह पास हो गये।
सतयुग की आयु कितनी थी, यह भी कोई नहीं जानते।
लाखों वर्ष कैसे हो सकती है।
अभी बाप आकर समझाते हैं - तुमको माया ने कितना तुच्छ बुद्धि बना दिया है।
दुनिया में कोई अपने को तुच्छ बुद्धि समझते नहीं हैं।
तुम जानते हो हम कल तुच्छ बुद्धि थे।
अभी बाबा ने इतनी बुद्धि दी है जो रचता और रचना के आदि-मध्य-अन्त को हम जान गये हैं।
कल नहीं जानते थे, आज जाना है।
जितना-जितना जानते जाते हैं, उतना खुशी में रोमांच खड़े होते जायेंगे।
हम फिर से अपने ठिकाने पर पहुँचते हैं।
बरोबर बाप ने हमको स्वर्ग की राजाई दी थी फिर हमने गँवा दी।
अभी पतित बन पड़े हैं।
सतयुग को पतित नहीं कहेंगे।
वह है ही पावन दुनिया।
मनुष्य कहते हैं हे पतित-पावन आओ।
रावण राज्य में पावन ऊंच कोई हो ही नहीं सकता।
ऊंच ते ऊंच बाप के बच्चे बने तो ऊंच भी बनें।
तुम बच्चों ने बाप को जाना है, सो भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
अपनी दिल से सवेरे उठकर पूछो, अमृतवेले का समय अच्छा है।
सवेरे अमृतवेले बैठकर यह ख्याल करो।
बाबा हमारा बाप भी है, टीचर भी है।
ओ गॉडफादर, हे परमपिता परमात्मा तो कहते ही हैं।
अभी तुम बच्चे जानते हो जिसको याद करते हैं - हे भगवान, अभी वह हमको मिला है।
हम फिर से बेहद का वर्सा ले रहे हैं।
वह है लौकिक बाप, यह है बेहद का बाप।
तुम्हारा लौकिक बाप भी उस बेहद के बाप को याद करते हैं।
तो बापों का बाप, पतियों का पति, वह हो गया।
यह भी भारतवासी ही कहते हैं क्योंकि अभी मैं बापों का बाप, पतियों का पति बनता हूँ।
अभी मैं तुम्हारा बाप भी हूँ।
तुम बच्चे बने हो।
बाबा-बाबा कहते रहते हो।
अभी फिर तुमको विष्णुपुरी ससुरघर ले जाता हूँ।
यह है तुम्हारे बाप का घर, फिर ससुरघर जायेंगे।
बच्चे जानते हैं हमको बहुत अच्छा श्रृंगारा जाता है।
अभी तुम पियरघर में हो ना।
तुमको पढ़ाया भी जाता है।
तुम इस ज्ञान से सजकर विश्व के महाराजा-महारानी बनते हो।
तुम यहाँ आये ही हो विश्व का मालिक बनने।
तुम भारतवासी ही विश्व के मालिक थे जबकि सतयुग था।
अभी तुम ऐसे नहीं कहेंगे कि हम विश्व के मालिक हैं।
अभी तुम जानते हो भारत के मालिक कलियुगी हैं, हम तो संगमयुगी हैं।
फिर हम सतयुग में सारे विश्व के मालिक बनेंगे।
यह बातें तुम बच्चों की बुद्धि में आनी चाहिए।
जानते हो विश्व की बादशाही देने वाला आया है।
अभी संगमयुग पर वह आये हैं।
ज्ञान दाता एक ही बाप है।
बाप के सिवाए किसी भी मनुष्य को ज्ञान दाता नहीं कहेंगे क्योंकि बाप के पास ऐसा ज्ञान है जिससे सारे विश्व की सद्गति होती है।
तत्वों सहित सबकी सद्गति हो जाती है।
मनुष्यों के पास सद्गति का ज्ञान है नहीं।
इस समय सारी दुनिया तत्वों सहित तमोप्रधान है।
इसमें रहने वाले भी तमोप्रधान हैं।
नई दुनिया है ही सतयुग।
उसमें रहने वाले भी देवता थे फिर रावण ने जीत लिया।
अब फिर बाप आया हुआ है।
तुम बच्चे कहते हो हम जाते हैं बापदादा के पास।
बाप हमको दादा द्वारा स्वर्ग की बादशाही का वर्सा देते हैं।
बाप तो स्वर्ग की बादशाही देंगे और क्या देंगे।
तुम बच्चों की बुद्धि में यह तो आना चाहिए ना।
परन्तु माया भुला देती है।
स्थाई खुशी रहने नहीं देती है।
जो अच्छी रीति पढ़ेंगे-पढ़ायेंगे वही ऊंच पद पायेंगे।
गाया भी जाता है सेकण्ड में जीवन-मुक्ति।
पहचानना एक ही बार चाहिए ना।
सभी आत्माओं का बाप एक है, वह सभी आत्माओं का बाप आया हुआ है।
परन्तु सब तो मिल भी नहीं सकेंगे।
इम्पासिबुल है। बाप तो पढ़ाने आते हैं।
तुम भी सब टीचर्स हो।
कहा जाता है ना गीता पाठशाला।
यह अक्षर भी कॉमन है।
कहते हैं कृष्ण ने गीता सुनाई।
अब यह कृष्ण की तो पाठशाला है नहीं।
कृष्ण की आत्मा पढ़ रही है।
सतयुग में कोई गीता पाठशाला में पढ़ते पढ़ाते हैं क्या?
कृष्ण तो हुआ ही है सतयुग में फिर 84 जन्म लेते हैं।
एक भी शरीर दूसरे से मिल न सके।
ड्रामा प्लैन अनुसार हर एक आत्मा में अपना पार्ट 84 जन्मों का भरा हुआ है।
एक सेकण्ड न मिले दूसरे से।
5 हज़ार वर्ष तुम पार्ट बजाते हो।
एक सेकण्ड का पार्ट दूसरे सेकण्ड से मिल न सके।
कितनी समझ की बात है।
ड्रामा है ना।
पार्ट रिपीट होता जाता है।
बाकी वह शास्त्र सभी हैं भक्ति मार्ग के।
आधाकल्प भक्ति चलती है फिर सर्व को सद्गति मैं ही आकर देता हूँ।
तुम जानते हो 5 हज़ार वर्ष पहले राज्य करते थे।
सद्गति में थे।
दु:ख का नाम नहीं था।
अभी तो दु:ख ही दु:ख है।
इसको दु:खधाम कहा जाता है।
शान्तिधाम, सुखधाम और दु:खधाम।
भारतवासियों को ही आकर सुखधाम का रास्ता बताता हूँ।
कल्प-कल्प फिर हमको आना पड़ता है।
अनेक बार आया हूँ, आता रहूँगा।
इसकी इन्ड नहीं हो सकती।
तुम चक्र लगाकर दु:खधाम में आते हो फिर मुझे आना पड़ता है।
अभी तुमको स्मृति आई है 84 जन्मों के चक्र की।
अब बाप को रचता कहा जाता है।
ऐसे नहीं कि ड्रामा का कोई रचता है।
रचता अर्थात् इस समय सतयुग को आकर रचते हैं।
सतयुग में जिन्हों का राज्य था फिर गँवाया, उन्हों को ही बैठ पढ़ाता हूँ।
बच्चों को एडाप्ट करते हैं। तुम मेरे बच्चे हो ना।
तुमको कोई साधू-सन्त आदि नहीं पढ़ाते हैं।
पढ़ाने वाला एक बाप है, जिसको सब याद करते हैं।
याद जिसको करते हैं जरूर कभी आयेंगे भी ना।
यह भी किसको समझ नहीं है कि याद क्यों करते हैं!
तो जरूर पतित-पावन बाप आते हैं।
क्राइस्ट को ऐसे नहीं कहेंगे कि फिर से आओ।
वह तो समझते हैं, लीन हो गया।
फिर आने की बात ही नहीं।
याद फिर भी पतित-पावन को करते हैं।
हम आत्माओं को फिर से वर्सा दो।
अभी तुम बच्चों को स्मृति आई - बाबा आया हुआ है।
नई दुनिया की स्थापना करेंगे।
वह फिर भी अपने समय पर रजो, तमो में ही आयेंगे।
अभी तुम बच्चे समझते हो हम मास्टर नॉलेजफुल बनते हैं।
एक बाप ही है जो तुम बच्चों को पढ़ाकर विश्व का मालिक बना देते हैं।
खुद नहीं बनते हैं इसलिए उनको कहा जाता है निष्काम सेवाधारी।
मनुष्य कहते हैं हम फल की आश नहीं रखते हैं, निष्काम सेवा करते हैं।
परन्तु ऐसे होता नहीं है।
जैसे संस्कार ले जाते हैं, उस अनुसार जन्म मिलता है।
कर्म का फल अवश्य मिलता है।
सन्यासी भी पुनर्जन्म गृहस्थियों के पास लेकर फिर संस्कार अनुसार सन्यास धर्म में चले जाते हैं।
जैसे बाबा लड़ाई वालों का भी मिसाल देते हैं।
कहते हैं गीता में लिखा हुआ है जो युद्ध के मैदान में मरेगा वह स्वर्ग में जायेगा, परन्तु स्वर्ग का भी समय चाहिए ना।
स्वर्ग तो लाखों वर्ष कह देते हैं।
अब तुम जानते हो बाप क्या समझाते हैं, गीता में क्या लिख दिया है।
कहते, भगवानुवाच मैं सर्वव्यापी हूँ।
बाप कहते हैं मैं अपने को ऐसी गाली कैसे दूँगा कि मैं सर्वव्यापी हूँ, कुत्ते-बिल्ली सबमें हूँ।
मुझे तो ज्ञान सागर कहते हो।
मैं अपने को फिर यह कैसे कहूँगा?
कितना झूठ है।
ज्ञान तो कोई में है नहीं।
सन्यासियों आदि का मान कितना है, क्योंकि पवित्र हैं।
सतयुग में गुरू तो कोई होता नहीं।
यहाँ तो स्त्री को कहते तुम्हारा पति गुरू ईश्वर है, दूसरा कोई गुरू नहीं करना।
वह तो तब समझाया जाता था जब भक्ति भी सतोप्रधान थी।
सतयुग में तो गुरू था नहीं।
भक्ति की शुरूआत में भी गुरू होते नहीं।
पति ही सब कुछ है।
गुरू नहीं करते।
इन सब बातों को अब तुम समझते हो।
कई मनुष्य तो ब्रह्माकुमार-कुमारियों का नाम सुनकर ही डर जाते हैं क्योंकि समझते हैं यह भाई-बहन बनाते हैं।
अरे, प्रजापिता ब्रह्मा का बच्चा बनना तो अच्छा है ना।
बी.के. ही स्वर्ग का वर्सा लेते हैं।
अभी तुम ले रहे हो।
तुम बी.के. बने हो।
दोनों कहते हैं हम भाई-बहन हैं।
शरीर का भान, विकार की बांस निकल जाती है।
हम एक बाप के बच्चे भाई-बहन विकार में कैसे जा सकते हैं।
यह तो महान पाप है।
यह पवित्र रहने की युक्ति ड्रामा में है।
सन्यासियों का है निवृत्ति मार्ग।
तुम हो प्रवृत्ति मार्ग वाले।
अब तुम्हें इस छी-छी दुनिया की रस्म-रिवाज को छोड़कर इस दुनिया को ही भूल जाना है।
तुम स्वर्ग के मालिक थे फिर रावण ने कितना छी-छी बनाया है।
यह भी बाबा ने समझाया है, कोई कहे हम कैसे मानें कि हमने 84 जन्म लिये हैं। 84 जन्म लिये हैं, यह तो हम अच्छा कहते हैं ना।
84 जन्म नहीं लिया तो ठहरेगा ही नहीं।
समझा जाता है यह देवी-देवता धर्म का नहीं है, स्वर्ग में आ नहीं सकेगा।
प्रजा में भी कम पद लेंगे।
प्रजा में भी अच्छा पद, कम पद है ना।
यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं।
भगवान आकर किंगडम स्थापन करते हैं।
श्रीकृष्ण तो बैकुण्ठ का मालिक था।
स्थापना बाप करते हैं।
बाप ने गीता सुनाई जिससे यह पद पाया फिर तो पढ़ने-पढ़ाने की दरकार ही नहीं।
तुम पढ़कर पद पा लेते हो।
फिर थोड़ेही गीता का ज्ञान पढ़ेंगे।
ज्ञान से सद्गति मिल गई, जितना पुरूषार्थ उतना ऊंच पद पायेंगे।
जितना पुरुषार्थ कल्प पहले किया था वह करते रहते हैं।
साक्षी हो देखना है।
टीचर को भी देखना है, इसने हमको पढ़ाया है, हमको इनसे भी होशियार होना है।
मार्जिन बहुत है।
कोशिश करनी है ऊंच ते ऊंच बनने की।
मूल बात है तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है।
यह समझने की बात है ना।
गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है, बाप को याद करना है तो पावन बन जायेंगे।
यहाँ सब पतित हैं इसमें दु:ख ही दु:ख है।
सुख का राज्य कब था, यह किसको पता नहीं है।
दु:ख में कहते हैं हे भगवान, हे राम, यह दु:ख क्यों दिया?
अब भगवान तो किसको दु:ख देते नहीं।
रावण दु:ख देते हैं।
अभी तुम जानते हो हमारे राज्य में और कोई धर्म नहीं होगा।
फिर बाद में और धर्म आयेंगे।
तुम भल कहाँ भी जाओ।
पढ़ाई साथ है, मनमनाभव का लक्ष्य तो मिला है, बाप को याद करो।
बाप से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं।
यह भी याद नहीं कर सकते।
यह याद पक्की चाहिए।
तो फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।