ओम् शान्ति।
यह बच्चों के अनुभव का गीत है।
सतसंग तो बहुत हैं, खास भारत में तो ढेर सतसंग हैं, अनेक मत-मतान्तर हैं, वास्तव में वह कोई सतसंग नहीं।
सतसंग एक होता है।
बाकी तुम वहाँ किसी विद्वान, आचार्य, पण्डित का मुँह देखेंगे, बुद्धि उस तरफ जायेगी।
यहाँ फिर अनोखी बात है।
यह सतसंग एक ही बार इस संगमयुग पर होता है।
यह तो बिल्कुल नई बात है, उस बेहद के बाप का शरीर तो कोई है नहीं।
कहते हैं मैं तुम्हारा निराकार शिवबाबा हूँ।
तुम और सतसंगों में जाते हो तो शरीरों को ही देखते हो।
शास्त्र याद कर फिर सुनाते हैं, अनेक प्रकार के शास्त्र हैं, वह तो तुम जन्म-जन्मान्तर सुनते आये हो।
अब है नई बात।
बुद्धि से आत्मा जानती है, बाप कहते हैं - हे मेरे सिकीलधे बच्चे, हे मेरे सालिग्रामों!
तुम बच्चे जानते हो 5 हज़ार वर्ष पहले इस शरीर द्वारा बाबा ने पढ़ाया था।
तुम्हारी बुद्धि एकदम दूर चली जाती है।
तो बाबा आया है।
बाबा अक्षर कितना मीठा है।
वह है मात-पिता।
कोई भी सुनेंगे तो कहेंगे पता नहीं इन्हों के मात-पिता कौन हैं?
बरोबर वह साक्षात्कार कराते हैं तो उसमें भी वह मूँझते हैं।
कभी ब्रह्मा को, कभी कृष्ण को देख लेते हैं।
तो विचार करते रहते कि ये क्या है?
ब्रह्मा का भी बहुतों को घर बैठे साक्षात्कार होता है।
अब ब्रह्मा की तो कभी कोई पूजा करते नहीं हैं।
कृष्ण आदि की तो करते हैं।
ब्रह्मा को तो कोई जानते भी नहीं होंगे।
प्रजापिता ब्रह्मा तो अब आया है, यह है प्रजापिता।
बाप बैठ समझाते हैं कि सारी दुनिया पतित है तो जरूर यह भी बहुत जन्मों के अन्त में पतित ठहरे।
कोई भी पावन नहीं है इसलिए कुम्भ के मेले पर, हरिद्वार गंगा सागर के मेले पर जाते हैं, समझते हैं स्नान करने से पावन बन जायेंगे।
लेकिन यह नदियाँ कोई पतित-पावनी थोड़ेही हो सकती।
नदियाँ तो निकलती हैं सागर से।
वास्तव में तुम हो ज्ञान गंगायें, महत्व तुम्हारा है।
तुम ज्ञान गंगायें जहाँ तहाँ निकलती हो, वो लोग फिर दिखलाते हैं, तीर मारा और गंगा निकली।
तीर मारने की तो बात नहीं।
यह ज्ञान गंगायें देश-देशान्तर जाती हैं।
शिवबाबा कहते मैं ड्रामा के बन्धन में बांधा हुआ हूँ।
सभी का पार्ट निश्चित किया हुआ है।
मेरा भी पार्ट निश्चित है।
कोई समझते भगवान तो बहुत ताकतमंद है, मरे हुए को भी जिंदा कर सकते हैं।
यह सभी गपोड़े हैं।
मैं आता हूँ पढ़ाने के लिए।
बाकी ताकत क्या दिखायेंगे।
साक्षात्कार की भी जादूगरी है।
नौधा भक्ति करते हैं तो मैं साक्षात्कार कराता हूँ।
जैसे काली का रूप दिखलाते हैं, उन पर फिर तेल चढ़ाते हैं।
अब ऐसी काली तो है नहीं, परन्तु काली की नौधा भक्ति बहुत करते हैं।
वास्तव में काली तो जगत अम्बा है।
काली का ऐसा रूप तो नहीं, परन्तु नौधा भक्ति करने से बाबा भावना का भाड़ा दे देते हैं।
काम चिता पर बैठने से काले बने, अब ज्ञान चिता पर बैठ गोरे बनते हैं।
जो काली अब जगदम्बा बनी है वह साक्षात्कार कैसे करायेगी।
वह तो अभी बहुत जन्मों के अन्त के भी अन्त वाले जन्म में है।
देवतायें तो अभी हैं नहीं।
तो वह क्या साक्षात्कार करायेंगे।
बाप समझाते हैं यह साक्षात्कार की चाबी मेरे हाथ में है।
अल्पकाल के लिए भावना पूरी करने के लिए साक्षात्कार करा देता हूँ।
परन्तु वह कोई मेरे से नहीं मिलते।
मिसाल एक काली का देते हैं।
इस रीति बहुत हैं - हनुमान, गणेश आदि।
भल सिक्ख लोग भी गुरूनानक की बहुत भक्ति करें तो उन्हें भी साक्षात्कार हो जायेगा।
परन्तु वह तो नीचे चले आते हैं।
बाबा बच्चों को दिखलाते हैं देखो यह गुरूनानक की भक्ति कर रहे हैं।
साक्षात्कार फिर भी मैं कराता हूँ।
वह कैसे साक्षात्कार करायेंगे।
उनके पास साक्षात्कार कराने की चाबी नहीं है।
यह बाबा कहते हैं मुझे विनाश, स्थापना का साक्षात्कार भी उस बाबा ने कराया, परन्तु साक्षात्कार से कोई का भी कल्याण नहीं।
ऐसे तो बहुतों को साक्षात्कार होते थे।
आज वह हैं नहीं।
बहुत बच्चे कहते हैं हमको जब साक्षात्कार हो तो निश्चय बैठे।
परन्तु निश्चय साक्षात्कार से नहीं हो सकता।
निश्चय बैठता है ज्ञान और योग से।
5 हज़ार वर्ष पहले भी मैंने कहा था कि यह साक्षात्कार मैं कराता हूँ।
मीरा ने भी साक्षात्कार किया।
ऐसे नहीं कि आत्मा वहाँ चली गई।
नहीं, बैठे-बैठे साक्षात्कार कर लेते हैं लेकिन मेरे को नहीं प्राप्त कर सकते।
बाप कहते हैं कोई भी बात का संशय हो तो जो भी ब्राह्मणियाँ (टीचर्स) हैं, उनसे पूछो।
यह तो जानते हो बच्चियाँ भी नम्बरवार हैं, नदियाँ भी नम्बरवार होती हैं।
कोई तो तलाव भी हैं,
बहुत गंदा, बांसी पानी होता है।
वहाँ भी श्रद्धाभाव से मनुष्य जाते हैं।
वह है भक्ति की अन्धश्रद्धा।
कभी भी कोई से भक्ति छुड़ानी नहीं है।
जब ज्ञान में आ जायेंगे तो भक्ति आपेही छूट जायेगी।
बाबा भी नारायण का भक्त था, चित्र में देखा लक्ष्मी दासी बन नारायण के पांव दबा रही है तो यह बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।
सतयुग में ऐसा होता नहीं।
तो मैंने एक आर्टिस्ट को कहा कि लक्ष्मी को इस दासीपने से विदाई दे दो।
बाबा भक्त तो था परन्तु ज्ञान थोड़ेही था।
भक्त तो सभी हैं।
हम तो बाबा के बच्चे मालिक हैं।
ब्रह्माण्ड का भी मालिक बच्चों को बनाते हैं।
कहते हैं तुमको राज्य-भाग्य देता हूँ।
ऐसा बाबा कभी देखा?
उस बाप को पूरा याद करना है।
उनको तुम इन आंखों से नहीं देख सकते।
उनसे योग लगाना है।
याद और ज्ञान भी बिल्कुल सहज है।
बीज और झाड़ को जानना है।
तुम उस निराकारी झाड़ से साकारी झाड़ में आये हो।
बाबा ने साक्षात्कार का राज़ भी समझाया।
झाड़ का राज़ भी समझाया।
कर्म-अकर्म-विकर्म की गति भी बाबा ने समझाई है।
बाप, टीचर, गुरू तीनों से ही शिक्षा मिलती है।
अभी बाबा कहते हैं मैं तुमको ऐसी शिक्षा देता हूँ, ऐसे कर्म सिखलाता हूँ जो तुम 21 जन्म सदा सुखी बन जाते हो।
टीचर शिक्षा देते हैं ना।
गुरू लोग भी पवित्रता की शिक्षा देते हैं अथवा कथायें सुनाते हैं।
परन्तु धारणा बिल्कुल नहीं होती।
यहाँ तो बाप कहते हैं अन्त मति सो गति होगी।
मनुष्य जब मरते हैं तो भी कहते हैं राम-राम कहो तो बुद्धि उस तरफ चली जाती है।
अभी बाप कहते हैं तुम्हारा साकार से योग छूटा।
अब मैं तुमको बहुत अच्छे कर्म सिखलाता हूँ।
श्री कृष्ण का चित्र देखो, पुरानी दुनिया को लात मारते और नई दुनिया में आते हैं।
तुम भी पुरानी दुनिया को लात मार नई दुनिया में जाते हो।
तो तुम्हारी नर्क के तरफ है लात, स्वर्ग तरफ है मुँह।
शमशान में भी अन्दर जब घुसते हैं तो मुर्दे का मुँह उस तरफ कर लेते हैं।
लात पिछाड़ी तरफ कर लेते हैं।
तो यह चित्र भी ऐसा बनाया है।
मम्मा, बाबा और तुम बच्चे, तुमको तो मम्मा-बाबा को फालो करना पड़े, जो उनकी गद्दी पर बैठो।
राजा के बच्चे प्रिन्स-प्रिन्सेज कहलाते हैं ना।
तुम जानते हो हम भविष्य में प्रिन्स-प्रिन्सेज बनते हैं।
ऐसा कोई बाप-टीचर-गुरू होगा जो तुमको ऐसे कर्म सिखलाये!
तुम सदाकाल के लिए सुखी बनते हो।
यह शिवबाबा का वर है, वह आशीर्वाद करते हैं।
यह नहीं, हमारे ऊपर उनकी कृपा है।
सिर्फ कहने से कुछ नहीं होगा।
तुमको सीखना होता है।
सिर्फ आशीर्वाद से तुम नहीं बन जायेंगे।
उसकी मत पर चलना है।
ज्ञान और योग की धारणा करनी है।
बाप समझाते हैं कि मुख से राम-राम कहना भी आवाज़ हो जाता।
तुमको तो वाणी से परे जाना है।
चुप रहना है।
खेल भी बहुत अच्छे-अच्छे निकलते हैं।
अनपढ़े को बुद्धू कहा जाता है।
बाबा कहते हैं कि अब सभी को भूल कर तुम बिल्कुल बुद्धू बन जाओ।
मैं जो तुमको मत देता हूँ उस पर चलो।
परमधाम में तुम सभी आत्मायें बिना शरीर के रहती हो फिर यहाँ आकर शरीर लेती हो तब जीव आत्मा कहा जाता है।
आत्मा कहती है मैं एक शरीर छोड़ दूसरा लेती हूँ।
तो बाप कहते मैं तुमको फर्स्टक्लास कर्म सिखलाता हूँ।
टीचर पढ़ाते हैं, इसमें ताकत की क्या बात है।
साक्षात्कार कराते हैं, इसको जादूगरी कहा जाता है।
मनुष्य से देवता बनाना, ऐसी जादूगरी कोई कर न सके।
बाबा सौदागर भी है, पुराना लेकर नया देते हैं।
इनको पुराना लोहे का बर्तन कहा जाता है।
इनका कोई मूल्य नहीं है।
आजकल देखो तांबे के भी पैसे नहीं बनते।
वहाँ तो सोने के सिक्के होते हैं।
वन्डर है ना। क्या से क्या हो गया है!
बाप कहते हैं मैं तुमको नम्बरवन कर्म सिखलाता हूँ।
मनमनाभव हो जाओ।
फिर है पढ़ाई जिससे स्वर्ग का प्रिन्स बनेंगे।
अभी देवता धर्म जो प्राय:लोप हो गया है, वह फिर से स्थापन होता है।
मनुष्य तुम्हारी नई बातें सुनकर वन्डर खाते हैं, कहते हैं कि स्त्री-पुरूष दोनों ही इकट्ठे रह पवित्र रह सकें - यह कैसे हो सकता!
बाबा तो कहते भल इकट्ठे रहो, नहीं तो मालूम कैसे पड़े।
बीच में ज्ञान तलवार रखनी है, इतनी बहादुरी दिखानी है।
परीक्षा होती है।
तो मनुष्य इन बातों में वन्डर खाते हैं क्योंकि शास्त्रों में तो ऐसी बातें हैं नहीं।
यहाँ तो प्रैक्टिकल में मेहनत करनी पड़ती है।
गन्धर्वी विवाह की बात यहाँ की है।
अभी तुम पवित्र बनते हो।
तो बाबा कहते बहादुरी दिखलाओ।
संन्यासियों के आगे सबूत देना है।
समर्थ बाबा ही सारी दुनिया को पावन बनाते हैं।
बाप कहते हैं भल साथ में रहो सिर्फ नंगन नहीं होना है।
यह सभी हैं युक्तियां।
बड़ी जबरदस्त प्राप्ति है सिर्फ एक जन्म बाबा के डायरेक्शन पर पवित्र रहना है।
योग और ज्ञान से एवरहेल्दी बनते हैं 21 जन्मों के लिए, इसमें मेहनत है ना।
तुम हो शक्ति सेना।
माया पर जीत पहन जगतजीत बनते हो।
सभी थोड़ेही बनेंगे।
जो बच्चे पुरूषार्थ करेंगे वही ऊंच पद पायेंगे।
तुम भारत को ही पवित्र बनाकर फिर भारत पर ही राज्य करते हो।
लड़ाई से कभी सृष्टि की बादशाही मिल न सके।
यह वन्डर है ना।
इस समय सब आपस में लड़कर खलास हो जाते हैं।
मक्खन भारत को मिलता है।
दिलाने वाली हैं वन्दे मातरम्।
मैजारटी माताओं की है।
अब बाबा कहते हैं जन्म-जन्मान्तर तुम गुरू करते आये, शास्त्र पढ़ते आये हो।
अब हम तुमको समझाते हैं - जज योर सेल्फ, राइट क्या है?
सतयुग है राइटियस दुनिया।
माया अनराइटियस बनाती है।
अब भारतवासी, इरिलीजस बन पड़े हैं।
रिलीजन नहीं इसलिए माइट नहीं रही है।
इरिलीजस, अनराइटियस, अनलॉफुल, इनसालवेन्ट बन पड़े हैं।
बेहद का बाप है इसलिए बेहद की बातें समझाते हैं, कहते हैं कि फिर तुमको रिलीजस मोस्ट पावरफुल बनाता हूँ।
स्वर्ग बनाना तो पावरफुल का काम है। परन्तु है गुप्त।
इनकागनीटो वारियर्स हैं।
बाप का बच्चों पर बहुत प्यार होता है। मत देते हैं।
बाप की मत, टीचर की मत, गुरू की मत, सोनार की मत, धोबी की मत - इसमें सभी मतें आ जाती हैं।
अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।