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Baba's Murlis - May, 2020
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मुरली से याद के बिन्दु

प्यारे बाबा की बच्चों से चाहना...

28-05-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - देही-अभिमानी बन बाप को याद करो तो याद का बल जमा होगा,

याद के बल से तुम सारे विश्व का राज्य ले सकते हो”

प्रश्नः-

कौन-सी बात तुम बच्चों के ख्याल-ख्वाब में भी नहीं थी, जो प्रैक्टिकल हुई है?

उत्तर:-

तुम्हारे ख्याल ख्वाब में भी नहीं था कि हम भगवान से राजयोग सीखकर विश्व के मालिक बनेंगे।

राजाई के लिए पढ़ाई पढ़ेंगे।

अभी तुम्हें अथाह खुशी है कि सर्वशक्तिमान बाप से बल लेकर हम सतयुगी स्वराज्य अधिकारी बनते हैं।

ओम् शान्ति।

यहाँ बच्चियाँ बैठती हैं प्रैक्टिस के लिए।

वास्तव में यहाँ (संदली पर) बैठना उनको चाहिए जो देही-अभिमानी बन बाप की याद में बैठे।

अगर याद में नहीं बैठेंगी तो वह टीचर कहला नहीं सकती।

याद में शक्ति रहती है, ज्ञान में शक्ति नहीं है।

इसको कहा ही जाता है - याद का बल। योगबल संन्यासियों का अक्षर है।

बाप डिफीकल्ट अक्षर काम में नहीं लाते।

बाप कहते हैं बच्चों अब बाप को याद करो।

जैसे छोटे बच्चे माँ-बाप को याद करते हैं ना।

वह तो देहधारी हैं।

तुम बच्चे हो विचित्र। यह चित्र यहाँ तुमको मिलता है। तुम रहने वाले विचित्र देश के हो।

वहाँ चित्र रहता नहीं।

पहले-पहले यह पक्का करना है - हम तो आत्मा हैं इसलिए बाप कहते हैं - बच्चे, देही-अभिमानी बनो, अपने को आत्मा निश्चय करो।

तुम निर्वाण देश से आये हो। वह तुम सभी आत्माओं का घर है।

यहाँ पार्ट बजाने आते हो।

पहले-पहले कौन आते हैं? यह भी तुम्हारी बुद्धि में है।

दुनिया में कोई नहीं जिसको यह ज्ञान हो।

अब बाप कहते हैं शास्त्र आदि जो कुछ पढ़ते हो उन सबको भूल जाओ।

कृष्ण की महिमा, फलाने की महिमा कितनी करते हैं।

गांधी की भी कितनी महिमा करते हैं।

जैसेकि वह रामराज्य स्थापन करके गये हैं।

परन्तु शिव भगवानुवाच आदि सनातन राजा-रानी के राज्य का जो कायदा था, बाप ने राजयोग सिखाकर राजा-रानी बनाया, उस ईश्वरीय रस्म-रिवाज को भी तोड़ डाला।

बोला राजाई नहीं चाहिए, हमको प्रजा का प्रजा पर राज्य चाहिए।

अब उसकी क्या हालत हुई!

दु:ख ही दु:ख, लड़ते-झगड़ते रहते हैं।

अनेक मतें हो गई हैं।

अभी तुम बच्चे श्रीमत पर राज्य लेते हो।

इतनी तुम्हारे में ताकत रहती है जो वहाँ लश्कर आदि होता नहीं।

डर की कोई बात नहीं।

इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था, अद्वेत राज्य था।

दो थे ही नहीं जो ताली बजे।

उसको कहा ही जाता है - अद्वेत राज्य।

तुम बच्चों को बाप देवता बनाते हैं।

फिर द्वेत से दैत्य बन जाते हैं रावण द्वारा।

अभी तुम बच्चे जानते हो हम भारतवासी सारे विश्व के मालिक थे।

तुमको विश्व का राज्य सिर्फ याद बल से मिला था।

अब फिर मिल रहा है।

कल्प-कल्प मिलता है, सिर्फ याद के बल से।

पढ़ाई में भी बल है। जैसे बैरिस्टर बनते हैं तो बल है ना।

वह है पाई-पैसे का बल। तुम योगबल से विश्व पर राज्य करते हो।

सर्वशक्तिमान बाप से बल मिलता है।

तुम कहते हो - बाबा, हम कल्प-कल्प आपसे सतयुग का स्वराज्य लेते हैं फिर गँवाते हैं, फिर लेते हैं।

तुमको पूरा ज्ञान मिला है। अभी हम श्रीमत पर श्रेष्ठ विश्व का राज्य लेते हैं।

विश्व भी श्रेष्ठ बन जाता है।

यह रचता और रचना का ज्ञान तुमको अभी है।

इन लक्ष्मी-नारायण को भी ज्ञान नहीं होगा कि हमने राजाई कैसे ली!

यहाँ तुम पढ़ते हो फिर जाकर राजाई करते हो।

कोई अच्छे धनवान के घर में जन्म लेते हैं तो कहा जाता है ना इसने आगे जन्म में अच्छा कर्म किया है, दान-पुण्य किया है।

जैसा कर्म ऐसा जन्म मिलता है।

अभी तो यह है ही रावण राज्य।

यहाँ जो भी कर्म करते हैं वह विकर्म होता है।

सीढ़ी उतरनी ही है।

सबसे बड़े ऊंच से ऊंच देवी-देवता धर्म वालों को भी सीढ़ी उतरनी है।

सतो, रजो, तमो में आना है। हर एक चीज़ नई से फिर पुरानी होती है।

तो अभी तुम बच्चों को अथाह खुशी होनी चाहिए।

तुम्हारे ख्याल-ख्वाब (संकल्प-स्वप्न) में भी नहीं था कि हम विश्व के मालिक बनते हैं।

भारतवासी जानते हैं कि इन लक्ष्मी-नारायण का सारे विश्व पर राज्य था। पूज्य थे सो फिर पुजारी बने हैं।

गाया भी जाता है आपेही पूज्य, आपेही पुजारी।

अब तुम्हारी बुद्धि में यह होना चाहिए।

यह नाटक तो बड़ा वन्डरफुल है।

कैसे हम 84 जन्म लेते हैं, उनको कोई नहीं जानते।

शास्त्रों में 84 लाख जन्म लगा देते हैं।

बाप कहते हैं यह सब भक्ति मार्ग के गपोड़े हैं।

रावण राज्य है ना।

राम राज्य और रावण राज्य कैसे होता है, यह तुम बच्चों के सिवाए और कोई की बुद्धि में नहीं है।

रावण को हर वर्ष जलाते हैं, तो दुश्मन है ना।

5 विकार मनुष्य के दुश्मन हैं।

रावण है कौन, क्यों जलाते हैं - कोई भी नहीं जानते।

जो अपने को संगमयुगी समझते हैं उनकी स्मृति में रहता है कि अभी हम पुरूषोत्तम बन रहे हैं।

भगवान हमको राजयोग सिखलाकर नर से नारायण, भ्रष्टाचारी से श्रेष्ठाचारी बनाते हैं।

तुम बच्चे जानते हो हमको ऊंच ते ऊंच निराकार भगवान पढ़ाते हैं।

कितनी अथाह खुशी होनी चाहिए।

स्कूल में स्टूडेन्ट की बुद्धि में रहता है ना - हम स्टूडेन्ट हैं।

वह तो है कॉमन टीचर, पढ़ाने वाला। यहाँ तो तुमको भगवान पढ़ाते हैं।

जब पढ़ाई से इतना ऊंच पद मिलता है तो कितना अच्छा पढ़ना चाहिए।

है बहुत इज़ी सिर्फ सवेरे आधा-पौना घण्टा पढ़ना है।

सारा दिन धन्धे आदि में याद भूल जाती है इसलिए यहाँ सवेरे आकर याद में बैठते हैं।

कहा जाता है बाबा को बहुत प्रेम से याद करो - बाबा, आप हमको पढ़ाने आये हैं, अभी हमको पता पड़ा है कि आप 5 हज़ार वर्ष बाद आकर पढ़ाते हैं।

बाबा के पास बच्चे आते हैं तो बाबा पूछते हैं आगे कब मिले हो?

ऐसा प्रश्न कोई भी साधू-संन्यासी आदि कभी पूछ न सके।

वहाँ तो सतसंग में जो चाहे जाकर बैठते हैं। बहुतों को देखकर सब अन्दर घुस जाते हैं।

तुम भी अभी समझते हो - हम गीता, रामायण आदि कितना खुशी से जाकर सुनते थे।

समझते तो कुछ नहीं थे।

वह सब भक्ति की ही खुशी है।

बहुत खुशी में नाचते रहते हैं।

परन्तु फिर नीचे उतरते आते हैं।

किस्म-किस्म के हठयोग आदि करते हैं।

तन्दुरूस्ती के लिए ही सब करते हैं।

तो बाप समझाते हैं यह सब है भक्ति मार्ग की रस्म-रिवाज।

रचता और रचना को कोई भी नहीं जानते।

तो बाकी रहा ही क्या।

रचता रचना को जानने से तुम क्या बनते हो और न जानने से तुम क्या बन पड़ते हो?

तुम जानने से सालवेन्ट बनते हो, न जानने से वही भारतवासी इनसालवेन्ट बन पड़े हैं।

गपोड़े मारते रहते हैं।

क्या-क्या दुनिया में होता रहता है।

कितने पैसे, सोना आदि लूटते हैं!

अब तुम बच्चे जानते हो - वहाँ तो हम सोने के महल बनायेंगे।

बैरिस्टरी आदि पढ़ते हैं तो अन्दर में रहता है ना - हम यह इम्तहान पास कर फिर यह करेंगे, घर बनायेंगे।

तुमको क्यों नहीं बुद्धि में आता है हम स्वर्ग का प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने के लिए पढ़ रहे हैं।

खुशी कितनी रहनी चाहिए।

परन्तु बाहर जाने से ही खुशी गुम हो जाती है।

छोटी-छोटी बच्चियाँ इस ज्ञान में लग जाती हैं।

सम्बन्धी कुछ भी समझते नहीं, कह देते जादू है।

कहते हैं हम पढ़ने नहीं देंगे।

इस हालत में जब तक सगीर हैं तो माँ-बाप का कहना मानना पड़े।

हम ले नहीं सकते।

बहुत खिट-पिट हो पड़ती है।

शुरू में कितनी खिटपिट हुई।

बच्ची कहे हम 18 वर्ष की हैं, बाप कहे नहीं, 16 वर्ष की है, सगीर है, झगड़ा कर पकड़ ले जाते थे।

सगीर माना ही बाप के हुक्म में चलना है।

बालिग है फिर जो चाहे सो करे।

कायदे भी हैं ना।

बाबा कहते तुम जब बाप के पास आते हो तो कायदा है अपने लौकिक बाप का सर्टीफिकेट (चिट्ठी) लेकर आओ।

फिर मैनर्स भी देखने होते हैं।

मैनर्स ठीक नहीं हैं तो वापिस जाना पड़ेगा।

खेल में भी ऐसे होता है।

ठीक नहीं खेलते तो उनको कहेंगे बाहर जाओ।

आबरू (इज्जत) गँवाते हो।

अभी तुम बच्चे जानते हो हम युद्ध के मैदान में हैं।

कल्प-कल्प बाप आकर हमको माया पर जीत पहनाते हैं।

मूल बात ही है पावन बनने की।

पतित बने हैं विकार से।

बाप कहते हैं काम महाशत्रु है।

यह आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है।

जो ब्राह्मण बनेंगे वही फिर देवी-देवता धर्म में आयेंगे।

ब्राह्मणों में भी नम्बरवार होते हैं।

शमा पर परवाने आते हैं।

कोई तो जल मरते हैं, कोई फेरी पहनकर चले जाते हैं।

यहाँ भी आये हैं, कोई तो एकदम फिदा होते हैं, कोई सुनकर फिर चले जाते हैं।

आगे तो ब्लड से भी लिखकर देते थे - बाबा, हम आपके हैं।

फिर भी माया हरा लेती है।

इतनी माया की युद्ध चलती है, इनको ही युद्ध स्थल कहा जाता है।

यह भी तुम समझते हो।

परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा सभी वेदों-शास्त्रों का सार समझाते हैं।

चित्र तो ढेर बना दिये हैं ना। नारद का भी मिसाल इस समय का है।

सब कहते हैं - हम लक्ष्मी अथवा नारायण बनेंगे।

बाप कहते हैं अपने अन्दर में देखो - हम लायक हैं?

हमारे में कोई विकार तो नहीं हैं?

नारद भक्त तो सब हैं ना।

यह एक मिसाल लिखा है।

भक्ति मार्ग वाले कहते हैं हम श्री लक्ष्मी को वर सकते हैं?

बाप कहते हैं कि नहीं, जब ज्ञान सुनें तब सद्गति को पा सकें।

मैं पतित-पावन ही सबकी सद्गति करने वाला हूँ।

अभी तुम समझते हो बाप हमको रावण राज्य से लिबरेट कर रहे हैं।

वह है जिस्मानी यात्रा। भगवानुवाच - मनमनाभव।

बस, इसमें धक्के खाने की बात नहीं।

वह सब हैं भक्ति मार्ग के धक्के।

आधाकल्प ब्रह्मा का दिन, आधाकल्प है ब्रह्मा की रात।

तुम समझते हो हम सब बी.के. का अभी आधाकल्प दिन होगा।

हम सुखधाम में होंगे।

वहाँ भक्ति नहीं होगी।

अभी तुम बच्चे जानते हो हम सबसे साहूकार बनते हैं, तो कितनी खुशी होनी चाहिए।

तुम सब पहले रफ पत्थर थे, अब बाप सीरान (धार) पर चढ़ा रहे हैं।

बाबा जौहरी भी है ना।

ड्रामा अनुसार बाबा ने रथ भी अनुभवी लिया है।

गायन भी है गांव का छोरा।

कृष्ण गांव का छोरा कैसे हो सकता है।

वह तो सतयुग में था।

उनको तो झूलों में झुलाते हैं।

ताज पहनाते हैं फिर गांव का छोरा क्यों कहते?

गांव के छोरे श्याम ठहरे।

अभी सुन्दर बनने आये हो।

बाप ज्ञान की सीरान पर चढ़ाते हैं ना।

यह सत का संग कल्प-कल्प, कल्प में एक ही बार मिलता है।

बाकी सब हैं झूठ संग इसलिए बाप कहते हैं हियर नो ईविल.... ऐसी बातें मत सुनो जहाँ हमारी और तुम्हारी ग्लानि करते रहते हैं।

जो कुमारियाँ ज्ञान में आती हैं वह तो कह सकती हैं कि हमारा बाप की प्रापर्टी में हिस्सा है।

क्यों न हम उनसे भारत की सेवा अर्थ सेन्टर खोलूँ।

कन्या दान तो देना ही है।

वह हिस्सा हमको दो तो हम सेन्टर खोलें।

बहुतों का कल्याण होगा।

ऐसी युक्ति रचनी चाहिए।

यह है तुम्हारी ईश्वरीय मिशन।

तुम पत्थरबुद्धि को पारसबुद्धि बनाते हो।

जो हमारे धर्म के होंगे वह आयेंगे।

एक ही घर में देवी-देवता धर्म का फूल निकल आयेगा।

बाकी नहीं आयेंगे।

मेहनत लगती है ना।

बाप सभी आत्माओं को पावन बनाकर सबको ले जाते हैं इसलिए बाबा ने समझाया था - संगम के चित्र पर ले जाओ।

इस तरफ है कलियुग, उस तरफ है सतयुग।

सतयुग में हैं देवतायें, कलियुग में हैं असुर।

इसको कहा जाता है पुरूषोत्तम संगमयुग।

बाप ही पुरूषोत्तम बनाते हैं।

जो पढ़ेंगे वह सतयुग में आयेंगे, बाकी सब मुक्तिधाम में चले जायेंगे।

फिर अपने-अपने समय पर आयेंगे।

यह गोले का चित्र बड़ा अच्छा है।

बच्चों को सर्विस का शौक होना चाहिए।

हम ऐसी-ऐसी सर्विस कर, गरीबों का उद्धार कर उनको स्वर्ग का मालिक बनायेंगे।

अच्छा। मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) अपने आपको देखना है हम श्री लक्ष्मी, श्री नारायण समान बन सकते हैं?

हमारे में कोई विकार तो नहीं है?

फेरी लगाने वाले परवाने हैं या फिदा होने वाले?

ऐसे मैनर्स तो नहीं हैं जो बाप की आबरू (इज्जत) जाये।

2) अथाह खुशी में रहने के लिए - सवेरे-सवेरे प्रेम से बाप को याद करना है और पढ़ाई पढ़नी है।

भगवान हमें पढ़ाकर पुरूषोत्तम बना रहे हैं,

हम संगमयुगी हैं, इस नशे में रहना है।

वरदान:-

रूहानी शक्ति को

हर कर्म में यूज़ करने वाले

युक्तियुक्त जीवनमुक्त भव

इस ब्राह्मण जीवन की विशेषता है ही रूहानियत।

रूहानियत की शक्ति से ही स्वयं को वा सर्व को परिवर्तन कर सकते हो।

इस शक्ति से अनेक प्रकार के जिस्मानी बन्धनों से मुक्ति मिलती है।

लेकिन युक्तियुक्त बन हर कर्म में लूज़ होने के बजाए, रूहानी शक्ति को यूज़ करो।

मन्सा-वाचा और कर्मणा तीनों में साथ-साथ रूहानियत की शक्ति का अनुभव हो।

जो तीनों में युक्तियुक्त हैं वो ही जीवनमुक्त हैं।

स्लोगन:-

सत्यता की विशेषता द्वारा खुशी और शक्ति की अनुभूति करते चलो।>