तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है।
तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई-बहन हो, भाई-बहन की गन्दी दृष्टि रह नहीं सकती।
स्त्री-पुरूष साथ रहते दोनों अपने को बी.के. समझते हो।
इस स्मृति से जब पूरा पवित्र बनो तब फ़रिश्ता बन सकेंगे।
ओम् शान्ति।
मीठे-मीठे बच्चों, अपने को आत्मा समझकर यहाँ बैठना है।
यह राज़ तुम बच्चों को भी समझाना है।
आत्म-अभिमानी होकर बैठेंगे तो बाप के साथ प्यार रहेगा।
बाबा हमको राजयोग सिखलाते हैं।
बाबा से हम स्वर्ग का वर्सा ले रहे हैं।
यह याद सारा दिन बुद्धि में रहे-इसमें ही मेहनत है।
यह घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं तो खुशी का पारा डल हो जाता है।
बाबा सावधान करते हैं कि बच्चे देही-अभिमानी होकर बैठो।
अपने को आत्मा समझो।
अभी आत्माओं और परमात्मा का मेला है ना।
मेला लगा था, कब लगा था?
जरूर कलियुग अन्त और सतयुग आदि के संगम पर ही लगा होगा।
आज बच्चों को टॉपिक पर समझाते हैं।
तुमको टॉपिक तो जरूर लेनी है।
ऊंच ते ऊंच है भगवान फिर नीचे आओ तो ब्रह्मा-विष्णु-शंकर।
बाप और देवतायें।
मनुष्यों को यह पता नहीं है शिव और ब्रह्मा-विष्णु-शंकर का सम्बन्ध क्या है?
किसी को भी उन्हों की जीवन कहानी का पता नहीं है।
त्रिमूर्ति का चित्र नामीग्रामी है।
यह तीनों हैं देवतायें।
सिर्फ 3 का धर्म थोड़ेही होता है।
धर्म तो बड़ा होता है, डीटी धर्म।
यह है सूक्ष्मवतन वासी, ऊपर में है शिवबाबा।
मुख्य है ब्रह्मा और विष्णु।
अभी बाप समझाते हैं तुमको टॉपिक देनी है-ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं।
जैसे तुम कहते हो हम शूद्र सो ब्राह्मण, ब्राह्मण सो देवता, वैसे इनका भी है, पहले-पहले ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा।
वह तो कह देते आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा।
यह तो है रांग।
हो भी नहीं सकता।
तो इस टॉपिक पर अच्छी रीति समझाना है, कोई कहते हैं परमात्मा कृष्ण के तन में आये हैं।
अगर कृष्ण में आये फिर तो ब्रह्मा का पार्ट खत्म हो जाता है।
कृष्ण तो है सतयुग का पहला प्रिन्स।
वहाँ पतित हो कैसे सकते, जिनको आकर पावन बनायें।
बिल्कुल ही गलत है।
यह बातें भी महारथी सर्विसएबुल बच्चे ही समझते हैं।
बाकी तो किसकी बुद्धि में बैठता ही नहीं है।
यह टॉपिक तो बहुत फर्स्टक्लास है।
ब्रह्मा सो विष्णु, विष्णु सो ब्रह्मा कैसे बनते हैं।
उनकी जीवन कहानी बतलाते हैं क्योंकि इनका कनेक्शन है।
शुरू ही ऐसे करना है।
ब्रह्मा सो विष्णु एक सेकण्ड में।
विष्णु सो ब्रह्मा बनने में 84 जन्म लगते हैं। यह बड़ी समझने की बातें हैं।
अभी तुम हो ब्राह्मण कुल के।
प्रजापिता ब्रह्मा का ब्राह्मण कुल कहाँ गया?
प्रजापिता ब्रह्मा की तो नई दुनिया चाहिए ना।
नई दुनिया है सतयुग।
वहाँ तो प्रजापिता है नहीं।
कलियुग में भी प्रजापिता हो नहीं सकता।
वह हैं संगमयुग पर।
तुम अभी संगम पर हो।
शूद्र से तुम ब्राह्मण बने हो।
बाप ने ब्रह्मा को एडाप्ट किया है।
शिवबाबा ने इनको कैसे रचा, यह कोई नहीं जानते हैं।
त्रिमूर्ति में रचता शिव का चित्र ही नहीं है, तो मालूम कैसे पड़े कि ऊंच ते ऊंच भगवान है।
बाकी सब हैं उनकी रचना।
यह है ब्राह्मण सम्प्रदाय तो जरूर प्रजापिता चाहिए।
कलियुग में तो हो न सके।
सतयुग में भी नहीं।
गाया जाता है ब्राह्मण देवी-देवताए नम:।
अब ब्राह्मण कहाँ के हैं?
प्रजापिता ब्रह्मा कहाँ का है?
जरूर संगमयुग का कहेंगे।
यह है पुरूषोत्तम संगम युग।
इस संगमयुग का कोई भी शास्त्रों में वर्णन नहीं है।
महाभारत लड़ाई भी संगम पर लगी है, न कि सतयुग या कलियुग में।
पाण्डव और कौरव, यह हैं संगम पर।
तुम पाण्डव संगमयुगी हो, तो कौरव कलियुगी हैं।
गीता में भी भगवानुवाच है ना।
तुम हो पाण्डव दैवी सम्प्रदाय।
तुम रूहानी पण्डे बनते हो।
तुम्हारी है रूहानी यात्रा, जो तुम बुद्धि से करते हो।
बाप कहते हैं अपने को आत्मा समझो।
याद की यात्रा पर रहो।
जिस्मानी यात्रा में तीर्थों आदि पर जाकर फिर लौट आते हैं।
वह आधाकल्प चलती है।
यह संगमयुग की यात्रा एक ही बार की है।
तुम जाकर मृत्युलोक में वापिस नहीं आयेंगे।
पवित्र बन फिर तुमको पवित्र दुनिया में आना है इसलिए तुम अब पवित्र बन रहे हो।
तुम जानते हो अभी हम ब्राह्मण सम्प्रदाय के हैं।
फिर दैवी सम्प्रदाय, विष्णु सम्प्रदाय बनते हैं।
सतयुग में देवी-देवतायें विष्णु सम्प्रदाय हैं।
वहाँ चतुर्भुज की प्रतिमा रहती है, जिससे मालूम पड़ता है यह विष्णु सम्प्रदाय हैं।
यहाँ प्रतिमा है रावण की, तो रावण सम्प्रदाय हैं।
तो यह टॉपिक रखने से मनुष्य वण्डर खायेंगे।
अब तुम देवता बनने के लिए राजयोग सीख रहे हो।
ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण, तुम शूद्र से ब्राह्मण बने हो।
एडाप्ट किये हुए हो।
ब्राह्मण भी यहाँ हैं फिर देवता भी यहाँ बनेंगे।
डिनायस्टी यहाँ ही होती है।
डिनायस्टी राजाई को कहा जाता है।
विष्णु की डिनायस्टी है। ब्राह्मणों की डिनायस्टी नहीं कहेंगे।
डिनायस्टी में राजाई चलती है।
एक पिछाड़ी दूसरा फिर तीसरा।
अभी तुम जानते हो हम हैं ब्राह्मण कुल भूषण।
फिर देवता बनते हैं।
ब्राह्मण सो विष्णु कुल में, विष्णु कुल से आते हैं क्षत्रिय चन्द्रवंशी कुल में, फिर वैश्य कुल में फिर शूद्र कुल में।
फिर ब्राह्मण सो देवता बनेंगे।
अर्थ कितना क्लीयर है।
चित्रों में क्या-क्या दिखाते हैं।
हम ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के मालिक बनते हैं।
इसमें मूँझना नहीं चाहिए।
बाबा जो एसे (निबंध) देते हैं उस पर फिर विचार सागर मंथन करना चाहिए-किसको कैसे समझायें, जो मनुष्य वण्डर खायें कि यह इनकी समझानी तो बहुत अच्छी है।
सिवाए ज्ञान सागर और तो कोई समझा न सके।
विचार सागर मंथन कर फिर बैठ लिखना चाहिए।
फिर पढ़ो तो ख्याल में आयेगा।
यह-यह अक्षर एड करने चाहिए।
बाबा भी पहले-पहले मुरली लिखकर तुमको हाथ में दे देते थे।
फिर सुनाते थे।
यहाँ तो तुम घर में बाबा के साथ रहते हो।
अब तो तुमको बाहर में जाकर सुनाना पड़ता है, यह टॉपिक बड़ी वन्डरफुल है, ब्रह्मा सो विष्णु, इनको कोई नहीं जानते।
विष्णु की नाभी से ब्रह्मा दिखाते हैं।
जैसे गांधी की नाभी से नेहरू।
परन्तु डिनायस्टी तो चाहिए ना।
ब्राह्मण कुल में राजाई नहीं है, ब्राह्मण सम्प्रदाय सो बनते हैं डीटी डिनायस्टी।
फिर चन्द्रवंशी डिनायस्टी में जायेंगे फिर वैश्य डिनायस्टी।
ऐसे हर एक डिनायस्टी चलती है ना।
सतयुग है वाइसलेस वर्ल्ड, कलियुग है विशश वर्ल्ड।
यह दो अक्षर भी कोई की बुद्धि में नहीं हैं।
नहीं तो यह जरूर बुद्धि में होने चाहिए कि विशश से वाइसलेस कैसे बनते हैं।
मनुष्य न वाइसलेस को जानते हैं, न विशश को।
तुमको समझाया जाता है, देवतायें वाइसलेस हैं।
ऐसे कभी नहीं सुना कि ब्राह्मण वाइसलेस हैं।
नई दुनिया है वाइसलेस, पुरानी दुनिया है विशश।
तो जरूर संगमयुग दिखाना पड़े।
इसका किसको भी पता नहीं है।
पुरूषोत्तम मास मनाते हैं ना।
वह 3 वर्ष बाद एक मास मनाते हैं।
तुम्हारा 5 हज़ार वर्ष बाद एक संगमयुग आता है।
मनुष्य आत्मा और परमात्मा को यथार्थ नहीं जानते हैं सिर्फ कह देते हैं चमकता है-अज़ब सितारा।
बस जैसे दिखाते हैं, रामकृष्ण परमहंस का चेला विवेकानंद कहता था मैं गुरू के सामने बैठा था, गुरू का भी ध्यान तो करते हैं ना।
अभी बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।
ध्यान की तो बात ही नहीं, गुरू तो याद है ही।
खास बैठ करके याद करने से याद आयेगा क्या।
उनकी गुरू में भावना थी कि यह भगवान है तो देखा कि उनकी आत्मा निकल मेरे में लीन हो गई।
उनकी आत्मा कहाँ जाकर बैठी फिर क्या हुआ, कुछ भी वर्णन नहीं, बस।
खुश हुआ हमको भगवान का साक्षात्कार हुआ।
भगवान क्या है, वह नहीं जानते।
बाप समझाते हैं सीढ़ी के चित्र पर तुम समझाओ।
यह है भक्ति मार्ग।
तुम जानते हो एक है भक्ति की बोट (नांव), दूसरी है ज्ञान की।
ज्ञान अलग, भक्ति अलग है।
बाबा कहते हैं हमने तुमको कल्प पहले ज्ञान दिया था, विश्व का मालिक बनाया था।
अब तुम कहाँ हो।
तुम बच्चों की बुद्धि में सारा ज्ञान है, कैसे और डिनायस्टी आती, कैसे झाड़ बढ़ता है।
जैसे गुलदस्ता होता है ना।
यह सृष्टि रूपी झाड़ भी फूलदान है।
बीच में तुम्हारा धर्म फिर इनसे और 3 धर्म निकलते हैं फिर उनसे वृद्धि होती जाती है।
तो इस झाड़ को भी याद करना है।
कितनी टाल-टालियां आदि निकलती रहती हैं।
पिछाड़ी में आने वाले का मान भी हो जाता है।
बड़ का झाड़ होता है ना, थुर है नहीं।
बाकी सारा झाड़ खड़ा है।
देवी-देवता धर्म भी खत्म हुआ पड़ा है।
बिल्कुल सड़ गया है।
भारतवासी अपने धर्म को बिल्कुल नहीं जानते और सब अपने धर्म को जानते हैं, यह कहते हम धर्म को मानते ही नहीं।
मुख्य है ही 4 धर्म।
बाकी छोटे-छोटे तो अनेक हैं।
इस झाड़ और सृष्टि चक्र को तुम अभी जानते हो।
देवी-देवता धर्म का नाम ही गुम कर दिया है।
फिर बाप उसकी स्थापना कर बाकी सब धर्म का विनाश कर देते हैं।
गोले के चित्र पर भी जरूर ले जाना चाहिए।
यह सतयुग, यह कलियुग।
कलियुग में कितने धर्म हैं, सतयुग में है एक धर्म। एक धर्म की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश कौन करता होगा?
भगवान भी जरूर किसके द्वारा तो करायेंगे ना।
बाप कहते हैं ब्रह्मा द्वारा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना कराता हूँ।
ब्राह्मण सो विष्णुपुरी के देवता बनते हैं।
संगम पर तुम ब्राह्मणों को पवित्र बनने की ही गुप्त मेहनत करनी पड़ती है।
तुम ब्रह्मा के बच्चे संगम पर भाई-बहन हो।
गन्दी दृष्टि भाई-बहन की रह नहीं सकती।
स्त्री-पुरूष दोनों अपने को बी.के. समझते हैं।
इसमें बड़ी मेहनत है।
स्त्री-पुरूष की कशिश ऐसी है जो बस, हाथ लगाने के बिगर रह नहीं सकते।
यहाँ भाई-बहन को हाथ तो लगाना ही नहीं है, नहीं तो पाप की फीलिंग आती है।
हम बी.के. हैं, यह भूल जाते हैं तो फिर खत्म हो जाते हैं।
इसमें बड़ी गुप्त मेहनत है।
भल युगल हो रहते हैं किसको क्या पता, वह खुद जानते हैं हम बी.के. हैं, फ़रिश्ते हैं।
हाथ लगाना नहीं है।
ऐसे करते-करते सूक्ष्मवतन वासी फ़रिश्ते बन जायेंगे।
नहीं तो फ़रिश्ता बन नहीं सकते।
फ़रिश्ता बनना है तो पवित्र रहना पड़े।
ऐसी जोड़ी निकले तो नम्बरवन जाए।
कहते हैं दादा ने तो सब अनुभव किया, पिछाड़ी में करके सन्यास किया है, बहुत मेहनत तो उनको है जो जोड़ा बन जाते हैं।
फिर उसमें ज्ञान और योग भी चाहिए।
बहुतों को आपसमान बनायें तब बड़ा राजा बनें।
सिर्फ एक बात तो नहीं है ना।
बाप कहते हैं तुम शिवबाबा को याद करो।
यह है प्रजापिता।
बहुत ऐसे भी हैं जो कहते हैं हमारा काम तो शिवबाबा से है।
हम ब्रह्मा को याद ही क्यों करें!
उनको पत्र ही क्यों लिखें!
ऐसे भी हैं।
तुमको याद करना है शिवबाबा को इसलिए बाबा फोटो आदि भी नहीं देते हैं।
इनमें शिवबाबा आता है, यह तो देहधारी है ना।
अभी तो तुम बच्चों को बाप से वर्सा मिलता है।
वह अपने को ईश्वर कहते हैं फिर उनसे क्या मिलता है, कितना घाटा पड़ा है भारतवासियों को।
एक-दम भारतवासियों ने देवाला मारा है।
प्रजा से भीख मांगते रहते हैं।
10-20 वर्ष का लोन लेते हैं फिर देना थोड़ेही है।
लेने वाले, देने वाले दोनों ही खत्म हो जायेंगे।
खेल ही खत्म हो जाना है।
अनेक मुसीबतें सिर पर हैं।
देवाला, बीमारियां आदि बहुत हैं।
कोई साहूकारों के पास रख देते हैं और वह देवाला मार देते हैं तो गरीबों को कितना दु:ख होता है।
कदम-कदम पर दु:ख ही दु:ख है।
अचानक बैठे-बैठे मर जाते हैं।
यह है ही मृत्युलोक।
अमरलोक में तुम अभी जा रहे हो।
अमरपुरी के बादशाह बनते हो।
अमरनाथ तुम पार्वतियों को सच्ची-सच्ची अमरकथा सुना रहे हैं।
तुम जानते हो अमर बाबा है, उनसे हम अमरकथा सुन रहे हैं।
अब अमरलोक जाना है।
इस समय तुम हो संगमयुग पर।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।