बाप बच्चों को समझाते हैं जब यहाँ बैठते हो तो ऐसे भी नहीं कि सिर्फ शिवबाबा की याद में रहना है।
वह हो जायेगी सिर्फ शान्ति फिर सुख भी चाहिए।
तुमको शान्ति में रहना है और स्वदर्शन चक्रधारी बन राजाई को भी याद करना है।
तुम पुरूषार्थ करते ही हो नर से नारायण अथवा मनुष्य से देवता बनने के लिए।
यहाँ भल कितने भी कोई में दैवीगुण हों तो भी उनको देवता नहीं कहेंगे।
देवता होते ही हैं स्वर्ग में।
दुनिया में मनुष्यों को स्वर्ग का पता नहीं है।
तुम बच्चे जानते हो नई दुनिया को स्वर्ग, पुरानी दुनिया को नर्क कहा जाता है।
यह भी भारतवासी ही जानते हैं।
जो देवतायें सतयुग में राज्य करते थे उन्हों के चित्र भी भारत में ही हैं।
यह है आदि सनातन देवी-देवता धर्म के।
फिर भल करके उन्हों के चित्र बाहर में ले जाते हैं, पूजा के लिए।
बाहर कहाँ भी जाते हैं तो जाकर वहाँ मन्दिर बनाते हैं।
हर एक धर्म वाले कहाँ भी जाते हैं तो अपने चित्रों की ही पूजा करते हैं।
जिन-जिन गांवों पर विजय पाते हैं वहाँ चर्च आदि जाकर बनाते हैं।
हर एक धर्म के चित्र अपने-अपने हैं पूजा के लिए।
आगे तुम भी नहीं जानते थे कि हम ही देवी-देवता थे।
अपने को अलग समझकर उन्हों की पूजा करते थे।
और धर्म वाले पूजा करते हैं तो जानते हैं कि हमारा धर्म स्थापक क्राइस्ट है, हम क्रिश्चियन हैं अथवा बौद्धी हैं।
यह हिन्दू लोग अपने धर्म को न जानने कारण अपने को हिन्दू कह देते हैं और पूजते हैं देवताओं को।
यह भी नहीं समझते कि हम आदि सनातन देवी-देवता धर्म के हैं।
हम अपने बड़ों को पूजते हैं।
क्रिश्चियन एक क्राइस्ट को पूजते हैं।
भारतवासियों को यह पता नहीं कि हमारा धर्म कौन-सा है?
वह किसने और कब स्थापन किया था?
बाप कहते हैं यह भारत का आदि सनातन देवी-देवता धर्म जब प्राय: लोप हो जाता है तब मैं आता हूँ फिर से स्थापन करने।
यह ज्ञान अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है।
पहले कुछ भी नहीं जानते थे।
बिगर समझे भक्ति मार्ग में चित्रों की पूजा करते रहते थे।
अभी तुम जानते हो हम भक्ति मार्ग में नहीं हैं।
अभी तुम ब्राह्मण कुल भूषण और शूद्र कुल वालों में रात-दिन का फर्क है।
वह भी इस समय तुम समझते हो।
सतयुग में नहीं समझेंगे।
इस समय ही तुमको समझ मिलती है।
बाप आत्माओं को समझ देते हैं।
पुरानी दुनिया और नई दुनिया का तुम ब्राह्मणों को ही पता है।
पुरानी दुनिया में ढेर मनुष्य हैं।
यहाँ तो मनुष्य कितना लड़ते झगड़ते हैं।
यह है ही कांटों का जंगल।
तुम जानते हो हम भी कांटे थे। अभी बाबा हमको फूल बना रहे हैं।
कांटे इन खुशबूदार फूलों को नमन करते हैं। यह राज़ अभी तुमने जाना है।
हम सो देवता थे जो फिर आकर अब खुशबूदार फूल (ब्राह्मण) बने हैं।
बाप ने समझाया है यह ड्रामा है।
आगे यह ड्रामा, बाइसकोप आदि नहीं थे।
यह भी अभी बने हैं। क्यों बने हैं? क्योंकि बाप को दृष्टान्त देने में सहज हो।
बच्चे भी समझ सकते हैं।
यह साइंस भी तो तुम बच्चों को सीखनी है ना।
बुद्धि में यह सब साइंस के संस्कार ले जायेंगे जो फिर वहाँ काम में आयेंगे।
दुनिया कोई एकदम तो खत्म नहीं हो जाती।
संस्कार ले जाकर फिर जन्म लेते हैं।
विमान आदि भी बनाते हैं।
जो-जो काम की चीजें वहाँ के लायक हैं वह बनती हैं।
स्टीमर बनाने वाले भी होते हैं परन्तु स्टीमर तो वहाँ काम में नहीं आयेंगे।
भल कोई ज्ञान लेवे या न लेवे परन्तु उनके संस्कार काम में नहीं आयेंगे।
वहाँ स्टीमर्स आदि की दरकार ही नहीं।
ड्रामा में है नहीं।
हाँ विमानों की, बिजलियों आदि की दरकार पड़ेगी।
वह इन्वेन्शन निकालते रहते हैं।
वहाँ से बच्चे सीख कर आते हैं।
यह सब बातें तुम बच्चों की बुद्धि में ही हैं।
तुम जानते हो हम पढ़ते ही हैं नई दुनिया के लिए।
बाबा हमको भविष्य 21 जन्मों के लिए पढ़ाते हैं।
हम स्वर्गवासी बनने के लिए पवित्र बन रहे हैं।
पहले नर्कवासी थे।
मनुष्य कहते भी हैं फलाना स्वर्गवासी हुआ।
परन्तु हम नर्क में हैं यह नहीं समझते।
बुद्धि का ताला नहीं खुलता।
तुम बच्चों का अब धीरे-धीरे ताला खुलता जाता है, नम्बरवार।
ताला उनका खुलेगा जो श्रीमत पर चलने लग पड़ेंगे और पतित-पावन बाप को याद करेंगे।
बाप ज्ञान भी देते हैं और याद भी सिखलाते हैं।
टीचर है ना।
तो टीचर जरूर पढ़ायेंगे।
जितना टीचर और पढ़ाई से योग होगा उतना ऊंच पद पायेंगे।
उस पढ़ाई में तो योग रहता ही है।
जानते हैं बैरिस्टर पढ़ाते हैं। यहाँ बाप पढ़ाते हैं।
यह भी भूल जाते हैं क्योंकि नई बात है ना।
देह को याद करना तो बहुत सहज है।
घड़ी-घड़ी देह याद आ जाती है। हम आत्मा हैं यह भूल जाते हैं।
हम आत्माओं को बाप समझाते हैं।
हम आत्मायें भाई-भाई हैं।
बाप तो जानते हैं हम परमात्मा हैं, आत्माओं को सिखलाते हैं कि अपने को आत्मा समझ और आत्माओं को बैठ सिखलाओ।
यह आत्मा कानों से सुनती है, सुनाने वाला है परमपिता परमात्मा।
उनको सुप्रीम आत्मा कहेंगे।
तुम जब किसको समझाते हो तो यह बुद्धि में आना चाहिए कि हमारी आत्मा में ज्ञान है, आत्मा को यह सुनाता हूँ।
हमने बाबा से जो सुना है वह आत्माओं को सुनाता हूँ।
यह है बिल्कुल नई बात।
तुम दूसरे को जब पढ़ाते हो तो देही-अभिमानी होकर नहीं पढ़ाते हो, भूल जाते हो।
मंजिल है ना।
बुद्धि में यह याद रहना चाहिए - मैं आत्मा अविनाशी हूँ।
मैं आत्मा इन कर्मेन्द्रियों द्वारा पार्ट बजा रही हूँ।
तुम आत्मा शूद्र कुल में थी, अभी ब्राह्मण कुल में हो।
फिर देवता कुल में जायेंगे।
वहाँ शरीर भी पवित्र मिलेगा।
हम आत्मायें भाई-भाई हैं।
बाप बच्चों को पढ़ाते हैं।
बच्चे फिर कहेंगे हम भाई-भाई हैं, भाई को पढ़ाते हैं।
आत्मा को ही समझाते हैं।
आत्मा शरीर द्वारा सुनती है।
यह बड़ी महीन बातें हैं।
स्मृति में नहीं आती हैं।
आधाकल्प तुम देह-अभिमान में रहे।
इस समय तुमको देही-अभिमानी हो रहना है।
अपने को आत्मा निश्चय करना है, आत्मा निश्चय कर बैठो।
आत्मा निश्चय कर सुनो।
परमपिता परमात्मा ही सुनाते हैं तब तो कहते हैं ना - आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल..... वहाँ तो नहीं पढ़ाता हूँ।
यहाँ ही आकर पढ़ाता हूँ।
और सभी आत्माओं को अपना-अपना शरीर है।
यह बाप तो है सुप्रीम आत्मा।
उनको शरीर है नहीं।
उनकी आत्मा का ही नाम है शिव।
जानते हो यह शरीर हमारा नहीं है।
मैं सुप्रीम आत्मा हूँ।
मेरी महिमा अलग है।
हर एक की महिमा अपनी-अपनी है ना।
गायन भी है ना - परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं।
वह ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है।
वह सत है, चैतन्य है, आनन्द, सुख-शान्ति का सागर है।
यह है बाप की महिमा।
बच्चे को बाप की प्रापर्टी का मालूम रहता है - हमारे बाप के पास यह कारखाना है, यह मील है, नशा रहता है ना।
बच्चा ही उस प्रापर्टी का मालिक बनता है।
यह प्रापर्टी तो एक ही बार मिलती है।
बाप के पास क्या प्रापर्टी है, वह सुना।
तुम आत्मायें तो अमर हो।
कभी मृत्यु को नहीं पाती हो।
प्रेम के सागर भी बनते ह
ो। यह लक्ष्मी-नारायण प्रेम के सागर हैं।
कभी लड़ते-झगड़ते नहीं।
यहाँ तो कितना लड़ते-झगड़ते हैं।
प्रेम में और ही घोटाला पड़ता है।
बाप आकर विकार बन्द कराते हैं तो कितना मार पड़ती है।
बाप कहते हैं बच्चे पावन बनो तो पावन दुनिया के मालिक बनेंगे।
काम महाशत्रु है इसलिए बाबा के पास आते हैं तो कहते हैं जो विकर्म किये हैं, वह बताओ तो हल्का हो जायेगा, इसमें भी मुख्य विकार की बात है।
बाप बच्चों के कल्याण अर्थ पूछते हैं।
बाप को ही कहते हैं हे पतित-पावन आओ क्योंकि पतित विकार में जाने वाले को ही कहा जाता है।
यह दुनिया भी पतित है, मनुष्य भी पतित हैं, 5 तत्व भी पतित हैं।
वहाँ तुम्हारे लिए तत्व भी पवित्र चाहिए।
इस आसुरी पृथ्वी पर देवताओं की परछाया नहीं पड़ सकती।
लक्ष्मी का आह्वान करते हैं परन्तु यहाँ थोड़ेही आ सकती है।
यह 5 तत्व भी बदलने चाहिए।
सतयुग है नई दुनिया, यह है पुरानी दुनिया।
इनके खलास होने का समय है।
मनुष्य समझते हैं अभी 40 हज़ार वर्ष पड़े हैं।
जबकि कल्प ही 5 हज़ार वर्ष का है तो फिर सिर्फ एक कलियुग 40 हज़ार वर्ष का कैसे हो सकता है।
कितना अज्ञान अन्धियारा है।
ज्ञान है नहीं।
भक्ति है ब्राह्मणों की रात।
ज्ञान है ब्रह्मा और ब्राह्मणों का दिन।
जो अब प्रैक्टिकल में हो रहा है।
सीढ़ी में बड़ा क्लीयर दिखाया हुआ है।
नई दुनिया और पुरानी दुनिया को आधा-आधा कहेंगे।
ऐसे नहीं कि नई दुनिया को जास्ती टाइम, पुरानी दुनिया को थोड़ा टाइम देंगे।
नहीं, पूरा आधा-आधा होगा।
तो क्वार्टर भी कर सकेंगे।
आधा में न हो तो पूरा क्वार्टर भी न हो सके।
स्वास्तिका में भी 4 भाग देते हैं।
समझते हैं हम गणेश निकालते हैं।
अब बच्चे समझते हैं यह पुरानी दुनिया विनाश होनी है।
हम नई दुनिया के लिए पढ़ रहे हैं।
हम नर से नारायण बनते हैं नई दुनिया के लिए।
कृष्ण भी नई दुनिया का है।
कृष्ण का तो गायन हुआ, उनको महात्मा कहते हैं क्योंकि छोटा बच्चा है।
छोटे बच्चे प्यारे लगते हैं।
बड़ों को इतना प्यार नहीं करते हैं जितना छोटों को करते हैं क्योंकि सतोप्रधान अवस्था है।
विकार की बदबू नहीं है।
बड़े होने से विकारों की बदबू हो जाती है।
बच्चों की कभी क्रिमिनल आई हो न सके।
यह आंखें ही धोखा देने वाली हैं इसलिए दृष्टान्त देते हैं कि उसने अपनी आंखें निकाल दी।
ऐसी कोई बात है नहीं।
ऐसे कोई आंखें निकालते नहीं हैं।
यह इस समय बाबा ज्ञान की बातें समझाते हैं।
तुमको तो अभी ज्ञान की तीसरी आंख मिली है।
आत्मा को स्प्रीचुअल नॉलेज मिली है।
आत्मा में ही ज्ञान है।
बाप कहते हैं मुझे ज्ञान है।
आत्मा को निर्लेप नहीं कह सकते।
आत्मा ही एक शरीर छोड़ दूसरा लेती है।
आत्मा अविनाशी है। है कितनी छोटी।
उनमें 84 जन्मों का पार्ट है।
ऐसी बात कोई कह न सके।
वह तो निर्लेप कह देते हैं इसलिए बाप कहते हैं पहले आत्मा को रियलाइज़ करो।
कोई पूछते हैं जानवर कहाँ जायेंगे?
अरे, जानवर की तो बात ही छोड़ो।
पहले आत्मा को तो रियलाइज़ करो।
मैं आत्मा कैसी हूँ, क्या हूँ......?
बाप कहते हैं जबकि अपने को आत्मा ही नहीं जानते हो, मुझे फिर क्या जानेंगे।
यह सब महीन बातें तुम बच्चों की बुद्धि में हैं।
आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है। वह बजता रहता है।
कोई फिर कहते हैं ड्रामा में नूँध है फिर हम पुरूषार्थ ही क्यों करें!
अरे, पुरूषार्थ बिगर तो पानी भी नहीं मिल सकता।
ऐसे नहीं, ड्रामा अनुसार आपेही सब कुछ मिलेगा।
कर्म तो जरूर करना ही है।
अच्छा वा बुरा कर्म होता है।
यह बुद्धि से समझ सकते हैं।
बाप कहते हैं यह रावण राज्य है, इसमें तुम्हारे कर्म विकर्म बन जाते हैं।
वहाँ रावण राज्य ही नहीं जो विकर्म हो।
मैं ही तुमको कर्म, अकर्म, विकर्म की गति समझाता हूँ।
वहाँ तुम्हारे कर्म अकर्म हो जाते हैं, रावण राज्य में कर्म विकर्म हो जाते हैं।
गीता-पाठी भी कभी यह अर्थ नहीं समझाते, वह तो सिर्फ पढ़कर सुनाते हैं, संस्कृत में श्लोक सुनाकर फिर हिन्दी में अर्थ करते हैं।
बाप कहते हैं कुछ-कुछ अक्षर ठीक हैं।
भगवानुवाच है परन्तु भगवान किसको कहा जाता है, यह किसी को पता नहीं है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बेहद बाप के प्रापर्टी की मैं आत्मा मालिक हूँ, जैसे बाप शान्ति, पवित्रता, आनंद का सागर है, ऐसे मैं आत्मा मास्टर सागर हूँ, इसी नशे में रहना है।
2) ड्रामा कह पुरूषार्थ नहीं छोड़ना है, कर्म ज़रूर करने हैं। कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को समझ सदा श्रेष्ठ कर्म ही करने हैं।