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July.2020
Baba's Murlis - July, 2020
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06-07-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - सदैव खुशी में रहो कि हमें कौन पढ़ाता है, तो यह भी मनमना-भव है, तुम्हें खुशी है कि कल हम पत्थर बुद्धि थे, आज पारस बुद्धि बने हैं''

प्रश्नः-

तकदीर खुलने का आधार क्या है?

उत्तर:-

निश्चय। अगर तकदीर खुलने में देरी होगी तो लंगड़ाते रहेंगे।

निश्चय बुद्धि अच्छी रीति पढ़कर गैलप करते रहेंगे।

कोई भी बात में संशय है तो पीछे रह जायेंगे।

जो निश्चय बुद्धि बन अपनी बुद्धि को बाप तक दौड़ाते रहते हैं वह सतोप्रधान बन जाते हैं।

ओम् शान्ति।

स्टूडेन्ट सब स्कूल में पढ़ते हैं तो उनको यह मालूम रहता है कि हमको पढ़कर क्या बनने का है।

मीठे-मीठे रूहानी बच्चों की बुद्धि में आना चाहिए कि हम सतयुग पारसपुरी के मालिक बनते हैं।

इस देह के सम्बन्ध आदि सब छोड़ने हैं।

अब हमको पारसपुरी का मालिक पारसनाथ बनना है, सारा दिन यह खुशी रहनी चाहिए।

समझते हो - पारसपुरी किसको कहा जाता है?

वहाँ मकान आदि सब सोने-चांदी के होते हैं।

यहाँ तो पत्थरों ईटों के मकान हैं।

अब फिर तुम पत्थर बुद्धि से पारस बुद्धि बनते हो।

पत्थर बुद्धि को पारस बुद्धि जब पारसनाथ बनाने वाला बाप आये तब बनाये ना!

तुम यहाँ बैठे हो, जानते हो हमारा स्कूल ऊंच ते ऊंच है।

इससे बड़ा स्कूल कोई होता नहीं।

इस स्कूल से तुम करोड़ पद्म भाग्यशाली विश्व के मालिक बनते हो, तो तुम बच्चों को कितनी खुशी रहनी चाहिए।

इस पत्थरपुरी से पारसपुरी में जाने का यह पुरुषोत्तम संगमयुग है।

कल पत्थर बुद्धि थे, आज पारस बुद्धि बन रहे हैं।

यह बात सदैव बुद्धि में रहे तो भी मनमनाभव ही है।

स्कूल में टीचर आते हैं पढ़ाने लिए।

स्टूडेण्ट को दिल में रहता है अभी टीचर आया कि आया।

तुम बच्चे भी समझते हो - हमारा टीचर तो स्वयं भगवान है।

वह हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं तो जरूर संगम पर आयेंगे।

अभी तुम जानते हो मनुष्य पुकारते रहते हैं और वह यहाँ आ गये हैं।

कल्प पहले भी ऐसा हुआ था तब तो लिखा हुआ है विनाशकाले विपरीत बुद्धि क्योंकि वह हैं पत्थर बुद्धि।

तुम्हारी है विनाश काले प्रीत बुद्धि।

तुम पारस बुद्धि बन रहे हो। तो ऐसी कोई युक्ति निकालनी चाहिए जो मनुष्य जल्दी समझें।

यहाँ भी बहुतों को ले आते हैं, तो भी कहते हैं शिवबाबा ब्रह्मा तन में कैसे पढ़ाते होंगे!

कैसे आते होंगे! कुछ भी समझते नहीं हैं। इतने सब सेन्टर्स पर आते हैं।

निश्चय बुद्धि हैं ना।

सब कहते हैं शिव भगवानुवाच, शिव ही सभी का बाप है।

कृष्ण को थोड़ेही सबका बाप कहेंगे।

इसमें मूँझने की तो बात ही नहीं।

परन्तु तकदीर देरी से खुलने की है तो फिर लंगड़ाते रहते हैं।

कम पढ़ने वाले को कहा जाता है - यह लंगड़ाते हैं।

संशय बुद्धि पीछे रह जायेंगे।

निश्चय बुद्धि अच्छी रीति पढ़ने वाले आगे गैलप करते रहेंगे।

कितना सिम्पुल समझाया जाता है।

जैसे बच्चे दौड़ी लगाकर निशान तक जाकर फिर लौट आते हैं।

बाप भी कहते हैं बुद्धि को जल्दी शिवबाबा पास दौड़ायेंगे तो सतोप्रधान बन जायेंगे।

यहाँ समझते भी अच्छा हैं।

तीर लगता है फिर भी बाहर जाने से खलास हो जाते।

बाबा ज्ञान इन्जेक्शन लगाते हैं तो उसका नशा चढ़ना चाहिए ना।

लेकिन चढ़ता ही नहीं है।

यहाँ ज्ञान अमृत का प्याला पीते हैं तो असर होता है।

बाहर जाने से ही भूल जाते हैं।

बच्चे जानते हैं - ज्ञान सागर, पतित-पावन सद्गति दाता लिबरेटर एक ही बाप है।

वही हर बात का वर्सा देते हैं।

कहते हैं बच्चे तुम भी पूरे सागर बनो।

जितना मेरे में ज्ञान है उतना तुम भी धारण करो।

शिवबाबा को देह का नशा नहीं है।

बाप कहते हैं बच्चे हम तो सदैव शान्त रहते हैं।

तुमको भी जब देह नहीं थी तो नशा नहीं था।

शिवबाबा थोड़ेही कहते हैं यह हमारी चीज़ है।

यह तन लोन लिया है, लोन ली हुई चीज़ अपनी थोड़ेही हुई।

हमने इनमें प्रवेश किया है, थोड़े टाइम के लिए सर्विस करने अर्थ।

अभी तुम बच्चों को वापस घर चलना है, दौड़ी लगानी है भगवान से मिलने के लिए।

इतने यज्ञ-तप आदि करते रहते हैं, समझते थोड़ेही हैं वह मिलेगा कैसे।

समझते हैं कोई न कोई रूप में भगवान आ जायेगा।

बाप समझाते तो बहुत सहज हैं, प्रदर्शनी में भी तुम समझाओ।

सतयुग-त्रेता की आयु भी लिखी हुई है।

उसमें 2500 वर्ष तक बिल्कुल एक्यूरेट है।

सूर्यवंशी के बाद होते हैं चन्द्रवंशी फिर दिखाओ रावण का राज्य शुरू हुआ और भारत पतित होने लगा।

द्वापर-कलियुग में रावण राज्य हुआ, तिथि-तारीख लगी हुई है।

बीच में रखो संगमयुग।

रथी भी जरूर चाहिए ना।

इस रथ में प्रवेश हो बाप राजयोग सिखलाते हैं, जिससे यह लक्ष्मी-नारायण बनते हैं।

किसको भी समझाना तो बहुत सहज है।

लक्ष्मी-नारायण की डिनॉयस्टी कितना समय चलती है।

और सब घराने हैं हद के, यह है बेहद का।

इस बेहद की हिस्ट्री-जॉग्राफी को जानना चाहिए ना।

अभी है संगमयुग। फिर दैवी राज्य स्थापन हो रहा है।

इस पत्थरपुरी, पुरानी दुनिया का विनाश होना है।

विनाश न हो तो नई दुनिया कैसे बनेंगी!

अब कहते हैं न्यु देहली।

अभी तुम बच्चे जानते हो न्यु देहली कब होगी।

नई दुनिया में नई दिल्ली होती है।

गाते भी हैं जमुना के कण्ठे पर महल होते हैं।

जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य है तब कहेंगे न्यु दिल्ली, पारसपुरी।

नया राज्य तो सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का ही होता है।

मनुष्य तो यह भी भूल गये हैं कि ड्रामा कैसे शुरू होता है।

कौन-कौन मुख्य एक्टर्स हैं, वह जानना चाहिए ना।

एक्टर्स तो बहुत हैं इसलिए मुख्य एक्टर्स को तुम जानते हो।

तुम भी मुख्य एक्टर्स बन रहे हो।

सबसे मुख्य पार्ट तुम बजा रहे हो।

तुम रूहानी सोशल वर्कर्स हो।

बाकी सब सोशल वर्कर्स हैं जिस्मानी।

तुम रूहों को समझाते हो, पढ़ती रूह है।

मनुष्य समझते हैं जिस्म पढ़ता है।

यह किसको भी पता नहीं है कि आत्मा इन आरगन्स द्वारा पढ़ती है।

हम आत्मा बैरिस्टर आदि बनता हूँ।

बाबा हमको पढ़ाते हैं।

संस्कार भी आत्मा में रहते हैं।

संस्कार ले जायेंगे फिर आकर नई दुनिया में राज्य करेंगे।

जैसे सतयुग में राजधानी चली थी वैसे ही शुरू हो जायेगी।

इसमें कुछ पूछने की दरकार नहीं रहती।

मुख्य बात है - देह-अभिमान में कभी नहीं आओ।

अपने को आत्मा समझो।

कोई भी विकर्म नहीं करो।

याद में रहो, नहीं तो एक विकर्म का बोझ सौ गुणा हो जायेगा।

हडगुड एकदम टूट जाते हैं।

उसमें भी मुख्य विकार है काम।

कई कहते हैं - बच्चे तंग करते हैं फिर मारना पड़ता है।

अब यह कोई पूछने का नहीं रहता है।

यह तो छोटा पाई-पैसे का पाप कहेंगे।

तुम्हारे सिर पर तो जन्म-जन्मान्तर के पाप हैं, पहले उनको तो भस्म करो।

बाप पावन होने का बहुत सहज उपाय बतलाते हैं।

तुम एक बाप की याद से पावन बन जायेंगे।

भगवानुवाच - बच्चों प्रति, तुम आत्माओं से बात करता हूँ।

और कोई मनुष्य ऐसे समझ न सकें।

वह तो अपने को शरीर ही समझते हैं।

बाप कहते हैं मैं आत्माओं को समझाता हूँ।

गाया भी जाता है, आत्माओं और परमात्मा का मेला लगता है, इसमें कोई आवाज़ आदि नहीं करनी है।

यह तो पढ़ाई है।

दूर-दूर से आते हैं बाबा के पास।

निश्चय बुद्धि जो होंगे उनको जोर से कशिश होगी आगे चलकर।

अभी इतनी कशिश कोई को होती नहीं है क्योंकि याद नहीं करते हैं।

मुसाफिरी से जब लौटते हैं, घर के नजदीक आते हैं तो मकान याद आयेगा, बच्चे याद आयेंगे, घर पहुँचते ही खुशी में आकर मिलेंगे।

खुशी बढ़ती जायेगी।

पहले-पहले स्त्री याद आयेगी फिर बाल-बच्चे आदि याद आयेंगे।

तुमको याद आयेगा कि हम घर जाते हैं वहाँ बाप और बच्चे ही होते हैं।

डबल खुशी होती है।

शान्तिधाम घर जायेंगे फिर आयेंगे राजधानी में।

बस याद ही करना है, बाप कहते हैं मनमनाभव।

अपने को आत्मा समझ बाप और वर्से को याद करो।

बाबा तुम बच्चों को गुल-गुल बनाकर, नयनों पर बिठाकर साथ ले जाते हैं।

ज़रा भी तकलीफ नहीं। जैसे मच्छरों का झुण्ड जाता है ना।

तुम आत्मायें भी ऐसे जायेंगी बाप के साथ।

पावन बनने के लिए तुम बाप को याद करते हो, घर को नहीं।

बाबा की नज़र पहले-पहले गरीब बच्चों पर जाती है।

बाबा गरीब निवाज़ है ना।

तुम भी गांव में सर्विस करने जाते हो।

बाप कहते हैं मैं भी तुम्हारे गांव को आकर पारसपुरी बनाता हूँ।

अभी तो यह नर्क पुरानी दुनिया है।

इनको जरूर तोड़ना पड़े।

नई दुनिया में नई दिल्ली, वह सतयुग में ही होगी।

वहाँ राज्य भी तुम्हारा होगा।

तुमको नशा चढ़ता है हम फिर से अपनी राजधानी स्थापन करेंगे।

जैसे कल्प पहले की थी।

यह थोड़ेही कहेंगे हम ऐसे-ऐसे मकान बनायेंगे।

नहीं, तुम जायेंगे वहाँ तो ऑटोमेटिक तुम वह बनाने लग पड़ेंगे क्योंकि वह आत्मा में पार्ट भरा हुआ है।

यहाँ पार्ट है सिर्फ पढ़ने का।

वहाँ तुम्हारी बुद्धि में आपेही आयेगा कि ऐसे-ऐसे हम महल बनायें।

जैसे कल्प पहले बनाया था, वह बनाने लग पड़ेंगे।

आत्मा में भी पहले से ही नूँध है।

तुम वही महल बनायेंगे जिन महलों में तुम कल्प-कल्प रहते हो।

इन बातों को नया कोई समझ न सके।

तुम समझते हो हम आते हैं, नई-नई प्वाइंट्स सुन रिफ्रेश होकर जाते हैं।

नई-नई प्वाइंट्स निकलती हैं, वह भी ड्रामा में नूँध है।

बाबा कहते हैं बच्चे, मैं इस बैल पर (रथ पर) सदैव सवारी करूँ, इसमें मुझे सुख नहीं भासता है।

मैं तो तुम बच्चों को पढ़ाने आता हूँ।

ऐसे नहीं, बैल पर सवारी कर बैठे ही हैं।

रात-दिन बैल पर सवारी होती है क्या?

उनका तो सेकण्ड में आना-जाना होता है।

सदैव बैठने का कायदा ही नहीं।

बाबा कितना दूर से आते हैं पढ़ाने के लिए, घर तो उनका वह है ना।

सारा दिन शरीर में थोड़ेही बैठेगा, उनको सुख ही नहीं आयेगा।

जैसे पिंजड़े में तोता फँस जाता है।

मैं तो यह लोन लेता हूँ तुमको समझाने के लिए।

तुम कहेंगे ज्ञान का सागर बाबा आते हैं हमको पढ़ाने के लिए।

खुशी में रोमांच खड़े हो जाने चाहिए।

वह खुशी फिर कम थोड़ेही होनी चाहिए।

यह धनी तो स्थाई बैठे हैं।

एक बैल पर दो की सवारी सदैव होगी क्या?

शिवबाबा रहता है अपने धाम में।

यहाँ आते हैं, आने में देरी थोड़ेही लगती है।

रॉकेट देखो कितने तीखे होते हैं।

आवाज़ से भी तीखे।

आत्मा भी बहुत छोटा रॉकेट है।

आत्मा भागती कैसे है, यहाँ से झट गई लण्डन।

एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति गाई है।

बाबा खुद भी रॉकेट है।

कहते हैं मैं तुमको पढ़ाने के लिए आता हूँ।

फिर जाता हूँ अपने घर।

इस समय बहुत बिजी रहता हूँ।

दिव्य दृष्टि दाता हूँ, तो भक्तों को राज़ी करना होता है।

तुमको पढ़ाता हूँ।

भक्तों की दिल होती है साक्षात्कार हो या कुछ न कुछ भीख मांगते हैं।

सबसे जास्ती भीख जगत अम्बा से मांगते हैं।

तुम जगत अम्बा हो ना।

तुम विश्व की बादशाही की भीख देती हो।

गरीबों को भीख मिलती है ना।

हम भी गरीब हैं तो शिवबाबा स्वर्ग की बादशाही भीख में देते हैं।

भीख कुछ और नहीं, सिर्फ कहते हैं बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।

शान्तिधाम में चले जायेंगे।

मुझे याद करो तो मैं गैरन्टी करता हूँ तुम्हारी आयु भी बड़ी हो जायेगी।

सतयुग में मृत्यु का नाम नहीं होता।

वह है अमरलोक, वहाँ मृत्यु का नाम नहीं होता।

सिर्फ एक खाल छोड़ दूसरी लेते हैं, इसको मृत्यु कहेंगे क्या!

वह है अमरपुरी।

साक्षात्कार होता है हमको बच्चा बनना है।

खुशी की बात है।

बाबा की दिल होती है अब जाकर बच्चा बनूँ।

जानते हैं गोल्डन स्पून इन माउथ होगा।

एक ही सिकीलधा बाप का बच्चा हूँ।

बाप ने एडाप्ट किया है।

मैं सिकीलधा बच्चा हूँ तो बाबा कितना प्यार करते हैं।

एकदम प्रवेश कर लेते हैं।

यह भी खेल है ना।

खेल में हमेशा खुशी होती है।

यह भी जानते हैं जरूर बहुत-बहुत भाग्यशाली रथ होगा।

जिसके लिए गायन है ज्ञान सागर, इनमें प्रवेश कर तुमको ज्ञान देते हैं।

तुम बच्चों के लिए एक ही खुशी बहुत है - भगवान आकर पढ़ाते हैं।

भगवान स्वर्ग की राजाई स्थापन करते हैं।

हम उनके बच्चे हैं तो फिर हम नर्क में क्यों हैं!

यह किसकी भी बुद्धि में नहीं आता।

तुम तो भाग्यशाली हो जो विश्व का मालिक बनने के लिए पढ़ते हो।

ऐसी पढ़ाई पर कितना अटेन्शन देना चाहिए।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) इसी डबल खुशी में रहना है कि अब मुसाफिरी पूरी हुई, पहले हम अपने घर शान्तिधाम में जायेंगे फिर अपनी राजधानी में आयेंगे।

2) सिर पर जो जन्म-जन्मान्तर के पापों का बोझ है उसे भस्म करना है, देह-अभिमान में आकर कोई भी विकर्म नहीं करना है।

वरदान:-

मन की स्वतंत्रता द्वारा

सर्व आत्माओं को शान्ति का दान देने वाले

मन्सा महादानी भव

बांधेलियां तन से भल परतंत्र हैं लेकिन मन से यदि स्वतंत्र हैं तो अपनी वृत्ति द्वारा, शुद्ध संकल्प द्वारा विश्व के वायुमण्डल को बदलने की सेवा कर सकती हैं।

आजकल विश्व को आवश्यकता है मन के शान्ति की।

तो मन से स्वतंत्र आत्मा मन्सा द्वारा शान्ति के वायब्रेशन फैला सकती है।

शान्ति के सागर बाप की याद में रहने से आटोमेटिक शान्ति की किरणें फैलती हैं।

ऐसे शान्ति का दान देने वाले ही मन्सा महादानी हैं।

स्लोगन:-

स्नेह रूप का अनुभव तो सुनाते हो अब शक्ति रूप का अनुभव सुनाओ।