रूहानी बच्चे यह तो जान चुके हैं कि ऊंच ते ऊंच भगवान है।
मनुष्य गाते हैं और तुम देखते हो दिव्य दृष्टि से।
तुम बुद्धि से भी जानते हो कि हमको वह पढ़ा रहे हैं।
आत्मा ही पढ़ती है शरीर से।
सब कुछ आत्मा ही करती है शरीर से।
शरीर विनाशी है, जिसको आत्मा धारण कर पार्ट बजाती है।
आत्मा में ही सारे पार्ट की नूँध है।
84 जन्मों की भी आत्मा में ही नूँध है।
पहले-पहले तो अपने को आत्मा समझना है।
बाप है सर्वशक्तिमान्।
उनसे तुम बच्चों को शक्ति मिलती है।
योग से शक्ति जास्ती मिलती है, जिससे तुम पावन बनते हो।
बाप तुमको शक्ति देते हैं विश्व पर राज्य करने की।
इतनी महान शक्ति देते हैं, वह साइंस घमन्डी आदि इतना सब बनाते हैं विनाश के लिए।
उनकी बुद्धि है विनाश के लिए, तुम्हारी बुद्धि है अविनाशी पद पाने के लिए।
तुमको बहुत शक्ति मिलती है जिससे तुम विश्व पर राज्य पाते हो।
वहाँ प्रजा का प्रजा पर राज्य नहीं होता है।
वहाँ है ही राजा-रानी का राज्य।
ऊंच ते ऊंच है भगवान।
याद भी उनको करते हैं।
लक्ष्मी-नारायण का सिर्फ मन्दिर बनाकर पूजते हैं।
फिर भी ऊंच ते ऊंच भगवान गाया जाता है।
अभी तुम समझते हो यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे।
ऊंच ते ऊंच विश्व की बादशाही मिलती है बेहद के बाप से।
तुमको कितना ऊंच पद मिलता है।
तो बच्चों को कितनी खुशी होनी चाहिए।
जिससे कुछ मिलता है उनको याद किया जाता है ना।
कन्या का पति से कितना लॅव रहता है, कितना पति के पिछाड़ी प्राण देती है।
पति मरता है तो या-हुसैन मचा देती है।
यह तो पतियों का पति है, तुमको कितना श्रृंगार रहे हैं - यह ऊंच ते ऊंच पद प्राप्त कराने के लिए। तो तुम बच्चों में कितना नशा होना चाहिए।
दैवीगुण भी तुमको यहाँ धारण करने हैं।
बहुतों में अभी तक आसुरी अवगुण हैं, लड़ना-झगड़ना, रूठना, सेन्टर पर धमपा मचाना..... बाबा जानते हैं बहुत रिपोर्टस आती हैं।
काम महाशत्रु है तो क्रोध भी कोई कम शत्रु नहीं है।
फलाने के ऊपर प्यार, मेरे ऊपर क्यों नहीं!
फलानी बात इनसे पूछी, मेरे से क्यों नहीं पूछा!
ऐसे-ऐसे बोलने वाले संशय बुद्धि बहुत हैं।
राजधानी स्थापन होती है ना।
ऐसे-ऐसे क्या पद पायेंगे।
मर्तबे में तो फ़र्क बहुत रहता है।
मेहतर भी देखो अच्छे-अच्छे महलों में रहते, कोई कहाँ रहते।
हर एक को अपना पुरूषार्थ कर दैवीगुण अच्छे धारण करने हैं।
देह-अभिमान में आने से आसुरी एक्टिविटी होती है।
जब देही-अभिमानी बन अच्छी रीति धारणा करते रहो तब ऊंच पद पाओ।
पुरूषार्थ ऐसा करना है, दैवीगुण धारण करने का, किसको दु:ख नहीं देना है।
तुम बच्चे दु:ख हर्ता, सुख कर्ता बाप के बच्चे हो।
कोई को भी दु:ख नहीं देना चाहिए।
जो सेन्टर सम्भालते हैं उन पर बहुत रेसपान्सिबिलिटी है।
जैसे बाप कहते हैं - बच्चे, अगर कोई भूल करता है तो सौगुणा दण्ड पड़ जाता है।
देह-अभिमान होने से बड़ा घाटा होता है क्योंकि तुम ब्राह्मण सुधारने के लिए निमित्त बने हुए हो।
अगर खुद ही नहीं सुधरे तो औरों को क्या सुधारेंगे।
बहुत नुकसान हो पड़ता है।
पाण्डव गवर्मेन्ट है ना।
ऊंच ते ऊंच बाप है उनके साथ धर्मराज भी है।
धर्मराज द्वारा बहुत बड़ी सज़ा खाते हैं।
ऐसे कुछ कर्म करते हैं तो बहुत घाटा पड़ जाता है।
हिसाब ही हिसाब है, बाबा के पास पूरा हिसाब रहता है।
भक्ति मार्ग में भी हिसाब ही हिसाब है।
कहते भी हैं भगवान तुम्हारा हिसाब लेगा।
यहाँ बाप खुद कहते हैं धर्मराज बहुत हिसाब लेंगे।
फिर उस समय क्या कर सकेंगे!
साक्षात्कार होगा - हमने यह-यह किया।
वहाँ तो थोड़ी मार पड़ती है, यहाँ तो बहुत मार खानी पड़ेगी।
तुम बच्चों को सतयुग में गर्भ जेल में नहीं आना है।
वहाँ तो गर्भ महल है।
कोई पाप आदि करते नहीं।
तो ऐसा राज्य-भाग्य पाने के लिए बच्चों को बहुत खबरदार होना है।
कई बच्चे ब्राह्मणी (टीचर) से भी तीखे हो जाते हैं।
तकदीर ब्राह्मणी से भी ऊंची हो जाती है।
यह भी बाप ने समझाया है - अच्छी सर्विस नहीं करेंगे तो जन्म-जन्मान्तर दास-दासियाँ बनेंगे।
बाप सम्मुख आते ही बच्चों से पूछते हैं - बच्चे, देही-अभिमानी होकर बैठे हो?
बाप के बच्चों प्रति महावाक्य हैं - बच्चे, आत्म-अभिमानी बनने का बहुत पुरूषार्थ करना है।
घूमते फिरते भी विचार सागर मंथन करते रहना है।
बहुत बच्चे हैं जो समझते हैं हम जल्दी-जल्दी इस नर्क की छी-छी दुनिया से जायें सुखधाम।
बाप कहते हैं अच्छे-अच्छे महारथी योग में बहुत फेल हैं।
उन्हों को भी पुरूषार्थ कराया जाता है।
योग नहीं होगा तो एकदम गिर पड़ेंगे।
नॉलेज तो बहुत सहज है।
हिस्ट्री-जॉग्राफी सारी बुद्धि में आ जाती है।
बहुत अच्छी-अच्छी बच्चियां हैं जो प्रदर्शनी समझाने में बड़ी तीखी हैं।
परन्तु योग है नहीं, दैवीगुण भी नहीं हैं।
कभी-कभी ख्याल होता है, अजुन क्या-क्या अवस्थायें हैं बच्चों की।
दुनिया में कितना दु:ख है।
जल्दी-जल्दी यह खत्म हो जाए।
इन्तज़ार में बैठे हैं, जल्दी चलें सुखधाम।
तड़फते रहते हैं।
जैसे बाप से मिलने लिए तड़फते हैं, क्योंकि बाबा हमको स्वर्ग का रास्ता बताते हैं।
ऐसे बाप को देखने लिए तड़फते हैं।
समझते हैं ऐसे बाप के सम्मुख जाकर रोज़ मुरली सुनें।
अभी तो समझते हो यहाँ कोई झंझट की बात नहीं रहती है।
बाहर में रहने से तो सबसे तोड़ निभाना पड़ता है।
नहीं तो खिटपिट हो जाए इसलिए सबको धीरज देते हैं।
इसमें बड़ी गुप्त मेहनत है।
याद की मेहनत कोई से पहुँचती नहीं।
गुप्त याद में रहें तो बाप के डायरेक्शन पर भी चलें।
देह-अभिमान के कारण बाप के डायरेक्शन पर चलते ही नहीं।
कहता हूँ चार्ट बनाओ तो बहुत उन्नति होगी।
यह किसने कहा?
शिवबाबा ने।
टीचर काम देते हैं तो करके आते हैं ना।
यहाँ अच्छे-अच्छे बच्चों को भी माया करने नहीं देती।
अच्छे-अच्छे बच्चों का चार्ट बाबा के पास आये तो बाबा बतायें देखो कैसे याद में रहते हो। समझते हैं हम आत्मायें आशिक, एक माशूक की हैं।
वह जिस्मानी आशिक-माशूक तो अनेक प्रकार के होते हैं।
तुम बहुत पुराने आशिक हो।
अभी तुमको देही-अभिमानी बनना है।
कुछ न कुछ सहन करना ही पड़ेगा।
मिया मिट्ठू नहीं बनना है।
बाबा ऐसे थोड़ेही कहते हड्डी दे दो।
बाबा तो कहते हैं तन्दुरूस्ती अच्छी रखो तो सर्विस भी अच्छी रीति कर सकेंगे।
बीमार होंगे तो पड़े रहेंगे।
कोई-कोई हॉस्पिटल में भी समझाने की सर्विस करते हैं तो डॉक्टर लोग कहते हैं यह तो फ़रिश्ते हैं।
चित्र साथ में ले जाते हैं।
जो ऐसी-ऐसी सर्विस करते हैं उनको रहमदिल कहेंगे।
सर्विस करते हैं तो कोई-कोई निकल पड़ते हैं।
जितना-जितना याद बल में रहेंगे उतना मनुष्यों को तुम खीचेंगे, इसमें ही ताकत है।
प्योरिटी फर्स्ट।
कहा भी जाता है पहले प्योरिटी, पीस, पीछे प्रासपर्टी।
याद के बल से ही तुम पवित्र होते हो।
फिर है ज्ञान बल।
याद में कमजोर मत बनो।
याद में ही विघ्न पड़ेंगे।
याद में रहने से तुम पवित्र भी बनेंगे और दैवीगुण भी आयेंगे।
बाप की महिमा तो जानते हो ना।
बाप कितना सुख देते हैं।
21 जन्मों के लिए तुमको सुख के लायक बनाते हैं।
कभी भी किसको दु:ख नहीं देना चाहिए।
कई बच्चे डिससर्विस कर अपने आपको जैसे श्रापित करते हैं, दूसरों को बहुत तंग करते हैं।
कपूत बच्चा बनते हैं तो अपने आपको आपेही श्रापित कर देते हैं।
डिससर्विस करने से एकदम पट पड़ जाते हैं।
बहुत बच्चे हैं जो विकार में गिर पड़ते हैं या क्रोध में आकर पढ़ाई छोड़ देते हैं।
अनेक प्रकार के बच्चे यहाँ बैठे हैं।
यहाँ से रिफ्रेश होकर जाते हैं तो भूल का पश्चाताप् करते हैं।
फिर भी पश्चाताप् से कोई माफ नहीं हो सकता है।
बाप कहते हैं क्षमा अपने पर आपेही करो।
याद में रहो।
बाप किसको क्षमा नहीं करते हैं।
यह तो पढ़ाई है।
बाप पढ़ाते हैं, बच्चों को अपने पर कृपा कर पढ़ना है।
मैनर्स अच्छे रखने हैं।
बाबा ब्राह्मणी को कहते हैं, रजिस्टर ले आओ।
एक-एक का समाचार सुनकर समझानी दी जाती है।
तो समझते हैं ब्राह्मणी ने रिपोर्ट दी है और ही जास्ती डिससर्विस करने लग पड़ते हैं।
बड़ी मेहनत लगती है।
माया बड़ी दुश्मन है।
बन्दर से मन्दिर बनने नहीं देती है।
ऊंच पद पाने के बदले और ही बिल्कुल नीचे गिर पड़ते हैं।
फिर कभी उठ न सकें, मर पड़ते हैं।
बाप बच्चों को बार-बार समझाते हैं यह बड़ी ऊंच मंजिल है, विश्व का मालिक बनना है।
बड़े आदमी के बच्चे बड़ी रायॅल्टी से चलते हैं।
कहाँ बाप की इज्जत न जाये।
कहेंगे तुम्हारा बाप कितना अच्छा है, तुम कितने कपूत हो।
तुम अपने बाप की इज्जत गँवा रहे हो!
यहाँ तो हर एक अपनी इज्जत गँवाते हैं।
बहुत सज़ायें खानी पड़ती हैं।
बाबा वारनिंग देते हैं, बड़े खबरदार हो चलो।
जेल बर्डस न बनो।
जेल बर्डस भी यहाँ होते हैं, सतयुग में तो कोई भी जेल नहीं होता।
फिर भी पढ़कर ऊंच पद पाना चाहिए।
ग़फलत नहीं करो।
किसको भी दु:ख मत दो।
याद की यात्रा पर रहो।
याद ही काम में आयेगी।
प्रदर्शनी में भी मुख्य बात यही बताओ।
बाप की याद से ही पावन बनेंगे।
पावन बनने तो सब चाहते हैं।
यह है ही पतित दुनिया। सर्व की सद्गति करने तो एक ही बाप आते हैं।
क्राइस्ट, बुद्ध आदि कोई की सद्गति नहीं कर सकते।
फिर ब्रह्मा का भी नाम लेते हैं।
ब्रह्मा को भी सद्गति दाता नहीं कह सकते।
जो देवी-देवता धर्म का निमित्त है।
भल देवी-देवता धर्म की स्थापना तो शिवबाबा करते हैं फिर भी नाम तो है ना - ब्रह्मा-विष्णु-शंकर....।
त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह देते।
बाप कहते हैं यह भी गुरू नहीं।
गुरू तो एक ही है, उनके द्वारा तुम रूहानी गुरू बनते हो।
बाकी वह है धर्म स्थापक।
धर्म स्थापक को सद्गति दाता कैसे कह सकते, यह बड़ी डीप बातें हैं समझने की।
अन्य धर्म स्थापक तो सिर्फ धर्म स्थापन करते हैं, जिसके पिछाड़ी सब आ जाते हैं, वह कोई सबको वापिस नहीं ले जा सकते।
उनको तो पुनर्जन्म में आना ही है, सबके लिए यह समझानी है।
एक भी गुरू सद्गति के लिए नहीं है।
बाप समझाते हैं गुरू पतित-पावन एक ही है, वही सर्व के सद्गति दाता, लिबरेटर हैं, बताना चाहिए हमारा गुरू एक ही है, जो सद्गति देते हैं, शान्तिधाम, सुखधाम ले जाते हैं।
सतयुग आदि में बहुत थोड़े होते हैं।
वहाँ किसका राज्य था, चित्र तो दिखायेंगे ना।
भारतवासी ही मानेंगे, देवताओं के पुजारी झट मानेंगे कि बरोबर यह तो स्वर्ग के मालिक हैं।
स्वर्ग में इनका राज्य था।
बाकी सब आत्मायें कहाँ थी?
जरूर कहेंगे निराकारी दुनिया में थे।
यह भी तुम अभी समझते हो।
पहले कुछ भी पता नहीं था।
अभी तुम्हारी बुद्धि में चक्र फिरता रहता है।
बरोबर 5 हज़ार वर्ष पहले भारत में इनका राज्य था, जब ज्ञान की प्रालब्ध पूरी होती है तो फिर भक्ति मार्ग शुरू होता है फिर चाहिए पुरानी दुनिया से वैराग्य।
बस अभी हम नई दुनिया में जायेंगे।
पुरानी दुनिया से दिल उठ जाता है।
वहाँ पति बच्चे आदि सब ऐसे मिलेंगे।
बेहद का बाप तो हमको विश्व का मालिक बनाते हैं।
जो विश्व का मालिक बनने वाले बच्चे हैं, उनके ख्यालात बहुत ऊंचे और चलन बड़ी रॉयल होगी।
भोजन भी बहुत कम, जास्ती हबच नहीं होनी चाहिए।
याद में रहने वाले का भोजन भी बहुत सूक्ष्म होगा।
बहुतों की खाने में भी बुद्धि चली जाती है।
तुम बच्चों को तो खुशी है विश्व का मालिक बनने की।
कहा जाता है खुशी जैसी खुराक नहीं।
ऐसी खुशी में सदैव रहो तो खान-पान भी बहुत थोड़ा हो जाए।
बहुत खाने से भारी हो जाते हैं फिर झुटका आदि खाते हैं।
फिर कहते बाबा नींद आती है।
भोजन सदैव एकरस होना चाहिए, ऐसे नहीं कि अच्छा भोजन है तो बहुत खाना चाहिए!
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।