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July.2020
Baba's Murlis - July, 2020
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09-07-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - जब समय मिले तो एकान्त में बैठ विचार सागर मंथन करो, जो प्वाइंट्स सुनते हो उसको रिवाइज़ करो''

प्रश्नः-

तुम्हारी याद की यात्रा पूरी कब होगी?

उत्तर:

- जब तुम्हारी कोई भी कर्मेद्रियाँ धोखा न दें, कर्मातीत अवस्था हो जाए तब याद की यात्रा पूरी होगी।

अभी तुमको पूरा पुरुषार्थ करना है, नाउम्मीद नहीं बनना है।

सर्विस पर तत्पर रहना है।

ओम् शान्ति।

मीठे-मीठे बच्चे आत्म-अभिमानी होकर बैठे हो?

बच्चे समझते हैं आधाकल्प हम देह-अभिमानी रहे हैं।

अब देही-अभिमानी हो रहने के लिए मेहनत करनी पड़ती है।

बाप आकर समझाते हैं अपने को आत्मा समझकर बैठो तब ही बाप याद आयेगा।

नहीं तो भूल जायेंगे।

याद नहीं करेंगे तो यात्रा कैसे कर सकेंगे!

पाप कैसे कटेंगे!

घाटा पड़ जायेगा।

यह तो घड़ी-घड़ी याद करो।

यह है मुख्य बात।

बाकी तो बाप अनेक प्रकार की युक्तियां बतलाते हैं।

रांग क्या है, राइट क्या है - वह भी समझाया है।

बाप तो ज्ञान का सागर है।

भक्ति को भी जानते हैं।

बच्चों को भक्ति में क्या-क्या करना पड़ता है।

समझाते हैं यह यज्ञ तप आदि करना, यह सब है भक्ति मार्ग।

भल बाप की महिमा करते हैं, परन्तु उल्टी।

वास्तव में कृष्ण की महिमा भी पूरी नहीं जानते।

हर एक बात को समझना चाहिए ना।

जैसे कृष्ण को वैकुण्ठ नाथ कहा जाता है।

अच्छा, बाबा पूछते हैं, कृष्ण को त्रिलोकीनाथ कहा जा सकता है?

गाया जाता है ना - त्रिलोकीनाथ।

अब त्रिलोकी के नाथ अर्थात् तीन लोक मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन।

तुम बच्चों को समझाया जाता है तुम ब्रह्माण्ड के भी मालिक हो।

कृष्ण ऐसे समझते होंगे कि हम ब्रह्माण्ड के मालिक हैं? नहीं।

वह तो वैकुण्ठ में थे।

वैकुण्ठ कहा जाता है स्वर्ग नई दुनिया को।

तो वास्तव में त्रिलोकीनाथ कोई भी है नहीं।

बाप राईट बात समझाते हैं।

तीन लोक तो हैं।

ब्रह्माण्ड का मालिक शिवबाबा भी है, तुम भी हो।

सूक्ष्मवतन की तो बात ही नहीं।

स्थूल वतन में भी वह मालिक नहीं है, न स्वर्ग का, न नर्क का मालिक है।

कृष्ण है स्वर्ग का मालिक।

नर्क का मालिक है रावण।

इनको रावण राज्य, आसुरी राज्य कहा जाता है।

मनुष्य कहते भी हैं परन्तु समझते नहीं हैं।

तुम बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं।

रावण को 10 शीश देते हैं।

5 विकार स्त्री के, 5 विकार पुरूष के।

अब 5 विकार तो सबके लिए हैं।

सब हैं ही रावण राज्य में।

अभी तुम श्रेष्ठाचारी बन रहे हो।

बाप आकर श्रेष्ठाचारी दुनिया बनाते हैं।

एकान्त में बैठने से ऐसे-ऐसे विचार सागर मंथन चलेगा।

उस पढ़ाई के लिए भी स्टूडेण्ट एकान्त में किताब ले जाकर पढ़ते हैं।

तुमको किताब तो पढ़ने की दरकार नहीं।

हाँ, तुम प्वाइंट्स नोट करते हो।

इसको फिर रिवाइज़ करना चाहिए।

यह बड़ी गुह्य बातें हैं समझने की।

बाप कहते हैं ना - आज तुमको गुह्य ते गुह्य नई-नई प्वाइंट्स समझाता हूँ।

पारसपुरी के मालिक तो लक्ष्मी-नारायण हैं।

ऐसे भी नहीं कहेंगे कि विष्णु हैं।

विष्णु को भी समझते नहीं हैं कि यही लक्ष्मी-नारायण है।

अभी तुम शॉर्ट में एम आबजेक्ट समझाते हो।

ब्रह्मा-सरस्वती कोई आपस में मेल-फीमेल नहीं हैं।

यह तो प्रजापिता ब्रह्मा है ना।

प्रजापिता ब्रह्मा को ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर कह सकते हैं, शिवबाबा को सिर्फ बाबा ही कहेंगे।

बाकी सब हैं ब्रदर्स।

इतने सब ब्रह्मा के बच्चे हैं।

सबको मालूम है - हम भगवान के बच्चे ब्रदर्स हो गये।

परन्तु वह है निराकारी दुनिया में।

अभी तुम ब्राह्मण बने हो।

नई दुनिया सतयुग को कहा जाता है।

इनका नाम फिर पुरुषोत्तम संगमयुग रखा है।

सतयुग में होते ही हैं पुरुषोत्तम।

यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं।

तुम नई दुनिया के लिए तैयार हो रहे हो।

इस संगमयुग पर ही तुम पुरुषोत्तम बनते हो।

कहते भी हैं हम लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।

यह हैं सबसे उत्तम पुरुष।

उन्हों को फिर देवता कहा जाता है।

उत्तम से उत्तम नम्बरवन हैं लक्ष्मी-नारायण फिर नम्बरवार तुम बच्चे बनेंगे।

सूर्यवंशी घराने को उत्तम कहेंगे।

नम्बरवन तो हैं ना।

आहिस्ते-आहिस्ते कला कम होती है।

अभी तुम बच्चे नई दुनिया का मुहूर्त करते हो।

जैसे नया घर तैयार होता है तो बच्चे खुश होते हैं।

मुहूर्त करते हैं।

तुम बच्चे भी नई दुनिया को देख खुश होते हो।

मुहूर्त करते हो।

लिखा हुआ भी है सोने के फूलों की वर्षा होती है।

तुम बच्चों को कितना खुशी का पारा चढ़ना चाहिए।

तुमको सुख और शान्ति दोनों मिलते हैं।

दूसरा कोई नहीं जिनको इतना सुख और शान्ति मिले।

दूसरे धर्म आते हैं तो द्वैत हो जाता है।

तुम बच्चों को अपार खुशी है - हम पुरुषार्थ कर ऊंच पद पायें।

ऐसे नहीं कि जो तकदीर में होगा सो मिलेगा, पास होने होंगे तो होंगे।

नहीं, हर बात में पुरुषार्थ जरूर करना है।

पुरुषार्थ नहीं पहुँचता है तो कह देते जो नसीब में होगा।

फिर पुरुषार्थ करना ही बन्द हो जाता है।

बाप कहते हैं तुम माताओं को कितना ऊंच बनाता हूँ।

फीमेल का मान सब जगह है।

विलायत में भी मान है।

यहाँ बच्ची पैदा होती है तो उल्टा मंझा (उल्टी चारपाई) कर देते।

दुनिया बिल्कुल ही डर्टी है।

इस समय तुम बच्चे जानते हो भारत क्या था, अब क्या है।

मनुष्य भूल गये हैं सिर्फ शान्ति-शान्ति मांगते रहते हैं।

विश्व में शान्ति चाहते हैं।

तुम यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र दिखाओ।

इन्हों का राज्य था तो पवित्रता-सुख-शान्ति भी थी।

तुमको ऐसा राज्य चाहिए ना।

मूलवतन में तो विश्व की शान्ति नहीं कहेंगे।

विश्व में शान्ति तो यहाँ होगी ना।

देवताओं का राज्य सारे विश्व में था।

मूलवतन तो है आत्माओं की दुनिया।

मनुष्य तो यह भी नहीं जानते कि आत्माओं की दुनिया होती है।

बाप कहते हैं हम तुमको कितना ऊंच पुरुषोत्तम बनाता हूँ।

यह समझाने की बात है।

ऐसे नहीं, रड़ियाँ मारेंगे - भगवान आया है, तो कोई मानेगा नहीं।

और ही गाली खायेंगे और खिलायेंगे।

कहेंगे बी.के. अपने बाबा को भगवान कहती हैं।

ऐसे सर्विस नहीं होती है।

बाबा युक्ति बताते रहते हैं।

कमरे में 8-10 चित्र दीवाल में अच्छी रीति लगा दो और बाहर में लिख दो - बेहद के बाप से बेहद सुख का वर्सा लेना है अथवा मनुष्य से देवता बनना है, तो आओ हम आपको समझायें।

ऐसे बहुत आने लग पड़ेंगे।

आपेही आते रहेंगे।

विश्व में शान्ति तो थी ना।

अभी इतने ढेर धर्म हैं।

तमोप्रधान दुनिया में शान्ति कैसे हो सकती है।

विश्व में शान्ति वह तो भगवान ही कर सकता है।

शिवबाबा आते हैं जरूर कुछ सौगात लाते होंगे।

एक ही बाप है जो इतना दूर से आते हैं और यह बाबा एक ही बार आते हैं।

इतना बड़ा बाबा 5 हज़ार वर्ष के बाद आते हैं।

मुसाफिरी से लौटते हैं तो बच्चों के लिए सौगात ले आते हैं ना।

स्त्री का पति भी, बच्चों का बाप तो बनते हैं ना।

फिर दादा, परदादा, तरदादा बनते हैं।

इनको तुम बाबा कहते हो फिर ग्रैन्ड फादर भी होगा।

ग्रेट ग्रैन्ड फादर भी होगा।

बिरादरियां हैं ना।

एडम, आदि देव नाम है परन्तु मनुष्य समझते नहीं हैं।

तुम बच्चों को बाप बैठ समझाते हैं।

बाप द्वारा सृष्टि चक्र की हिस्ट्री-जॉग्राफी को तुम जानकर चक्रवर्ती राजा बन रहे हो।

बाबा कितना प्यार और रूचि से पढ़ाते हैं तो इतना पढ़ना चाहिए ना।

सवेरे का टाइम तो सब फ्री होते हैं।

सुबह का क्लास होता है - आधा पौना घण्टा, मुरली सुनकर फिर चले जाओ।

याद तो कहाँ भी रहते कर सकते हो।

इतवार का दिन तो छुट्टी है।

सवेरे 2-3 घण्टा बैठ जाओ।

दिन की कमाई को मेकप कर लो।

पूरी झोली भर दो।

टाइम तो मिलता है ना।

माया के तूफान आने से याद नहीं कर सकते हैं।

बाबा बिल्कुल सहज समझाते हैं।

भक्ति मार्ग में कितने सतसंगों में जाते हैं।

कृष्ण के मन्दिर में, फिर श्रीनाथ के मन्दिर में, फिर और किसके मन्दिर में जायेंगे।

यात्रा में भी कितने व्यभिचारी बनते हैं।

इतनी तकलीफ भी लेते, फायदा कुछ नहीं।

ड्रामा में यह भी नूँध है फिर भी होगा।

तुम्हारी आत्मा में पार्ट भरा हुआ है।

सतयुग त्रेता में जो पार्ट कल्प पहले बजाया है वही बजायेंगे।

मोटी बुद्धि यह भी नहीं समझते हैं।

जो महीन बुद्धि हैं वही अच्छी रीति समझ कर समझा सकते हैं।

उन्हें अन्दर भासना आती है कि यह अनादि नाटक बना हुआ है।

दुनिया में कोई नहीं समझते यह बेहद का नाटक है।

इनको समझने में भी टाइम लगता है।

हर एक बात डीटेल में समझाकर फिर कहा जाता है - मुख्य है याद की यात्रा।

सेकण्ड में जीवनमुक्ति भी गाया हुआ है।

और फिर यह भी गायन है कि ज्ञान का सागर है।

सारा सागर स्याही बनाओ, जंगल को कलम बनाओ, धरती को कागज़ बनाओ.... तो भी अन्त नहीं आ सकती।

शुरू से लेकर तुम कितना लिखते आये हो।

ढेर कागज हो जाएं।

तुमको कोई धक्का नहीं खाना है।

मुख्य है ही अल्फ।

बाप को याद करना है।

यहाँ भी तुम आते हो शिवबाबा के पास।

शिवबाबा इनमें प्रवेश कर तुमको कितना प्यार से पढ़ाते हैं।

कोई भी बड़ाई नहीं है।

बाप कहते हैं मैं आता हूँ पुराने शरीर में।

कैसे साधारण रीति शिवबाबा आकर पढ़ाते हैं।

कोई अहंकार नहीं।

बाप कहते हैं तुम मुझे कहते ही हो बाबा पतित दुनिया, पतित शरीर में आओ, आकर हमको शिक्षा दो।

सतयुग में नहीं बुलाते हो कि आकर हीरे-जवाहरातों के महल में बैठो, भोजन आदि पाओ..... शिवबाबा भोजन पाते ही नहीं।

आगे बुलाते थे कि आकर भोजन खाओ।

36 प्रकार का भोजन खिलाते थे, यह फिर भी होगा।

यह भी चरित्र ही कहें।

कृष्ण के चरित्र क्या हैं?

वह तो सतयुग का प्रिन्स है।

उनको पतित-पावन नहीं कहा जाता।

सतयुग में यह विश्व के मालिक कैसे बने हैं - यह भी अभी तुम जानते हो।

मनुष्य तो बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं।

अभी तुम घोर रोशनी में हो।

बाप आकर रात को दिन बना देते हैं।

आधाकल्प तुम राज्य करते हो तो कितनी खुशी होनी चाहिए।

तुम्हारी याद की यात्रा पूरी तब होगी जब तुम्हारी कोई भी कर्मेन्द्रियां धोखा न दें।

कर्मातीत अवस्था हो जाए तब याद की यात्रा पूरी होगी।

अभी पूरी नहीं हुई है।

अभी तुमको पूरा पुरूषार्थ करना है।

नाउम्मीद नहीं बनना है।

सर्विस और सर्विस।

बाप भी आकर बूढ़े तन से सर्विस कर रहे हैं ना।

बाप करनकरावनहार है।

बच्चों के लिए कितना फिकर रहता है - यह बनाना है, मकान बनाना है।

जैसे लौकिक बाप को हद के ख्यालात रहते हैं, वैसे पारलौकिक बाप को बेहद का ख्याल रहता है।

तुम बच्चों को ही सर्विस करनी है। दिन-प्रतिदिन बहुत सहज होता जाता है।

जितना विनाश के नजदीक आते जायेंगे उतना ताकत आती जायेगी।

गाया हुआ भी है भीष्मपितामह आदि को पिछाड़ी में तीर लगे।

अभी तीर लग जाए तो बहुत हंगामा हो जाए।

इतनी भीड़ हो जाए जो बात मत पूछो।

कहते हैं ना - माथा खुजलाने की फुर्सत नहीं।

ऐसे कोई है नहीं।

परन्तु भीड़ हो जाती है तो फिर ऐसे कहा जाता है।

जब इन्हों को तीर लग जाए तो फिर तुम्हारा प्रभाव निकलेगा।

सब बच्चों को बाप का परिचय मिलना तो है।

तुम 3 पैर पृथ्वी में भी यह अविनाशी हॉस्पिटल और गॉडली युनिवर्सिटी खोल सकते हो।

पैसा नहीं है तो भी हर्जा नहीं है।

चित्र तुमको मिल जायेंगे।

सर्विस में मान-अपमान, दु:ख-सुख, ठण्डी-गर्मी, सब सहन करनी है।

किसको हीरे जैसा बनाना कम बात है क्या!

बाप कभी थकता है क्या?

तुम क्यों थकते हो?

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) सवेरे के समय आधा पौना घण्टा बहुत प्यार वा रूचि से पढ़ाई पढ़नी है।

बाप की याद में रहना है।

याद का ऐसा पुरूषार्थ हो जो सब कर्मेन्द्रियाँ वश में हो जाएं।

2) सर्विस में दु:ख-सुख, मान-अपमान, गर्मी-ठण्डी सब कुछ सहन करना है।

कभी भी सर्विस में थकना नहीं है।

3 पैर पृथ्वी में भी हॉस्पिटल कम युनिवर्सिटी खोल हीरे जैसा बनाने की सेवा करनी है।

वरदान:-

सर्व शक्तियों की लाइट द्वारा

आत्माओं को रास्ता दिखाने वाले

चैतन्य लाइट हाउस भव

यदि सदा इस स्मृति में रहो कि मैं आत्मा विश्व कल्याण की सेवा के लिए परमधाम से अवतरित हुई हूँ तो जो भी संकल्प करेंगे, बोल बोलेंगे उसमें विश्व कल्याण समाया हुआ होगा।

और यही स्मृति लाइट हाउस का कार्य करेगी।

जैसे उस लाइट हाउस से एक रंग की लाइट निकलती है ऐसे आप चैतन्य लाइट हाउस द्वारा सर्व शक्तियों की लाइट आत्माओं को हर कदम में रास्ता दिखाने का कार्य करती रहेगी।

स्लोगन:-

स्नेह और सहयोग के साथ शक्ति रूप बनो तो राजधानी में नम्बर आगे मिल जायेगा।