02.02.1969
यही बापदादा की बच्चों में आशा है। आना-जाना ज्यादा नहीं होना चाहिए। यह यथार्थ है। कमाई किसमें है? तो बाप बच्चों की कमाई को देखते हैं और कमाई के लायक बनाते हैं। इसलिए यह सभी रहस्य बोलते रहे। अभी समझा कि क्यों कहा था और अब क्या है? सूक्ष्मवतन के अव्यक्त अनुभव को अनुभव करो। सूक्ष्म स्थिति को अनुभव करो। ..."
09.06.1969
लायक बने, नजदीक आये फिर भी मुख्य कौन सा अटेन्शन कम है, जिस कारण अव्यक्त स्थिति कम रहती है? सभी पुरुषार्थी ही यहाँ बैठे हो। ऐसा कोई होगा जो कहे मैं पुरुषार्थी नहीं हूँ। पुरुषार्थी होते हुए भी कमी क्यों? क्या कारण है? अन्तर्मुख रहना चाहते हुए भी क्यों नहीं रह सकते हो? बाहरमुखता में भी क्यों आ जाते हो? ज्ञानी तू आत्मा भी तो सभी बने हैं, ज्ञानी तू आत्मा, समझदार बनते हुए फिर बेसमझ क्यों बन जाते हो। समझ तो मिली है। समझ का कोर्स भी पूरा हो चूका है। कोर्स पूरा हुआ गोया समझदार बन ही गये। फिर भी बेसमझ क्यों बनते हो? मुख्य कारण यह देखा जाता है कोई-कोई में अलबेलापन आ गया है, जिसको सुस्ती कहते हैं। सुस्ती का मीठा रूप है आलस्य। आलस्य भी कई प्रकार का होता है। तो मैजारिटी में किस न किस रूप में आलस्य और अलबेलापन आ गया है। इच्छा भी है, पुरुषार्थ भी है लेकिन अलबेलापन होने कारण जिस तरह से पुरुषार्थ करना चाहिए वह नहीं कर पाते हैं। ..."
27.08.1969
आज बगीचे में जो बैठे हैं अपने को ऐसा फूल समझते हैं जो कि गुलदस्ते में शोभा देने लायक हो? ..."
13.11.1969
परिचय देकर लायक बनाये। एक से ही अनेक बनने हैं। यह चेक करो कि हम ऐसे बने हैं। अनेकों को बनाया है? उसमें भी क्वान्टिटी तो बन रहे है। क्वालिटी बनाना है। क्वान्टिटी बनाना सहज है लेकिन क्वालिटी वाले बनाना - यह उम्मीद बापदादा सितारों में रखते हैं। अभी यह कार्य रहा हुआ है।..."
17.11.1969
लायक बच्चे ही श्रेष्ठ सौगात है। तो लिफ्ट में चढ़ने के लिये बाप की गिफ्ट बनना और फिर जो कुछ है वह भी गिफ्ट में देना पड़ेगा। गिफ्ट देनी भी पड़ेगी और बाप की गिफ्ट बनना भी पड़ेगा तब लिफ्ट में बैठ सकेंगे। ..." |