27-07-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन

“मीठे बच्चे - अपने ऊपर आपेही रहम करो, बाप जो श्रीमत देते हैं उस पर चलते रहो, बाप की श्रीमत है - बच्चे, टाइम वेस्ट न करो, सुल्टा कार्य करो''

प्रश्नः-

जो तकदीरवान बच्चे हैं, उनकी मुख्य धारणा कौन-सी होगी?

उत्तर:-

तकदीरवान बच्चे सवेरे-सवेरे उठकर बाप को बहुत प्यार से याद करेंगे।

बाबा से मीठी-मीठी बातें करेंगे।

कभी भी अपने ऊपर बेरहमी नहीं करेंगे।

वह पास विद ऑनर होने का पुरूषार्थ कर स्वयं को राजाई के लायक बनायेंगे।

ओम् शान्ति।

बच्चे बाप के सामने बैठे हैं तो जानते हैं कि हमारा बेहद का बाप है और हमको बेहद का सुख देने के लिए श्रीमत दे रहे हैं।

उनके लिए गाया ही जाता है - रहमदिल, लिबरेटर....... बहुत महिमा करते हैं।

बाप कहते हैं सिर्फ महिमा की भी बात नहीं।

बाप का तो फर्ज़ है बच्चों को मत देना।

बेहद का बाप भी मत देते हैं।

ऊंच ते ऊंच बाप है तो जरूर उनकी मत भी ऊंच ते ऊंच होगी।

मत लेने वाली आत्मा है, अच्छा वा बुरा काम आत्मा ही करती है।

इस समय दुनिया को मिलती है रावण की मत।

तुम बच्चों को मिलती है राम की मत।

रावण की मत से बेरहम हो उल्टा काम करते हैं।

बाप मत देते हैं सुल्टा अच्छा कार्य करो।

सबसे अच्छा कार्य अपने ऊपर रहम करो।

तुम जानते हो हम आत्मा सतोप्रधान थी, बहुत सुखी थी फिर रावण की मत मिलने से तुम तमोप्रधान बन गये हो।

अब फिर बाप मत देते हैं कि एक तो बाप की याद में रहो।

अब अपने पर रहम करो, यह मत देते हैं।

बाप रहम नहीं करते। बाप तो श्रीमत देते हैं ऐसे-ऐसे करो।

अपने ऊपर आपेही रहम करो।

अपने को आत्मा समझ और अपने पतित-पावन बाप को याद करो तो तुम पावन बन जायेंगे।

बाप राय देते हैं, तुम पावन कैसे बनेंगे।

बाप ही पतित को पावन बनाने वाला है।

वह श्रीमत देते हैं।

अगर उनकी मत पर नहीं चलते हैं तो अपने ऊपर बेरहम होते हैं।

बाप श्रीमत देते हैं कि बच्चे टाइम वेस्ट मत करो।

यह पाठ पक्का कर लो कि हम आत्मा हैं।

शरीर निर्वाह अर्थ धन्धा आदि भल करो फिर भी टाइम निकाल युक्ति रचो।

काम करते आत्मा की बुद्धि बाप तरफ होनी चाहिए।

जैसे आशिक-माशुक भी काम तो करते हैं ना।

दोनों एक-दो के ऊपर आशिक होते हैं।

यहाँ ऐसे नहीं है।

तुम भक्ति मार्ग में भी याद करते हो।

कई कहते हैं कैसे याद करें?

आत्मा का, परमात्मा का रूप क्या है, जो याद करें?

क्योंकि भक्ति मार्ग में तो गाया जाता है कि परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है।

परन्तु ऐसे नहीं है।

कहते भी हैं भ्रकुटी के बीच में आत्मा स्टार मिसल है फिर क्यों कहते हैं कि आत्मा क्या है, उनको देख नहीं सकते।

वह तो है ही जानने की चीज़।

आत्मा को जाना जाता है, परमात्मा को भी जाना जाता है।

वह अति सूक्ष्म चीज़ है।

फायरफ्लाई से भी महीन है।

शरीर से कैसे निकल जाती, पता भी नहीं पड़ता।

आत्मा है, साक्षात्कार होता है।

आत्मा का दीदार हुआ सो क्या।

वह तो स्टॉर मिसल सूक्ष्म है।

अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।

जैसे आत्मा, वैसे परमात्मा भी सोल है।

परन्तु परमात्मा को कहा जाता है - सुप्रीम सोल।

वह जन्म-मरण में नहीं आते।

आत्मा को सुप्रीम तब कहा जाए जब जन्म-मरण रहित हो।

बाकी मुक्तिधाम में तो सबको पवित्र होकर जाना है।

उनमें भी नम्बरवार हैं, जिनका हीरो-हीरोइन का पार्ट है।

आत्मायें नम्बरवार तो हैं ना।

नाटक में भी कोई बहुत पगार वाले, कोई कम वाले होते हैं।

लक्ष्मी-नारायण की आत्मा को मनुष्य आत्माओं में सुप्रीम कहेंगे।

भल पवित्र तो सभी बनते हैं फिर भी नम्बरवार पार्ट है।

कोई महाराजा, कोई दासी, कोई प्रजा।

तुम एक्टर्स हो।

जानते हो इतने सब देवतायें नम्बरवार हैं।

अच्छा पुरूषार्थ करेंगे, ऊंच आत्मा बनेंगे, ऊंच पद पायेंगे।

तुमको स्मृति आई है हमने 84 जन्म कैसे लिये।

अब बाप के पास जाना है।

बच्चों को यह खुशी भी है तो फखुर (नशा) भी है।

सब कहते हैं हम नर से नारायण विश्व के मालिक बनेंगे।

फिर तो ऐसा पुरूषार्थ करना पड़े।

पुरूषार्थ अनुसार नम्बरवार पद पाते हैं।

सबको नम्बरवार पार्ट मिला हुआ है।

यह ड्रामा बना बनाया है।

अभी बाप तुमको श्रेष्ठ मत देते हैं।

कैसे भी करके बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों, तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जाओ।

पापों का बोझा तो सिर पर बहुत है।

उनको कैसे भी करके यहाँ खलास करना है तब आत्मा पवित्र बनेंगी।

तमोप्रधान भी तुम आत्मा बनी हो तो सतोप्रधान भी आत्मा को बनना है।

इस समय जास्ती इनसालवेन्ट भारत है।

यह खेल ही भारत पर है।

बाकी वह तो सिर्फ धर्म स्थापन करने आते हैं।

पुनर्जन्म लेते-लेते पिछाड़ी में सब तमोप्रधान बनते हैं।

स्वर्ग के मालिक तुम बनते हो।

जानते हो भारत बहुत ऊंच देश था।

अभी कितना गरीब है, गरीब को ही सब मदद देते हैं।

हर बात की भीख मांगते ही रहते हैं।

आगे तो बहुत अनाज यहाँ से जाता था।

अभी गरीब बने हैं तो फिर रिटर्न सर्विस हो रही है।

जो ले गये हैं वह उधार मिल रहा है।

कृष्ण और क्रिश्चियन राशि एक ही है।

क्रिश्चियन ने ही भारत को हप किया है।

अब फिर ड्रामा अनुसार वह आपस में लड़ते हैं, मक्खन तुम बच्चों को मिल जाता है।

ऐसे नहीं कि कृष्ण के मुख में माखन था।

यह तो शास्त्रों में लिख दिया है।

सारी दुनिया कृष्ण के हाथ में आती है।

सारे विश्व का तुम मालिक बनते हो।

तुम बच्चे जानते हो हम विश्व के मालिक बनते हैं तो तुमको कितनी खुशी होनी चाहिए।

तुम्हारे कदम-कदम में पद्म हैं।

सिर्फ एक लक्ष्मी-नारायण का राज्य नहीं था।

डिनायस्टी थी ना।

यथा राजा-रानी तथा प्रजा - सबके पांव में पद्म होते हैं।

वहाँ तो अनगिनत पैसे होते हैं।

पैसे के लिए कोई पाप आदि नहीं करते, अथाह धन होता है।

अल्लाह अवलदीन का खेल दिखाते हैं ना।

अल्लाह जो अवलदीन अर्थात् जो देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं।

सेकण्ड में जीवनमुक्ति दे देते हैं।

सेकण्ड में साक्षात्कार हो जाता है।

कारून का खजाना दिखाते हैं।

मीरा कृष्ण से साक्षात्कार में डांस करती थी।

वह था भक्ति मार्ग।

यहाँ भक्ति मार्ग की बात नहीं।

तुम तो वैकुण्ठ में प्रैक्टिकल में जाकर राज्य-भाग्य करेंगे।

भक्ति मार्ग में सिर्फ साक्षात्कार होता है।

इस समय तुम बच्चों को एम आब्जेक्ट का साक्षात्कार होता है, जानते हो हम यह बनेंगे।

बच्चों को भूल जाता है इसलिए बैज दिये जाते हैं।

अभी हम बेहद के बाप के बच्चे बने हैं।

कितनी खुशी होनी चाहिए।

यह तो घड़ी-घड़ी पक्का कर देना चाहिए।

परन्तु माया आपोजीशन में है तो वह खुशी भी उड़ जाती है।

बाप को याद करते रहेंगे तो नशा रहेगा - बाबा हमको विश्व का मालिक बनाते हैं।

फिर माया भुला देती है तो फिर कुछ न कुछ विकर्म हो जाता है।

तुम बच्चों को स्मृति आई है - हमने 84 जन्म लिये हैं, और कोई 84 जन्म नहीं लेते हैं।

यह भी समझना है - जितना हम याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे और फिर आप-समान भी बनाना है, प्रजा बनानी है।

चैरिटी बिगन्स एट होम।

तीर्थों पर भी पहले खुद जाते हैं फिर मित्र-सम्बन्धियों आदि को भी इकट्ठा ले जाते हैं।

तो तुम भी प्यार से सबको समझाओ।

सब नहीं समझेंगे।

एक ही घर में बाप समझेगा तो बच्चा नहीं समझेगा।

माँ-बाप कितना भी बच्चों को कहेंगे पुरानी दुनिया से दिल नहीं लगाओ फिर भी मानेंगे नहीं।

तंग कर देते हैं।

जो यहाँ का सैपलिंग होगा वही फिर आकर समझेंगे।

इस धर्म की स्थापना देखो कैसे होती है, और धर्म वालों की सैपलिंग नहीं लगती।

वह तो ऊपर से आते हैं।

उनके फालोअर्स भी आते रहते हैं।

यह तो स्थापना करते हैं और फिर सबको पावन बनाकर ले जाते हैं इसलिए उनको सतगुरू लिबरेटर कहा जाता है।

सच्चा गुरू एक ही है।

मनुष्य कभी किसकी सद्गति नहीं करते।

सद्गति दाता है ही एक, उनको ही सतगुरू कहा जाता है।

भारत को सचखण्ड भी वह बनाते हैं।

रावण झूठखण्ड बना देते हैं।

बाप के लिए भी झूठ, देवताओं के लिए भी झूठ कह देते हैं।

तब बाप कहते हैं हियर नो ईविल...... इनको कहा जाता है वेश्यालय।

सतयुग है शिवालय।

मनुष्य समझते थोड़ेही हैं।

वह तो अपनी मत पर ही चलते हैं।

कितना लड़ना-झगड़ना चलता रहता है।

बच्चे माँ को, पति स्त्री को मारने में देरी नहीं करते।

एक-दो को काटते रहते हैं।

बच्चा देखता है बाप के पास बहुत धन है, देता नहीं है तो मारने में भी देरी नहीं करते हैं।

कैसी गन्दी दुनिया है।

अभी तुम क्या बन रहे हो।

यह तुम्हारी एम ऑब्जेक्ट खड़ी है।

तुम तो सिर्फ कहते थे हे पतित-पावन आकर हमको पावन बनाओ।

ऐसे थोड़ेही कहते थे कि विश्व का मालिक बनाओ।

गॉड फादर तो हेविन स्थापन करते हैं तो हम हेविन में क्यों नहीं हैं।

फिर रावण तुमको नर्कवासी बनाते हैं।

कल्प की आयु लाखों वर्ष कह देने से भूल गये हैं।

बाप कहते हैं तुम हेविन के मालिक थे।

अब फिर चक्र लगाए हेल के मालिक बने हो।

अभी फिर बाप तुमको हेविन का मालिक बनाते हैं।

कहते हैं मीठी आत्मायें, बच्चों बाप को याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे।

तमोप्रधान बनने में आधाकल्प लगा है, बल्कि सारा ही कल्प कहें क्योंकि कला तो कम होती जाती है।

इस समय कोई कला नहीं है।

कहते हैं मैं निर्गुण हारे में कोई गुण नाही, इनका अर्थ कितना क्लीयर है।

यहाँ फिर निर्गुण बालक की संस्था भी है।

बालकों में कोई गुण नहीं है।

नहीं तो बालक को महात्मा से भी ऊंच कहा जाता है, उनको विकारों का भी पता नहीं।

महात्माओं को तो विकारों का पता रहता है तो अक्षर भी कितने रांग बोलते हैं।

माया बिल्कुल अनराइटियस बना देती है।

गीता पढ़ते भी हैं, कहते भी हैं भगवानुवाच - काम महाशत्रु है, यह आदि-मध्य-अन्त दु:ख देने वाला है फिर भी पवित्र बनने में कितने विघ्न डालते हैं।

बच्चा शादी नहीं करता तो कितना बिगड़ते हैं।

बाप कहते हैं तुम बच्चों को श्रीमत पर चलना है।

जो फूल बनने का नहीं होगा, कितना भी समझाओ कभी नहीं मानेगा।

कहाँ बच्चे कहते हैं हम शादी नहीं करेंगे तो माँ-बाप कितने अत्याचार करते हैं।

बाप कहते हैं जब ज्ञान यज्ञ रचता हूँ तो अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं।

तीन पैर पृथ्वी के भी नहीं देते।

तुम सिर्फ बाप की मत पर याद कर पवित्र बनते हो, और कोई तकलीफ नहीं।

सिर्फ अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।

जैसे तुम आत्मायें इस शरीर में अवतरित हो वैसे बाप भी अवतरित हैं।

फिर कच्छ अवतार, मच्छ अवतार कैसे हो सकते!

कितनी गाली देते हैं!

कहते हैं कंकड़-कंकड़ में भगवान है।

बाप कहते हैं मेरी और देवताओं की ग्लानि करते हैं।

मुझे आना पड़ता है, आकर तुम बच्चों को फिर से वर्सा देता हूँ।

मैं वर्सा देता हूँ, रावण श्राप देता है।

यह खेल है।

जो श्रीमत पर नहीं चलते हैं तो समझा जाता है इनकी तकदीर इतनी ऊंच नहीं है।

तकदीर वाले सवेरे-सवेरे उठकर याद करेंगे, बाबा से बातें करेंगे।

अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो तो विकर्म विनाश हों।

खुशी का पारा भी चढ़ेगा।

जो पास विद् ऑनर होते हैं वही राजाई के लायक बन सकते हैं।

सिर्फ एक लक्ष्मी-नारायण नहीं राज्य करते हैं।

डिनायस्टी है।

अब बाप कहते हैं तुम कितना स्वच्छ बुद्धि बनते हो।

इनको कहा जाता है सतसंग।

सतसंग एक ही होता है।

जो बाप सच्ची-सच्ची नॉलेज दे सचखण्ड का मालिक बनाते हैं।

कल्प के संगम पर ही सत का संग मिलता है।

स्वर्ग में कोई भी प्रकार का सतसंग होता नहीं।

अभी तुम हो रूहानी सैलवेशन आर्मी।

तुम विश्व का बेड़ा पार करते हो।

तुमको सैलवेज करने वाला, श्रीमत देने वाला बाप है।

तुम्हारी महिमा बहुत भारी है।

बाप की महिमा, भारत की महिमा अपरमअपार है।

तुम बच्चों की भी महिमा अपरमअपार है।

तुम ब्रह्माण्ड के भी और विश्व के भी मालिक बनते हो।

मैं तो सिर्फ ब्रह्माण्ड का मालिक हूँ।

पूजा भी तुम्हारी डबल होती है।

मैं तो देवता नहीं बनता हूँ जो डबल पूजा हो।

तुम्हारे में भी नम्बरवार समझते हैं और खुशी में आकर पुरूषार्थ करते हैं।

पढ़ाई में फर्क कितना है।

सतयुग में लक्ष्मी-नारायण का राज्य चलता है। वहाँ वजीर होते नहीं।

लक्ष्मी-नारायण, जिनको भगवान भगवती कहते हैं वह फिर वजीर की राय लेंगे क्या!

जब पतित राजायें बनते हैं तब फिर वजीर आदि रखते हैं।

अभी तो है प्रजा का प्रजा पर राज्य।

तुम बच्चों को इस पुरानी दुनिया से वैराग्य है।

ज्ञान, भक्ति, वैराग्य।

ज्ञान सिर्फ रूहानी बाप सिखलाते हैं और कोई सिखला न सके।

बाप ही पतित-पावन सर्व का सद्गति दाता है।

अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) बाप की याद के साथ-साथ आप समान बनाने की सेवा भी करनी है।

चैरिटी बिगन्स एट होम.... सबको प्यार से समझाना है।

2) इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैरागी बनना है।

हियर नो ईविल, सी नो ईविल.....।

उस बेहद बाप के बच्चे हैं, वह हमें कारून का खजाना देते हैं, इसी खुशी में रहना है।

वरदान:-

एक सेकण्ड की बाजी से

सारे कल्प की तकदीर बनाने वाले

श्रेष्ठ तकदीरवान भव

इस संगम के समय को वरदान मिला है जो चाहे, जैसा चाहे, जितना चाहे उतना भाग्य बना सकते हैं क्योंकि भाग्य विधाता बाप ने तकदीर बनाने की चाबी बच्चों के हाथ में दी है।

लास्ट वाला भी फास्ट जाकर फर्स्ट आ सकता है।

सिर्फ सेवाओं के विस्तार में स्वयं की स्थिति सेकण्ड में सार स्वरूप बनाने का अभ्यास करो।

अभी-अभी डायरेक्शन मिले एक सेकण्ड में मास्टर बीज हो जाओ तो टाइम न लगे।

इस एक सेकण्ड की बाजी से सारे कल्प की तकदीर बना सकते हैं।

स्लोगन:-

डबल सेवा द्वारा पावरफुल वायुमण्डल बनाओ तो प्रकृति दासी बन जायेगी।

आओ अब प्यारे बाबा को याद कर लें...