• 15-09-2020 प्रात:मुरली बापदादा मधुबन
  • ''मीठे बच्चे - बाप आये हैं तुम्हें ज्ञान का तीसरा नेत्र देने, जिससे तुम सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो''

प्रश्नः-

    • शेरनी शक्तियां ही कौन सी बात हिम्मत के साथ समझा सकती हैं?
  • उत्तर:-
    • दूसरे धर्म वालों को यह बात समझाना है कि बाप कहते हैं तुम अपने को आत्मा समझो, परमात्मा नहीं।
    • आत्मा समझकर बाप को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और तुम मुक्तिधाम में चले जायेंगे।
    • परमात्मा समझने से तुम्हारे विकर्म विनाश नहीं हो सकते।
    • यह बात बहुत हिम्मत से शेरनी शक्तियां ही समझा सकती हैं।
    • समझाने का भी अभ्यास चाहिए।
  • गीत:- नयन हीन को राह दिखाओ...Listen
  • ओम् शान्ति।
  • बच्चे अनुभव कर रहे हैं - रूहानी याद की यात्रा में कठिनाई देखने में आती है।
  • भक्ति मार्ग में दर-दर ठोकरें खानी ही होती हैं।
  • अनेक प्रकार के जप-तप-यज्ञ करते, शास्त्र आदि पढ़ते हैं, जिस कारण ही ब्रह्मा की रात कहा जाता है।
  • आधाकल्प रात, आधाकल्प दिन।
  • ब्रह्मा अकेला तो नहीं होगा ना।
  • प्रजापिता ब्रह्मा है तो जरूर उनके बच्चे कुमार-कुमारियाँ भी होंगे।
  • परन्तु मनुष्य नहीं जानते हैं।
  • बाप ही बच्चों को ज्ञान का तीसरा नेत्र देते हैं, जिससे तुमको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान मिला हुआ है।
  • तुम कल्प पहले भी ब्राह्मण थे और देवता बने थे, जो बने थे वही फिर बनेंगे।
  • आदि सनातन देवी-देवता धर्म के तुम हो।
  • तुम ही पूज्य और पुजारी बनते हो।
  • अंग्रेजी में पूज्य को वर्शिपवर्दी (Worshipworthy) और पुजारी को वर्शिपर (Worshiper) कहा जाता है।
  • भारत ही आधाकल्प पुजारी बनता है।
  • आत्मा मानती है हम पूज्य थे फिर हम ही पुजारी बने हैं।
  • पूज्य से पुजारी फिर पूज्य बनते हैं।
  • बाप तो पूज्य पुजारी नहीं बनते।
  • तुम कहेंगे हम पूज्य पावन सो देवी-देवता थे फिर 84 जन्मों के बाद कम्पलीट पतित पुजारी बन जाते हैं।
  • अभी भारतवासी जो आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले थे, उन्हों को अपने धर्म का कुछ भी पता नहीं है।
  • तुम्हारी इन बातों को सब धर्म वाले नहीं समझेंगे, जो इस धर्म के कहाँ कनवर्ट हो गये होंगे, वही आयेंगे।
  • ऐसे कनवर्ट तो बहुत हो गये हैं।
  • बाप कहते हैं जो शिव और देवताओं के पुजारी हैं, उनको सहज है।
  • अन्य धर्म वाले माथा खपायेंगे, जो कनवर्ट होगा उनको टच होगा।
  • और आकर समझने की कोशिश करेंगे।
  • नहीं तो मानेंगे नहीं।
  • आर्य समाजियों में से भी बहुत आये हुए हैं।
  • सिक्ख लोग भी आये हुए हैं।
  • आदि सनातन देवी-देवता धर्म वाले जो कनवर्ट हो गये हैं, उनको अपने धर्म में जरूर आना पड़ेगा।
  • झाड़ में भी अलग-अलग सेक्शन हैं।
  • फिर आयेंगे भी नम्बरवार।
  • टाल-टालियाँ निकलती रहेंगी।
  • वह पवित्र होने कारण उन्हों का प्रभाव अच्छा निकलता है।
  • इस समय देवी-देवता धर्म का फाउन्डेशन है नहीं जो फिर लगाना पड़ता है।
  • बहन-भाई तो बनाना ही पड़े।
  • हम एक बाप के बच्चे सब आत्मायें भाई-भाई हैं।
  • फिर भाई-बहन बनते हैं।
  • अब जैसे कि नई सृष्टि की स्थापना हो रही है, पहले-पहले हैं ब्राह्मण।
  • नई सृष्टि की स्थापना में प्रजापिता ब्रह्मा तो जरूर चाहिए।
  • ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण होंगे।
  • इनको रूद्र ज्ञान यज्ञ भी कहा जाता है, इसमें ब्राह्मण जरूर चाहिए।
  • प्रजापिता ब्रह्मा की औलाद जरूर चाहिए।
  • वह है ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर।
  • ब्राह्मण हैं पहले नम्बर में चोटी वाले।
  • आदम बीबी, एडम ईव को मानते भी हैं।
  • इस समय तुम पुजारी से पूज्य बन रहे हो।
  • तुम्हारा सबसे अच्छा यादगार मन्दिर देलवाड़ा मन्दिर है।
  • नीचे तपस्या में बैठे हैं, ऊपर में राजाई और यहाँ तुम चैतन्य में बैठे हो।
  • यह मन्दिर खलास हो जायेंगे फिर भक्ति मार्ग में बनेंगे।
  • तुम जानते हो अभी हम राजयोग सीख रहे हैं फिर नई दुनिया में जायेंगे।
  • वह जड़ मन्दिर, तुम चैतन्य में बैठे हो।
  • मुख्य मन्दिर यह ठीक बना हुआ है।
  • स्वर्ग को नहीं तो कहाँ दिखायें, इसलिए छत में स्वर्ग को दिखाया है।
  • इस पर बहुत अच्छा समझा सकते हो।
  • बोलो, भारत ही स्वर्ग था फिर अब भारत नर्क है।
  • इस धर्म वाले झट समझेंगे।
  • हिन्दुओं में भी देखेंगे तो अनेक प्रकार के धर्मों में जाकर पड़े हैं।
  • तुमको बहुत मेहनत करनी पड़ती है निकालने में।
  • बाबा ने समझाया है अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो, बस, और कुछ बात ही नहीं करना चाहिए।
  • जिनका अभ्यास नहीं, उनको तो बात करनी भी नहीं चाहिए।
  • नहीं तो बी.के. का नाम बदनाम कर देते हैं।
  • अगर दूसरे धर्म वाले हैं तो समझाना चाहिए कि यदि तुम मुक्तिधाम में जाना चाहते हो तो अपने को आत्मा समझो, बाप को याद करो।
  • अपने को परमात्मा नहीं समझो।
  • अपने को आत्मा समझ बाप को याद करेंगे तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के पाप कट जायेंगे और मुक्तिधाम में चले जायेंगे।
  • तुम्हारे लिए यह मनमनाभव का मंत्र ही बस है।
  • परन्तु बात करने की हिम्मत चाहिए।
  • शेरनी शक्तियां ही सर्विस कर सकती हैं।
  • संन्यासी लोग बाहर में जाकर विलायत वालों को ले आते हैं कि चलो तुमको स्प्रीचुअल नॉलेज देवें।
  • अब वह बाप को तो जानते ही नहीं।
  • ब्रह्म को भगवान समझ कह देते, इसको याद करो।
  • बस यह मंत्र दे देते हैं, जैसे किसी चिड़िया को अपने पिंजड़े में डाल देते हैं।
  • तो ऐसे-ऐसे समझाने में भी टाइम लगता है।
  • बाबा ने कहा था-हर एक चित्र के ऊपर लिखा हुआ हो शिव भगवानुवाच।
  • तुम जानते हो इस दुनिया में धनी बिगर सब निधनके हैं।
  • पुकारते हैं तुम मात-पिता.... अच्छा उनका अर्थ क्या?
  • ऐसे ही बोलते रहते तुम्हारी कृपा से सुख घनेरे।
  • अब बाप तुमको स्वर्ग के सुख के लिए पढ़ा रहे हैं, जिसके लिये तुम पुरूषार्थ कर रहे हो।
  • जो करेगा वह पायेगा। इस समय तो सब पतित हैं।
  • पावन दुनिया तो एक स्वर्ग ही है, यहाँ कोई भी सतोप्रधान हो न सके।
  • सतयुग में जो सतोप्रधान थे, वही तमोप्रधान पतित बन जाते हैं।
  • क्राइस्ट के पिछाड़ी जो उनके धर्म वाले आते हैं, वह तो पहले सतोप्रधान होंगे ना।
  • जब लाखों की अन्दाज में होते हो तब लश्कर तैयार होता है, लड़कर बादशाही लेने।
  • उनको सुख भी कम तो दु:ख भी कम।
  • तुम्हारे जैसा सुख तो किसको मिल न सके।
  • तुम अभी तैयार हो रहे हो - सुखधाम में आने के लिए।
  • बाकी सब धर्म कोई स्वर्ग में थोड़ेही आते हैं।
  • भारत जब स्वर्ग था तो उन जैसा पावन खण्ड कोई होता नहीं।
  • जब बाप आते हैं तब ही ईश्वरीय राज्य स्थापन होता है।
  • वहाँ लड़ाई आदि की बात नहीं।
  • लड़ना-झगड़ना तो बहुत पीछे शुरू होता है।
  • भारतवासी इतना नहीं लड़े हैं।
  • थोड़े आपस में लड़कर अलग हो गये हैं।
  • द्वापर में एक-दो पर चढ़ाई करते हैं।
  • यह चित्र आदि बनाने में भी बड़ी बुद्धि चाहिए।
  • यह भी लिखना चाहिए कि भारत जो स्वर्ग था सो फिर नर्क जैसा कैसे बना है, आकर समझो।
  • भारत सद्गति में था, अब दुर्गति में है।
  • अब सद्गति को पाने के लिए बाप ही नॉलेज देते हैं।
  • मनुष्यों में यह रूहानी नॉलेज होती नहीं।
  • यह होती है परमपिता परमात्मा में।
  • बाप यह नॉलेज देते हैं आत्माओं को।
  • बाकी तो सब मनुष्य, मनुष्यों को ही देते हैं।
  • शास्त्र भी मनुष्यों ने लिखे हैं, मनुष्यों ने पढ़े हैं।
  • यहाँ तो तुम्हें रूहानी बाप पढ़ाते हैं और रूह पढ़ती है।
  • पढ़ने वाली तो आत्मा है ना।
  • वह लिखने और पढ़ने वाले मनुष्य ही हैं।
  • परमात्मा को तो शास्त्र आदि पढ़ने की दरकार नहीं।
  • बाप कहते हैं इन शास्त्रों आदि से किसकी भी सद्गति हो नहीं सकती।
  • मुझे ही आकर सबको वापस ले जाना है।
  • अभी तो दुनिया में करोड़ों मनुष्य हैं।
  • सतयुग में जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो वहाँ 9 लाख होते हैं।
  • बहुत छोटा झाड़ होगा।
  • फिर विचार करो इतनी सब आत्मायें कहाँ गई?
  • ब्रह्म में वा पानी में तो नहीं लीन हो गई।
  • वह सब मुक्तिधाम में रहती हैं।
  • हर एक आत्मा अविनाशी है।
  • उनमें अविनाशी पार्ट नूंधा हुआ है जो कभी मिट नहीं सकता।
  • आत्मा विनाश हो न सके। आत्मा तो बिन्दी है।
  • बाकी निर्वाण आदि में कोई भी जाता नहीं, सबको पार्ट बजाना ही है।
  • जब सब आत्मायें आ जाती हैं तब मैं आकर सबको ले जाता हूँ।
  • पिछाड़ी में है ही बाप का पार्ट। नई दुनिया की स्थापना फिर पुरानी दुनिया का विनाश।
  • यह भी ड्रामा में नूंध है।
  • तुम आर्य समाजियों के झुण्ड को समझायेंगे तो उसमें जो कोई इस देवता धर्म का होगा उनको टच होगा।
  • बरोबर यह बात तो ठीक है, परमात्मा सर्वव्यापी कैसे हो सकता।
  • भगवान तो बाप है, उनसे वर्सा मिलता है। कोई आर्य समाजी भी तुम्हारे पास आते हैं ना।
  • उनको ही सैपलिंग कहा जाता है।
  • तुम समझाते रहो फिर तुम्हारे कुल का जो होगा वह आ जायेगा।
  • भगवान बाप ही पावन होने की युक्ति बताते हैं।
  • भगवानुवाच मामेकम् याद करो।
  • मैं पतित-पावन हूँ, मुझे याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे और मुक्तिधाम में आ जायेंगे।
  • यह पैगाम सब धर्म वालों के लिए है।
  • बोलो, बाप कहते हैं देह के सब धर्म छोड़ मुझे याद करो तो तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन जायेंगे।
  • मैं गुजराती हूँ, फलाना हूँ - यह सब छोड़ो।
  • अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो।
  • यह है योग अग्नि। सम्भाल कर कदम उठाना है।
  • सब नहीं समझेंगे।
  • बाप कहते हैं - पतित-पावन मैं ही हूँ।
  • तुम सब हो पतित, निर्वाणधाम में भी पावन होने बिगर आ न सकें।
  • रचना के आदि-मध्य-अन्त को भी समझना है।
  • पूरा समझने से ही ऊंच पद पायेंगे।
  • थोड़ी भक्ति की होगी तो थोड़ा ज्ञान समझेंगे।
  • बहुत भक्ति की होगी तो बहुत ज्ञान उठायेंगे।
  • बाप जो समझाते हैं उसको धारण करना है।
  • वानप्रस्थियों के लिए और ही सहज है।
  • गृहस्थ व्यवहार से किनारा कर लेते हैं।
  • वानप्रस्थ अवस्था 60 वर्ष के बाद होती है।
  • गुरू भी तब करते हैं।
  • आजकल तो छोटेपन में ही गुरू करा देते हैं।
  • नहीं तो पहले बाप, फिर टीचर फिर 60 वर्ष के बाद गुरू किया जाता।
  • सद्गति दाता तो एक ही बाप है, यह अनेक गुरू लोग थोड़ेही हैं।
  • यह तो सब पैसे कमाने की युक्तियाँ हैं, सतगुरू है ही एक - सबकी सद्गति करने वाला।
  • बाप कहते हैं मैं तुमको सब वेदों-शास्त्रों का सार समझाता हूँ।
  • यह सब है भक्ति मार्ग की सामाग्री।
  • सीढ़ी उतरना होता है।
  • ज्ञान, भक्ति फिर भक्ति का है वैराग्य।
  • जब ज्ञान मिलता है तब ही भक्ति का वैराग्य होता है।
  • इस पुरानी दुनिया से तुमको वैराग्य होता है।
  • बाकी दुनिया को छोड़ कहाँ जायेंगे?
  • तुम जानते हो यह दुनिया ही खत्म होनी है इसलिए अब बेहद की दुनिया का संन्यास करना है।
  • पवित्र बनने बिगर घर जा न सकें।
  • पवित्र बनने के लिए याद की यात्रा चाहिए।
  • भारत में रक्त की नदियाँ होने के बाद फिर दूध की नदियाँ बहेंगी।
  • विष्णु को भी क्षीर सागर में दिखाते हैं।
  • समझाया जाता है - इस लड़ाई से मुक्ति-जीवनमुक्ति के गेट खुलते हैं।
  • जितना तुम बच्चे आगे बढ़ेंगे उतना ही आवाज़ निकलता रहेगा।
  • अब लड़ाई लगी कि लगी।
  • एक चिन्गारी से देखो आगे क्या हुआ था।
  • समझते हैं कि लड़ेंगे जरूर। लड़ाई चलती ही रहती है।
  • एक-दो के मददगार बनते रहते हैं।
  • तुमको भी नई दुनिया चाहिए तो पुरानी दुनिया जरूर खत्म होनी चाहिए।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) यह पुरानी दुनिया अब खत्म होनी है इसलिए इस दुनिया का संन्यास करना है।
  • दुनिया को छोड़कर कहाँ जाना नहीं है, लेकिन इसे बुद्धि से भूलना है।
  • 2) निर्वाणधाम में जाने के लिए पूरा पावन बनना है।
  • रचना के आदि-मध्य-अन्त को पूरा समझकर नई दुनिया में ऊंच पद पाना है।
  • वरदान:-
  • अलबेलेपन की नींद को तलाक देने वाले निद्राजीत, चक्रवर्ती भव
  • साक्षात्कार मूर्त बन भक्तों को साक्षात्कार कराने के लिए अथवा चक्रवर्ती बनने के लिए निद्राजीत बनो।
  • जब विनाशकाल भूलता है तब अलबेलेपन की नींद आती है।
  • भक्तों की पुकार सुनो, दु:खी आत्माओं के दुख की पुकार सुनो, प्यासी आत्माओं के प्रार्थना की आवाज सुनो तो कभी भी अलबेलेपन की नींद नहीं आयेगी।
  • तो अब सदा जागती ज्योत बन अलबेलेपन की नींद को तलाक दो और साक्षात्कार मूर्त बनो।
  • स्लोगन:-
  • तन-मन-धन, मन-वाणी-कर्म-किसी भी प्रकार से बाप के कर्तव्य में सहयोगी बनो तो सहजयोगी बन जायेंगे।