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19-09-2020
प्रात:मुरली
बापदादा
मधुबन
- ''मीठे बच्चे - सत्य पण्डा आया है तुम्हें सच्ची-सच्ची यात्रा सिखलाने, तुम्हारी यात्रा में मुख्य है पवित्रता, याद करो और पवित्र बनो''
- प्रश्नः-
- तुम मैसेन्जर वा पैगम्बर के बच्चों को किस एक बात के सिवाए और किसी भी बात में आरग्यु नहीं करनी है?
- उत्तर:-
- तुम मैसेन्जर के बच्चे सबको यही मैसेज दो कि अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
- यही ओना रखो, बाकी और बातों में जाने से कोई फायदा नहीं।
- तुम्हें सिर्फ सभी को बाप का परिचय देना है, जिससे वह आस्तिक बनें।
- जब रचता बाप को समझ लेंगे तो रचना को समझना सहज हो जायेगा।
- गीत:- हमारे तीर्थ न्यारे हैं...Listen
- ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे रूहानी बच्चे जानते हैं कि हम सत्य तीर्थवासी हैं।
- सच्चा पण्डा और हम उनके बच्चे जो हैं वह भी सच्चे तीर्थ पर जा रहे हैं।
- यह है झूठ खण्ड अथवा पतित खण्ड। अभी सचखण्ड वा पावन खण्ड में जा रहे हैं।
- मनुष्य यात्रा पर जाते हैं ना।
- कोई-कोई खास यात्रायें लगती हैं, जहाँ पर कोई कभी भी जा सकते हैं।
- यह भी यात्रा है, इसमें जाना तब होता है जब सत्य पण्डा खुद आये।
- वह आता है कल्प-कल्प के संगम पर।
- इसमें न ठण्डी, न गर्मी की बात है।
- न धक्के खाने की बात है। यह तो है याद की यात्रा।
- उन यात्राओं में सन्यासी भी जाते हैं।
- सच्ची-सच्ची यात्रा करने वाले जो होते हैं वह पवित्र रहते हैं।
- तुम्हारे में सभी यात्रा पर हैं। तुम ब्राह्मण हो।
- सच्चे-सच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ कौन हैं?
- जो कभी भी विकार में नहीं जाते हैं। पुरुषार्थी तो जरूर हैं।
- मन्सा संकल्प भल आयें, मुख्य है ही विकार की बात।
- कोई पूछे निर्विकारी ब्राह्मण कितने हैं आपके पास?
- बोलो, यह पूछने की जरूरत नहीं है।
- इन बातों से आपका क्या पेट भरेगा।
- तुम यात्री बनो।
- यात्रा करने वाले कितने हैं, इस पूछने से कोई फायदा नहीं है।
- ब्राह्मण तो कोई सच्चे भी हैं, तो झूठे भी हैं।
- आज सच्चे हैं, कल झूठे बन जाते हैं।
- विकार में गया तो ब्राह्मण नहीं ठहरा।
- फिर शूद्र का शूद्र हो गया।
- आज प्रतिज्ञा करते कल विकार में गिर असुर बन जाते हैं।
- अब यह बातें कहाँ तक बैठ समझायें।
- इनसे पेट तो नहीं भरेगा वा मुख मीठा नहीं होगा।
- यहाँ हम बाप को याद करते हैं और बाप की रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं।
- बाकी और बातों में कुछ रखा नहीं है।
- बोलो, यहाँ बाप की याद सिखाई जाती है और पवित्रता है मुख्य।
- जो आज पवित्र बन फिर अपवित्र बन जाते हैं, तो वह ब्राह्मण ही नहीं रहा।
- वह हिसाब कहाँ तक बैठ तुमको सुनायेंगे।
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- ऐसे तो बहुत गिरते होंगे माया के तूफानों में, इसलिए ब्राह्मणों की माला नहीं बन सकती है।
- हम तो पैगम्बर के बच्चे पैगाम सुनाते हैं, मैसेन्जर के बच्चे मैसेज देते हैं।
- अपने को आत्मा समझ और बाप को याद करो तो इस योग अग्नि से विकर्म विनाश होंगे। यह ओना रखो।
- बाकी प्रश्न तो ढेर के ढेर मनुष्य पूछेंगे।
- सिवाए एक बात के और कोई बातों मे जाने से कोई फायदा ही नहीं।
- यहाँ तो यह जानने का है कि नास्तिक से आस्तिक, निधनके से धन के कैसे बनें, जो धनी से वर्सा पायें - यह पूछो।
- बाकी तो सब पुरुषार्थी हैं।
- विकार की बात में ही बहुत फेल होते हैं।
- बहुत दिनों के बाद स्त्री को देखते हैं तो बात मत पूछो।
- कोई को शराब की आदत होती है, तीर्थों पर जायेंगे तो शराब अथवा बीड़ी की जिनको आदत होगी वह उसके बिगर रह नहीं सकेंगे। छिपाकर भी पीते हैं।
- कर ही क्या सकते। बहुत हैं जो सच नहीं बोलते हैं।
- छिपाते रहते हैं।
- बाबा बच्चों को युक्तियाँ बतलाते हैं कि कैसे युक्ति से जवाब देना चाहिए।
- एक बाप का ही परिचय देना है, जिससे मनुष्य आस्तिक बनें।
- पहले जब तक बाप को नहीं जाना है तब तक कोई प्रश्न पूछना ही फालतू है।
- ऐसे बहुत आते हैं, समझते कुछ भी नहीं।
- सिर्फ सुनते रहते, फायदा कुछ भी नहीं।
- बाबा को लिखते हैं हज़ार दो हज़ार आये, उनसे दो-एक समझने लिए आते रहते हैं।
- फलाना-फलाना बड़ा आदमी आता रहता है, हम समझ जाते हैं, उनको जो परिचय मिलना चाहिए वह मिला नहीं है।
- पूरा परिचय मिले तो समझें यह तो ठीक कहते हैं, हम आत्माओं का बाप परमपिता परमात्मा है, वह पढ़ाते हैं।
- कहते हैं अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो।
- यह अन्तिम जन्म पवित्र बनो।
- जो पवित्र नहीं रहते वह ब्राह्मण नहीं, शूद्र हैं।
- लड़ाई का मैदान है।
- झाड़ बढ़ता रहेगा और तूफान भी लगेंगे। बहुत पत्ते गिरते रहेंगे।
- कौन बैठ गिनती करेंगे कि सच्चे ब्राह्मण कौन हैं?
- सच्चे वह जो कभी शूद्र न बनें। ज़रा भी दृष्टि न जाए।
- अन्त में कर्मातीत अवस्था होती है।
- बड़ी ऊंची मंजिल है। मन्सा में भी न आये, वह अवस्था अन्त में होनी है।
- इस समय एक की भी ऐसी अवस्था नहीं है।
- इस समय सब पुरुषार्थी हैं। नीचे-ऊपर होते रहते हैं।
- मुख्य आंखों की ही बात है।
- हम आत्मा हैं, इस शरीर द्वारा पार्ट बजाते हैं-यह पक्का अभ्यास चाहिए।
- जब तक रावण राज्य है, तब तक युद्ध चलता रहेगा।
- पिछाड़ी में कर्मातीत अवस्था होगी ।
- आगे चलकर तुमको फीलिंग आयेगी, समझते जायेंगे।
- अभी तो झाड़ बहुत छोटा है, तूफान लगता है, पत्ते गिर पड़ते हैं।
- जो कच्चे हैं वह गिर पड़ते हैं।
- हर एक अपने से पूछे-मेरी अवस्था कहाँ तक है?
- बाकी जो प्रश्न पूछते हैं उन बातों में जास्ती जाओ ही नहीं।
- बोलो, हम बाप की श्रीमत पर चल रहे हैं।
- वह बेहद का बाप आकर बेहद का सुख देते हैं अथवा नई दुनिया स्थापन करते हैं।
- वहाँ सुख ही होता है।
- जहाँ मनुष्य रहते हैं उसको ही दुनिया कहा जाता है।
- निराकारी वर्ल्ड में आत्मायें हैं ना।
- यह किसकी बुद्धि में नहीं है कि आत्मा कैसे बिन्दी है।
- यह भी पहले कोई नये को नहीं समझाना है।
- पहले-पहले तो समझाना है - बेहद का बाप बेहद का वर्सा देते हैं।
- भारत पावन था, अभी पतित है।
- कलियुग के बाद फिर सतयुग आना है।
- दूसरा कोई भी समझा न सके, सिवाए बी.के. के।
- यह है नई रचना।
- बाप पढ़ा रहे हैं - यह समझानी बुद्धि में रहनी चाहिए। कोई डिफीकल्ट बात नहीं है, परन्तु माया भुला देती है, विकर्म करा देती है।
- आधाकल्प से विकर्म करने की आदत पड़ी हुई है।
- वह सब आसुरी आदतें मिटानी हैं।
- बाबा खुद कहते हैं - सब पुरूषार्थी हैं।
- कर्मातीत अवस्था को पाने में बहुत टाइम लगता है।
- ब्राह्मण कभी विकार में नहीं जाते।
- युद्ध के मैदान में चलते-चलते हार खा लेते हैं।
- इन Questions से कोई फायदा नहीं।
- पहले अपने बाप को याद करो।
- हमको शिवबाबा ने कल्प पहले मुआफिक फरमान दिया है कि अपने को आत्मा समझ मुझे याद करो।
- यह वही लड़ाई है। बाप एक है, कृष्ण को बाप नहीं कहेंगे।
- कृष्ण का नाम डाल दिया है।
- रांग से राइट बनाने वाला बाप है, तब तो उनको ट्रूथ कहा जाता है ना।
- इस समय तुम बच्चे ही सारे सृष्टि के राज़ को जानते हो।
- सतयुग में है डीटी डिनायस्टी।
- रावण राज्य में फिर है आसुरी डिनायस्टी।
- संगमयुग क्लीयर कर दिखाना है, यह है पुरुषोत्तम संगमयुग।
- उस तरफ देवतायें, इस तरफ असुर। बाकी उन्हों की लड़ाई हुई नहीं है।
- लड़ाई तुम ब्राह्मणों की है विकारों से, इनको भी लड़ाई नहीं कहेंगे।
- सबसे बड़ा है काम विकार, यह महाशत्रु है।
- इन पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बनेंगे।
- इस विष पर ही अबलायें मार खाती हैं।
- अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते हैं।
- मूल बात है पवित्रता की।
- पुरूषार्थ करते-करते, तूफान आते-आते तुम्हारी जीत हो जायेगी।
- माया थक जायेगी।
- कुश्ती में पहलवान जो होते हैं, वह झट सामना कर लेते हैं।
- उन्हों का धन्धा ही है अच्छी रीति लड़कर जीत पाना।
- पहलवान का बड़ा नामाचार होता है।
- इनाम मिलता है।
- तुम्हारी तो यह है गुप्त बात।
- तुम जानते हो हम आत्मायें पवित्र थी। अभी अपवित्र बनी हैं फिर पवित्र बनना है।
- यही मैसेज सबको देना है और कोई भी प्रश्न पूछे, तुमको इन बातों में जाना ही नहीं है। तुम्हारा है ही रूहानी धन्धा।
- हम आत्माओं में बाबा ने ज्ञान भरा था, बाद में प्रालब्ध पाई, ज्ञान खत्म हो गया।
- अब फिर बाबा ज्ञान भर रहे हैं।
- बाकी नशे में रहो, बोलो बाप का मैसेज देते हैं कि बाप को याद करो तो कल्याण होगा।
- तुम्हारा धन्धा ही यह रूहानी है।
- पहली-पहली बात कि बाप को जानों।
- बाप ही ज्ञान का सागर है।
- वह कोई पुस्तक थोड़ेही सुनाते हैं।
- वो लोग जो डॉक्टर ऑफ फिलॉसॉफी आदि बनते हैं, वह किताब पढ़ते हैं।
- भगवान तो नॉलेजफुल है।
- उनको सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज है।
- वह कुछ पढ़ा है क्या?
- वह तो सब वेदों-शास्त्रों आदि को जानते हैं।
- बाप कहते हैं मेरा पार्ट है तुमको नॉलेज समझाने का।
- ज्ञान और भक्ति का कान्ट्रास्ट और कोई बता न सके।
- यह है ज्ञान की पढ़ाई।
- भक्ति को ज्ञान नहीं कहा जाता है।
- सर्व का सद्गति दाता एक ही बाप है। वर्ल्ड की हिस्ट्री जरूर रिपीट होगी।
- पुरानी दुनिया के बाद फिर नई दुनिया जरूर आनी है।
- तुम बच्चे जानते हो बाबा हमको फिर से पढ़ाते हैं।
- बाप कहते हैं मुझे याद करो, ज़ोर सारा इस पर है।
- बाबा जानते हैं बहुत अच्छे-अच्छे नामीग्रामी बच्चे इस याद की यात्रा में बहुत कमज़ोर हैं और जो नामीग्रामी नहीं, बांधेलियां हैं, गरीब हैं, वह याद की यात्रा में बहुत रहते हैं।
- हर एक अपनी दिल से पूछे-मैं बाप को कितना समय याद करता हूँ?
- बाबा कहते हैं - बच्चे, जितना हो सके तुम मुझे याद करो।
- अन्दर में बहुत हर्षित रहो।
- भगवान पढ़ाते हैं तो कितनी खुशी होनी चाहिए।
- बाप कहते हैं तुम पवित्र आत्मा थे फिर शरीर धारण कर पार्ट बजाते-बजाते पतित बने हो।
- अब फिर पवित्र बनना है।
- फिर वही दैवी पार्ट बजाना है।
- तुम दैवी धर्म के हो ना।
- तुमने ही 84 का चक्र लगाया है।
- सब सूर्यवंशी भी 84 जन्म थोड़ेही लेते हैं।
- पीछे आते रहते हैं ना।
- नहीं तो फट से सभी आ जाएं। सवेरे उठकर बुद्धि से कोई काम ले तो समझ सकते हैं।
- बच्चों को ही विचार सागर मंथन करना है।
- शिवबाबा तो नहीं करते हैं।
- वह तो कहते हैं ड्रामा अनुसार जो कुछ सुनाता हूँ, ऐसे ही समझो कल्प पहले मुआफिक जो समझाया था, वही समझाया।
- मंथन तुम करते हो।
- तुमको ही समझाना है, ज्ञान देना है।
- यह ब्रह्मा भी मंथन करते हैं।
- बी.के. को मंथन करना है, शिवबाबा को नहीं।
- मूल बात कोई से भी जास्ती टॉक नहीं करनी है।
- आरग्यु शास्त्रवादी आपस में बहुत करते हैं, तुमको आरग्यु (वाद-विवाद) नहीं करना है।
- तुमको सिर्फ पैगाम देना है।
- पहले सिर्फ मुख्य एक बात पर समझाओ और लिखाओ।
- पहले-पहले यह शब्क रखो कि यह कौन पढ़ाते हैं, सो लिखो।
- यह बात तुम पिछाड़ी में ले जाते हो इसलिए संशय पड़ता रहता है।
- निश्चयबुद्धि न होने कारण समझते नहीं हैं।
- सिर्फ कह देते बात ठीक है।
- पहले-पहले मुख्य बात ही यह है।
- रचता बाप को समझो फिर रचना का राज़ समझना।
- मुख्य बात गीता का भगवान कौन? तुम्हारी विजय भी इनमें होनी है।
- पहले-पहले कौन सा धर्म स्थापन हुआ?
- पुरानी दुनिया को नई दुनिया कौन बनाते हैं।
- बाप ही आत्माओं को नया ज्ञान सुनाते हैं, जिससे नई दुनिया स्थापन होती है।
- तुमको बाप और रचना की पहचान मिलती है।
- पहले-पहले तो अल्फ पर पक्का कराओ तो बे बादशाही है ही।
- बाप से ही वर्सा मिलता है।
- बाप को जाना और वर्से का हकदार बना।
- बच्चा जन्म लेता है, माँ-बाप को देखा और बस पक्का हो जायेगा।
- माँ-बाप के सिवाए कोई के पास जायेगा भी नहीं क्योंकि माँ से दूध मिलता है।
- यह भी ज्ञान का दूध मिलता है।
- मात-पिता है ना। यह बड़ी महीन बातें हैं, जल्दी कोई समझ न सकें।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) सच्चा-सच्चा पवित्र ब्राह्मण बनना है, कभी शूद्र (पतित) बनने का मन्सा में भी ख्याल न आये, जरा भी दृष्टि न जाए, ऐसी अवस्था बनानी है।
- 2) बाप जो पढ़ा रहे हैं, वह समझानी बुद्धि में रखनी है।
- जो विकर्म करने की आसुरी आदतें पड़ी हुई हैं, उन्हें मिटाना है।
- पुरूषार्थ करते-करते सम्पूर्ण पवित्रता की ऊंची मंजिल को प्राप्त करना है।
- वरदान:-
- प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहने वाले निरन्तर योगी भव
- निरन्तर योगी बनने का सहज साधन है-प्रवृत्ति में रहते पर-वृत्ति में रहना।
- पर-वृत्ति अर्थात् आत्मिक रूप।
- जो आत्मिक रूप में स्थित रहता है वह सदा न्यारा और बाप का प्यारा बन जाता है।
- कुछ भी करेगा लेकिन यह महसूस होगा जैसे काम नहीं किया है लेकिन खेल किया है।
- तो प्रवृत्ति में रहते आत्मिक रूप में रहने से सब खेल की तरह सहज अनुभव होगा।
- बंधन नहीं लगेगा।
- सिर्फ स्नेह और सहयोग के साथ शक्ति की एडीशन करो तो हाईजम्प लगा लेंगे।
- स्लोगन:-
- बुद्धि की महीनता अथवा आत्मा का हल्कापन ही ब्राह्मण जीवन की पर्सनैलिटी है।
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