08-03-2021 प्रात:मुरली "बापदादा" मधुबन

मीठे बच्चे - श्रीमत पर कल्याणकारी बनना है, सबको सुख का रास्ता बताना है

प्रश्नः-

किसी भी प्रकार की ग़फलत होने का मुख्य कारण क्या है?

उत्तर:-

देह-अभिमान।

देह-अभिमान के कारण ही बच्चों से बहुत भूलें होती हैं।

वह सर्विस भी नहीं कर सकते हैं।

उनसे ऐसा कर्म होता है जो सब ऩफरत करते हैं।

बाबा कहते - बच्चे आत्म-अभिमानी बनो।

कोई भी अकर्तव्य नहीं करो।

क्षीरखण्ड हो सर्विस के अच्छे-अच्छे प्लैन बनाओ।

मुरली सुनकर धारण करो, इसमें बेपरवाह नहीं बनो।

 

गीत:- छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...


  • ओम् शान्ति। रूहानी बच्चों प्रति रूहानी बाप की श्रीमत।
  • अभी हम सब सेन्टर्स के बच्चों से बात कर रहे हैं।
  • अब जो त्रिमूर्ति, गोला, झाड़, सीढ़ी, लक्ष्मी-नारायण का चित्र और कृष्ण का चित्र - यह 6 चित्र हैं मुख्य।
  • यह जैसे पूरी प्रदर्शनी है, इनमें सब सार आ जाता है।
  • जैसे नाटक के पर्दे बनाये जाते हैं, एडवरटाइज़ के लिए।
  • वह कभी बरसात आदि में खराब नहीं होते हैं।
  • ऐसे यह मुख्य चित्र बनाने चाहिए।
  • बच्चों को श्रीमत मिलती है रूहानी सर्विस बढ़ाने लिए, भारतवासी मनुष्यों का कल्याण करने के लिए।
  • गाते भी हैं - कल्याणकारी बेहद का बाप है तो जरूर कोई अकल्याणकारी भी होगा।
  • जिस कारण बाप को आकर फिर कल्याण करना पड़ता है।
  • रूहानी बच्चे जिनका कल्याण हो रहा है, वह इन बातों को समझ सकते हैं।
  • जैसे हमारा कल्याण हुआ है तो हम फिर औरों का भी कल्याण करें।
  • जैसे बाप को भी चिन्तन चलता है कि कैसे कल्याण करें।
  • युक्तियाँ बता रहे हैं।
  • 6 बाई 9 साइज़ के शीट पर यह चित्र बनाने चाहिए।
  • देहली जैसे शहरों में अक्सर करके बहुत मनुष्य आते हैं।
  • जहाँ गवर्नमेन्ट की एसेम्बली आदि होती है।
  • पोट्रियेट तरफ बहुत लोग आते हैं, वहाँ यह चित्र रखने चाहिए।
  • बहुतों का कल्याण करने अर्थ बाप मत देते हैं।
  • ऐसे टीन पर बहुत चित्र बन सकते हैं।
  • देही-अभिमानी बन बाप की सर्विस में लगना है।
  • बाप राय देते हैं - यह चित्र हिन्दी और अंग्रेजी में बनाने चाहिए।
  • यह 6 चित्र मुख्य जगह पर लग जायें।
  • अगर ऐसे मुख्य स्थानों पर लग जायें तो तुम्हारे पास सैकड़ों समझने के लिए आयेंगे।
  • परन्तु बच्चों में देह-अभिमान होने के कारण बहुत भूलें होती हैं।
  • ऐसे कोई मत समझे कि मैं पक्का देही-अभिमानी हूँ।
  • गलतियाँ तो बहुत होती हैं, सच नहीं बतलाते हैं।
  • समझाया जाता है, ऐसा कोई कर्तव्य नहीं करो जो कोई खराब नफरत लाये कि इनमें देह-अभिमान है।
  • तुम सदैव युद्ध के मैदान में हो।
  • और जगह तो 10-20 वर्ष तक युद्ध चलती है।
  • तुम्हारी माया से अन्त तक युद्ध चलनी है।
  • परन्तु है गुप्त, जिसको कोई जान नहीं सकते।
  • गीता में जो महाभारत लड़ाई है, वह जिस्मानी दिखाई है।
  • परन्तु है यह रूहानी।
  • रूहानी युद्ध है पाण्डवों की।
  • वह जिस्मानी युद्ध है जो परमपिता परमात्मा से विप्रीत बुद्धि हैं।
  • तुम ब्राह्मण कुल भूषणों की है प्रीत बुद्धि।
  • तुमने और संग तोड़ एक बाप के संग जोड़ी है।
  • बहुत बार देह-अभिमान आने कारण भूल जाते हैं फिर अपना ही पद भ्रष्ट कर लेते हैं।
  • फिर अन्त में बहुत पछताना पड़ेगा।
  • कुछ कर नहीं सकेंगे।
  • यह कल्प-कल्प की बाजी है।
  • इस समय कोई अकर्तव्य कार्य करते हैं तो कल्प-कल्पान्तर के लिए पद भ्रष्ट हो जाता है।
  • बड़ा घाटा पड़ जाता है।
  • बाप कहते हैं - आगे तुम 100 प्रतिशत घाटे में थे।
  • अब बाप 100 प्रतिशत फायदे में ले जाते हैं।
  • तो श्रीमत पर चलना है।
  • हर एक बच्चे को कल्याणकारी बनना है।
  • सबको सुख का रास्ता बताना है।
  • सुख है ही स्वर्ग में, नर्क में है दु:ख। क्यों?
  • यह है विशश दुनिया, वह वाइसलेस थी, अब विशश दुनिया बनी है, फिर बाप वाइसलेस बनाते हैं।
  • इन बातों को दुनिया में कोई नहीं जानते हैं।
  • तो मुख्य यह चित्र परमानेन्ट स्थानों पर लगने चाहिए।
  • पहला नम्बर देहली मुख्य, सेकण्ड बॉम्बे और कलकत्ता, कोई को ऑर्डर देने से शीट पर बना सकते हैं।
  • आगरा में भी घूमने के लिए बहुत जाते हैं।
  • बच्चे सर्विस तो बहुत अच्छी कर रहे हैं और भी कुछ कर्तव्य करके दिखायें।
  • यह चित्र बनाने में कोई तकलीफ नहीं हैं।
  • सिर्फ एक्सपीरियन्स (अनुभव) चाहिए।
  • अच्छे बड़े चित्र हों जो कोई दूर से भी पढ़ सके।
  • गोला भी बड़ा बन सकता है।
  • सेफ्टी से रखना पड़े, जो कोई खराब न करे।
  • यज्ञ में असुरों के विघ्न पड़ते हैं क्योंकि यह हैं नई बातें।
  • यह दुकान निकाल बैठे हैं।
  • आखरीन में सब समझ जायेंगे कि हम उतरते आये हैं, जरूर कुछ खामी है।
  • बाप है ही कल्याणकारी।
  • वही बता सकते हैं कि भारत का कल्याण कैसे और कब हुआ है।
  • भारत को तमोप्रधान कौन बनाते हैं फिर सतोप्रधान कौन बनाते हैं, यह चक्र कैसे फिरता है, कोई नहीं जानते हैं।
  • संगमयुग को भी नहीं जानते हैं।
  • समझते हैं भगवान युगे-युगे आता है।
  • कभी कहते हैं भगवान तो नाम रूप से न्यारा है।
  • भारत प्राचीन स्वर्ग था।
  • यह भी कहते हैं क्राइस्ट से 3 हजार वर्ष पहले देवताओं का राज्य था फिर कल्प की आयु लम्बी दे दी है, तो बच्चों को देही-अभिमानी बनने की बड़ी मेहनत करनी है।
  • आधाकल्प सतयुग और त्रेता में तुम आत्म-अभिमानी थे परन्तु परमात्म-अभिमानी नहीं थे।
  • यहाँ तो फिर तुम देह-अभिमानी बन पड़े हो।
  • फिर देही-अभिमानी बनना पड़े।
  • यात्रा अक्षर भी है, परन्तु अर्थ नहीं समझते हैं।
  • मनमनाभव का अर्थ है रूहानी यात्रा पर रहो।
  • हे आत्मायें मुझ बाप को याद करो।
  • कृष्ण तो ऐसे कह न सके।
  • वह गीता का भगवान कैसे हो सकता है।
  • उन पर कोई कलंक लगा न सके।
  • यह भी बाप ने समझाया है सीढ़ी जब उतरे हैं तो आधाकल्प काम चिता पर बैठ काले हो जाते हैं।
  • अब है ही आइरन एज।
  • उनकी सम्प्रदाय काली ही होगी।
  • परन्तु सबका सांवरा रूप कैसे बनायें।
  • चित्र आदि जो भी बनाये हैं सब बेसमझी के।
  • उसको ही श्याम फिर सुन्दर कहना... यह कैसे हो सकता है।
  • उनको कहा ही जाता है अन्धश्रद्धा से गुड़ियों की पूजा करने वाले।
  • गुड़ियों का नाम रूप ऑक्यूपेशन आदि हो नहीं सकता।
  • तुम भी पहले गुड़ियों की पूजा करते थे ना।
  • अर्थ कुछ भी नहीं समझते थे।
  • तो बाबा ने समझाया है - प्रदर्शनी के चित्र मुख्य बन जायें।
  • कमेटी बने जो प्रदर्शनी पिछाड़ी प्रदर्शनी करती रहे।
  • बन्धन मुक्त तो बहुत हैं।
  • कन्यायें बन्धनमुक्त हैं।
  • वानप्रस्थी भी बन्धनमुक्त हैं।
  • तो बच्चों को डायरेक्शन अमल में लाना चाहिए।
  • यह है गुप्त पाण्डव।
  • कोई को भी पहचान में नहीं आ सकते।
  • बाप भी गुप्त, ज्ञान भी गुप्त।
  • वहाँ मनुष्य, मनुष्य को ज्ञान देते हैं।
  • यहाँ परमात्मा बाप ज्ञान देते हैं आत्माओं को।
  • परन्तु यह नहीं समझते कि आत्मा ज्ञान लेती है क्योंकि वह आत्मा को निर्लेप कह देते हैं।
  • वास्तव में आत्मा ही सब कुछ करती है।
  • पुनर्जन्म आत्मा लेती है, कर्मों के अनुसार।
  • बाप यह सब प्वांइट्स अच्छी रीति बुद्धि में डालते हैं।
  • सब सेन्टर्स में नम्बरवार देही-अभिमानी हैं।
  • जो अच्छी रीति समझते और फिर समझाते हैं।
  • देह-अभिमानी न कुछ समझते न समझा सकते हैं।
  • मैं कुछ समझती नहीं हूँ, यह भी देह-अभिमान है।
  • अरे तुम तो आत्मा हो।
  • बाप आत्माओं को बैठ समझाते हैं।
  • दिमाग ही खुल जाना चाहिए।
  • तकदीर में नहीं है तो खुलता ही नहीं।
  • तो बाप तदबीर कराते हैं परन्तु तकदीर में नहीं है तो पुरूषार्थ भी नहीं करते हैं।
  • है बहुत सहज, अल्फ और बे समझना है।
  • बेहद के बाप से वर्सा मिलता है।
  • तुम भारतवासी सब गॉड गॉडेज थे।
  • प्रजा भी ऐसी थी।
  • इस समय पतित बन पड़े हैं।
  • कितना समझाया जाता है।
  • अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
  • बाप कहते हैं बच्चे हमने तुमको गॉड गॉडेज बनाया।
  • तुम अब क्या बन गये हो। यह है कुम्भी पाक नर्क।
  • विषय वैतरणी नदी में मनुष्य जानवर पंछी आदि सब एक समान दिखाते हैं।
  • यहाँ तो मनुष्य और ही खराब हो पड़े हैं।
  • मनुष्यों में क्रोध भी कितना है।
  • लाखों को मार देते हैं।
  • भारत जो वेश्यालय बना है फिर इनको शिवालय शिवबाबा ही बनाते हैं।
  • बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं।
  • डायरेक्शन देते हैं ऐसे-ऐसे करो। चित्र बनाओ।
  • फिर जो बड़े-बड़े मनुष्य हैं उन्हों को समझाओ।
  • यह प्राचीन योग, प्राचीन नॉलेज सबको सुननी चाहिए।
  • हाल लेकर प्रदर्शनी लगानी है।
  • उन्हों को तो पैसे आदि कुछ नहीं लेने चाहिए।
  • फिर भी जो ठीक समझो तो किराया लो।
  • चित्र तो आप देखो, चित्र देखेंगे तो फिर झट पैसे वापिस कर देंगे।
  • सिर्फ युक्ति से समझाना चाहिए। अथॉरिटी तो हाथ में रहती है ना।
  • चाहे तो सब कुछ कर सकते हैं।
  • वह थोड़ेही समझते हैं, विनाश काले विपरीत बुद्धि तो विनाश को प्राप्त हो गये।
  • पाण्डवों ने तो भविष्य में पद पाया।
  • सो भी राज्य पीछे भविष्य में होगा। अभी थोड़ेही होगा।
  • यह मकान आदि सब टूट जायेंगे।
  • अब बाप ने समझाया है प्रदर्शनी भी करनी चाहिए।
  • खूब अच्छी तरह से कार्ड पर निमन्त्रण देना है।
  • तुम पहले बड़ों को समझाओ तो मदद भी करेंगे।
  • बाकी सोये नहीं रहना है।
  • कई बच्चे देह-अभिमान में सोये रहते हैं।
  • कमेटी बनाए क्षीरखण्ड हो प्लैन बनाना चाहिए।
  • बाकी मुरली नहीं पढ़ेंगे तो धारणा कैसे होगी।
  • ऐसे बहुत लागर्ज (बेपरवाह) हैं।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) देही-अभिमानी बनकर सर्विस की भिन्न-भिन्न युक्तियाँ निकालनी हैं।
  • आपस में क्षीरखण्ड होकर सर्विस करनी है।
  • जैसे बाप कल्याणकारी है ऐसे कल्याणकारी बनना है।
  • 2) प्रीत बुद्धि बन और संग तोड़ एक संग जोड़ना है।
  • कोई ऐसा अकर्तव्य नहीं करना है जो कल्प-कल्पान्तर के लिए नुकसान हो जाए।
  • वरदान:-
  • ( All Blessings of 2021)
  • सदा उमंग, उत्साह में रह चढ़ती कला का अनुभव करने वाले महावीर भव
  • महावीर बच्चे हर सेकेण्ड, हर संकल्प में चढ़ती कला का अनुभव करते हैं।
  • उनकी चढ़ती कला सर्व के प्रति भला अर्थात् कल्याण करने के निमित्त बना देती है।
  • उन्हें रूकने वा थकने की अनुभूति नहीं होती, वे सदा अथक, सदा उमंग-उत्साह में रहने वाले होते हैं।
  • रूकने वाले को घोड़ेसवार, थकने वाले को प्यादा और जो सदा चलने वाले हैं उनको महावीर कहा जाता है।
  • उनकी माया के किसी भी रूप में आंख नहीं डूबेगी।
  • स्लोगन:-
  • (All Slogans of 2021)
  • शक्तिशाली वह है जो अपनी साधना द्वारा जब चाहे शीतल स्वरूप और जब चाहे ज्वाला रूप धारण कर ले।
  • मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य -
  • आत्मा कभी परमात्मा का अंश नहीं हो सकती है:-
  • बहुत मनुष्य ऐसे समझते हैं, हम आत्मायें परमात्मा की अंश हैं, अब अंश तो कहते हैं टुकडे को।
  • एक तरफ कहते हैं परमात्मा अनादि और अविनाशी है, तो ऐसे अविनाशी परमात्मा को टुकडे में कैसे लाते हैं!
  • अब परमात्मा कट कैसे हो सकता है, आत्मा ही अज़र अमर है, तो अवश्य आत्मा को पैदा करने वाला अमर ठहरा।
  • ऐसे अमर परमात्मा को टुकडे में ले आना गोया परमात्मा को भी विनाशी कह दिया लेकिन हम तो जानते हैं कि हम आत्मा परमात्मा की संतान हैं।
  • तो हम उसके वंशज ठहरे अर्थात् बच्चे ठहरे वो फिर अंश कैसे हो सकते हैं?
  • इसलिए परमात्मा के महावाक्य हैं कि बच्चे, मैं खुद तो इमार्टल हूँ, जागती ज्योत हूँ, मैं दीवा हूँ, मैं कभी बुझता नहीं हूँ और सभी मनुष्य आत्माओं का दीपक जगता भी है तो बुझता भी है।
  • उन सबको जगाने वाला फिर मैं हूँ क्योंकि लाइट और माइट देने वाला मैं हूँ, बाकी इतना जरुर है मुझ परमात्मा की लाइट और आत्मा की लाइट दोनों में फर्क अवश्य है।
  • जैसे बल्ब होता है कोई ज्यादा पॉवर वाला, कोई कम पॉवर वाला होता है, वैसे आत्मा भी कोई ज्यादा पॉवर वाली कोई कम पॉवर वाली है।
  • बाकी परमात्मा की पॉवर कोई से कम ज्यादा नहीं होती है तभी तो परमात्मा के लिये कहते हैं।
  • परमात्मा सर्वशक्तिवान अर्थात् सर्व आत्माओं से उसमें शक्ति ज्यादा है।
  • वही सृष्टि के अन्त में आता है, अगर कोई समझे परमात्मा सृष्टि के बीच में आता है अर्थात् युगे युगे आता है तो मानो परमात्मा बीच में आ गया तो फिर परमात्मा सर्व से श्रेष्ठ कैसे हुआ।
  • अगर कोई कहे परमात्मा युगे युगे आता है, तो क्या ऐसा समझें कि परमात्मा घड़ी घड़ी अपनी शक्ति चलाता है।
  • ऐसे सर्वशक्तिवान की शक्ति इतने तक है, अगर बीच में ही अपनी शक्ति से सबको शक्ति अथवा सद्गति दे देवे तो फिर उनकी शक्ति कायम होनी चाहिए फिर दुर्गति को क्यों प्राप्त करते हो?
  • तो इससे साबित (सिद्ध) है कि परमात्मा युगे युगे नहीं आता है अर्थात् बीच बीच में नहीं आता है।
  • वो आता है कल्प के अन्त समय और एक ही बार अपनी शक्ति से सर्व की सद्गति करता है।
  • जब परमात्मा ने इतनी बड़ी सर्विस की है तब उनका यादगार बड़ा शिवलिंग बनाया है और इतनी पूजा करते हैं, तो अवश्य परमात्मा सत् भी है, चैतन्य भी है और आनंद स्वरूप भी है। अच्छा - ओम् शान्ति।