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ओम् शान्ति। बच्चों ने यह समझा है कि भगवान एक है, गॉड इज वन।
- सभी आत्माओं का पिता एक है।
- उनको परमपिता परमात्मा कहा जाता है।
- सृष्टि का रचयिता एक है।
- अनेक हो ही नहीं सकते।
- इस सिद्धान्त अनुसार मनुष्य अपने को भगवान कहला नहीं सकते।
- अभी तुम ईश्वरीय सर्विस के निमित्त बने हो।
- ईश्वर नई दुनिया स्थापन कर रहे हैं, जिसको सतयुग कहा जाता है, उसके लिए तुम लायक बन रहे हो।
- सतयुग में कोई पतित नहीं रहते।
- अभी तुम पावन बन रहे हो।
- कहते हैं पतित-पावन मैं हूँ और तुम बच्चों को श्रेष्ठ मत देता हूँ कि मुझ अपने निराकार बाप को याद करने से तुम पतित तमोप्रधान से पावन सतोप्रधान बन जायेंगे।
- याद रूपी योग अग्नि से तुम्हारे पाप नाश हो जायेंगे।
- साधू आदि तो कह देते हैं ईश्वर सर्वव्यापी है।
- एक तरफ कहते भगवान एक है फिर यहाँ तो बहुत अपने को भगवान कहलाते हैं।
- श्री-श्री 108 जगतगुरू कहलाते हैं।
- अब जगत का गुरू तो एक ही बाप है।
- सारे जगत को पावन बनाने वाला एक परमात्मा सारी दुनिया को लिबरेट करता है दु:ख से।
- वही दु:ख हर्ता सुख कर्ता है।
- मनुष्यों को यह नहीं कहा जा सकता है।
- यह भी तुम बच्चे समझते हो।
- यह है ही पतित दुनिया।
- सब पतित हैं।
- पावन दुनिया में हैं यथा महाराजा-महारानी तथा प्रजा।
- सतयुग में पूज्य महाराजा-महारानी होते हैं।
- फिर भक्ति मार्ग में पुजारी बन जाते हैं।
- सतयुग में जो महाराजा-महारानी हैं, उनकी जब दो कलायें कम होती हैं तो राजा-रानी कहा जाता है।
- यह सब बातें डिटेल की हैं।
- नहीं तो एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति।
- बाप समझाते हैं भल गृहस्थ व्यवहार में रहो परन्तु यह अन्तिम जन्म पवित्र रहो।
- अब वानप्रस्थ अवस्था है।
- वानप्रस्थ वा शान्तिधाम एक ही बात है।
- यहाँ आत्मायें ब्रह्म तत्व में रहती हैं, जिसको ब्रह्माण्ड कहते हैं।
- वास्तव में आत्मायें कोई अण्डे मिसल नहीं हैं।
- आत्मा तो स्टार है।
- बाबा ने समझाया है जो भी आत्मायें हैं इस ड्रामा में एक्टर्स हैं।
- जैसे एक्टर्स नाटक में ड्रेस बदलते हैं, भिन्न-भिन्न पार्ट बजाते हैं, यह भी बेहद का नाटक है।
- आत्मायें इस सृष्टि पर 5 तत्वों के बने हुए शरीर में प्रवेश कर पार्ट बजाती हैं - शुरू से लेकर।
- परमात्मा और ब्रह्मा, विष्णु, शंकर सब एक्टर्स हैं।
- नाटक में भिन्न-भिन्न प्रकार की ड्रेस मिलती है पार्ट बजाने।
- घर में आत्मायें सब शरीर के बिगर रहती हैं।
- फिर जब 5 तत्वों का शरीर तैयार होता है, तब उनमें प्रवेश करती है।
- 84 शरीर मिलते हैं तो नाम भी इतने बदलते हैं।
- आत्मा का नाम एक है।
- अब शिवबाबा तो है ही पतित-पावन।
- उनको अपना शरीर नहीं है।
- शरीर का आधार लेना पड़ता है।
- कहते हैं मेरा नाम शिव ही है।
- भल पुराने शरीर में आता हूँ।
- उनके शरीर का नाम अपना है।
- उनका व्यक्त नाम है, फिर अव्यक्ति नाम पड़ा है।
- एक धर्म वाला दूसरे धर्म में जाता है तो नाम बदलता है।
- तुम भी शूद्र धर्म से बदल ब्राह्मण धर्म में आये हो तो नाम बदला है।
- तुम लिखते हो शिवबाबा थ्रू ब्रह्मा।
- शिवबाबा परमपिता परमात्मा है, उनका नाम नहीं बदलता है।
- शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा स्थापना करा रहे हैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म की।
- जो प्राय:लोप हो गया है, जो पावन पूज्य थे वे ही पतित पुजारी बनते हैं।
- 84 जन्म पूरे किये हैं।
- अब फिर से देवी-देवता धर्म स्थापन होता है।
- गाया हुआ है परमपिता परमात्मा आकर ब्रह्मा द्वारा फिर से स्थापना कराते हैं तो ब्राह्मण जरूर चाहिए।
- ब्रह्मा और ब्राह्मण कहाँ से आये?
- शिवबाबा आकर ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं।
- कहते हैं तुम हमारे हो।
- शिवबाबा के बच्चे तो हो ही फिर ब्रह्मा द्वारा पोत्रे हो जाते हो।
- पिता तो एक है सारी प्रजा का।
- इतने सब बच्चे कुमार-कुमारियाँ हैं।
- उनको शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट करते हैं।
- मनुष्यों को पता थोड़ेही है।
- बाप आकर आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करते हैं।
- तो ऐसे नहीं कि नयेसिर आते रहते हैं।
- जैसे दिखाते हैं प्रलय हुई फिर पत्ते पर सागर में आया....।
- अब यह तो सब कहानियां बनाई हुई हैं।
- यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती रहती है।
- आत्मा अमर है।
- उसमें पार्ट भी अमर है।
- पार्ट कभी घिसता नहीं है।
- सतयुग में वही लक्ष्मी-नारायण की सूर्यवंशी राजधानी चलती आती है।
- कभी बदलती नहीं।
- दुनिया नई से पुरानी, पुरानी से नई होती रहती है।
- हर एक को अविनाशी पार्ट मिला हुआ है।
- बाप कहते हैं भक्ति मार्ग में भक्त जिस-जिस भावना से भक्ति करते हैं वैसा साक्षात्कार कराता हूँ।
- कोई को हनूमान का, गणेश का भी साक्षात्कार कराता हूँ।
- उनकी वह शुभ भावना पूरी करता हूँ।
- यह भी ड्रामा में नूँध है।
- मनुष्य फिर समझते हैं कि भगवान सबमें है इसलिए सर्वव्यापी कह देते हैं।
- भक्त माला भी है, मेल्स में नारद शिरोमणी गाया जाता है, फीमेल में मीरा।
- भक्त माला अलग है, रूद्र माला अलग है, ज्ञान की माला अलग है।
- भक्तों की माला कभी पूजते नहीं।
- रूद्र माला पूजी जाती है।
- ऊपर है फूल फिर मेरू... फिर हैं बच्चे, जो राजगद्दी पर बैठते हैं।
- रूद्र माला ही विष्णु की माला है।
- भक्तों की माला का सिर्फ गायन होता है।
- यह रूद्र माला तो सब फेरते हैं।
- तुम भक्त नहीं ज्ञानी हो।
- बाप कहते हैं मुझे ज्ञानी तू आत्मा प्रिय लगते हैं।
- बाप ही ज्ञान का सागर है, तुम बच्चों को ज्ञान दे रहे हैं।
- माला भी तुम्हारी पूजी जाती है।
- 8 रत्नों का भी पूजन होता है क्योंकि ज्ञानी तू आत्मा हैं तो उनकी पूजा होती है।
- अंगूठी बनाकर पहनते हैं क्योंकि यह भारत को स्वर्ग बनाते हैं।
- पास विद् ऑनर होते हैं तो उनका गायन है।
- 9 वाँ दाना बीच में शिवबाबा को रखते हैं।
- उसको कहते हैं 9 रत्न।
- यह है डिटेल की समझानी।
- बाप तो सिर्फ कहते हैं बाप और वर्से को याद करो तो तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे फिर तुम चले जायेंगे।
- पतित आत्मायें पावन दुनिया में जा न सकें।
- यहाँ सब पतित हैं।
- देवताओं के शरीर तो पवित्र निर्विकारी हैं।
- वह हैं पूज्य, यथा राजा-रानी तथा प्रजा पूज्य हैं।
- यहाँ सब हैं पुजारी।
- वहाँ दु:ख की बात नहीं।
- उनको कहा जाता है स्वर्ग, सुखधाम।
- वहाँ सुख, सम्पत्ति, शान्ति सब थी।
- अब तो कुछ नहीं है इसलिए इसको नर्क, उनको स्वर्ग कहा जाता है।
- हम आत्मायें शान्तिधाम में रहने वाली हैं।
- वहाँ से आती हैं पार्ट बजाने।
- 84 जन्म पूरे भोगने पड़ते हैं।
- अभी दु:खधाम है फिर हम जाते हैं शान्तिधाम फिर सुखधाम में आयेंगे।
- बाप सुखधाम का मालिक बनाने, मनुष्य से देवता बनाने पुरूषार्थ करवा रहे हैं।
- तुम्हारा है यह संगमयुग।
- बाप कहते हैं मैं कल्प के संगमयुगे आता हूँ, युगे-युगे नहीं।
- मैं संगमयुग में एक ही बार सृष्टि को बदलने आता हूँ।
- सतयुग था, अब कलियुग है फिर सतयुग आना चाहिए, यह है कल्याणकारी संगमयुग।
- सबका कल्याण होना है, सबको रावण की जेल से छुड़ाते हैं।
- उनको दु:ख हर्ता सुख कर्ता कहा जाता है।
- यहाँ सब दु:खी हैं।
- तुम पुरूषार्थ करते हो सुखधाम में जाने के लिए।
- सुखधाम जाना है तो पहले शान्तिधाम में जाना है।
- तुमको पार्ट बजाते-बजाते 5 हज़ार वर्ष हुए हैं।
- बाप समझाते हैं तुमको अपना घर छोड़े 5 हज़ार वर्ष हुए हैं।
- उसमें तुम भारतवासियों ने 84 जन्म लिए हैं।
- अब तुम्हारा अन्तिम जन्म है, सबकी वानप्रस्थ अवस्था है।
- सबको जाना है।
- गायन भी है ज्ञान का सागर वा रूद्र।
- यह है शिव ज्ञान यज्ञ।
- पतित-पावन शिव है, परमात्मा भी शिव है।
- रूद्र नाम भक्तों ने रख दिया है।
- उनका असुल नाम एक ही शिव है।
- शिवबाबा प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा स्थापना करवाते हैं।
- ब्रह्मा एक ही है।
- यह पतित फिर वही ब्रह्मा पावन बनता है तो फरिश्ता बन जाता है।
- जो सूक्ष्मवतन में दिखाते हैं, वह दूसरा ब्रह्मा नहीं है।
- ब्रह्मा एक है।
- यह व्यक्त वह अव्यक्त।
- यह सम्पूर्ण पावन हो जायेंगे तो सूक्ष्मवतन में देखेंगे।
- वहाँ हड्डी आदि होती नहीं।
- जैसे बाबा ने समझाया था - जिस आत्मा को शरीर नहीं मिलता है तो भटकती रहती है।
- उनको भूत कहते हैं।
- जब तक शरीर मिले तब तक भटकती है। कोई अच्छी होती है, कोई बुरी होती है।
- तो बाप हर एक बात की समझानी देते हैं।
- वह ज्ञान का सागर है तो जरूर समझायेंगे ना।
- एक सेकेण्ड में जीवनमुक्ति है।
- अल्फ और बे को याद करो तो सेकेण्ड में जीवनमुक्ति का वर्सा मिलेगा।
- कितना सहज है।
- नाम ही है सहज राजयोग।
- वह समझते हैं भारत का योग यह था।
- परन्तु वह संन्यासियों का हठयोग है।
- यह तो बिल्कुल ही सहज है।
- योग माना याद।
- उनका है हठयोग।
- यह है सहज।
- बाप कहते हैं मुझे इस प्रकार याद करो।
- कोई लॉकेट आदि लगाने की दरकार नहीं है।
- तुम तो बच्चे हो बाप के।
- बाप को सिर्फ याद करो।
- तुम यहाँ पार्ट बजाने आये हो।
- अब सबको वापिस घर जाना है फिर वही पार्ट बजाना है।
- भारतवासी ही सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्य वंशी, शूद्र वंशी बनते हैं।
- इस बीच में और धर्म वाले भी आते हैं।
- 84 जन्म तुम लेते हो।
- फिर तुमको ही नम्बरवन में जाना है।
- फिर तुम सतयुग में आयेंगे तो और सभी शान्तिधाम में होंगे।
- और धर्म वालों के वर्ण नहीं हैं।
- वर्ण भारत के ही हैं।
- तुम ही सूर्यवंशी-चन्द्रवंशी बने थे।
- अभी ब्राह्मण वर्ण में हो।
- ब्रह्मा वंशी ब्राह्मण बने हो।
- यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं।
- जिनकी बुद्धि में धारणा नहीं हो सकती, उनको कहते हैं सिर्फ बाप को याद करो।
- जैसे बाप को जानने से बच्चे को मालूम पड़ जाता है यह मिलकियत है।
- बच्ची को तो वर्सा नहीं मिलता है।
- यहाँ तुम सब शिवबाबा के बच्चे हो, सबका हक है।
- मेल अथवा फीमेल सबका हक है।
- सबको सिखाना है - शिवबाबा को याद करो।
- जितना याद करेंगे उतना विकर्म विनाश होंगे, पतित से पावन बनेंगे।
- आत्मा में जो खाद पड़ी है वह निकले कैसे?
- बाप कहते हैं योग से ही तुम्हारी खाद खत्म हो जायेगी।
- यह पतित शरीर तो यहाँ ही छोड़ना है।
- आत्मा पवित्र बन जायेगी।
- सब मच्छरों सदृश्य जायेंगे।
- बुद्धि भी कहती है सतयुग में बहुत थोड़े रहते हैं।
- इस विनाश में कितने मनुष्य मरेंगे।
- बाकी थोड़े जाकर रहेंगे।
- राजायें तो थोड़े रहेंगे, बाकी 9 लाख प्रजा सतयुग में रहती है।
- इस पर गाते भी है ना - 9 लाख तारे, यानी प्रजा।
- झाड़ पहले छोटा होता है फिर वृद्धि को पाता है।
- अभी तो कितनी आत्मायें हैं।
- बाप आते हैं सबका गाइड बन ले जाते हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) योग अग्नि से विकर्मों की खाद को भस्म कर पावन बनना है।
- अब वानप्रस्थ अवस्था है इसलिए वापिस घर जाने के लिए सम्पूर्ण सतोप्रधान बनना है।
- 2) इस कल्याणकारी युग में बाप समान दु:ख हर्ता सुख कर्ता बनना है।
- वरदान:-
- साधारणता को समाप्त कर महानता का अनुभव करने वाले श्रेष्ठ पुरूषार्थी भव
- जो श्रेष्ठ पुरूषार्थी बच्चे हैं उनका हर संकल्प महान होगा क्योंकि उनके हर संकल्प, श्वांस में स्वत: बाप की याद होगी।
- जैसे भक्ति में कहते हैं अनहद शब्द सुनाई दे, अजपाजाप चलता रहे, ऐसा पुरूषार्थ निरन्तर हो इसको कहा जाता है श्रेष्ठ पुरूषार्थ।
- याद करना नहीं, स्वत: याद आता रहे तब साधारणता खत्म होती जायेगी और महानता आती जायेगी - यही है आगे बढ़ने की निशानी।
- स्लोगन:-
- मनन शक्ति द्वारा सागर के तले में जाने वाले ही रत्नों के अधिकारी बनते हैं।
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