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ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे बच्चों ने यह भक्ति मार्ग का गीत सुना।
- भक्त इस गीत के अर्थ को नहीं जानते।
- तुम भगवान के बच्चे बने हो।
- भगवान रक्षक है, भक्तों का।
- तुम भी रक्षक हो भक्तों के।
- भक्तों की रक्षा करते हो।
- कौनसी आ़फत है जो भगत रक्षा करने के लिए भगवान को बुलाते हैं?
- भक्तों को रावण का बहुत दु:ख है।
- रावण सम्प्रदाय पीड़ित है - दु:खों से।
- तो भोलानाथ को याद करते हैं।
- वह है रावण सम्पद्राय, यह है राम सम्प्रदाय।
- भक्तों को यह पता ही नहीं है कि हमारा रक्षक कौन है?
- भल गाते हैं, भोलानाथ रक्षक है।
- परन्तु क्या रक्षा करते हैं, यह नहीं जानते।
- तुम बच्चे अब समझते हो कि भोलानाथ शिवबाबा ही बिगड़ी को बनाने वाला है।
- दुनिया को तो पता नहीं है कि भगवान किसको कहा जाता है।
- भगवान का पता हो तो फिर भगवान की रचना के आदि-मध्य-अन्त का भी पता हो।
- न भगवान को जानते, न रचना का पता है इसलिए ऐसे मनुष्य सम्प्रदाय को ब्लाइन्ड भी कहा जाता है।
- दूसरे तरफ तुम हो, जिनको दिव्य दृष्टि मिली है।
- अब तुम्हारा नाम ही है ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ।
- बोर्ड पर भी नाम लगा हुआ है - ब्रह्मा-कुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय।
- सिर्फ ब्रह्माकुमारियाँ हो नहीं सकती।
- प्रजापिता ब्रह्मा है ना।
- पिता के पास बच्चे और बच्चियाँ दोनों होते हैं।
- प्रजापिता ब्रह्मा को ही इतने ढेर बच्चे हो सकते हैं।
- तो समझना चाहिए यह बेहद का पिता है।
- यह भी जानते हैं ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को रचने वाला बाप ही है, जिसको निराकार कहा जाता है।
- यह हो गया बेहद का बाप।
- यह भी जानते हो परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं।
- इनकी सारी रचना है - सब मनुष्य मात्र वास्तव में शिववंशी हैं।
- अभी तुम आकर प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान बने हो।
- यह है नई रचना।
- परमपिता परमात्मा ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं तो तुमको ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ कहा जाता है।
- इतने बेहद के बच्चे हैं जरूर बेहद का वर्सा लेते होंगे।
- बच्चे जानते हैं, हम ब्रह्मा-कुमार-कुमारियों को शिवबाबा ने एडाप्ट किया है।
- शिवबाबा कहते हैं - तुम हमारे बच्चे हो।
- तुम आत्मायें भी निराकार थी।
- परन्तु ज्ञान तो साकार में चाहिए।
- तुम जानते हो हम आदि सनातन देवी देवता धर्म के थे, ब्रह्मा द्वारा रचना यहाँ होती है।
- शिव जयन्ती भी यहाँ मनाई जाती है।
- यहाँ मगध देश में ही जन्म लिया है।
- बाप कहते हैं यह देश बहुत पवित्र स्वर्ग था।
- अभी इनको नर्क, मगध देश कहा जाता है।
- फिर स्वर्ग बनना है।
- तुम बच्चों की बुद्धि में है शिवबाबा हमको फिर से राजयोग सिखाए पवित्र बनाते हैं।
- गाते भी हैं पतित-पावन भक्तों के रक्षक भगवान।
- भक्त ही पुकारते हैं।
- पतित होते हुए भी अपने को पतित नहीं समझते हैं।
- बाप समझाते हैं - तुम सभी पतित हो।
- पावन दुनिया सतयुग को, पतित दुनिया कलियुग को कहा जाता है।
- बाप तुम्हें सब राइट बताते हैं।
- लाखों वर्ष की तो कोई चीज़ होती नहीं।
- मनुष्य घोर अन्धियारे में हैं, समझते हैं - कलियुग तो अभी छोटा बच्चा है।
- और तुम जानते हो मौत सामने खड़ा है।
- अन्धियारे और रोशनी का वर्णन संगम पर ही किया जाता है।
- अब तुम घोर प्रकाश में आये हो।
- सतयुग में तुम यह वर्णन नहीं कर सकेंगे।
- वहाँ यह नॉलेज ही नहीं रहती।
- इस समय बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं, तुम सतयुग में सूर्यवंशी घराने के थे फिर अन्त में आकर शूद्रवंशी घराने के बने हो।
- अब फिर ब्राह्मण वंशी बने हो।
- अभी तुम हो सर्वोत्तम ब्राह्मण कुल के, तुम हो ऊंच ते ऊंच।
- यह ईश्वरीय कुल है ना।
- बाप के पास आते हैं तो बाबा पूछते हैं - किसके पास आये हो?
- तो कहते हैं बाप के पास।
- बाप दो हैं - एक है लौकिक, दूसरा पारलौकिक।
- सभी सालिग्रामों का बाप एक ही शिव है।
- तुम्हारी बुद्धि में यह टपकता है।
- हम एक बाप के बच्चे हैं, जिससे वर्सा लेते हैं।
- निराकार वर्सा तो साकार द्वारा ही देंगे ना।
- बाप खुद कहते हैं - मैं साधारण तन में आकर प्रवेश करता हूँ।
- अब बाप बच्चों को कहते हैं बच्चे, देही-अभिमानी भव।
- अपने को आत्मा समझो।
- यह देह विनाशी है, आत्मा अविनाशी है।
- आत्मा को ही 84 जन्म लेने पड़ते हैं, न कि देह को।
- देह तो बदलती रहती है, फिर दूसरे मित्र-सम्बन्धी मिलते हैं।
- अभी आत्मा को बेहद के बाप से वर्सा लेना है - परमपिता परमात्मा द्वारा।
- तुम ही सुनकर फिर धारण करते हो।
- संस्कार तुम्हारी आत्मा में हैं।
- आत्मा में ही संस्कार रहते हैं।
- ऐसे नहीं कि शरीर के संस्कार कहेंगे।
- नहीं, तुम्हारी आत्मा के संस्कार तमोप्रधान हैं।
- उनको अब चेन्ज करना है।
- काया कल्पतरू कहा जाता है।
- काया कल्प वृक्ष समान बनती है।
- आयु भी बड़ी रहती है।
- तुम जानते हो - यहाँ तो आयु बहुत छोटी रहती है।
- छोटी आयु में ही बैठे-बैठे अकाले मृत्यु हो जाती है।
- अभी तुम काल पर विजय पाते हो।
- वहाँ काल कभी खाता नहीं।
- अकाले कब शरीर नहीं छूटता।
- तुम जानते हो - अब यह शरीर बूढ़ा हुआ है, इनको छोड़कर नया लेना है।
- शरीर छोड़ने समय भी बाजे बजते हैं, जन्म लेने समय भी बजते हैं।
- वहाँ रोने की बात ही नहीं होती।
- तुमको भ्रमरी का मिसाल भी समझाया है।
- तुम हो ब्राह्मण-ब्राह्मणियाँ।
- ब्राह्मणी और भ्रमरी राशि मिलती है।
- जो काम भ्रमरी करती है, वही तुम भी करते हो।
- वन्डर है ना।
- भ्रमरी का दृष्टान्त, कछुओं का, सर्प का यह सब शास्त्रों में हैं।
- संन्यासी आदि भी यह मिसाल देते हैं।
- अभी तुम बच्चे बाप द्वारा यह सब समझ रहे हो।
- वह तो हुआ भक्ति मार्ग।
- पास्ट का गायन करना, इसका फिर बाद में गायन होगा।
- इस समय ही बाप इस तन में आते हैं, इनको (ब्रह्मा को) भगवान नहीं कहा जाता है।
- वह तो फिर अन्धश्रद्धा हो जाती है।
- ऐसे भी मनुष्य हैं जो राम को, कृष्ण को भगवान समझते हैं।
- कृष्ण के लिए, राम के लिए भी कह देते वह तो सर्वव्यापी है।
- कोई कृष्णपंथी, कोई राधे पंथी होते हैं।
- राधे पंथी वाले कहेंगे, सर्वत्र राधे ही राधे हैं।
- कृष्ण पंथी कहेंगे, जिधर देखो कृष्ण ही कृष्ण है।
- राम पंथी राम ही राम कहेंगे।
- समझते हैं राम, कृष्ण से बड़ा है क्योंकि राम को त्रेता में और कृष्ण को द्वापर में ले गये हैं।
- कितना अज्ञान है।
- अब बाप तुम बच्चों को समझा रहे हैं, कितने ढेर ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ हैं, जरूर बेहद का बाप होगा।
- तुम कोई से भी पूछ सकते हो, कभी नाम सुना है प्रजापिता ब्रह्मा का?
- बाप ने स्वर्ग की नई रचना रची है।
- गाया भी जाता है ब्रह्मा द्वारा ब्राह्मण।
- जब तक तुम सब ब्राह्मण ब्रह्मा की मुख वंशावली नहीं बने हो तब तक दादे से वर्सा ले नहीं सकते।
- बेहद के बच्चे बेहद का वर्सा बाप से ही लेते हैं।
- लिया था बरोबर।
- बरोबर स्वर्गवासी थे।
- अभी नर्कवासी बन गये हैं, अब फिर प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा परमपिता परमात्मा विष्णुपुरी स्वर्ग रच रहे हैं।
- कितना सहज है।
- शिवबाबा पूछते हैं - आगे तुमको यह ज्ञान था?
- इनकी आत्मा ही कहती है - मेरे में यह ज्ञान नहीं था।
- मैं भी विष्णु का पुजारी था, जो हम पूज्य थे सो अब पुजारी आकर बनें।
- अब फिर बाबा आकर पुजारी से पूज्य देवता बना रहे हैं।
- तुम बच्चों को अन्दर में खुशी रहनी चाहिए।
- परमपिता परमात्मा ने आकर हमको एडाप्ट किया है।
- मनुष्य, मनुष्य को एडाप्ट करते हैं ना।
- बहुत मनुष्य होते हैं, जिनको अपने बच्चे नहीं होते हैं तो एडाप्ट करते हैं।
- अब बाप जानते हैं - मेरे बच्चे सब रावण के बन गये हैं, इसलिए मुझे आकर फिर से एडाप्ट करना पड़े।
- ब्रह्मा द्वारा अपने बच्चों को एडाप्ट करते हैं।
- यह एडाप्शन कितनी वण्डरफुल है।
- तुम ही जानते हो शिवबाबा ने हमको ब्रह्मा द्वारा एडाप्ट किया है।
- शिवबाबा कहते हैं - मैंने तुम बच्चों को एडाप्ट किया है, तुमको बेहद सुख का वर्सा देने।
- यह ब्रह्मा तो दे नहीं सकते।
- यह भी मनुष्य है ना प्रजापिता ब्रह्मा।
- मनुष्य यह ज्ञान नहीं देते हैं।
- ज्ञान का सागर निराकार परमपिता परमात्मा ही बैठ यह ज्ञान देते हैं।
- ब्रह्मा को अथवा विष्णु को ज्ञान सागर नहीं कहा जाता।
- इन तीनों की महिमा अलग है।
- ज्ञान सागर, पतित-पावन एक बाप है।
- सारी दुनिया के मनुष्य मात्र उनको बुलाते हैं।
- अंग्रेजी में भी कहते हैं - वह लिब्रेटर है। जिससे दु:ख मिलता है, उससे लिबरेट किया जाता है।
- बाप भी यहाँ आकर रावण से लिबरेट करते हैं।
- रावणराज्य भी यहाँ हुआ है।
- यहाँ ही रावण को जलाते हैं।
- जलाकर फिर कहते हैं, सोने की लंका लूटने जाते हैं।
- उनको तो कुछ पता नहीं है।
- रावण क्या चीज़ है, कब का यह दुश्मन है।
- समझते हैं राम की सीता चुराई गई।
- यह नहीं समझते कि हम सब सीतायें हैं।
- हम रावण की जेल में फँसी हुई हैं।
- यह ज्ञान किसमें भी नहीं है, कथायें बैठ सुनाते हैं।
- शिवबाबा कहते हैं - मैं दूरदेश का रहने वाला आया हूँ इस देश पराये।
- यह पतित दुनिया पुरानी है ना, यह है रावण की दुनिया।
- बुलाते भी हैं हे बाबा आओ हम पतित बन गये हैं।
- बाप कहते हैं हमको पावन बनाने इस पतित दुनिया में आना पड़ता है।
- और मुझे आना भी उस तन में है जो पहले नम्बर में पावन था, जो सुन्दर था वही अब श्याम बना है।
- कितनी वन्डरफुल बातें हैं।
- कृष्ण को श्याम-सुन्दर क्यों कहते हैं, यह किसको पता नहीं है।
- क्या एक कृष्ण को ही सर्प ने डसा?
- सतयुग में थोड़ेही सर्प आदि होते हैं।
- बाप कहते हैं - यह अन्तिम जन्म मेरे कारण पवित्र बनो तो पवित्र दुनिया के मालिक बनेंगे।
- सिर्फ मुझे याद करो और पवित्र बनो।
- अल्फ को याद करो - तो बे बादशाही तुम्हारी है।
- यह है सहज राजयोग, सहज राजाई।
- बच्चा पैदा हुआ और वर्से का हकदार बना।
- यहाँ भी बच्चे जानते हैं कि हम बाप के बने हैं तो स्वर्ग की राजाई के हम हकदार हैं।
- अब बाप कहते हैं - सतोप्रधान से तुम तमोप्रधान बन गये हो।
- फिर सतोप्रधान बनना है।
- योग और ज्ञान सिखाने में एक सेकण्ड लगता है।
- बच्चा पैदा हुआ और वारिस निश्चय किया।
- तुम बाप के बने हो तो राजधानी का वर्सा तुम्हारा है।
- परन्तु राजा-रानी सब तो नहीं बनेंगे।
- यह है राजयोग।
- राजा-रानी, प्रजा, साहूकार, गरीब सब चाहिए इसलिए रूद्र माला भी बनी हुई है, जो भक्ति मार्ग में जपते हैं।
- तुम जानते हो हम राजयोग सीखने आये हैं।
- मात-पिता को फालो कर पहले-पहले सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनेंगे।
- सपूत बच्चे वह जो मात-पिता को फालो कर तख्तनशीन बनें।
- पुरूषार्थ खूब करना चाहिए।
- बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो करते नहीं, श्रीमत पर चलते नहीं हैं।
- अन्दर सच्चाई नहीं है।
- दिल सच्ची हो तो श्रीमत पर चलते, बाप को याद करते रहें।
- श्रीमत पर ही तुमको दादे से वर्सा मिलता है।
- ब्रह्मा स्वर्ग का वर्सा दे नहीं सकते।
- दादे की कमाई पर पोत्रे का हक रहता है।
- बाप की कमाई के बच्चे भागीदार बनते हैं तो हकदार हैं।
- यहाँ तुमको शिवबाबा से वर्सा मिलता है।
- ज्ञान रत्न बाप से ही मिलते हैं।
- तुम जानते हो - हम ब्राह्मण ही सो फिर देवी-देवता बनेंगे।
- जगत अम्बा कौन है?
- बाप समझाते हैं - यह ब्राह्मणी थी, ज्ञान-ज्ञानेश्वरी थी फिर राज-राजेश्वरी बनती है।
- तुम भी ऐसे बनते हो।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चो को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) आत्मा में जो तमोप्रधानता के संस्कार हैं, उन्हें याद के बल से चेंज करना है। सतोप्रधान बनना है।
- 2) बाप से राजाई का वर्सा लेने के लिए सदा सपूत बच्चा बन श्रीमत पर चलना है।
- सच्चे बाप से सच्चा रहना है।
- मात-पिता को पूरा फालो करना है। ज्ञान रत्नों का दान करते रहना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- सहयोग की शक्ति से, असहयोगियों को सहयोगी बनाने वाले बाप समान परोपकारी भव
- सहयोगियों के साथ सहयोगी बनना - यह कोई महावीरता नहीं है लेकिन जैसे बाप अपकारियों पर उपकार करते हैं ऐसे आप बच्चे भी बाप समान बनो।
- कोई कितना भी असहयोगी बने, आप अपने सहयोग की शक्ति से असहयोगी को सहयोगी बना दो, ऐसे नहीं सोचो कि इस कारण से यह आगे नहीं बढ़ता है।
- कमजोर को कमजोर समझकर छोड़ न दो लेकिन उसे बल देकर बलवान बनाओ।
- इस बात पर अटेन्शन दो तो सर्विस के प्लैन्स रूपी जेवरों पर हीरे चमक जायेंगे अर्थात् सहज प्रत्यक्षता हो जायेगी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- क्रोध का कारण है स्वार्थ वा ईर्ष्या - यही चिड़चिड़ेपन की जड़ है, पहले इसे ही समाप्त करो।
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