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ओम् शान्ति।
- शिव भगवानुवाच।
- जरूर अपने बच्चों प्रति ही नॉलेज सिखाते हैं वा श्रीमत
देते हैं - हे बच्चों वा हे प्राणी, शरीर से प्राण निकल जाते हैं वा आत्मा निकल जाती है,
एक ही बात है।
- हे प्राणी अथवा हे बच्चे, तुमने देखा कि मेरे जीवन में कितना पाप था
और कितना पुण्य था!
- हिसाब तो बता दिया है - तुम्हारे जीवन में आधाकल्प पुण्य,
आधाकल्प पाप होते हैं।
- पुण्य का वर्सा बाप से मिलता है, जिसको राम कहते हैं।
- राम,
निराकार को कहा जाता है, न कि सीता वाला राम।
- तो अब तुम बच्चे जो आकर के ब्रह्मा
मुख वंशावली ब्राह्मण बने हो, तुम्हारी बुद्धि में आया है बरोबर आधाकल्प हम
पुण्य-आत्मा ही थे फिर आधाकल्प पाप-आत्मा बने।
- अभी पुण्य-आत्मा बनना है।
- कितना
पुण्य-आत्मा बने हैं, वह हर एक अपनी दिल से पूछे।
- पाप-आत्मा से पुण्य-आत्मा कैसे
बनेंगे.... वह भी बाप ने समझाया है।
- यज्ञ, तप आदि से तुम पुण्य-आत्मा नहीं बनेंगे, वह
है भक्ति मार्ग, इससे कोई भी मनुष्य पुण्य-आत्मा नहीं बनते हैं।
- अभी तुम बच्चे समझते
हो, हम पुण्य-आत्मा बन रहे हैं।
- आसुरी मत से पाप-आत्मा बनते-बनते सीढ़ी उतरते ही
आये हैं।
- कितना समय हम पुण्य-आत्मा बनते हैं वा सुख का वर्सा लेते हैं - यह किसको
पता नहीं है।
- उस बाप को याद तो सभी मनुष्य करते हैं, उनको ही परमपिता परमात्मा
कहते हैं।
- ब्रह्मा-विष्णु-शंकर को परमात्मा नहीं कहेंगे और किसको परमात्मा नहीं कह
सकते हैं।
- भल इस समय तुम प्रजापिता ब्रह्मा कहते हो परन्तु प्रजापिता को कभी
भक्तिमार्ग में याद नहीं करते हैं।
- याद सभी फिर भी निराकार बाप को ही करते हैं - ओ
गॉड फादर, ओ भगवान अक्षर ही निकलते हैं।
- मनुष्य अपने को
गॉड फादर कह न सकें। ना ही ब्रह्मा-विष्णु-शंकर अपने को गॉड फादर कह सकते हैं।
- उनके शरीर का नाम तो है ना।
- एक ही गॉड फादर है, उनको अपना शरीर नहीं है।
- भक्ति
मार्ग में भी शिव की बहुत पूजा करते हैं।
- अभी तुम बच्चे जानते हो - शिवबाबा इस शरीर
द्वारा हमसे बात करते हैं - हे बच्चों, कितना प्यार से कहते हैं समझते हैं, मैं सर्व का
पतित-पावन, सद्गति दाता हूँ।
- मनुष्य बाप की महिमा करते हैं ना लेकिन उनको यह पता
नहीं है कि 5 हजार वर्ष बाद आते हैं।
- जरूर जब कलियुग का अन्त होगा तब ही तो
आयेंगे।
- अभी कलियुग का अन्त है तो जरूर अब आया हुआ है।
- तुमको कृष्ण नहीं पढ़ाते
हैं।
- श्रीमत मिलती है, श्रीमत कोई कृष्ण की नहीं है।
- कृष्ण की आत्मा भी श्रीमत से सो
देवता बनी थी फिर 84 जन्म लेते अब तुम आसुरी मत के बने हो।
- बाप कहते हैं- मैं
आता ही तब हूँ जब तुम्हारा चक्र पूरा होता है।
- तुम जो शुरू में आये थे, अब जड़जड़ीभूत
अवस्था में हो।
- झाड़ पुराना जड़जड़ीभूत होता है तो सारा झाड़ ऐसा हो जाता है।
- बाप
समझाते हैं - तुम्हारे तमोप्रधान बनने से सब तमोप्रधान बन गये हैं।
- यह मनुष्य सृष्टि
का, वैरायटी धर्मों का झाड़ है, इसको उल्टा झाड़ कहते हैं, इसका बीज ऊपर में है।
- उस
बीज से ही सारा झाड़ निकलता है।
- मनुष्य कहते भी हैं "गॉड फादर''।
- आत्मा कहती है,
आत्मा का नाम आत्मा ही है।
- आत्मा शरीर में आती है तो शरीर का नाम रखा जाता है,
खेल चलता है।
- आत्माओं की दुनिया में खेल नहीं चलता।
- खेल की जगह ही यह है।
- नाटक में रोशनी आदि सब होती है।
- बाकी जहाँ आत्मायें रहती हैं, वहाँ सूर्य चांद नहीं हैं,
ड्रामा का खेल नहीं चलता है।
- रात-दिन यहाँ होते हैं।
- सूक्ष्मवतन वा मूलवतन में रात-दिन
नहीं होते, कर्मक्षेत्र यह है।
- इसमें मनुष्य अच्छे कर्म भी करते हैं, बुरे कर्म भी करते हैं।
- सतयुग-त्रेता में अच्छे कर्म होते हैं क्योंकि वहाँ 5 विकार रूपी रावण का राज्य ही नहीं।
- बाप बैठ कर्म, अकर्म, विकर्म का राज़ बताते हैं।
- कर्म तो करना ही है, यह कर्मक्षेत्र है।
- सतयुग में जो मनुष्य कर्म करते हैं वह अकर्म हो जाता है।
- वहाँ रावणराज्य ही नहीं,
उनको हेविन कहा जाता है।
- इस समय हेविन है नहीं।
- सतयुग में एक ही भारत था और
कोई खण्ड नहीं था।
- हेविनली गॉड फादर कहते हैं तो बाप जरूर हेविन ही रचेंगे।
- यह सब
नेशन वाले जानते हैं कि भारत प्राचीन देश है।
- पहले-पहले सिर्फ भारत ही था, यह कोई
नहीं जानते हैं।
- अभी तो नहीं है ना।
- यह है ही 5 हजार वर्ष की बात।
- कहते भी हैं क्राइस्ट
से 3 हजार वर्ष पहले भारत हेविन था।
- रचयिता जरूर रचना रचेंगे।
- तमोप्रधान बुद्धि होने
कारण इतना भी नहीं समझते।
- भारत तो सबसे ऊंच खण्ड है।
- पहली बिरादरी है, मनुष्य
सृष्टि की।
- साहूकार गरीबों को मदद करते हैं, यह भी चला
आता है।
- भक्ति मार्ग में भी साहूकार गरीबों को दान करते हैं।
- परन्तु यह है ही पतित
दुनिया।
- तो जो, जो कुछ भी दान पुण्य करते हैं, पतित ही करते हैं, जिसको दान करते हैं
वह भी पतित हैं।
- पतित, पतित को दान करेंगे, उनका फल क्या पायेंगे।
- भल कितना भी
दान-पुण्य करते आये हैं, फिर भी गिरते आये हैं।
- भारत जैसा दानी खण्ड और कोई नहीं
होता।
- इस समय तुम्हारा जो भी तन, मन, धन है, सब इसमें स्वाहा करते हो, इनको
कहा जाता है राजस्व अश्वमेध अविनाशी ज्ञान यज्ञ।
- आत्मा कहती है - यह जो पुराना
शरीर है, इनको भी यहाँ स्वाहा करना है क्योंकि तुम जानते हो - सारी दुनिया के
मनुष्य-मात्र इसमें स्वाहा होते हैं, इसलिए हम क्यों नहीं खुशी से बाबा पर बलि चढ़ जायें।
- आत्मा जानती है - हम बाप को याद करते हैं।
- कहते भी आये हैं, बाबा आप जब आयेंगे
तो हम बलिहार जायेंगे क्योंकि अब हमारे बलिहार जाने से आप फिर 21 जन्म के लिए
बलिहार जायेंगे।
- यह सौदागरी है।
- हम आप पर बलिहार जाते हैं तो आप भी तो 21 बार
बलिहार जाते हैं।
- बाप कहते हैं- जब तक तुम्हारी आत्मा पवित्र नहीं बनी है तब तक हम
बलिहारी स्वीकार नहीं करते हैं।
- बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो तो आत्मा प्योर बन जायेगी।
- बाप को भूलने से तुम
कितने पतित दु:खी हुए हो।
- मनुष्य दु:खी होते हैं तो फिर शरणागति लेते हैं।
- अभी तुम
63 जन्म रावण से बहुत दु:खी हुए हो।
- एक सीता की बात नहीं, सब सीतायें हैं, जो भी
मनुष्य मात्र हैं।
- रामायण में तो कहानी लिख दी है।
- सीता को रावण ने शोक वाटिका में
डाला।
- वास्तव में बात सारी इस समय की है।
- सभी रावण अर्थात् 5 विकारों की जेल में हैं
इसलिए दु:खी हो पुकारते हैं - हमको इनसे छुड़ाओ।
- एक की बात नहीं।
- बाप समझाते हैं
सारी दुनिया रावण की जेल में है।
- रावण राज्य है ना।
- कहते भी हैं - रामराज्य चाहिए।
- गांधी ने भी कहा, संन्यासी कभी ऐसे नहीं कहेंगे कि रामराज्य चाहिए।
- भारतवासी ही
कहेंगे।
- इस समय आदि सनातन देवी-देवता धर्म है नहीं और ब्रान्चेज हैं,
- सतयुग था।
- एक
ही आदि सनातन देवी-देवता धर्म था।
- अभी वह नाम ही बदला हुआ है।
- अपने धर्म को
भूल फिर और-और धर्म में कनवर्ट होते जाते हैं।
- मुसलमान आये कितने हिन्दुओं को
अपने धर्म में कनवर्ट कर लिया।
- क्रिश्चियन धर्म में भी बहुत कनवर्ट हुए हैं इसलिए
भारतवासियों की जनसंख्या कम हो गई है।
- नहीं तो भारतवासियों की जनसंख्या सबसे
जास्ती होनी चाहिए।
- अनेक धर्मों में कनवर्ट हो गये हैं।
- बाप कहते हैं- तुम्हारा जो आदि
सनातन देवी-देवता धर्म है, वह सबसे ऊंच है।
- सतोप्रधान थे, अब वही बदलकर फिर
तमोप्रधान बने हैं।
- अब तुम बच्चे समझते हो- ज्ञान सागर, पतित-पावन जिसको बुलाते हैं,
वही सम्मुख पढ़ा रहे हैं।
- वह ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है।
- क्राइस्ट की ऐसी महिमा
नहीं करेंगे।
- कृष्ण को ज्ञान का सागर, पतित-पावन नहीं कहा जाता है।
- सागर एक होता
है।
- चारों तरफ आलराउन्ड सागर ही सागर है।
- दो सागर नहीं होते हैं।
- यह मनुष्य सृष्टि का
नाटक है, इसमें सबका अलग-अलग पार्ट है।
- बाप कहते हैं मेरा कर्तव्य सबसे अलग है, मैं
ज्ञान का सागर हूँ।
- मुझे ही तुम पुकारते हो हे पतित-पावन, फिर कहते हो लिबरेटर।
- लिबरेट किससे करते हैं?
- यह भी कोई नहीं जानते।
- तुम जानते हो, हम सतयुग-त्रेता में
बहुत सुखी थे, उसको स्वर्ग कहा जाता है।
- अभी तो है ही नर्क इसलिए पुकारते हैं - दु:ख
से लिबरेट कर सुखधाम ले चलो।
- संन्यासी कभी नहीं कहेंगे कि फलाना स्वर्गवासी हुआ,
वह फिर कहते हैं पार निर्वाण गया।
- विलायत में भी कहते हैं लेफ्ट फार हेविनली अबोड।
- समझते हैं, गॉड फादर पास गये।
- हेविनली गॉड फादर कहते हैं, बरोबर हेविन था।
- हेल के बाद हेविन चाहिए।
- गॉड फादर को यहाँ आकर हेविन स्थापन करना है।
- सूक्ष्मवतन, मूलवतन में कोई हेविन नहीं होता है।
- जरूर बाप को ही आना पड़ता है।
- बाप कहते हैं - मैं आकर प्रकृति का आधार लेता हूँ, मेरा जन्म मनुष्यों मुआफिक नहीं है।
- मैं गर्भ में नहीं आता हूँ, तुम सभी गर्भ में आते हो।
- सतयुग में गर्भ महल होता है
क्योंकि वहाँ कोई विकर्म होता नहीं जो सजा भोगें इसलिए उसको गर्भ महल कहा जाता
है।
- यहाँ विकर्म करते, जिसकी सजा भोगनी पड़ती है, इसलिये गर्भ जेल कहा जाता है।
- यहाँ रावण राज्य में मनुष्य पाप करते रहते हैं।
- यह है ही पाप आत्माओं की दुनिया।
- वह
है पुण्य आत्माओं की दुनिया - स्वर्ग, इसलिए कहते हैं पीपल के पत्ते पर कृष्ण आया।
- यह कृष्ण की महिमा दिखाते हैं।
- सतयुग में गर्भ में दु:ख नहीं होता है।
- बाप
कर्म-अकर्म-विकर्म की गति समझाते हैं जिसका फिर शास्त्र गीता बनाया है।
- परन्तु उसमें
शिव भगवानुवाच के बदले कृष्ण का नाम डाल दिया है।
- अब तुम जानते हो, हम बेहद के
बाप से बेहद सुख का वर्सा लेते हैं।
- अभी भारत रावण से श्रापित है इसलिए दुर्गति हो गई
है।
- यह बड़ा श्राप भी ड्रामा में नूँधा हुआ है।
- बाप आकर वर देते हैं - आयुश्वान भव,
पुत्रवान भव, सम्पत्तिवान भव..... सभी सुख का वर्सा देते हैं।
- तुमको आकर पढ़ाते हैं,
जिस पढ़ाई से तुम देवता बनते हो।
- यह नई रचना हो रही है।
- ब्रह्मा द्वारा तुमको बाप
अपना बनाते हैं।
- गाया भी जाता है प्रजापिता ब्रह्मा।
- तुम उनके बच्चे ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ
बने हो।
- दादे से वर्सा बाप द्वारा लेते हो।
- अब फिर बाप आया है।
- बाप
के बच्चे तो फिर बाप के पास जाने चाहिए।
- परन्तु गाया हुआ है, प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा
मनुष्य सृष्टि की स्थापना होती है।
- आत्मा के सम्बन्ध में कहेंगे हम
भाई-भाई हैं।
- प्रजापिता ब्रह्मा की सन्तान बनने से तुम भाई-बहिन बनते हो।
- इस समय
तुम सब भाई-बहिन हो, तुमने बाप से वर्सा लिया था।
- अब भी बाप से वर्सा ले रहे हो।
- शिवबाबा कहते हैं- मुझे याद करो।
- तुम आत्मा को शिवबाबा को याद करना है।
- याद करने
से ही तुम पावन बनेंगे और कोई उपाय नहीं है।
- पावन बनने सिवाए तुम मुक्तिधाम में
जा भी नहीं सकते हो।
- जीवनमुक्तिधाम में पहले-पहले आदि सनातन देवी-देवता धर्म था
फिर नम्बरवार और-और धर्म आये।
- बाप अन्त में आकर सबको दु:खों से मुक्त करते हैं।
- उनको कहा भी जाता है लिबरेटर।
- बाप कहते हैं - तुम सिर्फ मुझे याद करो तो तुम्हारे पाप
भस्म हो जायेंगे।
- बुलाते भी हो बाबा आओ - हमको पतित से पावन बनाओ।
- टीचर तो
पढ़ाते हैं, इसमें चरित्र करते हैं क्या?
- यह भी पढ़ाई है।
- बाप ज्ञान का सागर ही आकर
ज्ञान देते हैं।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी
बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) कर्म, अकर्म और विकर्म की गति को जान अब कोई विकर्म नहीं करना है।
- कर्मक्षेत्र
पर कर्म करते हुए विकारों का त्याग करना ही विकर्म से बचना है।
- 2) ऐसा पावन बनना है जो हमारी बलिहारी बाप स्वीकार कर ले।
- पावन बनकर पावन
दुनिया में जाना है।
- तन-मन-धन इस यज्ञ में स्वाहा कर सफल करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- आलस्य के भिन्न-भिन्न रूपों को समाप्त कर सदा हुल्लास में रहने वाले तीव्र पुरूषार्थी
भव
- वर्तमान समय माया का वार आलस्य के रूप में भिन्न-भिन्न तरीके से होता है।
- ये
आलस्य भी विशेष विकार है, इसे खत्म करने के लिए सदा हुल्लास में रहो।
- जब कमाई
करने का हुल्लास होता है तो आलस्य खत्म हो जाता है इसलिए कभी भी हुल्लास को
कम नहीं करना।
- सोचेंगे, करेंगे, कर ही लेंगे, हो जायेगा...यह सब आलस्य की निशानी है।
- ऐसे आलस्य वाले निर्बल संकल्पों को समाप्त कर यही सोचो कि जो करना है, जितना
करना है अभी करना है - तब कहेंगे तीव्र पुरुषार्थी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- सच्चे सेवाधारी वह हैं जिनका सोचना और कहना समान हो।
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