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ओम् शान्ति।
- यह किसने कहा?
- बच्चों ने।
- अतीन्द्रिय सुखमय जीवन में आकर कहते हैं -
बेहद का बाप आया हुआ है।
- किसलिए?
- इस पतित दुनिया को बदल पावन दुनिया बनाने,
पावन दुनिया कितनी बड़ी होगी।
- पतित दुनिया कितनी बड़ी है, यह तुम बच्चों की बुद्धि में
आना चाहिए।
- यहाँ कितने करोड़ों मनुष्य हैं।
- इनको पतित भ्रष्टाचारी दुनिया कहते हैं।
- मीठे-मीठे बच्चों को दिल में आना चाहिए - हमारी नई दुनिया कितनी छोटी होगी। हम
कैसे राज्य करेंगे।
- हमारे भारत जैसा कोई देश हो नहीं सकता।
- यह कोई नहीं समझते -
भारत स्वर्ग था, उस जैसा कोई देश हो नहीं सकता।
- तुमको यह समझ में आता है, यह
भारत तो अब कोई काम का नहीं है।
- भारत स्वर्ग था, अब नहीं है।
- यह किसको याद नहीं
आता है, हमारा भारत सबसे ऊंच है, सबसे प्राचीन है।
- तुम बच्चों की बुद्धि में आता है, सो
भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
- इतनी खुशी, इतना रिगार्ड रहता है?
- बेहद का बाप आया
हुआ है।
- कल्प-कल्प आते हैं, माया रावण ने जो हमारा राज्य-भाग्य छीन लिया है, वह
हम आत्माओं को फिर से अपना राज्य-भाग्य बाबा आकर देते हैं।
- ऐसे नहीं कि कोई लड़ाई
से छीना गया है।
- नहीं।
- रावण राज्य में हमारी मत भ्रष्टाचारी हो जाती है।
- श्रेष्ठाचारी से
हम भ्रष्टाचारी बन जाते हैं।
- दुनिया देखो कितनी बढ़ गई है, हमारा भारत देश कितना
छोटा था।
- स्वर्ग में कितने सुखी रहेंगे।
- हीरे जवाहरात के महल होंगे।
- वहाँ रावण होता नहीं।
- तुम बच्चों की बुद्धि में खुशी होनी चाहिए, अतीन्द्रिय सुख रहना चाहिए।
- बाप कहते हैं -
देही-अभिमानी बनो।
- देह का भान तोड़ने के लिए बाबा ने कहा था, 108 चत्तियों वाला
कपड़ा पहनो।
- भल बड़े आदमियों से, जवाहरियों से कनेक्शन था, वह नशा टूटे कैसे।
- देही-अभिमानी बनना पड़े।
- हम आत्मा हैं, यह तो पुराना शरीर है।
- इनको छोड़ नया
फर्स्टक्लास शरीर लेना है।
- सर्प तो एक खाल छोड़ दूसरी ले लेते हैं।
- तुम बच्चों की बुद्धि में
ज्ञान है, यह पुरानी खाल छोड़, हम दूसरी नई लेंगे फिर दूसरा शरीर मिलेगा।
- यह तो सारा
ज्ञान बच्चों की बुद्धि में टपकना चाहिए।
- यह तो छी-छी दुनिया है, इनको देखते हुए भी
बुद्धि से भूलना पड़ता है।
- हम यात्रा पर जा रहे हैं, हमारी बुद्धि का योग घर तरफ जा रहा
है।
- अभ्यास तो करना पड़े ना।
- यह शरीर भी पुराना है, दुनिया भी पुरानी है।
- साक्षात्कार
कर लिया है, अब यह देह और देह के सब सम्बन्ध छोड़ घर जाना है।
- अन्दर में खुशी
होती है, अभी हमको वापिस जाना है।
- बुद्धियोग वहाँ लगाना होता है।
- एक दो को यही
सुनाना है - मनमनाभव।
- यह बड़ा जबरदस्त मन्त्र है।
- भल गीता तो बहुत पढ़ते हैं परन्तु
अर्थ नहीं समझते।
- जैसे और शास्त्र पढ़ते हैं, ऐसे पढ़ लेते हैं।
- यह किसकी बुद्धि में नहीं
आयेगा।
- हम भविष्य के लिए राजयोग सीख रहे हैं।
- बहुत गई, अब बाकी थोड़ा ही समय
है।
- ऐसे-ऐसे अपने को बहलाते, खुशी में आना है।
- यह तो सब खलास होना है।
- मिरूआ
मौत मलूका शिकार।
- हम मलूक बन अपने माशूक के साथ घर जायेंगे।
- यह आत्माओं का
बाप बैठ शिक्षा देते हैं।
- है भी साधारण परन्तु ऊंच ते ऊंच है।
- बाप आये हैं - बेहद का वर्सा
देने, कल्प-कल्प आते हैं।
- यह तो छी-छी दुनिया है।
- ऐसी-ऐसी बातें करनी होती है।
- इसको
कहा जाता है विचार सागर मंथन।
- यह शास्त्र आदि तो जन्म-जन्मान्तर पढ़े हैं, हम
भारतवासियों ने जितने जप-तप आदि किये हैं उतना और कोई ने नहीं किया है।
- जो
पहले-पहले आये होंगे उन्होंने ही भक्ति की है और वही ज्ञान-योग में भी तीखे जायेंगे
क्योंकि उनको फिर पहले नम्बर में आना है।
- देखते हो, कोई-कोई तो बहुत अच्छा पुरूषार्थ
करते हैं।
- तुम बच्चे जो इस रूहानी सर्विस में लगे हो, उनके लिए तो बहुत अच्छा है।
- सचमुच भट्ठी
में बैठे हैं।
- वह सम्बन्ध अटूट हुआ है और जो गृहस्थ व्यवहार में रहते, यह सुनते सुनाते
हैं तो पुरानों से भी तीखे जा रहे हैं।
- देखा जाता है नये आने वाले बहुत तीखे जाते हैं।
- तुम
लिस्ट निकालेंगे तो मालूम पड़ जायेगा।
- पहले-पहले तुम्हारी माला बनाते थे फिर देखा कि
कितने अच्छे-अच्छे बच्चे 3-4 नम्बर वाले भी निकल गये।
- एकदम जाए प्रजा में पड़े।
- अब
तुम्हारी यह स्टूडेन्ट लाइफ है, गृहस्थ व्यवहार में रहते साथ-साथ यह कोर्स पढ़ते हो।
- बहुत
बच्चे डबल कोर्स उठाते हैं, लिफ्ट मिलती है।
- तुम्हारा कोर्स है - गृहस्थ व्यवहार में रहते
यह पढ़ना।
- इसमें भी कन्यायें बड़ी तीखी जानी चाहिए।
- कन्याओं के कारण कन्हैया वा
गोपाल नाम भी गाया हुआ है।
- हैं तो गोप भी क्योंकि प्रवृत्ति मार्ग है ना।
- तुम सतयुग में
देवी-देवता धर्म के थे।
- यह लक्ष्मी-नारायण प्रवृत्ति मार्ग में राज्य करते थे।
- यह तुम्हारी
बुद्धि में टपकना चाहिए कि हम क्या बनते हैं!
- देवतायें कितने फर्स्टक्लास हैं!
- उन्हों के
आगे जाकर महिमा गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण... हम पापी, कपटी
हैं।
- हम निर्गुण हारे में कोई गुण नाहीं... अब इसमें भगवान को तरस नहीं खाना है वा
कृपा नहीं करनी है।
- वास्तव में तरस वा कृपा अपने ऊपर ही करनी होती है।
- तुम ही देवता
थे, अब क्या बन गये हो अपने को देखो, फिर पुरूषार्थ कर देवता बनो।
- श्याम से सुन्दर
बनने के लिए पुरूषार्थ करना पड़ता है।
- यह तो भक्ति मार्ग में कहते हैं - मरते थे फलाने
की कृपा हुई बच गये, उनकी आशीर्वाद से।
- महात्मा आदि के हाथ पकड़कर कहेंगे, आपकी
आशीर्वाद चाहिए।
- यहाँ तो पढ़ाई है।
- कृपा आदि की बात नहीं।
- मनमनाभव का अर्थ है ना।
- मन्त्र तो बहुत देते हैं।
- अनेक प्रकार के हठयोग सिखाते हैं।
- हर एक की अलग-अलग शिक्षा
होती है।
- हठयोग के सैम्पल देखने हों तो जयपुर के म्युज़ियम में जाकर देखो।
- यहाँ तो
कितने आराम से बैठे हो।
- बुद्धि में है हमको फिर से बाबा राज्य दे रहे हैं।
- वहाँ ही अद्वैत
देवी-देवता धर्म था और कोई धर्म नहीं था।
- दो हाथ से ही ताली बजती है।
- एक धर्म है तो
मारामारी नहीं होती।
- अभी है कलियुग।
- कलियुग पूरा होगा तो भक्ति भी पूरी होगी।
- अभी
तो मनुष्यों की वृद्धि कितनी होती रहती है।
- भारत की धरती नहीं बढ़ती है।
- धरती तो वही
है।
- बाकी मनुष्य कम जास्ती होते हैं।
- वहाँ मनुष्य बहुत कम होंगे, दुनिया तो यही होगी।
- दुनिया कोई छोटी नहीं हो जायेगी।
- तो तुम बच्चों को बड़ी खुशी रहनी चाहिए।
- हम
योगबल से अपना राज्य स्थापन कर रहे हैं, बाप की श्रीमत पर।
- बाप कहते हैं - मामेकम्
याद करो तो तुम्हारे पाप भस्म होंगे।
- आत्मा में ही खाद पड़ी हुई है ना।
- सिर्फ कहते हैं -
सतो, रजो, तमो....यह नहीं दिखाते कि आत्मा में ही खाद पड़ती है।
- पहले गोल्डन एजड
थे, प्योर सोना थे फिर चांदी पड़ती है, उनको सिलवर एज़ कहा जाता है, चन्द्रवंशी।
- अंग्रेजी
अक्षर कितने अच्छे हैं।
- गोल्डन, सिलवर, कॉपर फिर आइरन।
- बाप समझाते हैं - आत्मा में
खाद पड़ी है, वह निकले कैसे।
- सतो से तमो बनी है फिर तमो से सतो कैसे बने।
- समझते
हैं गंगा में स्नान करने से सतोप्रधान बन जायेंगे।
- परन्तु यह तो हो न सके।
- गंगा-स्नान
आदि तो रोज़ करते रहते हैं।
- कोई तो नेमी हो जाते हैं।
- नहर पर भी जाकर स्नान करते
हैं।
- तुमको बाप कहते हैं - यह नियम रखो, बाप को याद करने का।
- याद का स्नान वा
यात्रा करो।
- ज्ञान-स्नान भी कराते हैं, योग की यात्रा सिखलाते हैं।
- बाप ज्ञान देते हैं।
- इनमें
योग का भी ज्ञान, सृष्टि-चक्र का भी ज्ञान है।
- बाकी शास्त्रों का ज्ञान तो बहुत देते हैं,
- योग
को जानते ही नहीं।
- हठयोग समझ लिया है।
- योग आश्रम तो ढेर हैं।
- मनमनाभव का मन्त्र
देंगे लेकिन सिवाए बाप के कोई भी मनुष्य के पास यह ज्ञान नहीं है।
- अब 84 जन्म का
चक्र पूरा हुआ है।
- फिर नई दुनिया होगी।
- तुम्हारी बुद्धि में है, झाड़ की वृद्धि कैसे होती है।
- यह राजाई स्थापन हो रही है, सब इक्ट्ठे थोड़ेही जायेंगे।
- ब्राह्मणों का झाड़ बहुत बड़ा होगा।
- फिर थोड़े-थोड़े करके जायेंगे।
- प्रजा बनती रहेगी।
- थोड़ा भी कोई ने सुन लिया तो प्रजा में
आ जायेंगे।
- सेन्टर्स बहुत वृद्धि को पायेंगे।
- प्रदर्शनियाँ ढेर जहाँ-तहाँ होती रहेंगी।
- जैसे मन्दिर
टिकाणे निकलते जाते हैं, वैसे तुम्हारी प्रदर्शनी भी गाँव-गाँव में होगी।
- घर-घर में प्रदर्शनी
रखनी होगी।
- वृद्धि को पाते जायेंगे इसलिए आखरीन इन चित्रों की भी छपाई करानी
पड़ेगी।
- सबके पास बाप का पैगाम जाना है।
- तुम बच्चों को बड़ी भारी सर्विस करनी है।
- अभी यह प्रोजेक्टर, प्रदर्शनी का फैशन निकला है तो गाँव-गाँव में दिखाना पड़ेगा।
- वह
अच्छी रीति उठायेंगे।
- शिव जयन्ती गाई जाती है परन्तु वह कैसे आते हैं, यह किसको पता
नहीं है।
- शिव पुराण आदि में यह बातें हैं नहीं।
- यह बातें तुम सुनते हो।
- सुनने के समय
अच्छा लगता है फिर भूल जाते हैं।
- अच्छी रीति प्वाइंट्स धारण होंगी तो सर्विस भी अच्छी
रीति कर सकेंगे।
- परन्तु सब प्वाइंट्स किसको धारण नहीं होती हैं।
- भाषण करके आयेंगे
फिर ख्याल में आयेगा - अजुन यह प्वाइंट्स भी समझाते थे तो अच्छा था, जिनको
देह-अभिमान नहीं होगा वह झट बतायेंगे।
- भाषण कर फिर विचार करेंगे - हमने सब
प्वाइंट्स ठीक समझाई?
- अजुन यह प्वाइंट्स भूल गये हैं, प्वाइंट्स कोई साथ नहीं चलनी
हैं।
- यह है सिर्फ अभी के लिए।
- फिर यह खत्म हो जायेगा।
- इन आंखों से जो कुछ अभी
देखते हो फिर सतयुग में यह नहीं होगा।
- तुमको ज्ञान का तीसरा नेत्र अब मिलता है, अभी
तुम त्रिनेत्री बनते हो।
- बाबा आकर तुमको ज्ञान दे रहे हैं जो आत्मा धारण करती है।
- आत्मा को तीसरा नेत्र मिलता है।
- यह ज्ञान कोई में नहीं है कि मैं आत्मा हूँ।
- इस शरीर
द्वारा यह करता हूँ।
- बाबा हमको पढ़ाते हैं।
- यह बुद्धि में रखना - इसमें मेहनत है।
- बच्चों
को मेहनत करनी चाहिए और खुशी में रहना चाहिए।
- बस अभी हमारा राज्य आया कि
आया।
- तुम जानते हो हमारे राज्य में क्या-क्या होगा।
- तुम बच्चों को तो बहुत खुशी होनी
चाहिए कि हम इस पढ़ाई से राज्य लेते हैं।
- पढ़ने वाले को मर्तबा याद रहता है।
- हम पढ़ते
हैं भविष्य के लिए।
- अच्छा पढ़ेंगे तो राजगद्दी पर बैठेंगे।
- वे तो नामीग्रामी हो जाते हैं।
- अभी
लिस्ट निकालें, माला बनायें तो सब कहेंगे फलानी बच्ची को हमारे पास भेजो, रिफ्रेश
करने।
- भाषण करने वालों को बुलाते हैं, तो उनका रिगार्ड भी रखना चाहिए।
- हमको इन
जैसा होशियार बनना है।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निगं। रूहानी
बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) अतीन्द्रिय सुख का अनुभव करने के लिए देह के भान को तोड़ने का पुरूषार्थ करना है।
- अब वापिस घर जाना है इसलिए बुद्धियोग घर से लगा रहे।
- 2) गृहस्थ व्यवहार में रहते पढ़ाई भी पढ़नी है, डबल कोर्स उठाना है।
- ज्ञान का स्नान और
याद की यात्रा करनी और करानी है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- न्यारे पन के अभ्यास द्वारा फरिश्ते रूप का साक्षात्कार कराने वाले निरन्तर सहजयोगी
भव
- जैसे कोई भी वस्त्र धारण करना वा न करना अपने हाथ में होता है, ऐसा अनुभव इस
शरीर रूपी वस्त्र में हो।
- जैसे वस्त्र को धारण करके कार्य किया और कार्य पूरा होते ही वस्त्र
से न्यारे हुए।
- शरीर और आत्मा दोनों का न्यारापन चलते-फिरते अनुभव हो - तब कहेंगे
निरन्तर सहजयोगी।
- ऐसे डिटैच रहने वाले बच्चों द्वारा अनेक आत्माओं को फरिश्ते रूप
और भविष्य राज्य पद के साक्षात्कार होंगे।
- अन्त में इस सर्विस से ही प्रभाव निकलेगा।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- संगम का एक सेकण्ड भी व्यर्थ गंवाना अर्थात् एक वर्ष गंवाना।
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