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ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों ने गीत सुना।
- इस गीत से सर्वव्यापी का ज्ञान तो उड़ जाता है।
- याद करते हैं, अब भारत बहुत दु:खी है।
- ड्रामा अनुसार यह सब गीत बने हैं।
- दुनिया वाले नहीं जानते।
- बाप आते हैं पतितों को पावन करने वा दु:खियों को दु:ख से लिबरेट कर सुख देने लिए।
- बच्चे जान गये हैं - वही बाप आया हुआ है।
- बच्चों को पहचान मिल गई है।
- स्वयं बैठ बतलाते हैं - मैं साधारण तन में प्रवेश कर सारी सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का राज़ सुनाता हूँ।
- सृष्टि एक ही है, सिर्फ नई और पुरानी होती है।
- जैसे शरीर बचपन में नया होता है फिर पुराना होता है।
- नया शरीर, पुराना शरीर दो शरीर तो नहीं कहेंगे।
- है एक ही सिर्फ नये से पुराना बनता है।
- वैसे दुनिया एक ही है।
- नये से अब पुरानी होती है।
- नई कब थी?
- यह फिर कोई बता न सके।
- बाप आकर समझाते हैं, बच्चे जब नई दुनिया थी तो भारत नया था।
- सतयुग कहा जाता था।
- वही भारत फिर पुराना बना है।
- इसको पुरानी, ओल्ड वर्ल्ड कहा जाता है।
- न्यु वर्ल्ड से फिर ओल्ड बनी है फिर उनको नया जरूर बनना है।
- नई दुनिया का बच्चों ने साक्षात्कार किया है।
- अच्छा उस नई दुनिया के मालिक कौन थे?
- बरोबर यह लक्ष्मी-नारायण थे।
- आदि सनातन देवी-देवता उस दुनिया के मालिक थे।
- यह बाप बच्चों को समझा रहे हैं।
- बाप कहते हैं - अब निरन्तर यही याद करो।
- बाप परम-धाम से हमको पढ़ाने, राजयोग सिखाने आये हुए हैं।
- महिमा सारी उस एक की है, इनकी महिमा कुछ नहीं है।
- इस समय सब तुच्छ बुद्धि हैं, कुछ नहीं समझते इसलिए मैं आता हूँ तब तो गीत भी बनाया हुआ है।
- सर्वव्यापी का ज्ञान तो उड़ जाता है।
- हर एक का पार्ट अपना-अपना है।
- बाप बार-बार कहते हैं - देह-अभिमान छोड़ तुम आत्म-अभिमानी बनो और आरगन्स द्वारा शिक्षा धारण करो।
- भल इस बाबा को चलते-फिरते देखते हो परन्तु याद शिवबाबा को करो।
- ऐसे ही समझो शिवबाबा ही सब कुछ करते हैं।
- ब्रह्मा है नहीं।
- भल इनका रूप इन आंखों से दिखाई पड़ता है।
- तुम्हारी बुद्धि शिवबाबा की तरफ जानी चाहिए।
- शिवबाबा न हो तो इनकी आत्मा, इनका शरीर कोई काम का नहीं।
- हमेशा समझो इसमें शिव-बाबा है।
- वह इन द्वारा पढ़ाते हैं।
- तुम्हारा यह टीचर नहीं है।
- सुप्रीम टीचर वह है।
- याद उनको करना है।
- कभी भी जिस्म को याद नहीं करना है।
- बुद्धियोग बाप के साथ लगाना है।
- बच्चे याद करते हैं फिर से आकर ज्ञान-योग सिखाओ, परमपिता परमात्मा के सिवाए कोई राजयोग सिखा न सके।
- बच्चों की बुद्धि में है वही बैठ गीता का ज्ञान सुनाते हैं फिर यह नॉलेज प्राय:लोप हो जाता है।
- वहाँ दरकार ही नहीं।
- राजधानी स्थापन हो गई।
- सद्गति हो जाती है।
- ज्ञान दिया जाता है दुर्गति से सद्गति होने के लिए।
- बाकी वह तो सब हैं भक्ति मार्ग की बातें।
- मनुष्य जप-तप, दान-पुण्य आदि जो कुछ करते हैं, सब भक्ति मार्ग की बातें हैं, इससे मुझे कोई मिल नहीं सकता।
- आत्मा के पंख टूट गये हैं।
- पत्थरबुद्धि बन गई है।
- पत्थर से फिर पारस बनाने मुझे आना पड़े।
- बाप कहते हैं - अब कितने मनुष्य हैं।
- सरसों मिसल संसार भरा हुआ है।
- अब सब खत्म हो जाने हैं।
- सतयुग में तो इतने मनुष्य होते नहीं।
- नई दुनिया में वैभव बहुत और मनुष्य थोड़े होंगे।
- यहाँ तो इतने मनुष्य हैं जो खाने के लिए भी नहीं मिलता है।
- पुरानी रेतीली जमीन है फिर नई हो जायेगी।
- वहाँ है ही एवरीथिंग न्यु।
- नाम ही कितना मीठा है - हेविन, बहिश्त, देवताओं की नई दुनिया।
- पुरानी को तोड़ नई में बैठने की दिल होती है ना।
- अब है नई दुनिया, स्वर्ग में जाने की बात।
- इसमें पुराने शरीर की कोई वैल्यु नहीं है।
- शिवबाबा को तो कोई शरीर है नहीं।
- बच्चे कहते हैं - बाबा को हार पहनायें।
- परन्तु इनको हार पहनायेंगे तो तुम्हारा बुद्धियोग इसमें चला जायेगा।
- शिवबाबा कहते हैं हार की दरकार नहीं है।
- तुम ही पूज्य बनते हो।
- पुजारी भी तुम बनते हो।
- आपेही पूज्य आपेही पुजारी।
- तो अपने ही चित्र की पूजा करने लगते हैं।
- बाबा कहते हैं मैं न पूज्य बनता हूँ, न फूल आदि की दरकार है।
- मैं क्यों यह पहनूँ इसलिए कभी फूल माला आदि लेते नहीं हैं।
- तुम पूज्य बनते हो फिर जितना चाहिए उतना फूल पहनना।
- मैं तो तुम बच्चों का मोस्ट बिलवेड ओबीडियन्ट फादर भी हूँ, टीचर भी हूँ, सर्वेन्ट भी हूँ।
- बड़े-बड़े रॉयल आदमी जब नीचे सही डालते हैं तो लिखते हैं मिन्टो, करजेन आदि... अपने को लार्ड कभी नहीं लिखेंगे।
- यहाँ तो श्री लक्ष्मी-नारायण, श्री फलाना।
- एकदम श्री अक्षर डाल देते हैं।
- तो बाप बैठ समझाते हैं अब इस शरीर को याद नही करो।
- अपने को आत्मा निश्चय करो और बाप को याद करो।
- इस पुरानी दुनिया में आत्मा और शरीर दोनों ही पतित हैं।
- सोना 9 कैरेट होगा तो जेवर भी 9 कैरेट।
- सोने में ही खाद पड़ती है।
- आत्मा को कभी निर्लेप नहीं समझना चाहिए।
- यह ज्ञान तुमको अभी है।
- तुम आधाकल्प 21 जन्म लिए प्रालब्ध पाते हो तो कितना पुरूषार्थ करना चाहिए!
- परन्तु बच्चे घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
- शिवबाबा, ब्रह्मा द्वारा हमको शिक्षा दे रहे हैं।
- ब्रह्मा की आत्मा भी उनको याद करती है।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतनवासी।
- बाप पहले सूक्ष्म सृष्टि रचते हैं, निर्वाणधाम ऊंच ते ऊंच धाम है।
- आत्माओं का निर्वाणधाम सबसे ऊंच है।
- एक भगवान को सब भक्त याद करते हैं।
- परन्तु तमोप्रधान बन गये हैं तो बाप को भूल, ठिक्कर-भित्तर सबकी पूजा करते रहते हैं।
- हम जानते हैं जो कुछ चलता है ड्रामा शूट होता जाता है।
- ड्रामा में एक बार जो शूटिंग होती है। समझो बीच में कोई पंछी आदि उड़ता है तो वही घड़ी-घड़ी रिपीट होता रहेगा।
- पतंग उड़ता हुआ शूट हो गया तो फिर-फिर रिपीट होता रहेगा।
- यह भी ड्रामा का सेकेण्ड-सेकेण्ड रिपीट होता जाता है।
- शूट होता रहता है।
- यह बना बनाया ड्रामा है।
- तुम एक्टर्स हो सारे ड्रामा को साक्षी हो देखते हो।
- एक-एक सेकेण्ड ड्रामा अनुसार पास होता है।
- पत्ता हिला, ड्रामा पास हुआ।
- ऐसे नहीं पत्ता-पत्ता भगवान के हुक्म से चलता है।
- नहीं, यह सब ड्रामा में नूँध है।
- इनको अच्छी रीति समझना पड़ता है।
- बाप ही आकर राजयोग सिखलाते हैं और ड्रामा की नॉलेज देते हैं।
- चित्र भी कितने अच्छे बने हुए हैं।
- संगमयुग पर घड़ी का कांटा भी लगा हुआ है।
- कलियुग अन्त सतयुग आदि का संगम है।
- अभी पुरानी दुनिया में अनेक धर्म हैं।
- नई दुनिया में फिर यह नहीं होंगे।
- तुम बच्चे हमेशा ऐसे समझो - हमको बाप पढ़ाते हैं, हम गॉडली स्टूडेन्ट हैं।
- भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
- राजे लोग भी लक्ष्मी-नारायण को पूजते हैं।
- तो उन्हों को पूज्य बनाने वाला मैं हूँ।
- जो पूज्य थे वह अब पुजारी हो गये हैं।
- तुम बच्चे समझ गये हो हम सो पूज्य थे फिर हम सो पुजारी बने।
- बाबा तो नहीं बनते हैं।
- बाबा कहते हैं, न मैं पुजारी हूँ, न पूज्य बनता हूँ इसलिए मैं न हार पहनता हूँ, न पहनाने पड़ते हैं।
- फिर हम क्यों फूलों को स्वीकार करें।
- तुम भी स्वीकार नहीं कर सकते हो।
- कायदे अनुसार उन देवताओं का हक है, उनकी आत्मा और शरीर पवित्र है।
- वही हकदार हैं फूलों के।
- वहाँ स्वर्ग में तो हैं ही खुशबूदार फूल।
- फूल होते ही हैं खुशबू के लिए।
- पहनने के लिए भी होते हैं।
- बाप कहते हैं - अभी तुम बच्चे विष्णु के गले का हार बनते हो।
- नम्बरवार तुमको तख्त पर बैठना है।
- जिन्होंने जितना कल्प पहले पुरूषार्थ किया है, अब करते हैं और करने लग पड़ेंगे।
- नम्बरवार तो हैं।
- बुद्धि कहती है फलाना बच्चा बहुत सर्विसएबुल है।
- जैसे दुकान में होता है, सेठ बनते हैं, भागीदार बनते हैं, मैनेजर बनते हैं।
- नीचे वालों को भी लिफ्ट मिलती है।
- यह भी ऐसे है।
- तुम बच्चों को भी मात-पिता पर जीत पानी है।
- तुम वन्डर खाते हो - मात-पिता से आगे कैसे जा सकते हैं।
- बाप तो बच्चों को मेहनत कर लायक बनाते हैं, तख्तनशीन बनाने लिए इसलिए कहते हैं, अब हमारे दिल रूपी तख्त पर जीत पहनने से भविष्य के तख्तनशीन बनेंगे।
- पुरूषार्थ इतना करो, जो नर से नारायण बनो।
- एम ऑब्जेक्ट मुख्य है ही एक, फिर किंगडम स्थापन हो रही है तो उसमें वैरायटी पद है।
- तुम्हें माया को जीतने का पूरा-पूरा पुरूषार्थ करना है।
- बच्चों आदि को भी भल प्यार से चलाओ परन्तु ट्रस्टी होकर रहो।
- भक्ति मार्ग में कहते थे ना - प्रभू यह सब आपका दिया हुआ है।
- आपकी अमानत आपने ले ली।
- अच्छा फिर रोने की बात ही नहीं परन्तु यह तो है ही रोने की दुनिया।
- मनुष्य कथायें बहुत सुनाते हैं।
- मोहजीत राजा की कथा भी सुनाते हैं।
- फिर कोई दु:ख फील नहीं होता है।
- एक शरीर छोड़ जाए दूसरा लिया।
- वहाँ कभी कोई बीमारी आदि होती नहीं।
- एवरहेल्दी, निरोगी काया रहती है, 21 जन्म के लिए।
- बच्चों को सब साक्षात्कार होता है।
- वहाँ की रसमरिवाज कैसे चलती है, क्या ड्रेस पहनते हैं।
- स्वयंवर आदि कैसे होते हैं - सब बच्चों ने साक्षात्कार किया है।
- वह पार्ट सब बीत गया।
- उस समय इतना ज्ञान नहीं था।
- अब दिन-प्रतिदिन तुम बच्चों में ताकत बहुत आती जाती है।
- यह भी सब ड्रामा में नूँधा हुआ है।
- वन्डर है ना।
- परमपिता परमात्मा का भी कितना भारी पार्ट है।
- खुद बैठ समझाते हैं भक्ति मार्ग में भी ऊपर बैठ मैं कितना काम करता हूँ।
- नीचे तो कल्प में एक ही बार आता हूँ।
- बहुत, निराकार के पुजारी भी होते हैं परन्तु निराकार परमात्मा कैसे आकर पढ़ाते हैं, यह बात गुम कर दी है।
- गीता में भी कृष्ण का नाम डाल दिया है तो निराकार से प्रीत ही टूट गई है।
- यह तो परमात्मा ने ही आकरके सहज योग सिखलाया और दुनिया को बदलाया, दुनिया बदलती रहती है।
- युग फिरते रहते हैं।
- इस ड्रामा के चक्र को अभी तुम समझ गये हो।
- मनुष्य कुछ नहीं जानते।
- सतयुग के देवी-देवताओं को भी नहीं जानते।
- सिर्फ देवताओं की निशानियाँ रह गई हैं,
- तो बाप समझाते हैं, हमेशा ऐसे समझो हम शिवबाबा के हैं।
- शिवबाबा हमको पढ़ाते हैं।
- शिवबाबा, इस ब्रह्मा द्वारा हमेशा शिक्षा देते हैं।
- शिवबाबा की याद में फिर बहुत मज़ा आता रहेगा।
- ऐसा गॉड फादर कौन?
- वह फादर भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है।
- कई बाप बच्चों को पढ़ाते भी हैं तो वह जरूर कहेंगे हमारा यह फादर, टीचर है परन्तु वह फादर गुरू भी हो,
- हाँ टीचर हो सकता है।
- फादर को गुरू कभी नहीं कहेंगे।
- इनका (बाबा का) फादर टीचर भी था, पढ़ाते थे।
- वह है हद का फादर टीचर।
- यह है बेहद का फादर टीचर।
- तुम अपने को गॉडली स्टूडेन्ट समझो तो भी अहो सौभाग्य।
- गॉड फादर पढ़ाते हैं, कितना क्लीयर है।
- तो कितना मीठा बाबा है।
- मीठी चीज़ को याद किया जाता है।
- जैसे आशिक-माशूक का प्यार होता है।
- उनका विकार के लिए प्यार नहीं होता है। बस एक दो को देखते रहते हैं।
- तुम्हारा फिर है आत्माओं का परमात्मा बाप के साथ योग।
- आत्मा कहती है बाबा कितना ज्ञान का सागर, प्रेम का सागर है।
- इस पतित दुनिया, पतित शरीर में आकर हमको कितना ऊंच बनाते हैं।
- गायन भी हैं - मनुष्य से देवता किये करत न लागी वार।
- सेकेण्ड में बैकुण्ठ में जाते हैं।
- सेकेण्ड में मनुष्य से देवता बन पड़ते हैं।
- यह है एम आब्जेक्ट।
- उसके लिए पढ़ाई करनी चाहिए।
- गुरू नानक ने भी कहा है ना मूत पलीती कपड़ धोए... लक्ष्य सोप है ना।
- बाबा कहते हैं मैं कितना अच्छा धोबी हूँ।
- तुम्हारे वस्त्र, तुम्हारी आत्मा और शरीर कितना शुद्ध बनाता हूँ।
- तो इनको (दादा को) कभी याद नहीं करना है।
- यह सारा कार्य शिवबाबा का है, उनको ही याद करो।
- इनसे मीठा वह है।
- आत्मा को कहते हैं तुमको इन आंखों से यह ब्रह्मा का रथ देखने में आता है परन्तु तुम याद शिवबाबा को करो।
- शिवबाबा इनके द्वारा तुमको कौड़ी से हीरे जैसा बना रहे हैं ।
- अच्छा -
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) बाप के दिल रूपी तख्त पर जीत पाने का पुरूषार्थ करना है।
- परिवार में ट्रस्टी रहकर प्यार से सबको चलाना है।
- मोहजीत बनना है।
- 2) योगबल से आत्मा को स्वच्छ बनाना है।
- इन आंखों से सब कुछ देखते हुए याद एक बाप को करना है।
- यहाँ फूल हार स्वीकार न कर खुशबूदार फूल बनना है
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- अपनी चंचल वृत्ति को परिवर्तन कर सतोप्रधान वायुमण्डल बनाने के जवाबदार श्रेष्ठ आत्मा भव
- जो बच्चे अपनी चंचल वृत्तियों को परिवर्तन कर लेते हैं वही सतोप्रधान वायुमण्डल बना सकते हैं क्योंकि वृत्ति से वायुमण्डल बनता है।
- वृत्ति चंचल तब होती है जब वृत्ति में इतने बड़े कार्य की स्मृति नहीं रहती।
- अगर कोई अति चंचल बच्चा बिजी होते भी चंचलता नहीं छोड़ता है तो उसे बांध देते हैं।
- ऐसे ही यदि ज्ञान-योग में बिजी होते भी वृत्ति चंचल हो तो एक बाप के साथ सर्व सम्बन्धों के बंधन में वृत्ति को बांध दो तो चंचलता सहज समाप्त हो जायेगी।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- अलबेलेपन की लहर को समाप्त करने का साधन है बेहद का वैराग्य।
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