11-06-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
"बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम अभी सच्चे-सच्चे राजयोगी हो, तुम्हें राजऋषि भी कहा जाता है, राजऋषि माना ही पवित्र''
प्रश्नः-
तुम बच्चे, मनुष्यों को माया रूपी रावण की दल-दल से कब निकाल सकेंगे?
उत्तर:-
जब तुम खुद उस दल-दल से निकले हुए होंगे।
दल-दल से निकलने वालों की निशानी है - इच्छा मात्रम् अविद्या।
एक बाप के सिवाए और कुछ भी याद न आये।
अच्छा कपड़ा पहनें, अच्छी चीज़ खायें.. यह लालच न हो, तुम पूरा ही वनवाह में हो।
इस शरीर को भी भूले हुए, मेरा कुछ भी नहीं, मैं आत्मा हूँ - ऐसे आत्म-अभिमानी बच्चे ही रावण की दल-दल से मनुष्यों को निकाल सकते हैं।
गीत:- तू प्यार का सागर है....
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ओम् शान्ति।
- कोई समय गीत जब बजाया जाता था तो बच्चों से गीत का अर्थ भी पूछते थे।
- अब बताओ तुम कब से राह भूल हो?
- (कोई ने कहा द्वापर से, कोई ने कहा सतयुग से) जो कहते हैं द्वापर से भूले हैं, वे रांग हैं।
- सतयुग से राह भूले हैं।
- राह बताने वाला तो अभी तुमको मिला है।
- सतयुग में राह बताने वाले को नहीं जानते हैं।
- वहाँ कोई बाप को जानते ही नहीं।
- गोया भूले हुए हैं।
- भूलना भी ड्रामा में नूँध है।
- फिर अभी राह बताने आये हैं।
- कहते हैं ना प्रभू राह बताओ।
- हम सतयुग से लेकर बाप को भूले हैं।
- बाबा प्रश्न पूछते हैं - बुद्धि चलाने लिए।
- यह ज्ञान ही निराला है ना, ज्ञान का सागर बाप ही है।
- बाप सम्मुख समझाते हैं।
- ज्ञान का सागर, सुख का सागर मैं ही हूँ।
- तुम भी जानते हो - बरोबर पतित-पावन भी एक ही बाप है।
- यह तो भक्ति वाले भी मानते हैं।
- पावन दुनिया है ही शान्तिधाम और सुखधाम।
- अब सुखधाम और दु:खधाम आधा-आधा है।
- यह तो बच्चे अच्छी रीति जानते हैं।
- बाप प्यार का सागर है, तभी तो सब उनको फादर कह पुकारते हैं परन्तु वह कौन है, कैसे आते हैं, यह भूल जाते हैं।
- 5 हजार वर्ष की बात है, बरोबर इन देवी-देवताओं का राज्य था।
- सतयुग में है सद्गति फिर दुर्गति कैसे होती है, कौन बताये?
- बाप ही आकर समझाते हैं, द्वापर से तुम्हारी दुर्गति हुई है तब तो बुलाते हैं।
- तुम समझते हो यह कोई नई बात नहीं है।
- बाप कल्प-कल्प आते हैं।
- अभी निराकार बाप आत्माओं को समझाते हैं।
- कोई भी अपनी आत्मा को नहीं जानते।
- ऐसे कभी कोई नहीं बतायेंगे कि हमारी आत्मा में सारा पार्ट भरा हुआ है।
- कभी नहीं कहेंगे कि मैं अनेक बार यह बना हूँ, पार्ट बजाया है।
- ड्रामा को वह जानते ही नहीं।
- करके लाखों हजार वर्ष कहें फिर भी ड्रामा तो है ना।
- ड्रामा रिपीट होता है।
- यह तो कहेंगे ना।
- यह ज्ञान बाप ही बच्चों को सम्मुख देते हैं।
- मुख से बात कर रहे हैं।
- तुम जानते हो हमको शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा अपना बनाए ब्राह्मण बनाया है।
- शिवबाबा का यह बच्चा भी है।
- वन्नी (स्त्री) भी है।
- देखो, कितने बच्चों की सम्भाल की जाती है।
- अकेला मेल होने के कारण सरस्वती को मददगार बनाया है कि बच्चों को सम्भालो।
- यह बातें शास्त्रों में नहीं हैं।
- यह है प्रैक्टिकल।
- बाप ही राजयोग सिखाते हैं, जिनको राजयोग सिखाया, वह राजायें बनें।
- 84 जन्मों में आये।
- बाइबिल, कुरान, वेद-शास्त्र आदि पढ़ते तो बहुत हैं परन्तु समझते कुछ भी नहीं हैं।
- अभी तुम कोई तत्व योगी नहीं हो।
- तुम्हारा तो बाप से योग है अर्थात् बाप की याद है।
- तुम अभी राजयोगी, राजऋषि हो अर्थात् योगीराज हो।
- योगी पवित्र को कहा जाता है।
- स्वर्ग की राजाई लेने लिए तुम योगी बने हो।
- बाप पहले-पहले कहते हैं पवित्र बनो।
- योगी नाम ही उनका है।
- तुम सब राजयोगी हो।
- यह तुम ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मणों की बात है।
- तुमको राजयोग सिखा रहे हैं, स्टूडेन्ट हो गये ना।
- स्टूडेन्टस को कब टीचर भूलेगा क्या?
- जानते हो शिवबाबा हमको पढ़ा रहे हैं।
- परन्तु माया फिर भी भुला देती है।
- तुम अपने पढ़ाने वाले टीचर को भूल जाते हो।
- भगवान पढ़ाते हैं - यह समझें तब तो नशा चढ़े।
- स्कूल में आई.सी.एस. पढ़ते हैं तो कितना नशा रहता है।
- तुम बच्चे तो 21 जन्म के लिए यह राजयोग की पढ़ाई पढ़ते हो।
- पढ़ना तो फिर भी होता है।
- राजविद्या भी पढ़नी पड़े, भाषा आदि सीखनी पड़े।
- तुम बच्चे समझते हो सतयुग से हम यह राह भूलनी शुरू करते हैं।
- फिर एक-एक ढाका (पौढ़ी-स्टैप), एक-एक जन्म में नीचे उतरते हैं।
- अभी तुमको सारा याद है।
- कैसे हम चढ़ते हैं, कैसे हम उतरते हैं।
- यह सीढ़ी अच्छी रीति याद करो।
- 84 जन्म पूरे हुए, अब हमको जाना है।
- तो खुशी होती है, यह बेहद का नाटक है।
- आत्मा कितनी छोटी है।
- पार्ट बजाते-बजाते आत्मा थक जाती है तब कहते हैं बाबा राह बताओ तो हम विश्राम पायें, सुख-शान्ति पायें।
- तुम सुखधाम में हो तो तुम्हारे लिए वहाँ सुख-शान्ति भी है।
- वहाँ कोई हंगामा नहीं।
- आत्मा को शान्ति है।
- शान्ति के दो स्थान हैं - शान्तिधाम और सुखधाम।
- दु:खधाम में अशान्ति है।
- यह पढ़ाई है, तुम जानते हो हमको बाबा सुखधाम वाया शान्तिधाम में ले जा रहे हैं।
- तुमको कहने की दरकार नहीं।
- तुम जानते हो हम यहाँ पार्ट बजाने आये हैं फिर जाना है।
- यह खुशी है।
- शान्ति की खुशी नहीं है।
- पार्ट बजाने में हमको मजा आता है, खुशी होती है।
- जानते हैं बाप को याद करने से विकर्म विनाश होंगे।
- कोई कहते हैं हमको मन की शान्ति मिले।
- यह अक्षर भी रांग है।
- नहीं, हम बाप को याद करते हैं कि विकर्म विनाश हों।
- शान्त तो मन रह न सके।
- कर्म बिगर रह नहीं सकते।
- बाकी महसूसता आती है, हम बाप से पवित्रता, सुख-शान्ति का वर्सा ले रहे हैं, तो खुशी होनी चाहिए।
- यह तो है ही दु:खधाम।
- इसमें सुख हो नहीं सकता।
- मनुष्य शान्तिधाम सुखधाम को भूल गये हैं।
- तो जिनको बहुत पैसे हैं, समझते हैं हम सुख में हैं, संन्यासी घरबार छोड़ जंगल में जाते हैं।
- कोई हंगामा तो है नहीं।
- तो शान्त तो हो जाते हैं परन्तु वह हुआ अल्पकाल के लिए।
- आत्मा का जो शान्ति स्वधर्म है, उसमें तुम शान्ति में रहते हो।
- यहाँ तो प्रवृत्ति में आना ही है।
- पार्ट बजाना ही है।
- यहाँ आते ही हैं कर्म करने।
- कर्म में तो आत्मा को जरूर आना ही है।
- तुम बच्चे समझते हो - यह समझानी बेहद का बाप दे रहे हैं।
- निराकार भगवानुवाच - अब तुम जानते हो हम आत्मा हैं, हमारा बाप परम आत्मा है।
- परम आत्मा माना परमात्मा।
- उनको यह आत्मा बुलाती है।
- वह बाप ही सर्व का सद्गति दाता है।
- अब बाप कहते हैं - बच्चे देही-अभिमानी बनो।
- यही मेहनत है।
- आधाकल्प से जो खाद पड़ती है, वह इस याद से ही निकलेगी।
- तुमको सच्चा सोना बनना है।
- जैसे सच्चे सोने में खाद मिलाए फिर जेवर बनाते हैं।
- तुम असुल में सच्चा सोना थे फिर तुम्हारे में खाद पड़ती है।
- अब तुम्हारी बुद्धि में है, हमने पार्ट बजाया है।
- अब हम जाते हैं पियर घर।
- जैसे विलायत से जब पियर घर लौटते हो तो खुशी होती है, तुम्हें भी खुशी है, तुम जानते हो बाबा हमारे लिए स्वर्ग लाया है।
- बेहद के बाप की सौगात है - बेहद की बादशाही अर्थात् सद्गति।
- संन्यासी लोग मुक्ति की सौगात पसन्द करते हैं।
- कोई मरता है तो भी कहते हैं स्वर्गवासी हुआ।
- संन्यासी कहेंगे ज्योति ज्योत समाया, जिसमें सब मिल जायेंगे।
- वह तो रहने का स्थान है, जहाँ हम आत्मायें रहती हैं।
- बाकी कोई ज्योति वा आग थोड़ेही है, जिसमें सब मिल जाएं।
- ब्रह्म महतत्व है, जिसमें आत्मायें रहती हैं।
- बाप भी वहाँ रहते हैं।
- वह भी है बिन्दी।
- बिन्दी का किसको साक्षात्कार हो तो समझ नहीं सकेंगे।
- बच्चे बहुत कहते हैं - बाबा याद करने में दिक्कत होती है।
- बिन्दी रूप को कैसे याद करें।
- आधाकल्प तो बड़े लिंग रूप को याद किया।
- वह भी बाप समझाते हैं।
- बिन्दी की तो पूजा हो न सके।
- इनका मन्दिर कैसे बनायेंगे?
- बिन्दी तो देखने में भी न आये, इसलिए शिवलिंग बड़ा बनाते हैं।
- बाकी आत्माओं के सालिग्राम तो बहुत छोटे-छोटे बनाते हैं।
- अण्डे मिसल बनाते हैं।
- कहेंगे पहले यह क्यों नहीं बताया - परमात्मा बिन्दी मिसल है।
- बाप कहते हैं - उस समय यह बताने का पार्ट ही नहीं था।
- अरे तुम आई.सी.एस. शुरू से क्यों नहीं पढ़ते हो?
- पढ़ाई के भी कायदे हैं ना।
- कोई ऐसी बात पूछे तो तुम कह सकते हो - अच्छा बाबा से पूछते हैं वा हमारे से बड़ी टीचर है उनसे लिखकर पूछते हैं।
- बाबा को बताना होगा तो बतायेंगे वा तो कहेंगे आगे चल समझ लेंगे।
- एक ही टाइम तो नहीं सुनायेंगे।
- यह सब हैं नई बातें।
- तुम्हारे वेद-शास्त्रों में जो है - बाप बैठ सार बताते हैं।
- यह भी भक्ति मार्ग की नूँध है, फिर भी तुमको पढ़ने ही होंगे।
- यह भक्ति का पार्ट बजाना ही होगा।
- पतित बनने का भी पार्ट बजाना है।
- कहते हैं भक्ति के दुबन में फँस गये हैं।
- बाहर से तो खूबसूरती बहुत है।
- जैसे रूण्य के पानी का मिसाल देते हैं।
- भक्ति भी सुहैनी (आकर्षक) बहुत है।
- बाप कहते हैं यह रूण्य का पानी है।
- (मृगतृष्णा समान) इस दुबन में फँस जाते हैं।
- फिर निकलना ही मुश्किल हो जाता है, एकदम फँस पड़ते हैं।
- जाते हैं औरों को निकालने फिर खुद ही फँस पड़ते हैं।
- ऐसे बहुत फँस पड़े।
- आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती औरों को निकालवन्ती, चलते-चलते फिर खुद फँस पड़ते हैं।
- कितने अच्छे-अच्छे फर्स्टक्लास थे।
- फिर उनको निकलना बड़ा मुश्किल हो जाता है।
- बाप को भूल जाते हैं, तो दुबन से निकालने में कितनी मेहनत लगती है।
- कितना भी समझाओ बुद्धि में नहीं बैठता।
- अब तुम समझ सकते हो कि हम माया रूपी रावण की दल-दल से कितना निकले हैं।
- जितना-जितना निकलते जाते हैं, उतना-उतना खुशी होती है।
- जो खुद निकला होगा उनके पास शक्ति होगी दूसरे को निकालने की।
- बाण चलाने वाले कोई तीखे होते हैं, कोई कमजोर होते हैं।
- भील और अर्जुन का भी मिसाल है ना।
- अर्जुन साथ रहने वाला था, अर्जुन एक को नहीं, जो बाप के बनकर बाप के साथ रहते हैं, उनको कहा जाता है अर्जुन।
- साथ में रहने वाले और बाहर में रहने वाले की रेस कराई जाती है।
- भील अर्थात् बाहर रहने वाला तीखा चला गया।
- दृष्टान्त एक का दिया जाता है।
- बात तो बहुतों की है।
- तीर भी यह ज्ञान का है।
- हर एक अपने को समझ सकते हैं, हम कितना बाप को याद करते हैं, और कोई की याद तो नहीं आती है!
- अच्छी चीज़ पहनने वा खाने की लालच तो नहीं रहती!
- यहाँ अच्छा पहनेंगे तो वहाँ कम हो जायेगा।
- हमको यहाँ तो वनवाह में रहना है।
- बाप कहते हैं तुम अपने इस शरीर को भी भूल जाओ।
- यह तो पुराना तमोप्रधान शरीर है।
- तुम स्वर्ग के मालिक बनते हो।
- इच्छा मात्रम् अविद्या।
- बाप कहते हैं - तुम यहाँ जेवर आदि भी नहीं पहनों, ऐसे क्यों कहते हैं?
- इसके भी अनेक कारण हैं।
- कोई का जेवर गुम हो जायेगा तो कहेंगे वहाँ बी.के. को देकर आई है और फिर चोर-चकार भी रास्ते चलते छीन लेते हैं।
- आजकल माईयाँ भी लूटने वाली बहुत निकली हैं।
- फीमेल भी डाका मारती हैं।
- दुनिया का हाल देखो क्या है?
- तुम समझते हो, यह दुनिया बिल्कुल वेश्यालय है।
- हम यहाँ शिवालय में बैठे हैं - शिवबाबा के साथ।
- वह सत है, चैतन्य है, आनंद स्वरूप है।
- आत्मा की ही महिमा है।
- आत्मा ही कहती हैं मैं प्रेजीडेंट बना हूँ, मैं फलाना हूँ।
- और तुम्हारी आत्मा कहती है हम ब्राह्मण हैं।
- बाबा से वर्सा ले रहे हैं।
- आत्म-अभिमान में रहना है, इसमें ही मेहनत है।
- यह मेरा फलाना है, यह मेरा है.. यह याद रहता है, हम आत्मा भाई-भाई हैं, यह भूल जाते हैं।
- यहाँ मेरा-मेरा छोड़ना पड़ता है।
- मैं आत्मा हूँ, इनकी आत्मा भी जानती है।
- बाप समझा रहे हैं, मैं भी सुनता रहता हूँ।
- पहले मैं सुनता हूँ, भल मैं भी सुना सकता हूँ परन्तु बच्चों के कल्याण अर्थ कहता हूँ - तुम सदा समझो कि शिवबाबा समझाते हैं।
- विचार सागर मंथन करना बच्चों का काम है।
- जैसे तुम करते हो, वैसे मैं भी करता हूँ।
- नहीं तो पहले नम्बर में कैसे जायेंगे लेकिन अपने को गुप्त रखते हैं।
- अच्छा।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) मेरा-मेरा सब छोड़ अपने को आत्मा समझना है।
- आत्म-अभिमानी रहने की मेहनत करनी है।
- यहाँ बिल्कुल वनवाह में रहना है।
- कोई भी पहनने, खाने की इच्छा से इच्छा मात्रम् अविद्या बनना है।
- 2) पार्ट बजाते हुए कर्म करते अपने शान्ति स्वधर्म में स्थित रहना है।
- शान्तिधाम और सुखधाम को याद करना है।
- इस दु:खधाम को भूल जाना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- हर संकल्प, समय, शब्द और कर्म द्वारा ईश्वरीय सेवा करने वाले सम्पूर्ण वफादार भव
- सम्पूर्ण वफादार उन्हें कहा जाता है जो हर वस्तु की पूरी-पूरी सम्भाल करते हैं।
- कोई भी चीज़ व्यर्थ नहीं जाने देते।
- जब से जन्म हुआ तब से संकल्प, समय और कर्म सब ईश्वरीय सेवा अर्थ हो।
- यदि ईश्वरीय सेवा के बजाए कहाँ भी संकल्प वा समय जाता है, व्यर्थ बोल निकलते हैं या तन द्वारा व्यर्थ कार्य होता है तो उनको सम्पूर्ण वफादार नहीं कहेंगे।
- ऐसे नहीं कि एक सेकण्ड वा एक पैसा व्यर्थ गया - तो क्या बड़ी बात है।
- सम्पूर्ण वफादार अर्थात् सब कुछ सफल करने वाले।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- श्रीमत को यथार्थ समझकर उस पर कदम-कदम चलने में ही सफलता समाई हुई है।
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