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ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने गीत की लाइन सुनी।
- जैसे वेद शास्त्र आदि भक्ति मार्ग का रास्ता बताते हैं वैसे गीत भी थोड़ा रास्ता बताते हैं।
- वह तो कुछ समझते नहीं।
- शास्त्रों की कथायें आदि सुनना, वह जैसे है कनरस।
- अब बच्चे जानते हैं - दूरदेश का मुसाफिर किसको कहा जाता है।
- आत्मा जानती है - हम भी दूर के मुसाफिर हैं, हमारा घर शान्तिधाम है।
- मनुष्य इन बातों को नहीं समझे तो गोया कुछ नहीं समझे।
- बाप को न जानने से सृष्टि चक्र को कोई नहीं जानते हैं।
- यह आत्मा समझती है कि शिवबाबा कहते हैं - मैं टैप्रेरी जीव आत्मा बनता हूँ।
- तुम स्थाई जीव आत्मा हो।
- मैं सिर्फ संगम पर ही टैप्रेरी जीव आत्मा हूँ।
- सो भी तुम्हारे मुआफिक नहीं बनता।
- मैं इस जीव में प्रवेश करता हूँ, अपना परिचय देने।
- नहीं तो तुमको परिचय कैसे मिले?
- बाप ने समझाया है - रूहानी बाप एक ही है, जिसको शिवबाबा अथवा भगवान कहते हैं।
- दूसरा कोई नहीं जानते।
- इसमें पवित्रता का भी बन्धन है।
- बड़े ते बड़ा बन्धन है अपने को आत्मा समझना, जिस दूर के मुसाफिर पतित-पावन को भक्ति मार्ग में याद करते हैं।
- वह रूहानी बाप समझाते हैं कि मैं सबको ले चलूँगा।
- किसको भी छोड़ नहीं जाऊंगा, वापिस तो सबको जाना है।
- प्रलय भी नहीं होनी है।
- भारत खण्ड तो रहता ही है।
- भारत खण्ड का कभी विनाश नहीं होता है।
- सतयुग आदि में सिर्फ भारत खण्ड ही रहता है।
- कल्प के संगम पर जब बाप आते हैं तो आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करना होता है।
- बाकी सब धर्म विनाश होने हैं।
- तुम भी आदि सनातन देवी-देवता धर्म स्थापन करने में मदद कर रहे हो।
- तो गीत सुना - कहते हैं बाबा हमको भी साथ ले चलो।
- बाप कहते हैं - ऐसे साथ में कोई चल न सके, जब तक पुरानी दुनिया से वैराग्य न आये।
- नया मकान बनता है तो पुराने से दिल टूट जाती है।
- तुम भी जानते हो यह पुरानी दुनिया खत्म होनी है।
- अब नई दुनिया में चलना है।
- जब तक सतोप्रधान नहीं बनेंगे तब तक सतोप्रधान देवी-देवता बन नहीं सकेंगे इसलिए बाबा बार-बार समझाते हैं - अपने को आत्मा समझ बाप को याद करते रहो।
- सद्गति करने वाला दूर का मुसाफिर एक ही आया हुआ है, उनको दुनिया नहीं जानती।
- सर्वव्यापी कह दिया है।
- अभी तुम बच्चे नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार जानते हो कि हम शिवबाबा की सन्तान हैं।
- आते भी हैं तो समझते हैं हम बापदादा के पास जाते हैं, तो यह फैमली हो गई।
- यह है ईश्वरीय फैमली।
- किसको बहुत बच्चे होते हैं तो बड़ी पलटन हो जाती है।
- शिवबाबा के बच्चे जो इतने बी.के. भाई-बहिन हैं, यह भी बड़ी पलटन हो जाती है।
- ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ सब जानते हैं - हम बेहद के बाप से वर्सा लेते हैं।
- शास्त्रों में दिखाते हैं पाण्डवों और कौरवों ने खेल खेला।
- राजाई दांव में रखी।
- अब राजाई न कौरवों की है, न पाण्डवों की हैं।
- ताज आदि कुछ भी नहीं है।
- दिखाते हैं उनको शहर निकाला मिला।
- हथियार आदि छिपाकर जाए रखा।
- यह सब हैं दन्त कथायें।
- न पाण्डव राज्य है, न कौरव राज्य है।
- न उन्हों की आपस में लड़ाई चली है।
- लड़ाई राजाओं की लगती है।
- यह तो भाई-भाई हैं।
- लड़ाई हुई है कौरवों और यौवनों की।
- बाकी भाई एक दो को कैसे खत्म करेंगे।
- दिखाते हैं पाण्डव, कौरव लड़े।
- बाकी 5 पाण्डव बचे और एक कुत्ता रहा।
- वह भी सब पहाड़ पर गल मरे।
- खेल ही खलास।
- राजयोग का अर्थ ही नहीं निकला।
- अभी तुम बच्चे जानते हो बाप कल्प-कल्प आकर एक धर्म की स्थापना करते हैं।
- बुलाते भी हैं हे पतित-पावन बाबा आओ, आकर पतित से पावन बनाओ।
- सतयुग में सूर्यवंशी राजधानी ही होती है।
- ब्रह्मा द्वारा विष्णुपुरी की स्थापना हो रही है।
- अब बाप आये हैं तो उनके डायरेक्शन पर चलना है।
- कमल पुष्प समान पवित्र रहना है।
- कन्याओं को तो नहीं कहेंगे कि गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान रहो।
- वह तो हैं ही पवित्र।
- यह गृहस्थियों के लिए कहा जाता है।
- कुमार और कुमारियों को तो शादी करनी ही नहीं चाहिए।
- नहीं तो वह भी गृहस्थी हो पड़ेंगे।
- कुछ गन्धर्वी विवाह का नाम भी है।
- कन्या पर मार पड़ती है तो लाचारी हालत में गन्धर्वी विवाह कराया जाता है।
- वास्तव में मार भी सहन करनी चाहिए, परन्तु अधरकुमारी नहीं बनना चाहिए।
- बाल ब्रह्मचारी का नाम बहुत होता है।
- शादी की तो हाफ पार्टनर हो गये।
- कुमारों को कहा जाता है - तुम तो पवित्र रहो।
- गृहस्थ व्यवहार वालों को कहा जाता है - गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल के समान बनो।
- उन्हों को ही मेहनत होती है।
- शादी न करने से बन्धन नहीं रहेगा।
- कन्या को तो पढ़ना है और ज्ञान में बहुत मजबूत रहना है।
- छोटी कुमारियां जो सगीर हैं, उनको तो हम ले नहीं सकते।
- वह अपने घर में रहकर पढ़ सकती हैं।
- माता-पिता ज्ञान में आये तो सगीर को ले सकते हैं।
- यह तो स्कूल का स्कूल है, घर का घर है और सतसंग का सतसंग।
- सत माना एक बाप, जिसके लिए ही कहते हैं ओ दूर के मुसाफिर।
- आत्मा गोरी बनती है।
- बाप कहते हैं - मैं मुसाफिर सदा गोरा रहता हूँ।
- प्योरिटी में रहने वाला हूँ।
- मैं आकर सभी आत्माओं को पवित्र गोरा बनाता हूँ और तो कोई ऐसे मुसाफिर हैं नहीं।
- बाप समझाते हैं - मैं आया हूँ रावण राज्य में। यह शरीर भी पराया है।
- तुम्हारी आत्मा कहेगी - यह हमारा शरीर है।
- बाबा कहेंगे यह हमारा शरीर नहीं है।
- यह इनका शरीर है।
- यह पतित शरीर हमारा नहीं है।
- आते ही हैं इनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में।
- जो नम्बरवन पावन था, वही नम्बर लास्ट अर्थात् अन्त में विकारी बनते हैं।
- पहला नम्बर 16 कला सम्पूर्ण था।
- अब कोई कला नहीं रही है।
- पतित तो सब हैं ही।
- तो बाप दूरदेश का मुसाफिर हुआ ना।
- तुम आत्मायें भी मुसाफिर हो।
- यहाँ आकर पार्ट बजाती हो।
- इस सृष्टि चक्र को कोई नहीं जानते हैं।
- भल कोई कितना भी शास्त्र आदि पढ़ा हो परन्तु यह ज्ञान कोई नहीं दे सकते।
- बाप समझाते हैं - मैं इस तन में प्रवेश कर इन आत्माओं को ज्ञान देता हूँ।
- वह तो मनुष्य, मनुष्य को शास्त्रों का ज्ञान देते हैं।
- वह हो गये भगत।
- सद्गति दाता तो एक ही है।
- वही ज्ञान का सागर है, उनको न जानने कारण देह-अभिमान आ जाता है।
- वह कोई यह तो समझाते नहीं हैं कि अपने को आत्मा निश्चय करो।
- आत्मा पढ़ती है।
- यह कोई समझाते नहीं हैं क्योंकि देह-अभिमान है।
- अभी दूर का मुसाफिर तो शिवबाबा को ही कहेंगे।
- तुम जानते हो हम 84 जन्म का चक्र लगा चुके हैं।
- बाप कहते हैं - 5 हजार वर्ष पहले भी समझाया था कि बच्चे तुम अपने जन्मों को नहीं जानते हो।
- मैं जानता हूँ - गीता में आटे में लून मिसल कुछ है।
- वही गीता का एपीसोड, वही महाभारत की लड़ाई, वही मनमनाभव-मध्याजीभव का ज्ञान है।
- मामेकम् याद करो।
- लड़ाई भी बरोबर लगी है।
- पाण्डवों की विजय हुई।
- विजय माला विष्णु की गाई जाती है।
- शास्त्रों में तो दिखाया है पाण्डव गल मरे।
- फिर माला कहाँ से बनी।
- अब तुम समझते हो कि हम विष्णु की माला बनने यहाँ आये हैं।
- ऊपर में है पतित-पावन बाप।
- उनका यादगार चाहिए ना।
- भक्ति मार्ग में यादगार गाया जाता है।
- कोई 8 की माला, कोई 108 की माला, कोई 16108 की बनाई है।
- गाते हैं - चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला।
- अभी तुम जानते हो - हमारी चढ़ती कला है।
- हम चले जायेंगे अपने सुखधाम फिर हम वहाँ से नीचे कैसे उतरते हैं।
- 84 जन्म कैसे लेते हैं, यह सारा ज्ञान तुम्हारी बुद्धि में है।
- यह ज्ञान भूलना नहीं चाहिए।
- हमारे सब दु:ख दूर करने, श्राप मिटाए सुख का वर्सा देने बाप आया है।
- रावण के श्राप से सबको दु:ख होता है।
- तो अब बाप को और वर्से को याद करना है।
- तुम जानते हो हम सूर्यवंशियों ने भारत में राज्य किया।
- भारत में ही शिवबाबा आते हैं।
- भारत ही स्वर्ग था, यह घड़ी-घड़ी बुद्धि में याद करना पड़े।
- जिसने 84 का चक्र नहीं खाया होगा, वह न धारणा करेंगे, न करायेंगे उसके लिए समझा जायेगा कि इसने 84 जन्म नहीं लिये हैं।
- यह देरी से आते हैं। स्वर्ग में नहीं आते हैं।
- पहले-पहले जाना तो अच्छा है ना।
- नये मकान में पहले खुद रहते हैं फिर किराये पर चढ़ाते हैं।
- तो वह फिर सेकेण्ड हैण्ड हुआ ना।
- सतयुग है नई दुनिया।
- त्रेता सेकेण्ड हैण्ड कहेंगे।
- तो अब बुद्धि में आता है हम स्वर्ग नई दुनिया में जायें।
- पुरुषार्थ करना है, प्रजा भी बनती जायेगी।
- तुमको मालूम पड़ता जायेगा कि माला में कौन-कौन पिरो सकते हैं।
- अगर किसको सीधा कहा जाए कि तुम नहीं आयेंगे तो हार्टफेल हो जाए इसलिए कहा जाता है कि पुरुषार्थ करो, अपनी जांच करो कि हमारा बुद्धियोग भटकता तो नहीं है!
- तुम्हारा शिवबाबा से कितना लव होता जाता है!
- कहते भी हैं हम बापदादा के पास जाते हैं।
- शिवबाबा से दादा द्वारा वर्सा लेने जाते हैं।
- ऐसे बाप के पास तो कई बार जायें।
- परन्तु गृहस्थ व्यवहार भी सम्भालना है।
- भल बहुत धनवान हैं परन्तु इतनी फुर्सत नही।
- पूरा निश्चय नहीं।
- नहीं तो मास दो मास बाद आकर रिफ्रेश हो सकते हैं।
- उनको घड़ी-घड़ी कशिश होगी।
- सुई पर जंक चढ़ी हुई होती है तो चुम्बक इतना खींचता नहीं है।
- जिनका पूरा योग होगा उनको झट कशिश होगी, भाग आयेंगे।
- जितनी कट उतरती जायेगी, उतनी कशिश होगी।
- हम चुम्बक से मिलें। गीत है चाहे मारो, चाहे कुछ भी करो... हम दर से कभी नहीं निकलेंगे।
- परन्तु वह अवस्था तो पिछाड़ी में होगी।
- कट निकली हुई होगी तो वह अवस्था होगी।
- बाप कहते हैं - हे आत्मायें मनमनाभव, रहो भल अपने गृहस्थ व्यवहार में।
- ऐसे नहीं कि यहाँ भागकर आए बैठ जाना है।
- सागर पास बादलों को आना है - रिफ्रेश होने।
- फिर सर्विस पर जाना है।
- बन्धन जब खलास हो तो सर्विस पर जा सकें।
- माँ-बाप को अपने बच्चों को सम्भालना है।
- बाप की याद में रहना है।
- पवित्र बनना है।
- बाप ने समझाया है - अनेक प्रकार के विघ्न ज्ञान यज्ञ में पड़ते हैं।
- कहते हैं ईश्वर तो समर्थ है फिर विघ्न क्यों?
- मनुष्यों को पता ही नहीं है, रावण भगवान से भी तीखा है।
- उनकी राजाई छीनी जाती है तो अनेक प्रकार के विघ्न पड़ते रहते हैं।
- ड्रामा प्लैन अनुसार फिर भी विघ्न पड़ेंगे।
- शुरूआत से लेकर पतितों के विघ्न पड़ते हैं।
- शास्त्रों में भी लिख दिया है - कृष्ण को 16108 पटरानियां थी।
- सर्प ने डसा।
- राम की सीता चुराई गई।
- अब रावण स्वर्ग में कहाँ से आये।
- झूठ तो बहुत है।
- कहते हैं विकार बिगर बच्चे कैसे होंगे।
- उनको पता ही नहीं - जो वर्सा लेने वाले होंगे वही आकर समझेंगे।
- तो इस ज्ञान यज्ञ में असुरों के विघ्न पड़ते हैं।
- पतित को असुर कहा जाता है। है ही रावण सम्प्रदाय।
- अभी तुम संगम पर हो।
- रावण राज्य से किनारा कर लिया है फिर भी कुछ लैस आती है।
- यह बुद्धि में ज्ञान है कि हम जा रहे हैं।
- बैठे तो यहाँ ही हैं।
- बुद्धि में ज्ञान है।
- बैठे यहाँ हो परन्तु उनसे जैसे तुमको वैराग्य है।
- यह छी-छी दुनिया कब्रिस्तान बननी है।
- भिन्न-भिन्न प्वाइन्ट्स से समझाया जाता है।
- वास्तव में तो एक ही प्वाइन्ट है मनमनाभव।
- कितनों की चिट्ठियां आती हैं - बाबा हम बांधेली हैं।
- एक द्रोपदी तो नहीं हैं, हजारों हो जायेंगी।
- अभी तुम पतित दुनिया से पावन दुनिया में ट्रांसफर हो रहे हो।
- जो कल्प पहले फूल बने होंगे वही निकलेंगे।
- गॉर्डन ऑफ अल्लाह की यहाँ स्थापना होगी।
- कोई-कोई तो ऐसे अच्छे-अच्छे फूल होते हैं जो देखने से ही आराम आ जाता है।
- नाम ही है किंग ऑफ फ्लावर्स।
- 5 रोज़ से रखा हो तो भी खिला रहेगा।
- खुशबू फैलती रहेगी।
- यहाँ भी जो बाप को याद करते और याद दिलाते हैं उनकी खुशबू फैलती है।
- सदैव खुश रहते हैं।
- ऐसे मीठे-मीठे बच्चों को देख बाप हर्षित होते हैं।
- उन्हों के आगे बाबा की ज्ञान डांस अच्छी होती है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) ज्ञान और योग में मजबूत बनना है।
- अगर कोई बन्धन नहीं है तो बन्धनों में जानबूझकर फॅसना नहीं है।
- बाल ब्रह्मचारी होकर रहना है।
- 2) अभी हमारी चढ़ती कला है, बाबा हमारे सब दु:ख दूर करने, श्राप मिटाए वर्सा देने आये हैं।
- बाप और वर्से को याद कर अपार खुशी में रहना है।
- जांच करनी है कि हमारा बुद्धियोग कहाँ भटकता तो नहीं है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- स्वमान में स्थित रह देह-अभिमान को समाप्त करने वाले सफलतामूर्त भव
- जो बच्चे स्वमान में स्थित रहते हैं वही बाप के हर फरमान का सहज ही पालन कर सकते हैं।
- स्वमान भिन्न-भिन्न प्रकार के देह-अभिमान को समाप्त कर देता है।
- लेकिन जब स्वमान से स्व शब्द भूल जाता है और मान-शान में आ जाते हो तो एक शब्द की गलती से अनेक गलतियां होने लगती हैं इसलिए मेहनत ज्यादा और प्रत्यक्षफल कम मिलता है।
- लेकिन सदा स्वमान में स्थित रहो तो पुरूषार्थ वा सेवा में सहज ही सफलता-मूर्त बन जायेंगे।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- तपस्या करनी है तो समय को बचाओ, बहाना नहीं दो।
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