08-07-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति
"बापदादा" मधुबन
“मीठे बच्चे - सारी दुनिया में तुम्हारे जैसा खुशनसीब कोई नहीं, तुम हो राजऋषि, तुम राजाई के लिए राजयोग सीख रहे हो''
प्रश्नः-
निराकार बाप में कौन से संस्कार हैं जो संगम पर तुम बच्चे भी धारण करते हो?
उत्तर:-
निराकार बाप में ज्ञान के संस्कार हैं, वह तुम्हें ज्ञान सुनाकर पतित से पावन बना देते हैं इसलिए उन्हें ज्ञान का सागर, पतित-पावन कहा जाता है।
तुम बच्चे भी अभी वो संस्कार धारण करते हो।
तुम नशे से कहते हो हमें भगवान पढ़ाते हैं।
हम उनसे सुनकर सुनाते हैं।
गीत:- आखिर वह दिन आया आज...
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ओम् शान्ति।
- मीठे-मीठे रूहानी बच्चों ने यह गीत सुना।
- यह महिमा किसकी है?
- एक बाप की।
- शिवाए नम:, ऊंच ते ऊंच भगवान है ना।
- बच्चे जानते हैं वह हमारा बाप है।
- ऐसे नहीं कि हम सभी बाप हैं।
- गाया भी जाता है सारी दुनिया ब्रदर हुड है।
- संन्यासी अथवा विद्वानों के कहने अनुसार ईश्वर सर्वव्यापी कहने से जैसे कि फादरहुड हो जाता है।
- ब्रदर होने से बाप तो सिद्ध होता है, जिससे वर्सा मिलना है।
- फादरहुड है तो फिर वर्से की बात ही नहीं है।
- बच्चे जानते हैं हम सभी आत्माओं का बाप एक है, उनको कहा ही जाता है - वर्ल्ड गॉड फादर।
- वर्ल्ड में कौन है?
- सभी ब्रदर्स हैं, आत्मायें हैं।
- सबका गॉड फादर एक ही है।
- उस बाप की सभी प्रार्थना करते हैं।
- एक की ही बन्दगी वा पूजा होनी चाहिए।
- वह है सतोप्रधान पूजा।
- यह भी समझाया है - ज्ञान, भक्ति और वैराग्य।
- बाप ज्ञान देते हैं सद्गति के लिए।
- सद्गति कहा जाता है जीवन-मुक्ति धाम को।
- यह आत्मा को बुद्धि में धारण करना है।
- हमारा घर शान्तिधाम है।
- उसको मुक्तिधाम, निर्वाणधाम भी कहा जाता है।
- सबसे अच्छा नाम है - शान्तिधाम।
- यहाँ तो आरगन्स होने के कारण आत्मा टॉकी में रहती है, बोलना पड़ता है।
- सूक्ष्मवतन में है मूवी।
- इशारे में बात होती है, आवाज नहीं होती।
- तीनों लोकों को भी तुम जान गये हो।
- मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन, बुद्धि में यह अच्छी रीति बैठा है।
- मनुष्य सृष्टि के लिए ही गाया जाता है कि यह सृष्टि चक्र लगाती है।
- उसको कहा जाता है वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी।
- मनुष्य ही तो उसको जानेंगे ना।
- वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं।
- ऊंच ते ऊंच बाप है।
- वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी कैसे रिपीट होती है, वही जानते हैं।
- इस चक्र को जानने से ही तुम चक्रवर्ती राजा बने हो।
- गाते भी हैं देवतायें सम्पूर्ण निर्विकारी हैं।
- लक्ष्मी-नारायण के चित्र हैं ना।
- वह सम्पूर्ण निर्विकारी और अपने को कहते हैं सम्पूर्ण विकारी।
- सतयुग में हैं सम्पूर्ण निर्विकारी अथवा सम्पूर्ण पावन।
- कलियुग में हैं सम्पूर्ण विकारी, सम्पूर्ण पतित।
- भारत की ही बात है।
- यह बाप ही आकर बुद्धि में बिठाते हैं और कोई नहीं जानते हैं।
- उन्होंने तो सतयुग को लम्बा समय दे दिया है।
- समझते हैं लाखों वर्ष पहले सतयुग था।
- तो किसी की बुद्धि में यह बात आती ही नहीं है।
- अब बच्चे जानते हैं - हम अभी सम्पूर्ण विकारी से सम्पूर्ण निर्विकारी बन रहे हैं।
- सम्पूर्ण पतित से सम्पूर्ण पावन बनना है।
- बाप समझाते हैं आत्मा में ही खाद पड़ी हुई है, गोल्डन एज से अब आइरन एज बन गई है।
- यह आत्मा की भेंट की जाती है।
- यह अच्छी रीति समझना है।
- तुम बच्चे बहुत खुशनसीब हो, तुम्हारे जैसा खुशनसीब कोई और नहीं।
- अभी तुम राजयोग में बैठे हो, तुम राजऋषि हो।
- राजाई के लिए कभी कोई पढ़ाई होती है क्या?
- बैरिस्टर बनायेंगे परन्तु विश्व का महाराजा कौन बनायेगा?
- बाप के सिवाए कोई बना न सके।
- यहाँ महाराजा तो कोई है नहीं।
- सतयुग के लिए तो जरूर चाहिए।
- किसको जरूर आना पड़े।
- बाप कहते हैं मैं आता हूँ तब, जब भक्ति पूरी होनी होती है।
- अब भक्ति पूरी हुई और कोई बात इसमें उठा ही नहीं सकते।
- हमको बाप बैठ पढ़ाते हैं - यह नशा होना चाहिए।
- हम आत्माओं को निराकार बाप परमपिता परमात्मा शिव पढ़ाते हैं।
- शिव को तो कोई जानते ही नहीं।
- अब तुम बच्चे जानते हो बाबा फिर से स्वर्ग की राजाई स्थापन कर रहे हैं।
- हम उनको महाराजन श्री नारायण और महारानी श्री लक्ष्मी कहते हैं।
- भक्ति मार्ग में सत्य नारायण की कथा सुनाते हैं।
- अमरकथा और तीजरी की कथा।
- बाप तीसरा नेत्र भी देते हैं।
- नर से नारायण बनने की कथा सुनाई जाती है।
- वही बातें जो पास्ट हो जाती हैं, वह फिर भक्ति मार्ग में काम आती हैं।
- अभी तुम बच्चे समझते हो बाबा हमको स्वर्ग का मालिक बनाते हैं, हम हकदार हैं।
- भगवान तो स्वर्ग का रचयिता है ना।
- हम भगवान की सन्तान हैं तो हम स्वर्ग में क्यों नहीं हैं!
- कलियुग में क्यों पड़े हैं?
- परमपिता परमात्मा तो नई दुनिया रचते हैं।
- पुरानी दुनिया थोड़ेही भगवान रचते हैं।
- पहले नई दुनिया बनाते हैं।
- उसके बाद फिर पुरानी को तोड़ेंगे।
- तुम जानते हो हम सतयुग के लिए राज्य ले रहे हैं।
- सतयुग में कौन होंगे?
- इन लक्ष्मी-नारायण की डिनायस्टी होगी और भी तो राजायें होंगे ना।
- जिसकी निशानी है विजय माला।
- बच्चे जानते हैं अभी हम विजयमाला में पिरोने के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं।
- दुनिया में माला का अर्थ कोई नहीं जानते कि यह क्यों पूजी जाती है, ऊपर में फूल कौन है?
- माला को फेरते-फेरते फिर फूल को नमस्ते करते हैं फिर माला फेरेंगे।
- माला बैठ सिमरते हैं कि कहाँ बाहर ख्यालात न जायें।
- अन्दर राम-राम की धुन लगाते हैं, जैसे बाजा बजता है।
- बहुत प्रैक्टिस करते हैं।
- यह सब हैं भक्ति मार्ग की बातें।
- हाँ बहुत भक्ति करने वाले सिर्फ कोई विकर्म नहीं करेंगे।
- बहुत भक्ति करने वाले के लिए समझेंगे कि यह सत्यवादी होगा।
- मन्दिर में माला रखी होगी, माला फेरते मुख से राम-राम कहते रहेंगे।
- बहुत लोग समझते हैं भक्ति में पाप नहीं होता।
- कहते हैं नौधा भक्ति से मनुष्य मुक्त हो जाते हैं।
- परन्तु होता कुछ भी नहीं।
- यह एक नाटक है।
- उसमें सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो में सबको आना ही है।
- वापिस एक को भी नहीं जाना है।
- जैसे ऊपर में जगह खाली हो जाती है।
- वैसे यहाँ भी बहुत जगह खाली हो जायेगी।
- देहली के आसपास, मीठी नदियों पर राजधानी होती है।
- समुद्र की तरफ नहीं होती है।
- यह बाम्बे आदि होंगे नहीं।
- वह (बाम्बे) तो पहले मच्छीमयानी थी।
- मछली फँसाने वाले वहाँ रहते थे।
- अभी तो समुद्र को कितना सुखाया है।
- फिर भी मच्छीमयानी होगी।
- सतयुग में तो बाम्बे होती नहीं।
- वहाँ कोई पहाड़ियां आदि भी नहीं होती।
- कहाँ जाने की दरकार ही नहीं होती।
- यहाँ मनुष्य थकते हैं तो जाते हैं रेस्ट लेने।
- सतयुग में थकने करने की कोई प्रकार की तकलीफ नहीं होती, तुम स्वर्गवासी बन जाते हो।
- रिंचक भी तकलीफ नहीं होती।
- तो अब बच्चों को बाप की श्रीमत पर चलना है।
- बाप कहते हैं - मीठे लाडले बच्चों, शरीर निर्वाह अर्थ धन्धा आदि तो करना है।
- स्कूल में स्टूडेन्ट पढ़कर फिर घर में जाकर पढ़ते हैं।
- घर का कामकाज भी करते हैं।
- यह भी ऐसे है।
- इस पढ़ाई में तो तुमको कोई तकलीफ नहीं है।
- उस पढ़ाई में कितनी सब्जेक्ट होती हैं।
- यहाँ तो एक पढ़ाई और एक ही प्वाइंट है - मनमनाभव, इससे तुम्हारे पाप नाश होंगे।
- भगवानुवाच है ना, वह समझते हैं गीता; भगवान ने द्वापर में सुनाई।
- परन्तु द्वापर में सुनाकर क्या करेंगे?
- कृष्ण के चित्र में लिखत बहुत अच्छी है।
- यह लड़ाई तो एक निमित्त है।
- सब मरेंगे तब तो वापिस मुक्ति-जीवनमुक्ति में जायेंगे।
- सो भी सिर्फ लड़ाई में थोड़ेही मरेंगे!
- अनेक प्रकार की कैलेमिटीज़ होंगी।
- बच्चों को कोई दु:ख नहीं होना चाहिए।
- मनुष्य का हार्ट फेल होता है तो उसमें कोई दु:ख नहीं होता है।
- मौत हो तो ऐसा।
- बैठे-बैठे हार्टफेल हुआ खलास।
- जब तक डॉक्टर आये आत्मा निकल जाती है।
- अब तो सबका मौत होना है।
- पिछाड़ी में न हॉस्पिटल, न डॉक्टर रहेंगे।
- न क्रियाकर्म करने वाले रहेंगे।
- कुछ भी नहीं होगा।
- सबके प्राण तन से निकलेंगे।
- मूसलधार बरसात पड़ेगी।
- मौत में कोई देर थोड़ेही लगेगी।
- कोशिश कर रहे हैं - ऐसे बाम्बस बनायें जो मनुष्य फट से मर जायें।
- ऐसे-ऐसे बाम्बस बनाते रहते हैं।
- बाम्बस की इप्रूवमेंट करते रहते हैं।
- यह ड्रामा में नूँध है।
- ड्रामा में बना-बनाया खेल है, कल्प-कल्प विनाश होता है।
- सतयुग में तुमको यह ज्ञान रहेगा नहीं।
- बाप को ही आकर ज्ञान देना है।
- स्थापना हो गई फिर ज्ञान की बात ही नहीं रहती।
- फिर जब रावण राज्य शुरू होता है तो भक्ति शुरू होती है।
- अब भक्ति पूरी होती है, अब तुमको योगबल से पावन बनना है।
- पावन बनने से ही सुखधाम शान्तिधाम में जा सकते हैं।
- चार्ट रखना पड़े।
- यह तो समझ गये हो - हमको बाप को याद कर तमोप्रधान से सतोप्रधान यहाँ बनना है।
- ऐसे कोई शास्त्र आदि में लिखा हुआ नहीं है।
- बच्चों ने गीत सुना - आखिर वह दिन आया आज... जबकि भारतवासी फिर राजाओं के राजा बनते हैं।
- राजाओं के राजा अथवा महाराजा बनते हैं।
- पीछे त्रेता में होते हैं - राजा-रानी।
- फिर जो पूज्य महाराजा-महारानी थे, वह द्वापर में वाम मार्ग में आकर पुजारी बन जाते हैं।
- आपेही पूज्य आपेही पुजारी हो जाते हैं।
- बाप कहते हैं मैं पुजारी नहीं बनता हूँ।
- देवतायें पूज्य होते हैं, मैं नहीं बनता।
- न ही पुजारी बनता हूँ।
- भारतवासी देवी-देवताओं के ही मन्दिर बनाकर उनका पूजन करते हैं।
- लक्ष्मी-नारायण जो पहले पूज्य थे फिर भक्ति मार्ग में वही शिवबाबा के पुजारी बनते हैं।
- जिस शिवबाबा ने महाराजा-महारानी बनाया, उनके फिर मन्दिर बनाकर पूजा करते हैं।
- विकारी भी कोई फट से नहीं बनते हैं।
- आहिस्ते-आहिस्ते बनते हैं।
- निशानी भी देवताओं की वाम मार्ग में दिखाते हैं।
- जो पूज्य लक्ष्मी-नारायण थे वही फिर पुजारी बन जाते हैं।
- पहले-पहले शिव का मन्दिर बनाते हैं।
- उस समय तो हीरों को कट कराए लिंग बनाते हैं, पूजा के लिए।
- यह किसको भी पता नहीं है कि परमात्मा छोटी सी बिन्दी है।
- यह तुम अभी समझते हो कि बड़ा लिंग नहीं है।
- मन्दिर तो बहुत बनायेंगे।
- राजा को देख प्रजा भी ऐसे करेगी।
- पहले-पहले शिवबाबा की पूजा होती है।
- उनको कहा जाता है अव्यभिचारी सतोप्रधान पूजा फिर सतो रजो तमो में आते हैं।
- तुम रजो तमो में आये हो तो नाम ही हिन्दू रख दिया है।
- असुल थे देवी-देवतायें।
- बाप कहते तुम असुल देवी-देवता धर्म के हो।
- परन्तु तुम बहुत पतित बन गये हो, इसलिए अपने को देवता कहला नहीं सकते हो क्योंकि अपवित्र हो।
- हिन्दू नाम तो बहुत देरी से रखते हैं।
- अभी तुम समझते हो हम सो पूज्य थे, अभी संगमयुग पर न पूज्य हैं, न पुजारी हैं।
- तुम क्या करते हो?
- श्रीमत पर पूज्य बन रहे हो, औरों को भी बना रहे हो।
- तुम हो ब्राह्मण, तुम्हारी आत्मा पवित्र होती जाती है।
- पूरा पवित्र होंगे तो यह पुराना चोला छोड़ना पड़ेगा।
- बाप कहते हैं बिल्कुल सहज है।
- बूढ़ी माताओं को धारणा नहीं होती है।
- बाप कहते हैं - यह तो समझते हो कि हम आत्मा हैं।
- आत्मा में ही अच्छे वा बुरे संस्कार होते हैं।
- आत्मा ने जो कर्म किया वह दूसरे जन्म में भोगना होता है।
- बाप भी आत्माओं से बात करते हैं।
- बाप कहते हैं - हे बच्चे आत्म-अभिमानी बनो।
- निराकार शिवबाबा निराकारी आत्माओं को पढ़ाते हैं।
- निराकार बाबा में ज्ञान के संस्कार हैं।
- शरीर तो उनको है नहीं।
- तो वह ज्ञान का सागर, पतित-पावन है।
- उनमें सब गुण हैं।
- बाप कहते हैं मैं आकर तुम बच्चों को पावन बनाता हूँ।
- युक्ति कितनी सहज है।
- अक्षर ही एक है मनमनाभव, मामेकम् याद करो।
- याद से ही तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
- यह भी जानते हो - अभी हम ब्राह्मण हैं।
- फिर सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी, वैश्य, शूद्र वंशी बनेंगे।
- हम ही इस 84 के चक्र में आयेंगे।
- ऊपर से नीचे उतरेंगे फिर बाबा आयेंगे।
- बरोबर यह सृष्टि का चक्र फिरता रहता है।
- सृष्टि यह पुरानी होती है तो फिर बाबा आते हैं नई बनाने।
- यह तो बुद्धि में बैठता है ना।
- यह चक्र बुद्धि में फिरना चाहिए।
- अब तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो, जिससे फिर जाकर चक्रवर्ती राजा बनेंगे।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) श्रीमत पर पूज्य बनना है।
- आत्मा में जो बुरे संस्कार आ गये हैं उसे ज्ञान योग से समाप्त करना है।
- सम्पूर्ण निर्विकारी बनना है।
- 2) शरीर निर्वाह अर्थ कर्म करते भी पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है।
- योगबल से पावन बन राजाई पद लेना है।
- वरदान:-
- गम की दुनिया सामने होते हुए भी बेगमपुर की बादशाही का अनुभव करने वाले अष्ट शक्ति स्वरूप भव
- गम और बेगम की अभी ही नॉलेज है, गम की दुनिया सामने होते भी सदा बेगमपुर के बादशाही का अनुभव करना - यही अष्ट शक्ति स्वरूप, कर्मेन्द्रिय जीत बच्चों की निशानी है।
- अभी ही बाप द्वारा सर्वशक्तियों की प्राप्ति होती है लेकिन अगर कोई न कोई संगदोष वा कोई कर्मेन्द्रिय के वशीभूत हो अपनी शक्ति खो लेते हो तो जो बेगमपुर का नशा वा खुशी प्राप्त है वह स्वत: ही खो जाती है।
- बेगमपुर के बादशाह भी कंगाल बन जाते हैं।
- स्लोगन:-
- दृढ़ता की शक्ति सदा साथ हो तो सफलता गले का हार है।
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