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ओम् शान्ति।
- बाकी थोड़े बादल बचे हैं।
- जैसे बरसात जब कम हो जाती है तो सागर के ऊपर बादल नहीं होते हैं, ठण्डे हो जाते हैं।
- वैसे यहाँ भी ठण्डे हो जाते हैं।
- बादल उनको कहेंगे जो रिफ्रेश हो जाकर वर्षा बरसाते हैं।
- अगर कोई बरसात नहीं करते तो उनको बादल थोड़ेही कहेंगे।
- यह हैं ज्ञान बादल।
- वह हैं पानी के बादल।
- ज्ञान के बादल आते हैं, जब सीज़न होती है।
- रिफ्रेश हो जाकर औरों को रिफ्रेश करते हैं।
- बादल भी नम्बरवार होते हैं।
- कोई तो बहुत जोर से बरसते हैं।
- बादलों का काम ही है बरसना और मुरझाये हुए पौधों को रिफ्रेश करना।
- जिनमें पूरा ज्ञान है वह छिपकर नहीं बैठते।
- उनको बाबा का डायरेक्शन भी नहीं चाहिए।
- हैं ही बादल।
- आते ही हैं भरकर बरसने के लिए।
- जहाँ देखें कलराठी जमीन है, तो जाकर सब्ज करना चाहिए।
- महारथी बच्चे तो सब सेन्टर्स को अच्छी रीति जानते हैं।
- कौन सा सेन्टर ठण्डा है?
- किस सेन्टर्स के बच्चों को जास्ती तूफान आते हैं?
- महारथी सर्विसएबुल अच्छी रीति जानते हैं।
- बाबा भी हमेशा कहते हैं सर्विसएबुल बच्चों को यादप्यार देना।
- अच्छे-अच्छे बादल सर्विस पर जायेंगे।
- प्रदर्शनी में भी कोई सब एकरस नहीं समझाते हैं।
- मुख्य बात ही यह है।
- गीता का भगवान निराकार परमपिता परमात्मा है, न कि साकारी श्रीकृष्ण।
- समझाने का बड़ा अच्छा ढंग चाहिए।
- सारा दिन यही ख्यालात रहने चाहिए कि सबको जाकर जगायें।
- सब घोर अन्धियारे में पड़े हैं।
- सबको प्रेम से समझाते रहो कि दो बाप हैं।
- एक हद का और दूसरा बेहद का।
- बेहद के बाप को ही पतित-पावन कहते हैं।
- अब तुम बच्चों को बुद्धि मिली है।
- दुनिया के मनुष्य देखने में भल भभके वाले हैं परन्तु हैं पत्थरबुद्धि।
- बाप खुद कहते हैं इन साधू नाम वालों का भी मुझे ही उद्धार करना है।
- वह भी रचता और रचना को नहीं जानते हैं।
- सतयुग से लेकर फिर यह ज्ञान प्राय: लोप हो जाता है।
- परन्तु यह किसको भी पता नहीं।
- शास्त्रों में यह ज्ञान है नहीं।
- उससे किसकी सद्गति हो नहीं सकती, गीता का मान कितना है, परन्तु वह तो है भक्ति मार्ग।
- बाप तो पतित-पावन है, वह बैठ राजयोग सिखलाते हैं।
- तो जरूर राजाई के लिए नई दुनिया चाहिए।
- बाप ही आकर राजयोग सिखलायेंगे।
- यह भी अभी तुमको मालूम पड़ा है, जिन्हों को कल्प पहले समझाया होगा, उनको ही अभी समझायेंगे फिर समझेंगे।
- यह लड़ाई कोई वह नहीं है।
- जैसे हमेशा चलती आई है।
- 8-10 वर्ष चलकर फिर बन्द हो जायेगी।
- ड्रामा अनुसार बाम्ब्स जो बने हैं वह कोई रखने के लिए नहीं हैं।
- पतित मनुष्यों का मौत होने बिगर सतयुग आयेगा नहीं।
- शान्ति कैसे स्थापन हो - यह भी समझाना पड़े।
- शान्ति स्थापन करना वा श्रेष्ठाचारी दुनिया बनाना, यह तो एक बाप का ही काम है।
- बाप कहते हैं और संग बुद्धि का योग तोड़ एक संग जोड़ना है।
- देह सहित जो भी कुछ देखने में आता है, इन सबसे तोड़ना है।
- अब हमको वापिस जाना है, तो घर को ही याद करना है।
- अभी तुम समझते हो यह है मृत्युलोक।
- हम अमरलोक में जाने के लिए अमर कथा सुन रहे हैं।
- देवताओं को कहा जाता है दैवीगुणों वाले मनुष्य।
- यहाँ तो एक भी हो न सके।
- कृष्ण के लिए भी कितनी ग्लानी लिख दी है।
- कुछ भी बुद्धि में नहीं आता।
- अभी तुम बच्चों को अच्छी रीति पुरुषार्थ करना है, दैवीगुण धारण करने हैं।
- दैवीगुण किसको कहा जाता है - वह भी समझाया जाता है।
- सम्पूर्ण निर्विकारी जरूर बनना है।
- यह है मुख्य पहला गुण।
- जहाँ तहाँ तुम देखेंगे पवित्र के आगे अपवित्र माथा टेकते हैं।
- सतयुग में हैं ही पवित्र तो वहाँ मन्दिर होते नहीं।
- फिर जब पुजारी बनते हैं तो मन्दिर बनाते हैं, जो पावन थे वही पतित बनते हैं।
- यह है बहुत जन्मों के अन्त का जन्म।
- बाप कहते हैं - इस पुरानी दुनिया को, पुराने शरीर को भी भूलना है।
- इस पुरानी दुनिया को अब खत्म होना है।
- इसे खलास होने में देरी नहीं लगेगी।
- यह पुरानी दुनिया, धन, दौलत, माल-मिलकियत सब गई कि गई।
- थोड़े रोज़ बाकी हैं।
- दुनिया में थोड़ेही किसको पता है कि यह पुरानी दुनिया खत्म हो जायेगी।
- तुम सुनाते हो परन्तु जब विश्वास भी बैठे ना।
- भगवानुवाच, जब समझें तब बुद्धि में बैठे।
- बाप तुम बच्चों को कहते हैं - अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो।
- बच्चे जानते हैं बेहद का बाप हमको राजयोग सिखलाते हैं।
- वह है सब आत्माओं का बाप।
- सब ब्रदर्स हैं।
- स्वर्ग में सभी ब्रदर्स सुखी थे, कलियुग में सभी ब्रदर्स दु:खी हैं।
- सभी आत्मायें नर्कवासी हैं।
- सिर्फ आत्मा तो नहीं होगी ना।
- शरीर भी तो चाहिए ना।
- अब तुम बच्चों को आत्म-अभिमानी बनना है, इसमें ही मेहनत है।
- मासी का घर नहीं है।
- यह अवस्था पक्की तब हो जब पहले यह निश्चय हो कि परमपिता परमात्मा हमको पढ़ाते हैं।
- शिवबाबा आते ही हैं इस शरीर द्वारा पढ़ाने।
- हम भी शरीर द्वारा सुनते हैं, धारण करते हैं।
- संस्कारों अनुसार ही एक शरीर छोड़ दूसरा धारण करते हैं।
- जैसे बाबा लड़ाई वालों का मिसाल देते हैं।
- लड़ाई के संस्कार ले जाते हैं तो फिर उनमें ही आ जाते हैं।
- अब बाप के संस्कारों का भी तुमको मालूम है कि निराकार बेहद के बाप में क्या संस्कार हैं!
- वह मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है।
- पतित-पावन, ज्ञान का सागर है।
- वही आकर पावन बनायेंगे।
- बाप कहते हैं - मामेकम् याद करो तो तुम्हारे जन्म-जन्मान्तर के विकर्म विनाश होंगे।
- नहीं तो बहुत सजायें खानी पड़ेंगी।
- पद कुछ भी नहीं मिलेगा।
- अब बच्चे जानते हैं बाबा हमको सहज रास्ता बता देते हैं।
- कहते हैं मनमनाभव।
- यह अक्षर भी गीता में हैं, परन्तु इसका अर्थ नहीं समझते।
- बाप कहते हैं मामेकम् याद करो।
- देह सहित देह के सब धर्मों को छोड़ अपने को आत्मा समझ मुझ परमपिता परमात्मा को याद करो।
- याद को ही योग अग्नि कहा जाता है।
- योग कॉमन अक्षर है।
- गीता में भी है परन्तु सिर्फ कृष्ण का नाम डाल देने से घोर अन्धियारा कर दिया है।
- अब तुम समझाते हो तो कह देते हैं यह तुम्हारी कल्पना है।
- कुछ भी पता नहीं पड़ता है।
- उनको वर्सा तो लेना ही नहीं है।
- पहले तो जब यह समझें कि यह बेहद का बाप, बाप भी है, टीचर भी है, सतगुरू भी है, वह हमको पढ़ाते हैं।
- यह पक्का निश्चय चाहिए।
- नये आदमी को निश्चय बैठ जाए, असम्भव है।
- कोई-कोई नये-नये भी सेन्सीबुल होते हैं तो समझ जाते हैं।
- कोई तो यहाँ आने भी नहीं चाहते, कुछ भी समझते नहीं।
- जरा भी बुद्धि में नहीं आता।
- इतने ढेर बी.के. हैं जरूर इन्हों को बाप से वर्सा मिला होगा।
- वह फैमली हो गई।
- नाम ही लिखा हुआ है ब्रह्माकुमार-कुमारियाँ, तो फैमली हुई ना।
- प्रजापिता ब्रह्मा की फैमली कितनी बड़ी है परन्तु यह बात किसी की बुद्धि में नहीं आ सकती।
- कोई पूछे आपकी एम आब्जेक्ट क्या है?
- बोलो, बाहर बोर्ड पर लिखा हुआ है - प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियाँ, तो फैमली हो गई।
- डाडे से वर्सा मिलता है।
- प्रजापिता ब्रह्मा मुख द्वारा शिवबाबा रचना रचते हैं।
- तो वह क्रियेटर ठहरा, स्वर्ग रचते हैं तो जरूर बच्चों को स्वर्ग का वर्सा देंगे।
- तो यह फैमली हुई ना।
- बाप बच्चे, बच्चियाँ और दादा है।
- ब्रह्मा भी है, शिव भी है।
- वह है रचयिता।
- निराकार है तो बच्चों को वर्सा कैसे देंगे।
- ब्रह्मा द्वारा वर्सा देते हैं।
- यह अच्छी रीति समझाना चाहिए।
- बोलो, यह तुम्हारे बाप का घर है।
- इनको कहते हैं रूद्र ज्ञान यज्ञ।
- हम ब्राह्मण हैं, बाप के सिवाए और कोई राजयोग सिखला न सके।
- गीता में भी है ना - मनमनाभव अर्थात् मामेकम् याद करो।
- तो हम उस एक बाप को ही याद करते हैं।
- भक्ति मार्ग में गाते हैं कि बाबा आप आयेंगे तो हम वारी जायेंगे, हम आपके बनेंगे।
- हम आत्मा इस देह को छोड़ आपके साथ चली जायेंगी।
- आपके बनेंगे तो जरूर आपके साथ भी जायेंगे।
- सगाई करते हैं तो साजन साथ ले जायेंगे ना।
- यह शिव साजन भी कहते हैं, हम तुमको इस दु:ख से छुड़ाए सुखधाम में ले चलेंगे।
- फिर अपने-अपने पुरूषार्थ अनुसार जाकर राजाई करेंगे, जो जितना ज्ञान धन धारण करेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
- छोटी-छोटी कुमारियाँ भी सर्विस कर रही हैं।
- उन्हों को ही बड़े-बड़े विद्वान, पण्डितों आदि को समझाना है, शौक होना चाहिए।
- कुश्ती होती है तो बड़ी-बड़ी चैलेन्ज देते हैं तो इनके साथ हम लड़ेंगे।
- सर्विसएबुल बच्चों को आराम से सोना नहीं चाहिए।
- आराम हराम है।
- जो भी अपने को महारथी समझते हैं, उन्हें सुख से सोना नहीं है।
- सर्विस पर चक्र लगाना चाहिए।
- आजकल बाबा प्रदर्शनियाँ बहुत बनवाते रहते हैं।
- बड़ों-बड़ों को निमन्त्रण भेज दो।
- अभी नहीं तो पीछे आ जायेंगे।
- साधू-सन्त महात्मा कोई भी हो, जगाते रहो, परन्तु बात करने वाला चाहिए महारथी।
- जिनका बाप से योग नहीं, प्यार नहीं वह तो जैसे खाली बादल हैं।
- वह क्या करेंगे!
- यह तो जानते हो पढ़े हुए के आगे अनपढ़ भरी ढोयेंगे।
- हर एक खुद को समझ सकते हैं - हम कहाँ तक पढ़ा हुआ हूँ।
- सर्विस करके दिखाता हूँ।
- अगर बादल भरा हुआ है और बरसे नहीं तो वह बादल ही क्या काम का।
- हर एक को अपनी समझ चाहिए।
- फालतू देह-अभिमान के नशे में रहेंगे तो ऊंच पद हमेशा के लिए गँवा देंगे।
- बाबा को सर्विस का कितना शौक है।
- गवर्मेन्ट को समझाना चाहिए तो हमको हाल दो।
- जहाँ हम यह रूहानी सेवा कर मनुष्य को देवता बना दें।
- बाप आये ही हैं राजयोग सिखाने लेकिन युक्तियुक्त समझाना चाहिए।
- जो भाषण ही नहीं जानते वह थोड़ेही समझा सकेंगे।
- ऊंच पद पा न सकें।
- पद वह पा सकेंगे जो सर्विस करेंगे।
- बड़ों-बड़ों को लिखो तो इस नॉलेज के बिगर भारत का वा दुनिया का कल्याण नहीं हो सकता।
- एज्युकेशन है मुख्य।
- इन लक्ष्मी-नारायण ने भी एज्युकेशन से ही पद पाया ना।
- अगले जन्म में राजयोग सीखे हैं।
- हम भी अभी यहाँ पढ़ रहे हैं।
- स्कूल में स्टूडेन्ट समझते हैं हम यह इम्तहान देकर फिर जाकर यह बनेंगे।
- यह तुमको नॉलेज मिलती है, वह इस दुनिया के लिए नहीं है।
- तुम भी पढ़ते हो भविष्य 21 जन्मों के लिए, प्रालब्ध बनाने के लिए।
- वह पढ़ते हैं इस जन्म के सुख के लिए।
- तो वह भी पढ़ना है और साथ-साथ यह भी शिक्षा सीखनी है, इसमें डरने की बात नहीं।
- स्प्रीचुअल नॉलेज क्यों नहीं लेनी चाहिए।
- चित्र लेकर जाए समझाना चाहिए।
- बोलो - नॉलेज सबके लिए बहुत जरूरी है, परन्तु बच्चे अजुन खड़े नहीं होते।
- नौकरी टोकरी में फॅसे हुए रहते हैं।
- बंधन-मुक्त हैं तो फिर सर्विस में लग जाना चाहिए।
- श्रीमत पर सब चलने वाले तो हैं नही।
- बीच में माया घोटाला मार देती है।
- कोई-कोई बच्चों को शौक बहुत है, परन्तु नशा नहीं चढ़ता कि हम जायें बहुतों का कल्याण करें।
- तो बाबा भी समझे जबकि बालिग हो गये तो घुटका क्यों खाना चाहिए!
- कह सकते हैं कि हमको तो भारत का उद्धार करना है।
- सच्ची सेवा कर मनुष्य को देवता बनाना है।
- बाबा को तो वन्डर लगता है, नशा नहीं चढ़ता इसलिए बाबा कहते हैं रजो बुद्धि हैं।
- चांस बहुत अच्छा है।
- ऐसे भी बहुत हैं जिनको नॉलेज का घमण्ड बहुत है परन्तु डिससर्विस बहुत करते हैं।
- यह तो गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने।
- राहू का ग्रहण बैठ जाता है।
- ब्रहस्पति की दशा उतर राहू की बैठ जाती है।
- अभी-अभी देखो अच्छा चल रहा है।
- अभी-अभी देखो फिर ग्रहचारी बैठ जाती है, गिर पड़ते हैं।
- बच्चों को तो बहुत बहादुर होना है।
- पान का बीड़ा उठाना है।
- हम इस भारत को स्वर्गवासी बनाकर छोड़ेंगे।
- तुम्हारा धर्म है नर्कवासी को स्वर्गवासी बनाना, भ्रष्टाचारी को श्रेष्ठाचारी बनाना।
- बाबा नशा तो बहुत अच्छा चढ़ाते हैं परन्तु बच्चों में नम्बरवार चढ़ता है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) बन्धनमुक्त बन भारत की सच्ची सेवा करनी है।
- रूहानी सेवा कर मनुष्य को देवता बनाना है।
- ज्ञान के घमण्ड में नहीं आना है।
- रूहानी नशे में रहना है।
- 2) निश्चयबुद्धि बन पहले अपनी अवस्था पक्की करनी है।
- देह सहित जो कुछ देखने में आता है, उनसे तोड़ना है और एक बाप के साथ जोड़ना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- बाप के संस्कारों को अपना निजी संस्कार बनाने वाले व्यर्थ वा पुराने संस्कारों से मुक्त भव
- कोई भी व्यर्थ संकल्प वा पुराने संस्कार देह-अभिमान के संबंध से हैं, आत्मिक स्वरूप के संस्कार बाप समान होंगे।
- जैसे बाप सदा विश्व कल्याणकारी, परोपकारी, रहमदिल, वरदाता....है, ऐसे स्वयं के संस्कार नेचुरल बन जाएं।
- संस्कार बनना अर्थात् संकल्प, बोल और कर्म स्वत: उसी प्रमाण चलना।
- जीवन में संस्कार एक चाबी हैं जिससे स्वत: चलते रहते हैं।
- फिर मेहनत करने की जरूरत नहीं रहती।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- आत्मिक स्थिति में स्थित रह अपने रथ (शरीर) द्वारा कार्य कराने वाले ही सच्चे पुरूषार्थी हैं।
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