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ओम् शान्ति।
- यह कोई सिर्फ प्यार का सागर नहीं, ज्ञान का सागर है।
- ज्ञान और अज्ञान।
- ज्ञान को दिन, अज्ञान को रात कहा जाता है।
- ज्ञान अक्षर ही अच्छा है।
- अज्ञान अक्षर बुरा है।
- आधाकल्प है ज्ञान की प्रालब्ध।
- आधाकल्प है अज्ञान की प्रालब्ध, अज्ञान की प्रालब्ध है दु:ख।
- ज्ञान की प्रालब्ध सुख है।
- यह तो बहुत सहज समझने की बातें हैं, दिन है ज्ञान का।
- रात है अज्ञान, यह भी किसको पता नहीं है।
- ज्ञान किसको कहा जाता है, अज्ञान किसको कहा जाता है, यह बेहद की बातें हैं।
- तुम सबको समझाते हो ज्ञान क्या है, भक्ति क्या है।
- ज्ञान से तुम पूज्य बन रहे हो।
- जब पूज्य बन जाते हो तो पूजा की सामग्री को जान जाते हो, जो भी मन्दिर आदि हैं।
- तुम जानते हो यह सब यादगार हैं।
- उनकी जीवन कहानी क्या है - वह तुम जानते हो।
- जो पूजा करने जाते हैं वह खुद नहीं जानते।
- पूजा को भक्ति कहा जाता है, भगवान को भक्तों से मिलना है - भक्ति का फल देने के लिए।
- सो भगवान ही आकर पुजारी से पूज्य बनाते हैं।
- पूज्य सतयुग में पुजारी कलियुग में होते हैं।
- तुम बच्चे जानते हो आज क्या हैं, कल क्या होना है।
- विनाश तो जरूर होने का है, कोई भी समय हो सकता है।
- तैयारी हो रही है।
- गाया हुआ भी है अनेक कुदरती आपदायें होती हैं।
- यह तो लिख देना चाहिए - गृह युद्ध और कुदरती आपदायें, उनको कोई ईश्वरीय आपदायें नहीं कहेंगे।
- यह तो ड्रामा की नूँध है, जिसमें नेचुरल कैलेमिटीज़ सब आने वाली हैं।
- विनाश में भी मदद करेंगे।
- मूसला-धार बरसात पड़ेगी।
- भूखों मरेंगे, अर्थक्वेक आदि सब आने की हैं।
- इन द्वारा ही विनाश होने का है।
- बच्चे जानते हैं, यह तो जरूर होने का है।
- नहीं तो सतयुग में इतने थोड़े मनुष्य कैसे होंगे, जरूर इकट्ठा विनाश होगा।
- बच्चे अच्छी रीति जानते हैं, यह सब कपड़े धोये जायेंगे।
- यह बेहद की बड़ी मशीनरी है।
- गाया जाता है मूत पलीती कपड़ धोए... इन कपड़ों की बात नहीं।
- यह है शरीर की बात।
- आत्माओं को योगबल से धोना है।
- इस समय 5 तत्व तमोप्रधान हैं तो शरीर भी ऐसे बनते हैं।
- पतित-पावन बाप आकर पावन बनाते हैं और सब खलास हो जाते हैं।
- तुम जानते हो पावन कैसे बनते हैं।
- रास्ता बहुत सहज बताते हैं।
- मनुष्य तो कुछ भी नहीं समझते।
- जहाँ-जहाँ भक्ति यज्ञ आदि होते हैं, वहाँ जाकर समझाना चाहिए कि जिनकी तुम भक्ति करते हो उनकी बायोग्राफी समझने से ही तुम देवता बन सकते हो।
- उन्होंने जीवनमुक्ति कैसे पाई सो तो समझो, तो तुम भी जीवनमुक्ति पा सकते हो।
- मन्दिरों में बैठ जीवन कहानी समझाने से अच्छी रीति समझेंगे।
- तुम भी बाप से अभी जीवन कहानी सुनते हो, तुम बच्चों को कितनी समझ मिलती है।
- परमपिता परमात्मा की जीवन कहानी कोई भी नहीं जानते।
- सर्वव्यापी कहने से जीवन कहानी थोड़ेही हो जाती है।
- तुम बच्चे अभी परमपिता परमात्मा की जीवन कहानी को जानते हो, यानी आदि-मध्य-अन्त को जानते हो।
- इस समय को आदि कहेंगे।
- जबकि बाप आकर पतितों को पावन बनाते हैं फिर मध्य में भक्ति का पार्ट चलता है।
- बाप कहते हैं इस समय मैं आकर स्थापना करता, कराता हूँ।
- करनकरावनहार हूँ।
- प्रेरणा को करना नहीं कहेंगे।
- बाबा आकर इनकी कर्मेन्द्रियों द्वारा करते हैं, इसमें प्रेरणा की बात नही।
- करन-करावनहार तो जरूर सम्मुख हो करायेंगे।
- प्रेरणा से कुछ भी नहीं हो सकता।
- आत्मा, बिगर शरीर कुछ भी नहीं कर सकती है।
- बहुत कहते हैं ईश्वर ही प्रेरणा से सब कुछ करता है।
- बाबा आप प्रेरणा करो, हमारे पति की बुद्धि ठीक हो जाए।
- बाप कहते हैं - प्रेरणा की तो इसमें बात ही नहीं।
- फिर शिव जयन्ती क्यों मनाई जाती।
- प्रेरणा से काम हो तो फिर आये ही क्यों?
- एक तो ईश्वर क्या चीज़ है, यह नहीं जानते।
- सिर्फ कह देते ईश्वर की प्रेरणा से सब कुछ होता है।
- निराकार प्रेरणा से कैसे करेंगे, वह तो करनकरावनहार है।
- आकरके रास्ता बताते हैं।
- कर्मेन्द्रियों से मुरली चलाते हैं।
- जब तक कर्मेन्द्रियों का आधार न ले, तब तक मुरली कैसे चलाये।
- ज्ञान का सागर है तो सुनाने के लिए मुख चाहिए ना।
- अब तुम बच्चों को सारी दुनिया के आदि-मध्य-अन्त का पता पड़ा है।
- पूरी नॉलेज मिली है।
- समझते हैं ज्ञान बिगर गति नहीं।
- ज्ञान कौन दे।
- अज्ञान मार्ग और ज्ञान मार्ग में फ़र्क तो देखो ना।
- विज्ञान भी कहते हैं।
- अज्ञान हैं अन्धियारा, बाकी ज्ञान और विज्ञान को हम मुक्ति-जीवनमुक्ति भी कह सकते हैं।
- तुमको अब पावन बनने का ज्ञान मिलता है।
- तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो।
- कोई सुनेंगे तो वन्डर खायेंगे।
- कहेंगे आत्मा ज्ञान लेती है तो आत्मा जरूर संस्कार ले जायेगी ना।
- मनुष्य से देवता बनते हो तो ज्ञान रहना चाहिए।
- परन्तु बाप समझाते हैं यह पुरूषार्थ है प्रालब्ध के लिए।
- प्रालब्ध मिल गई फिर ज्ञान की क्या दरकार है।
- सतयुग है ही तुम बच्चों के लिए प्रालब्ध।
- यह बातें सुनने से ही वन्डर खायेंगे।
- यह ज्ञान परम्परा क्यों नहीं चलता, बाप कहते हैं यह प्राय:लोप हो जाता है।
- दिन हो गया फिर अज्ञान तो है नहीं, जो ज्ञान की दरकार रहे।
- यह भी समझने समझाने की बातें हैं।
- फट से कोई समझ नहीं सकते।
- शिवबाबा भारत में ही आते हैं, बच्चों के लिए सौगात ले आते हैं, भक्ति का फल देने लिए।
- भक्ति के बाद है सद्गति।
- यह विनाश भी होगा जरूर।
- आसार खड़े हैं।
- तुम सुनते रहेंगे - चिनगारी लगती है तो एक दो घण्टे में सारा मकान जलकर भस्म हो जाता है।
- यह कोई नई बात नहीं है, विनाश तो होना जरूर है।
- सतयुग में होते ही हैं थोड़े मनुष्य, श्रेष्ठाचारी।
- तो श्रेष्ठाचारी बनने में कितनी मेहनत लगती है।
- माया नाक से एकदम पकड़ लेती है।
- ऐसे गिरने वालों को चोट बहुत लगती है।
- टाइम लग जाता है।
- बड़े ते बड़ी चोट है काम विकार की इसलिए कहा जाता है - काम महाशत्रु है।
- यही पतित बनाते हैं।
- झगड़ा होता ही है विकार पर।
- विकार के लिए नहीं छोड़ेंगे तो जरूर कहेंगे - इससे तो बर्तन साफ करें वो अच्छा है।
- झाड़ू पोंछा लगायेंगी परन्तु पवित्र रहेंगी, इसमें हिम्मत बहुत चाहिए।
- जब कोई बाप की शरण में आते हैं तो फिर माया भी लड़ना शुरू करती है।
- 5 विकारों की बीमारी और ही अधिक उथल खाती है।
- पहले तो पक्का निश्चयबुद्धि होना चाहिए।
- जीते जी मरे हुए हैं।
- यहाँ से लंगर उठा लिया है।
- कलियुगी, विकारी किनारा तुमने छोड़ दिया है।
- अब हम यात्रा पर जा रहे हैं - हम अशरीरी हो अपने घर जाते हैं।
- आत्मा को यह ज्ञान है कि हम एक शरीर छोड़ दूसरे में जायेंगे।
- हम गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बन यात्रा पर रहते हैं।
- बुद्धि में याद रहे कि यह तो कब्रिस्तान है, फिर हम सुखधाम में जायेंगे।
- हमको बाबा वर्सा देने की युक्ति बता रहे हैं।
- पावन बनने के लिए हम योग में रहते हैं।
- याद से ही विकर्म विनाश होंगे तब आत्मा शरीर छोड़ेगी।
- यात्रा कितनी वन्डरफुल है।
- सिर्फ बाप को याद करो, अपनी राजधानी को याद करो।
- इतनी सहज बात भी याद नहीं पड़ती है।
- अल्फ को याद करो, बस।
- परन्तु माया वह भी याद करने नहीं देती, मेहनत लगती है।
- आत्मा को ज्ञान मिला है, हमारा बाबा आया हुआ है।
- आत्मा पढ़ती है ना।
- आत्मा शरीर द्वारा जन्म लेती है।
- आत्मा भाई-भाई है।
- देह-अभिमान में आने से फिर अनेक सम्बन्ध हो जाते हैं।
- यहाँ तुम भाई-बहिन हो गये।
- आपस में भाई-भाई भी हो, बहन भाई भी हो।
- प्रवृत्ति मार्ग है ना।
- दोनों को वर्सा चाहिए।
- आत्मा ही पुरुषार्थ करती है।
- अपने को आत्मा समझना - यही मेहनत है।
- देह-अभिमान न रहे।
- शरीर ही नहीं तो विकार किससे करेंगे।
- हम आत्मा हैं, बाप के पास जाना है।
- शरीर का भान ही न रहे।
- जितना योगी बनते जायेंगे, कर्मेन्द्रियाँ शान्त होती जायेंगी।
- देह-अभिमान में आने से कर्मेन्द्रियाँ चंचल होती हैं।
- आत्मा जानती है हमको प्राप्ति हो रही है।
- शरीर से अलग होते जायेंगे, तो कर्मेन्द्रियाँ शान्त होती जायेंगी।
- संन्यासी लोग दवाई खाकर कर्मेन्द्रियों को शान्त करते हैं।
- वह तो हठयोग हो गया ना।
- तुमको तो योग से काम लेना है।
- क्या योगबल से तुम वश नहीं कर सकते हो?
- जितना आत्म-अभिमानी होते जायेंगे तो कर्मेन्द्रियाँ शान्त हो जायेंगी।
- बड़ी मेहनत करनी पड़ती है, प्राप्ति तो बहुत ऊंच है ना।
- बाप कहते हैं - योगबल से तुम विश्व के मालिक बनते हो।
- कर्मेन्द्रियों पर जीत पहनते हो इसलिए भारत का योग नामीग्रामी है।
- तुम मनुष्य से देवता, पतित से पावन बनते हो।
- प्रजा भी स्वर्गवासी तो है ना।
- योगबल से तुम स्वर्गवासी बनते हो।
- बाहुबल से नहीं बन सकते हो।
- मेहनत कोई बहुत नहीं है।
- कुमारियों के लिए तो जैसे मेहनत ही नहीं है।
- फ्री हैं।
- विकार में गई तो बड़ी पंचायत हो जाती है।
- कुमारी रहना अच्छा है।
- नहीं तो फिर अधर कुमारी नाम पड़ जाता है।
- युगल भी क्यों बनें!
- इसमें भी नाम रूप का नशा चढ़ता है।
- यह भी मूर्खता है।
- युगल बनने के बाद पवित्र रहने के लिए बड़ी अच्छी हिम्मत चाहिए।
- ज्ञान की पूरी पराकाष्ठा चाहिए।
- बहुत हैं जो हिम्मत करते हैं परन्तु आग की आंच आ जाती है तो खेल खलास इसलिए बाबा कहते हैं कुमारी फिर भी अच्छी है।
- अधरकुमारी बनने का ख्याल भी क्यों करना चाहिए।
- कुमारियों का नाम बाला है।
- बाल ब्रह्मचारी हैं।
- बाल ब्रह्मचारी रहना अच्छा है, ताकत रहती है।
- दूसरे कोई की याद नहीं आयेगी।
- बाकी हिम्मत है तो करके दिखाओ, परन्तु मेहनत है।
- दो हो पड़ते हैं ना।
- कुमारी है तो अकेली है।
- दो से द्वेत आ जाता है।
- जहाँ तक हो सके कुमारी हो रहना अच्छा है।
- कुमारी सेवा पर निकल सकती है।
- बंधन में पड़ने से फिर बन्धन वृद्धि को पाते हैं।
- ऐसा जाल बिछाना ही क्यों चाहिए जो बुद्धि फँस पड़े।
- ऐसे जाल में फँसना ठीक नहीं है।
- कुमारियों के लिए तो बहुत अच्छा है।
- कुमारियों ने नाम भी निकाला है।
- कन्हैया नाम गाया जाता है ना।
- कुमारी हो रहना बड़ा अच्छा है।
- इन्हों के लिए बहुत सहज है।
- स्टूडेन्ट लाइफ पवित्र लाइफ भी है।
- बुद्धि भी फ्रेश रहती है।
- कुमारों को भीष्म पितामह जैसा बनना है।
- कल्प पहले भी रहे हैं तब तो देलवाड़ा मन्दिर में यादगार बना हुआ है।
- अब बाप बच्चों को फरमान करते हैं, मुझे याद करो।
- और सब बातों को छोड़ तुम अपना कल्याण करो।
- बाप को याद करने में ही कल्याण है।
- भूल-चूक होती है, बच्चे गिर पड़ते हैं, तुम परचिंतन को छोड़ अपना कल्याण करो।
- दूसरे चिंतन में जाओ ही नहीं।
- तुम सोने जैसा बन जाओ औरों को भी रास्ता बताओ।
- सतोप्रधान बनने का एक ही उपाय है।
- पावन बनने के बिगर मुक्तिधाम में जा नहीं सकते।
- उपाय एक ही है फिर अन्त मती सो गति हो जायेगी।
- झरमुई झगमुई छोड़ दो।
- नहीं तो अपना ही नुकसान करेंगे।
- बाप कोई श्राप नहीं देते हैं।
- श्रीमत पर नहीं चलते तो आपेही अपने को श्रापित करते हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) निश्चयबुद्धि बन जीते जी इस पुरानी दुनिया से अपना लंगर उठा लेना है।
- बाप के हर फरमान को पालन कर अपना कल्याण करना है।
- 2) दूसरों का चिंतन छोड़ अपनी बुद्धि को स्वच्छ सोने जैसा बनाना है।
- झरमुई-झगमुई में अपना समय नष्ट नहीं करना है।
- योगबल से अपनी कर्मेन्द्रियों को शान्त, शीतल बनाना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- मेहमानपन की वृत्ति द्वारा प्रवृत्ति को श्रेष्ठ, स्टेज को ऊंचा बनाने वाले सदा उपराम भव
- जो स्वयं को मेहमान समझकर चलते हैं वे अपने देह रूपी मकान से भी निर्मोही हो जाते हैं।
- मेहमान का अपना कुछ नहीं होता, कार्य में सब वस्तुएं लगायेंगे लेकिन अपनेपन का भाव नहीं होगा।
- वे सब साधनों को अपनाते हुए भी जितना न्यारे उतना बाप के प्यारे रहते हैं।
- देह, देह के संबंध और वैभवों से सहज उपराम हो जाते हैं।
- जितना मेहमानपन की वृत्ति रहती उतनी प्रवृत्ति श्रेष्ठ और स्टेज ऊंची रहती है।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- अपने स्वभाव को निर्मल बना दो तो हर कदम में सफलता समाई हुई है।
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