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- ओम् शान्ति।
- बाप ने बच्चों को समझाया है कि शान्ति के लिए कोई बाहर दर-दर धक्का नहीं खाना है।
- जैसे हठयोगी संन्यासी समझते हैं - गृहस्थ व्यवहार में रहते शान्ति मिल नहीं सकती।
- शान्ति जंगल में मिलती है।
- परन्तु बाप समझाते हैं शान्ति वहाँ भी नहीं मिल सकती।
- इस पर एक कहानी वा दृष्टान्त सुनाते हैं कि रानी के गले में हार पड़ा था और ढूढती थी बाहर.... ऐसे शान्ति तो तुम्हारे गले में पड़ी है।
- बाहर कहाँ ढूँढते हो।
- बाप आकर समझाते हैं बच्चे, तुम आत्मा का स्वधर्म है ही शान्त।
- यह शरीर तो तुम्हारी कर्मेन्द्रियां हैं, जिससे तुमको पार्ट बजाना पड़ता है।
- आत्मा तो अविनाशी है।
- आत्मा कोई छोटी-बड़ी नहीं होती है, न विनाश होती है।
- हाँ आत्मा पतित बनती है, इनको ही पावन बनना होता है।
- आत्मा को पहले किशोर शरीर मिलता है फिर युवा, वृद्ध होता है।
- आत्मा तो है ही एकरस।
- पहले-पहले तो आत्मा को जानना होता है।
- मैं आत्मा ही बैरिस्टर आदि बनता हूँ।
- इसको कहा जाता है - आत्म-अभिमानी भव।
- बाप समझाते हैं बच्चे तुम देह-अभिमानी बन पड़े हो इसलिए अपने को शरीर समझ लेते हो, यह भूल जाते हो कि मैं आत्मा हूँ, यह मेरा शरीर है।
- तो अपने को रियलाइज करना है।
- 84 जन्म भी आत्मा लेती है।
- अभी बाप ने समझाया है जो ब्राह्मण बने हैं वही फिर देवता बनने वाले हैं।
- ऐसे भी नहीं कि सब 84 जन्म लेते हैं।
- कोई पहले आयेगा, कोई 50-100 वर्ष बाद भी आते रहेंगे।
- कोई के 80-82, कोई के कितने जन्म होंगे।
- मनुष्य तो 84 लाख जन्म कह देते हैं, इनसे भी सैटिस्फाई नहीं होते हैं फिर कह देते कण-कण में भगवान है।
- अब भगवान कहते हैं कि मैं किसी मनुष्य तन में भी नहीं हूँ तो जानवर, पत्थर ठिक्कर कण-कण में कैसे होगा।
- बाप ने समझाया है नम्बरवन ही लास्ट नम्बर में तमोप्रधान बनते हैं।
- मैं खुद कहता हूँ कि मैं बहुत जन्मों के अन्त में साधारण तन में प्रवेश करता हूँ।
- जिसने पूरे 84 जन्म लिए हैं वह तो जरूर पतित होगा।
- पावन तो हो नहीं सकता।
- बाप खुद कहते हैं पहले नम्बर में है श्रीकृष्ण, फर्स्ट प्रिन्स।
- श्री नारायण तो बाद में बनता है, जब बड़ा होता है।
- वह भी 20-25 वर्ष कम हो जाते हैं।
- उनके भी पूरे 84 जन्म नहीं कहेंगे।
- नम्बरवन है श्रीकृष्ण।
- भल वही फिर स्वयंवर बाद नारायण बनते हैं।
- परन्तु हिसाब तो बच्चों को करना है ना।
- पूरे 84 जन्म, 5 हजार वर्ष श्रीकृष्ण के ही कहेंगे।
- तो बाप बैठ समझाते हैं मैं कल्प-कल्प उसी ही तन में आता हूँ, जिसका आदि से लेकर अन्त तक पार्ट है।
- दूसरे कोई में आ नहीं सकता हूँ।
- हिसाब है ना।
- ब्रह्मा ही पहला नम्बर ठहरा।
- मैं और कोई में आ कैसे सकता।
- तुमसे बहुत लोग पूछते हैं सिर्फ एक ही ब्रह्मा में क्यों आते हैं!
- परन्तु यह हिसाब है ना।
- यह समझने की बातें हैं।
- गाया भी हुआ है ब्रह्मा द्वारा स्थापना करते हैं।
- विष्णु वा शंकर द्वारा स्थापना नहीं करते।
- यह और कोई का काम नहीं है।
- मनुष्य रचता और रचना को नहीं जानते हैं।
- यह भी ड्रामा में नूँध है।
- बनी बनाई बन रही.. चिंता ताकी कीजिये.. यह अभी की बात है, जो होनी है वही होती है।
- वह बदल नहीं सकती।
- आज जो कुछ होता है फिर 5 हजार वर्ष बाद होगा।
- बाबा ने समझाया भी था - कोई भी बात ऐसी देखो तो बोलो यह कोई नई बात नहीं।
- 5 हजार वर्ष पहले भी हुआ था।
- एकदम ऐसा लिख दो।
- फिर भल वह आकर पूछे, लिखने में कोई हर्जा नहीं है।
- यह लड़ाई पहले लगी थी, नथिंग न्यु।
- महाभारत की लड़ाई 5 हजार वर्ष पहले भी हुई थी।
- क्रिश्चियन ने भारत में आकर राज्य छीना, नथिंग न्यु।
- फिर कल्प बाद भी ऐसे ही होगा।
- यह वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट होती रहती है।
- अब फिर से आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना हो रही है।
- जिनके 84 जन्म पूरे हुए हैं वही पहले नम्बर में लक्ष्मी-नारायण बनेंगे।
- यह सब राज़ बाप ही बैठ समझाते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं मनुष्य सृष्टि का बीजरूप हूँ, इनको उल्टा झाड़ कहा जाता है।
- इस कल्प वृक्ष की आयु 5 हजार वर्ष है।
- स्वास्तिका में 4 भाग एक जैसे देखेंगे।
- युग भी इक्वल हैं, उसमें फ़र्क नहीं पड़ता।
- बाप समझाते हैं कि देखो दुनिया में तो क्या-क्या हो रहा है।
- कोई मून में जाते, कोई आग पर, कोई पानी पर चलना सीखते हैं।
- यह सब है फालतू, इससे कोई भी फायदा नहीं।
- मनुष्य पावन बन मुक्ति-जीवनमुक्ति में तो जा नहीं सकते।
- कुछ भी करें परन्तु वापिस घर जा नहीं सकते।
- आत्मा को अपना घर और बाप का घर भूल गया है।
- आत्मा अपने को ही भूल देह-अभिमानी बन पड़ी है।
- फिर मन्दिरों में जाकर महिमा गाते हैं।
- आप सर्वगुण सम्पन्न, हम नींच पापी हैं। अपनी ग्लानी करते हैं।
- बाप तो कभी पुजारी नहीं बनते।
- अच्छा फिर सेकेण्ड नम्बर में कहेंगे शंकर भी एवर पूज्य है।
- वह भी पुजारी नहीं बनते, उनका पार्ट ही यहाँ नहीं है।
- इस स्टेज पर पार्ट है ब्रह्मा और विष्णु का।
- ब्रह्मा और विष्णु का क्या-क्या पार्ट है, यह दुनिया में किसको भी पता नहीं है।
- त्रिमूर्ति ब्रह्मा कह देते हैं, अर्थ कुछ भी नहीं समझते।
- यह भी गाते हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना, कौन करते हैं, उनका चित्र ही नहीं।
- मुख से कहते हैं परन्तु वह कहाँ है।
- शिव क्या चीज़ है, वह भी नहीं जानते।
- आत्मा के लिए कहते हैं भ्रकुटी के बीच चमकता है अजब सितारा..... मैं आत्मा अविनाशी हूँ, शरीर विनाशी है।
- कितने शरीर लेते हैं, कुछ भी पता नहीं।
- मनुष्य कितने दु:खी हैं, रड़ियां मारते रहते हैं - ओ गॉड फादर।
- जबसे दु:ख शुरू हुआ है, पुकारते आये हैं।
- यह भी समझाया गया है भारत में जब रावण राज्य शुरू होता है तो ऐसे नहीं और धर्मो में भी रावणराज्य हो गया।
- नहीं, उनको तो अपने समय पर सतो रजो तमो में आना ही है।
- यह कहानी सारी भारत पर है।
- वह तो बाईप्लाट हैं।
- बाप बीच में ही आते हैं।
- भारत जब तमोप्रधान बन जाता है तो फिर सारा झाड़ तमोप्रधान बन जाता है।
- उनको भी सुख दु:ख भोगना है।
- झाड़ में नये-नये पत्ते निकलते हैं।
- वह बड़े शोभनिक होते हैं।
- नयों को फिर सतो रजो तमो में जरूर आना है।
- पिछाड़ी में जो आते हैं उनका कुछ मान रहता है।
- एक जन्म में भी सतो रजो तमो से पास कर सकते हैं, परन्तु उनकी कोई वैल्यु नहीं रहती।
- वैल्यु तो उनकी है जो हीरो-हीरोइन का पार्ट बजाते हैं।
- ऐसे नहीं कहेंगे बाबा ही हीरो-हीरोइन का पार्ट बजाते हैं।
- बाबा के लिए नहीं कह सकते हैं।
- वह तो आकर पतितों को पावन बनाते हैं।
- खुद पतित नहीं बनते हैं।
- तुम पतित से पावन बनने की मेहनत करते हो।
- श्रीमत पर राजयोग से ही राज्य लिया था।
- अभी तुम फिर ले रहे हो।
- बाबा कहते हैं- मैं तो राज्य नहीं करता हूँ, तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
- अब दुनिया में मनुष्य कहते तो बहुत हैं।
- भगवानुवाच - मैं तुमको राजाओं का राजा बनाता हूँ।
- परन्तु उनका अर्थ न खुद समझते हैं, न किसको समझा सकते हैं।
- भगवानुवाच, तो जरूर भगवान आया था तब तो कहा होगा ना हे बच्चों, भारत में ही शिव जयन्ती, शिव रात्रि मनाते हैं।
- बाप आते भी हैं भारत खण्ड में।
- भारत ही अविनाशी खण्ड है।
- उनकी महिमा बहुत भारी है।
- जैसे बाप की महिमा अपरमअपार है।
- वैसे भारत की महिमा भी अपरमअपार है।
- भारत में ही परमपिता परमात्मा आकर सब मनुष्य मात्र की सद्गति करते हैं।
- सबको सुख देते हैं।
- उनका बर्थ प्लेस भारत है।
- भारत ही प्राचीन देश है।
- भगवान राजयोग सिखलाने भारत में ही आया था।
- परन्तु कृष्ण को भगवान कह देने से उनकी महिमा नहीं रही है।
- भगवान तो है ही एक, उनको ही सतगुरू कहा जाता है।
- बाकी गुरू तो ढेर हैं।
- कोई धन्धा सिखलाने वाले को भी गुरू कह देते हैं।
- आजकल तो सबको अवतार मान लेते हैं।
- कुछ भी समझते नहीं।
- जब बिल्कुल पतित बन जाते हैं तब पुकारते हैं - बाबा आकर हमको पावन बनाओ।
- बाप ही आकर सच्ची-सच्ची अमरकथा सुनाते हैं।
- अब तुम्हारी बुद्धि में है कि हम 84 जन्मों में कैसे आते हैं।
- पहले अच्छा जन्म फिर उतरते आयेंगे।
- दुनिया की भी उतरती कला होती है।
- मनुष्यों की बुद्धि सतो, रजो, तमो बनती है।
- सतयुग से फिर थोड़ी-थोड़ी उतरती कला शुरू हो जाती है।
- चढ़ती कला तेरे भाने सर्व का भला।
- सर्व का सद्गति दाता तो एक बाप है ना।
- वो गुरू लोग तो सिर्फ शास्त्र सुनाते हैं।
- सुनते-सुनते गिरते ही आये हैं।
- बेहद का बाप आकर बच्चों से पूछते हैं, मैं तुमको इतना साहूकार बनाकर गया, इतने हीरे-जवाहरों के महल देकर गया, वह सब कहाँ गये?
- लौकिक बाप बच्चों को पैसे देते हैं लेकिन बच्चे पैसा बरबाद कर देते हैं तो बाप बुलाकर पूछते हैं तुमने इतना पैसा कहाँ बरबाद किया?
- बच्चों के पास पैसे होने से उड़ाते बहुत हैं।
- बाप धर्मात्मा है, बच्चे विलायत में जाकर लाखों रूपये उड़ा आते हैं।
- बाप कुछ कर नहीं सकता।
- बाप फारकती भी नहीं दे सकते क्योंकि दादे की मिलकियत है।
- परन्तु अन्दर जलते रहते हैं।
- बाप के मर जाने के बाद, कोई-कोई तो ऐसे गन्दे बच्चे होते हैं, 12 मास में सारी मिलकियत उड़ा देते हैं।
- वह हैं हद की बातें।
- यह है फिर बेहद की बात।
- बेहद का बाप कहते हैं तुम कितने धनवान थे, विश्व के मालिक थे।
- फिर कंगाल क्यों बने हो?
- इतना धन कहाँ किया?
- बच्चों से ही बाप पूछते हैं - भारत को इतना साहूकार बनाया, सब पैसे कहाँ गये?
- फिर बाप ही बैठ समझाते हैं।
- भक्ति मार्ग में कितना खर्चा करते हैं।
- शास्त्रों आदि के पिछाड़ी कितना खर्चा करते हैं।
- माथा भी टेकते गये, टिप्पड़ भी घिस गई।
- पैसे आदि सब कुछ गँवा बैठे, यह है ड्रामा।
- हम तुमको साहूकार बनाते हैं।
- रावण तुमको कंगाल बनाते हैं।
- भारतवासियों को ही बाप समझायेंगे ना।
- भारत ही सोने की चिड़िया थी, इतना धन था जो दूसरे धर्म वाले लूटकर ले गये।
- ख्याल तो करो - भारत क्या था!
- यह भी ड्रामा बना हुआ है।
- भारत ही हेविन, भारत ही हेल।
- अभी है नर्क, इसलिए बाबा ने सीढ़ी भी ऐसी बनवाई है जो कोई भी समझे हम पतित हैं।
- छोटे-छोटे बच्चों को भी चित्र पर समझाया जाता है ना।
- नक्शे बिगर बच्चे क्या समझें।
- बाप ही आकर पतित से पावन बनने की सहज युक्ति बताते हैं।
- सहज ते सहज भी है, डिफीकल्ट से डिफीकल्ट भी है।
- सतयुग में देही-अभिमानी रहते हैं।
- आत्मा समझती है अब शरीर बड़ा हुआ है, यह पुराना चोला छोड़ दूसरा लेना है।
- जैसे साक्षात्कार हो जाता है - अब जाकर बच्चा बनना है, पुरानी खल छोड़ देते हैं।
- यहाँ कोई मरता है तो रोते भी हैं।
- बैण्ड बाजा भी ले जाते।
- सतयुग में तो खुशी से एक शरीर छोड़ दूसरा लेते हैं, तो शादमाना मनाते हैं।
- यहाँ कितना अफसोस करते हैं।
- कोई मरता है तो कहते हैं स्वर्ग पधारा।
- तो इसका मतलब नर्क में था ना!
- अभी तुम पुरुषार्थ कर रहे हो - स्वर्गवासी बनने के लिए।
- बाप तुमको स्वर्ग-वासी बनाते हैं।
- बाप आते ही हैं जीवनमुक्ति देने।
- रावण के बन्धन से छुड़ाए जीवनमुक्त करते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं कल्प पहले मुआफिक आकर राजयोग सिखलाता हूँ।
- कल्प-कल्प ब्रह्मा के ही तन में आता हूँ।
- तुमको ब्राह्मण जरूर बनना है।
- यज्ञ में ब्राह्मण तो जरूर चाहिए ना।
- यह है राजस्व अश्वमेध अविनाशी ज्ञान यज्ञ।
- इस रथ को स्वाहा करना है।
- अश्व इस रथ को कहा जाता है।
- राजस्व, स्वराज्य के लिए यह सब अश्व (शरीर) इसमें स्वाहा होने हैं।
- आत्मा तो स्वाहा नहीं होगी।
- आत्मायें हिसाब-किताब चुक्तू कर चली जायेंगी।
- फिर नयेसिर सबका पार्ट शुरू होगा।
- इनको कहा जाता है हिस्ट्री-जॉग्राफी रिपीट।
- बाप आते ही है नई दुनिया स्थापन कर पुरानी दुनिया खलास करने।
- यह एक ही महाभारत लड़ाई है, जो शास्त्रों में गाई हुई है।
- तो समझाना चाहिए - इस लड़ाई से यह स्वर्ग के द्वार खुलते हैं, इसलिए इनका गायन शास्त्रों में है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलध बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) बीती बातों का कभी भी चिन्तन नहीं करना है।
- जो बात बीत गई, नथिंग न्यु समझ भूल जाना है।
- 2) इस राजस्व अश्वमेध यज्ञ में अपना तन-मन-धन सब स्वाहा कर सफल करना है।
- इस अन्तिम जन्म में सम्पूर्ण पावन बनने की मेहनत करनी है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- मास्टर त्रिकालदर्शी बन हर कर्म युक्तियुक्त करने वाले कर्मबन्धन मुक्त भव
- जो भी संकल्प, बोल वा कर्म करते हो - वह मास्टर त्रिकालदर्शी बनकर करो तो कोई भी कर्म व्यर्थ वा अनर्थ नहीं हो सकता।
- त्रिकालदर्शी अर्थात् साक्षीपन की स्थिति में स्थित होकर, कर्मों की गुह्य गति को जानकर इन कर्मेन्द्रियों द्वारा कर्म कराओ तो कभी भी कर्म के बन्धन में नहीं बंधेंगे।
- हर कर्म करते कर्मबन्धन मुक्त, कर्मातीत स्थिति का अनुभव करते रहेंगे।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- जिनके पास हद के इच्छाओं की अविद्या है वही महान सम्पत्तिवान हैं।
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