27-10-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - अब सीखने के साथ-साथ टीचर बन सिखाना भी है, यह पढ़ाई इस अन्तिम जन्म के लिए ही है, इसलिए अच्छी रीति पढ़ो और पढ़ाओ''
प्रश्नः-
सतयुगी राजधानी किस आधार पर स्थापन होती है?
उत्तर:-
संगम की पढ़ाई के आधार पर।
जो अच्छी रीति पढ़ते हैं अथवा जिन पर ब्रह्स्पति की दशा है वह सूर्यवंशी में आते हैं।
जो पढ़ते नहीं, सर्विस नहीं करते उन पर बुध की दशा बैठती, वह जैसे बुद्धू हैं।
वह प्रजा में आ जाते हैं।
ऊंच प्रजा, नौकर चाकर आदि सब इस समय की पढ़ाई के आधार पर ही बनते हैं।
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ओम् शान्ति।
- रूहानी बच्चों प्रति अथवा आत्माओं प्रति रूहानी बाप अर्थात् परमात्मा बैठ समझा रहे हैं।
- रूहानी बाप को परमात्मा कहा जाता है।
- सभी आत्माओं का बाप एक परमपिता परमात्मा है।
- वह बैठ ब्रह्मा तन द्वारा समझाते हैं।
- भक्तिमार्ग में मनुष्य कहते हैं त्रिमूर्ति ब्रह्मा।
- अभी तुम ब्राह्मण ऐसे नहीं कहेंगे।
- तुम तो कहते हो त्रिमूर्ति शिव अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, शंकर का रचयिता शिव।
- त्रिमूर्ति ब्रह्मा का कोई अर्थ नहीं निकलता है।
- इन तीनों देवताओं का रचयिता है ही शिव, इसलिए त्रिमूर्ति शिव कहा जाता है।
- एक रचयिता, बाकी सब हैं रचना।
- बेहद का बाप एक ही है।
- लौकिक बाप तो हर एक का अपना-अपना है।
- इस समय तो सब शिवबाबा के बच्चे बने हैं।
- बच्चों को मालूम है, हम आत्मायें 84 का चक्र लगाती हैं।
- तो 84 बाप बनते हैं हद के।
- सतयुग में भी माँ बाप कोई बेहद का वर्सा नहीं देते हैं।
- सतयुग के लिए बेहद का वर्सा तो अभी तुमको मिलता है।
- वहाँ लक्ष्मी-नारायण की राजधानी है और जो भी राजाई वाले रजवाड़े होंगे उनके बच्चों को अपने बाप का वर्सा मिलेगा।
- फिर भी वहाँ सुख बहुत है।
- इस समय तुमको बेहद का बाप बेहद विश्व का मालिक बनाते हैं।
- सदा सुख का 21 जन्मों के लिए वर्सा मिलता है।
- वहाँ दु:ख का नाम निशान नहीं होता।
- वाम मार्ग शुरू होने से ही दु:ख शुरू हो जाता है।
- जो भी आये उन्हें यह समझाना है कि तुम्हें दो बाप हैं।
- 84 जन्मों में तो 84 बाप हद के मिलते हैं। बेहद का बाप तो एक ही है।
- अभी तुम बच्चों की बुद्धि में यह भी समझ है कि मूलवतन क्या है!
- मूलवतन जो चित्र में दिखाते हो वह भी बड़ा-बड़ा बनाना चाहिए, उसमें छोटी-छोटी आत्मायें सितारे मिसल चमकती हों।
- जैसे आगे तुम फायर फ्लाई का हार बनाते थे, वैसे यह मूलवतन का भी बनाना चाहिए।
- प्रोजेक्टर शो दिखाते हैं तो उसमें भी मूलवतन का चित्र ऐसा दिखाना चाहिए।
- झाड़ बड़ा हो तो क्लीयर दिखाई पड़े कि हम आत्मायें वहाँ रहती हैं।
- बच्चों को समझने में भी सहज होगा।
- यह है बेहद का बाबा, जो ब्रह्मा द्वारा दैवी सम्प्रदाय की स्थापना कर रहे हैं।
- तुम अभी ब्राह्मण हो फिर दैवी गुणों वाले देवता बनेंगे।
- अभी सभी में आसुरी गुण हैं, उनको आसुरी अवगुण कहेंगे।
- वाम मार्ग से दु:ख शुरू होता है।
- ऐसे नहीं कि रजोप्रधान बनने से फट दु:खी होते हैं।
- नहीं, थोड़ी-थोड़ी कला कमती होती जाती है।
- मुख्य चित्र है ही त्रिमूर्ति, गोला और नर्क-स्वर्ग के गोले।
- यह पहले-पहले समझाने के लिए बहुत जरूरी है।
- झाड़ के चित्र में भी आधा-आधा कल्प का माप पूरा है।
- एक्यूरेट होने से पूरा समझाने में आयेगा।
- यह ज्ञान सिवाए बाप के और कोई समझा न सके।
- घड़ी-घड़ी समझाने के लिए त्रिमूर्ति का चित्र जरूर चाहिए।
- यह है निराकार बेहद का बाप, जिसको सब याद करते हैं।
- आत्मा जानती है वह हमारा बेहद का बाप है, उनको दु:ख में सब याद करते हैं।
- सतयुग में याद करने की दरकार ही नहीं।
- वह तो है ही सुखधाम।
- देवतायें ही पुनर्जन्म लेते आये हैं।
- यह भी किसको पता नहीं।
- तुम जानते हो - सतोप्रधान से फिर हम कैसे सतो रजो तमो में आते हैं।
- आत्मा में खाद पड़ती जाती है।
- तुम्हारी आत्मा जानती है कि हमको 84 जन्मों का पार्ट बजाना है।
- वह एक्यूरेट हमारी आत्मा में नूँध है।
- कितनी छोटी सी आत्मा में पार्ट सारा नूँधा हुआ है।
- यह है गुह्य ते गुह्य समझने की बातें।
- कोई भी मनुष्य मात्र संन्यासी, उदासी आदि की बुद्धि में यह बातें आ नहीं सकती।
- भल नाटक कहते हैं, नाटक को ड्रामा नहीं कहा जाता।
- यह ड्रामा है।
- ड्रामा, बाइसकोप आदि आगे नहीं थे।
- पहले मूवी थे, अभी टाकी बने हैं।
- हम आत्मायें भी साइलेन्स से टॉकी में आती हैं।
- टॉकी से फिर मूवी में जाए बाद में साइलेन्स में जाते हैं इसलिए तुम बच्चों को सिखाया जाता है कि जास्ती टॉक न करो।
- रॉयल मनुष्य बहुत आहिस्ते बोलते हैं।
- तुमको जाना है - सूक्ष्मवतन में।
- सूक्ष्मवतन का ज्ञान अभी बाप ने समझाया है।
- यह है टॉकी दुनिया, वह है मूवी।
- वहाँ ईश्वर से बातचीत चलती है।
- वहाँ सफेद लाइट का रूप है, आवाज नहीं।
- वहाँ की मूवी भाषा एक दो में समझ जाते हैं।
- तो अभी तुमको जाना है साइलेन्स में वाया मूवी।
- बाप कहते हैं मुझे पहले-पहले सूक्ष्म सृष्टि रचनी पड़े फिर पीछे स्थूल।
- गाया भी जाता है मूलवतन, सूक्ष्म, स्थूल...मनुष्यों को यह भी पता नहीं कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर सूक्ष्मवतनवासी हैं।
- वहाँ कोई दुनिया नहीं है।
- सिर्फ ब्रह्मा, विष्णु, शंकर देखने में आते हैं।
- विष्णु 4 भुजा वाला देखते हो, इससे सिद्ध है, प्रवृत्ति मार्ग है।
- संन्यासियों का है निवृति मार्ग।
- यह भी ड्रामा है, जिसका वर्णन करके बाप समझाते हैं।
- मुख्य बात तो बाप कहते हैं मनमनाभव।
- बाकी है डिटेल।
- वह समझने में टाइम लगता है।
- नटशेल में है बीज और झाड़।
- बीज को देखने से सारा झाड़ बुद्धि में आ जाता है।
- बाप बीजरूप है, उनको इस झाड़ का और सृष्टि के चक्र का सारा नॉलेज है, समझाने के लिए सृष्टि चक्र अलग है।
- झाड़ अलग है।
- झाड़ में यह सब चित्र दिये हैं।
- कोई भी धर्म वाले को दिखाया जाए तो समझ सकते हैं।
- हम स्वर्ग में तो आ नहीं सकेंगे।
- भारत जब प्राचीन है तो सिर्फ देवी-देवतायें ही थे।
- बाकी सब शान्तिधाम में रहते हैं।
- तुम बीज और झाड़ दोनों को जानते हो।
- बीज ऊपर में है, जिसको वृक्षपति कहते हैं।
- अब तुम बाप के बने हो तो तुम्हारे ऊपर ब्रह्स्पति की दशा बैठी हुई है।
- जो बाप के बनते हैं उनके ऊपर ब्रह्स्पति की दशा कहेंगे।
- फिर है चक्र की दशा, बुध की दशा।
- ब्रह्स्पति की दशा वाले सूर्यवंशी बनते हैं।
- बुध की दशा वाले प्रजा में चले जाते हैं, सर्विस नहीं कर सकते।
- बाप को याद नहीं कर सकते हैं तो बुद्धू ठहरे, इसमें भी नम्बरवार बुद्धू बनते हैं।
- कोई ऊंच प्रजा कोई कम प्रजा।
- कहाँ साहूकार प्रजा फिर कहाँ उनके भी नौकर चाकर।
- सारा पढ़ाई पर मदार है।
- पढ़ाई भी सतोगुणी, रजोगुणी, तमोगुणी होती है।
- राजधानी स्थापन हो रही है।
- जो होशियार हैं वह बाप की याद में भी रहते हैं।
- सारा झाड़ बुद्धि में रहता है।
- पढ़ाई से ही टीचर, बैरिस्टर बनते हैं।
- टीचर फिर दूसरे को भी पढ़ाते हैं।
- पढ़ते तो सब हैं।
- एक ही पढ़ाई है फिर कोई तो पढ़कर ऊंच चढ़ जाते हैं, कोई फिर वहाँ ही टीचर बन जाते हैं।
- जो सीखे हैं वह पढ़ाते हैं।
- अभी तुम भी पढ़ते हो।
- कोई तो पढ़ते-पढ़ते टीचर बन जाते हैं।
- खुद कहते हैं टीचर का काम है आप-समान टीचर बनाना।
- टीचर नहीं बनेंगे तो औरों का कल्याण कैसे करेंगे।
- टाइम थोड़ा है, जब तक विनाश हो तब तक सीखते रहेंगे।
- फिर तो सीखना बन्द हो जायेगा।
- फिर बाबा 5 हजार वर्ष बाद आकर सिखलायेंगे।
- यह पढ़ाई कोई सैकड़ों वर्ष नहीं चलने वाली है।
- यह तो है ही इस अन्तिम जन्म के लिए पढ़ाई।
- पढ़ना और पढ़ाना है।
- सब तो टीचर नहीं बन सकते हैं।
- अगर सब टीचर बन जाएं फिर तो बहुत ऊंच पद पा लें।
- नम्बरवार तो होते ही हैं।
- पहले-पहले कोई को भी दो बाप का परिचय दो।
- चित्र होने से अच्छा समझेंगे।
- त्रिमूर्ति का चित्र तो जरूर साथ होना चाहिए।
- यह शिवबाबा, यह प्रजापिता ब्रह्मा।
- सभी का ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर।
- तो जरूर पहले आया होगा ना।
- सबसे आगे है ब्रह्मा।
- अभी रचना रच रहे हैं।
- अभी तुम ब्राह्मण बने हो फिर ब्राह्मण ही देवता बनेंगे।
- ब्राह्मणों का झाड़ छोटा है।
- देवतायें थोड़े होते हैं फिर बाद में वृद्धि को पाते जाते हैं।
- यह तुम्हारा नया झाड़ स्थापन हो रहा है।
- वह और धर्म वाली आत्मायें तो ऊपर से आती हैं - पार्ट बजाने, गिरने की बात नहीं है।
- यहाँ तो तुम्हारा नया झाड़ स्थापन होता है।
- माया भी सामने है।
- तुमको तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना ही है।
- ट्रांसफर होना है क्योंकि दुनिया बदल रही है, इसलिए मेहनत होती है।
- देवी-देवता धर्म की यहाँ संगमयुग पर स्थापना होती है।
- तुम यह भी बतलाते हो कि सतयुग कितने वर्ष का है।
- सतयुग से फिर कलियुग कैसे बनता है।
- कलियुग में तमोप्रधान तो होना ही है।
- तमोप्रधान हों तब तो फिर सतोप्रधान बनें।
- तुम सतोप्रधान थे फिर खाद पड़ती गई है।
- अभी भल कोई नई आत्मा 2-3 जन्म ले तो भी झट खाद पड़ जाती है।
- उनमें ही सुख, उनमें ही दु:ख भोगती है।
- कोई का एक जन्म भी होता है।
- जब आना बन्द हो जायेगा तब विनाश होगा।
- फिर सभी आत्माओं को वापिस जाना होगा।
- पाप आत्मायें और पुण्य आत्मायें इक्ट्ठी जाती हैं।
- फिर पुण्य आत्मायें नीचे उतरती हैं।
- संगम पर सारी बदली होती है।
- तो बच्चों को सारा ड्रामा बुद्धि में रखना चाहिए।
- बाप के पास यह सारी नॉलेज है ना।
- कहते हैं मैं आकर सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त का सारा राज़ समझाता हूँ।
- भक्ति मार्ग में थोड़ेही यह ज्ञान सुनाता हूँ।
- भगत याद करते हैं तो उनको साक्षात्कार कराता हूँ।
- भक्ति मार्ग शुरू होता है तब मेरा भी पार्ट शुरू होता है।
- सतयुग त्रेता में मैं वानप्रस्थ में रहता हूँ।
- बच्चों को सुख में भेज दिया बाकी क्या!
- मैं वानप्रस्थ लेता हूँ।
- यह वानप्रस्थ लेने की रसम भारत में ही है।
- बेहद का बाप कहते हैं मैं वानप्रस्थ में बैठ जाता हूँ।
- बेहद का बाप ही आकर गुरू के रूप में वानप्रस्थ में ले जाते हैं।
- मनुष्य गुरूओं का संग लेते हैं - भगवान से मिलने लिए।
- शास्त्र पढ़ेंगे, तीर्थों पर जायेंगे, गंगा स्नान करेंगे।
- परन्तु मिला तो कुछ भी नहीं है।
- अभी तुमको बेहद का बाप मिला है।
- दु:ख से छुड़ाकर, रावण राज्य से निकाल राम-राज्य में ले जाते हैं।
- बेहद का बाप एक ही बार आकर रावण के दु:ख से छुड़ाते हैं, इसलिए उनको लिबरेटर कहा जाता है।
- सतयुग में है ही रामराज्य।
- बाकी आत्मायें शान्तिधाम चली जाती हैं।
- यह भी कोई नहीं जानते हैं।
- मुझ आत्मा का स्वधर्म ही है - शान्त।
- यहाँ पार्ट में आने से अशान्त बने हैं फिर शान्ति याद आती है।
- असुल में रहवासी शान्तिधाम के हैं।
- अब कहते हैं मुझे शान्ति चाहिए।
- मन को शान्ति चाहिए।
- समझाया जाता है - आत्मा मन-बुद्धि सहित है।
- आत्मा है ही शान्त स्वरूप फिर यहाँ कर्म में आती है।
- यहाँ शान्ति कैसे मिलेगी।
- यह तो है ही अशान्तिधाम।
- सतयुग में सुख शान्ति दोनों हैं।
- पवित्रता भी है, धन दौलत भी है।
- बाप समझाते हैं तुमको कितना सुख-शान्ति, धन दौलत आदि सब कुछ था।
- अब फिर तुमको औरों को समझाना है।
- जिन्होंने कल्प पहले वर्सा लिया था वही अच्छी रीति समझने की कोशिश करेंगे।
- भल देरी से आते हैं परन्तु पुरानों से झट आगे चले जाते हैं।
- देरी से आने वालों को और ही प्वाइंट्स अच्छी मिलती हैं।
- दिन-प्रतिदिन सहज होता जाता है।
- यह भी समझेंगे अब हमने समझा तो सब है फिर तमोप्रधान से सतोप्रधान बनने की मेहनत भी करनी है।
- उसके लिए तीव्र पुरूषार्थ करने लग पड़ेंगे क्योंकि समझते हैं टाइम थोड़ा है, जितना हो सके पुरूषार्थ में लग जायें।
- मौत से पहले हम पुरूषार्थ कर लेवें।
- वह अपना चार्ट रखते होंगे।
- पढ़ाई तो सहज है।
- बाकी है याद की बात।
- गाया भी हुआ है - राम सुमिर प्रभात मोरे मन....आत्मा कहती है हे मेरे मन, राम का सिमरण करो।
- भक्ति मार्ग में तो यह भी किसको पता नहीं है कि राम कौन है।
- वह रघुपति राघौ राजा-राम कह देते हैं।
- कितनी गड़बड़ कर दी है।
- सबका भगवान वह राम कौन है, मनुष्य कुछ भी समझते नहीं हैं।
- वेस्ट ऑफ टाइम, वेस्ट ऑफ मनी करते रहते।
- तुम बच्चों को हमने विश्व का राज्य भाग्य दिया था, फिर कहाँ किया?
- 5 हजार वर्ष पहले तुमको स्वर्ग की राजाई दी थी, वह फिर कैसे गँवाई?
- अब तुम समझते हो - कैसे हम नीचे गिरते आये हैं।
- अभी फिर चढ़ना है।
- चढ़ती कला एक सेकेण्ड में, उतरती कला 5 हजार वर्ष में।
- ब्रह्मा सो विष्णु बनने में एक सेकेण्ड, विष्णु से ब्रह्मा बनने में 5 हजार वर्ष लगते हैं।
- कितनी प्वाइंट्स समझाते हैं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों का नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) अब टॉकी से मूवी, मूवी से साइलेन्स में जाना है, इसलिए टॉकी (बातचीत) बहुत कम करनी है।
- रॉयल्टी से बहुत आहिस्ते बोलना है।
- 2) नॉलेज समझने के बाद तीव्र पुरूषार्थ कर सतोप्रधान बनना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- शक्तियों को करामत के बजाए कर्तव्य समझकर प्रयोग करने वाले पूजन वा गायन योग्य भव
- याद द्वारा जो शक्तियों की प्राप्ति होती है उन्हें करामत समझकर प्रयोग नहीं करना लेकिन कर्तव्य समझकर कार्य में लगाना।
- उन मनुष्यों के पास रिद्धि सिद्धि की करामत होती है लेकिन आपके पास है श्रीमत।
- श्रीमत से शक्तियां जरूर आती हैं इसीलिए संकल्प से कर्तव्य सिद्ध होते हैं।
- संकल्प से किसको कार्य की प्रेरणा दे सकते हो,
- यह भी शक्ति है लेकिन श्रीमत में जब अपनी मनमत मिक्स न हो तब गायन और पूजन योग्य बनेंगे।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- किसी भी प्रकार की हलचल में दिलशिकस्त होने के बजाए बड़ी दिल वाले बनो।
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