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- ओम् शान्ति।
- बच्चे जो यहाँ बैठे हैं वह रचयिता और रचना के आदि-मध्य-अन्त अथवा स्वदर्शन चक्र को याद करते हैं।
- बाप ने बच्चों को नॉलेज दी है कि स्वदर्शन चक्रधारी बनो।
- तुम ब्राह्मण बच्चों का उद्देश्य है स्वदर्शन चक्रधारी बनना।
- मूलवतन, सूक्ष्मवतन, स्थूलवतन, यह 84 जन्मों के चक्र को बुद्धि में रखना है।
- दूसरा सब बुद्धि से निकाल देना है।
- अभी तुम बच्चों की बुद्धि में है बरोबर बाबा ने हमको सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी बनाया था, फिर 84 जन्म लिए हैं।
- चलते-फिरते, उठते-बैठते यह स्व आत्मा को बाप का और रचना के आदि मध्य अन्त का ज्ञान है।
- अभी तुमको शिवबाबा ने शूद्र से ब्राह्मण बनाया है।
- बाबा ने समझाया है तुम 84 जन्मों के चक्र की बाजी कैसे खेलते हो।
- पहले-पहले हम ब्राह्मण हैं, हम ब्राहमणों को रचने वाला ब्रह्मा द्वारा शिवबाबा है।
- रचता और रचना के ज्ञान से ही तुम स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो।
- यह नॉलेज बुद्धि में कायम रखनी है।
- सुबह को उठकर स्वदर्शन चक्रधारी बन बैठ जाना चाहिए।
- हमने अपने 84 जन्मों के चक्र को जान लिया है।
- हम सब आत्माओं का रचयिता बाप एक है।
- कहते भी हैं हम सब भाई-भाई हैं।
- हमारा बाप वह निराकार परमपिता परमात्मा है, परमधाम में रहने वाला है।
- हम भी वहाँ रहते थे, वह हमारा बाबा है।
- बाबा अक्षर बहुत लवली है।
- शिवबाबा के मन्दिर में जाकर कितनी पूजा करते हैं, बहुत याद करते हैं।
- बाप कहते हैं - मैं तुमको मनुष्य से देवता, तुच्छ बुद्धि से स्वच्छ बुद्धि बनाता हूँ।
- तुच्छ बुद्धि अर्थात् शूद्र बुद्धि से स्वच्छ बुद्धि बनाया था अर्थात् ऊंच बुद्धि, पुरुषोत्तम बुद्धि बनाया था।
- सभी पुरुष-स्त्री इन लक्ष्मी-नारायण को नमन करते हैं।
- परन्तु यह नहीं जानते - यह कौन हैं?
- कब आये, क्या किया?
- बाप ने समझाया है यह भारत अविनाशी खण्ड है क्योंकि अविनाशी बाप परमपिता परमात्मा की भी जन्म भूमि है।
- पतित-पावन, सर्व के सद्गति दाता का जन्म स्थान है तो यह हुआ बड़े से बड़ा तीर्थ स्थान।
- इतना नशा थोड़ेही किसको है कि यह परमपिता परमात्मा की, सर्व के सद्गति दाता बाप की जन्म भूमि है।
- पतित-पावन की जयन्ती भारत में हुई है।
- शिव जयन्ती मनाते हैं तो जरूर शिव का जन्म यहाँ ही होता है।
- यह भारत बड़ा तीर्थ स्थान है।
- परन्तु ड्रामा अनुसार किसको पता नहीं कि यह हमारे गॉड फादर अथवा मात-पिता, पतित-पावन सर्व के सद्गति दाता का जन्म स्थान है इसलिए भारत भूमि को वन्दे मातरम् कहते हैं अर्थात् इस भूमि पर यह बच्चियाँ जो श्रीमत से भारत को स्वर्ग बनाती हैं, उनको यह नशा रहना चाहिए कि श्रीमत पर हम कल्प-कल्प भारत को पैराडाइज बनाते हैं।
- जो जितना श्रीमत पर चलेंगे उतना ऊंच पद पायेंगे।
- भारत-वासियों ने कल्प की आयु लाखों वर्ष लिख दी है।
- तुम जानते हो बाबा जिसका यह भारत जन्म स्थान है, उसने जो धर्म स्थापन किया, उसकी है गीता।
- गीता किसने गाई, यह भारतवासी भूल गये हैं।
- कितना फ़र्क हो गया है।
- कहाँ निराकार शिव, कहाँ श्रीकृष्ण।
- तुम जानते हो कृष्ण की आत्मा जो गोरी थी वह अब बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में तमोप्रधान बन गई है।
- फिर इनमें प्रवेश कर इनको सो श्रीकृष्ण गोरा बना रहा हूँ इसलिए कृष्ण को सांवरा और गोरा, श्याम और सुन्दर कहते हैं।
- यह सतयुग का पहला नम्बर सुन्दर प्रिन्स था।
- इनकी महिमा है - मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा परमोधर्म।
- भारतवासी यह नहीं जानते कि राधे कृष्ण और लक्ष्मी-नारायण का आपस में क्या सम्बन्ध है!
- बाप कहते हैं - अब तक तुम जो कुछ पढ़ते आये हो, उनमें कोई सार नहीं है।
- अब तुम सम्मुख बैठे हो।
- जानते हो बाबा 5 हजार वर्ष के बाद हमको फिर से राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं।
- सारी दुनिया कहती है कृष्ण ने गीता सुनाई।
- बाप कहते हैं - कृष्ण में सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का ज्ञान ही नहीं है।
- कृष्ण की आत्मा ने आगे जन्म में यह ज्ञान प्राप्त किया है, अब कर रहे हैं।
- जिसका नाम मैंने ब्रह्मा रखा है।
- उनके बहुत जन्मों के अन्त के जन्म में मैं प्रवेश करता हूँ।
- तुम मरजीवा बने हो ना।
- तुम्हारे अव्यक्त नाम भी रखे थे।
- अब नहीं रखते क्योंकि बहुतों ने फारकती दे दी।
- बाप का बनकर नाम रखाकर भाग जाए, यह तो शोभता नहीं है इसलिए नाम देना बंद कर दिया।
- अब तुम ब्राह्मण बने हो।
- प्रजापिता ब्रह्मा के बच्चे, शिवबाबा के पोत्रे हो।
- बाप कहते हैं - वर्सा तुमको मुझ से लेना है तो मुझे याद करो।
- इनका यह बहुत जन्मों के अन्त का जन्म है।
- सूक्ष्मवतन में जो ब्रह्मा दिखाते हैं वह तो पावन है।
- सूक्ष्मवतन में प्रजापिता तो हो नहीं सकता।
- बाप समझाते हैं यह व्यक्त है, झाड़ के पिछाड़ी में खड़ा है।
- यहाँ बच्चों के साथ योग में बैठे हैं - पवित्र फरिश्ता बनने के लिए।
- तो सूक्ष्मवतन में दिखाना पड़े।
- यहाँ भी प्रजापिता जरूर चाहिए।
- वह अव्यक्त, यह व्यक्त।
- तुम भी फरिश्ते बनने आये हो।
- इसमें ही मनुष्य मूँझते हैं क्योंकि यह है बिल्कुल नया ज्ञान।
- कोई भी शास्त्र आदि में यह ज्ञान है नहीं।
- भगवान एक है ऊंच ते ऊंच निराकार परमपिता परमात्मा, सब आत्माओं का बाप।
- उनके रहने का स्थान है परमधाम।
- उनको सब याद करते हैं कि आओ, हमारे ऊपर माया का परछाया पड़ गया है।
- पतित बन गये हैं।
- यह बातें नये की बुद्धि में बैठेंगी नहीं।
- अब तुम रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हो।
- सतयुग में हम बहुत थोड़े राज्य करते थे।
- वहाँ अधर्म की बात हो नहीं सकती।
- शास्त्रों में कितनी बातें लिख दी हैं, परन्तु उनमें कोई सार नहीं है।
- सीढ़ी उतरते-उतरते अब अन्त में आकर पतित बने हैं।
- अब तुम जम्प करते हो उतरने में 84 जन्म लगे, जम्प सेकेण्ड में करते हो।
- तुम बच्चे अब राजयोग सीख रहे हो, फिर शान्तिधाम में जाकर सुखधाम में आ जायेंगे।
- यह है दु:खधाम।
- पहले तुम आये हो तो बाप भी पहले-पहले तुमसे मिलते हैं।
- यहाँ बाप और बच्चों, आत्मा और परमात्मा का मेला लगता है।
- हिसाब है ना - हमको 5 हजार वर्ष हुए बाप से विदाई लिए।
- पहले-पहले स्वर्ग में पार्ट बजाया, वहाँ से पार्ट बजाते-बजाते तुम नीचे उतरते आये हो।
- अभी तुम बाप के पास आ गये हो, बाकी थोड़े बहुत जो होंगे वह भी आ जायेंगे।
- फिर तुम्हारी पढ़ाई खत्म हो जायेगी, सबको यहाँ आना है।
- वहाँ जब खाली हो जायेगा फिर बाबा सबको ले जायेगा।
- यह समझने की बातें हैं।
- पढ़ना है।
- स्कूल में कभी जाना, कभी न जाना यह लॉ नहीं है।
- बाबा ने पढ़ाई के लिए बहुत प्रबन्ध भी दिये हैं।
- नहीं तो कभी भी किसके पास पढ़ाई पोस्ट में नहीं जाती है।
- यह बेहद बाप की पढ़ाई पोस्ट में जाती है।
- कितने कागज छपते हैं।
- कहाँ-कहाँ जाते हैं।
- 7 दिन का कोर्स लेकर फिर कहाँ भी पढ़ते रहो।
- इस समय सभी आधाकल्प के रोगी हैं, इसलिए 7 रोज़ भट्ठी में रखना पड़ता है।
- यह 5 विकारों की बीमारी सारी दुनिया में फैली हुई है।
- सतयुग में तुम्हारी काया निरोगी थी, एवरहेल्दी-एवरवेल्दी थे।
- अब तो क्या हाल हो गया है।
- यह सारा खेल भारत पर है।
- तुमको 84 जन्मों की अब स्मृति आई है।
- कल्प-कल्प तुम ही स्वदर्शन चक्रधारी बनते हो और चक्रवर्ती राजा भी बनते हो।
- यह राजाई स्थापन हो रही है, इसमें नम्बरवार पद होंगे।
- प्रजा भी अनेक प्रकार की चाहिए।
- दिल से पूछना चाहिए कि हम कितनों को आप समान स्वदर्शन चक्रधारी बनाते हैं।
- जितना जो बनायेगा वही ऊंच पद पायेगा।
- तुमको बाप माया से युद्ध करना सिखलाते हैं, इसलिए इनका नाम युद्धिष्ठिर रख दिया है।
- माया पर जीत पाने की युद्ध सिखलाते हैं।
- युद्धिष्ठिर और धृतराष्ट्र भी दिखाते हैं।
- गाया भी जाता है माया जीते जगत जीत, कितना समय तुम्हारी जीत कायम रही फिर हार कितना समय खाते हो।
- यह भी तुम जानते हो।
- यह जिस्मानी युद्ध नहीं है।
- न देवताओं और असुरों की युद्ध है।
- न कौरवों और पाण्डवों की युद्ध है।
- झूठी काया, झूठी माया... यह भारत झूठ खण्ड है।
- सच खण्ड था, जब से रावण राज्य शुरू हुआ तब से झूठ खण्ड बन गया।
- ईश्वर के लिए कितना झूठ बोलते हैं।
- कितना कलंक लगाते हैं।
- कलंगी अवतार भी गाया हुआ है।
- सबसे जास्ती कलंक बाप पर लगते हैं।
- उनके लिए कहते कच्छ-मच्छ अवतार, पत्थर-भित्तर में ईश्वर।
- कितनी गाली देते हैं।
- क्या यह सभ्यता है?
- अभी तुमको रोशनी मिली है।
- तुम जानते हो बाप हमको रचता और रचना के आदि मध्य अन्त का राज़ समझा रहे हैं, जो और कोई नहीं जानते।
- बाप ही सद्गति दाता है।
- बाबा के ज्ञान से सबकी सद्गति होती है।
- बाकी जो खुद ही दुर्गति में हैं वह कैसे औरों की सद्गति करेंगे।
- तुमको आकर राजाओं का राजा बनाता हूँ।
- तुम ही पवित्र पूज्य थे, अब आकर पुजारी बने हो।
- पवित्र राजाओं की अपवित्र राजायें पूजा करते हैं।
- सतयुग में डबल सिरताज थे।
- विकारी राजा होते हैं तो सिंगल ताज रहता है।
- वह भी महाराजा महारानी।
- परन्तु पवित्र को अपवित्र जाकर माथा टेकते हैं।
- वह भारतवासी पवित्र प्रवृत्ति मार्ग वाले, वही भारतवासी पतित प्रवृत्ति मार्ग वाले बनते हैं।
- अब बाप कहते हैं तुम्हारा इस मृत्युलोक में अन्तिम जन्म है।
- अभी मैं आया हूँ तुमको फिर से सतयुग में ले जाने।
- यह मूसलों की लड़ाई 5 हजार वर्ष पहले भी लगी थी।
- यह पुरानी दुनिया खलास होनी है।
- बाप समझाते हैं गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान बनना है।
- कमल फूल समान तुम ब्राह्मण बने हो।
- परन्तु यह निशानी विष्णु को दे दी है क्योंकि तुम सदैव एकरस नहीं रहते हो।
- आज कमल फूल समान बनते, दो वर्ष के बाद पतित बन पड़ते हैं।
- तुम्हारा यह सर्वोत्तम कुल है।
- तुम ब्राह्मण चोटी हो।
- फिर पुर्नजन्म लेते-लेते देवता, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बनते हो।
- शूद्र से फट से देवता थोड़ेही बनेंगे। ब्राह्मण चोटी तो चाहिए।
- अब ब्राह्मणों को बाबा पढ़ा रहे हैं।
- तो ऐसे बाबा को फारकती थोड़ेही देनी चाहिए।
- बाबा कहते हैं आश्चर्यवत मेरा बनन्ती, सुनन्ती फिर भी भागन्ती हो माया के बनन्ती।
- ट्रेटर बनन्ती, मेरी निन्दा करावन्ती... उसको कहा जाता है सतगुरू का निन्दक स्वर्ग का ठौर न पावन्ती।
- बाकी वह भक्ति मार्ग के गुरू हैं, वे कोई सद्गति दाता नहीं हैं।
- सभी आत्माओं का बाप, टीचर, गुरू एक ही निराकार बाप है।
- वही सबका उद्धार करने आया है।
- आगे चलकर समझेंगे फिर टू लेट हो जायेंगे।
- वह फिर अपने ही धर्म में चले जायेंगे।
- श्रेष्ठ से श्रेष्ठ है देवता धर्म।
- उनसे भी ऊंच तुम ब्राह्मण हो जो बाप के साथ बैठे हो।
- तुमको पढ़ाने वाला विचित्र और विदेही है।
- बाप कहते हैं मुझे देह नहीं है।
- मुझे कहते हैं शिव, मेरा नाम बदल नहीं सकता।
- और सबके शरीरों के नाम बदली होते हैं।
- मैं हूँ परम आत्मा, मेरी जन्म-पत्री कोई निकाल नहीं सकता।
- जब बेहद की रात होती है तब मैं आता हूँ दिन बनाने।
- अब है संगम, इन बातों को अच्छी तरह समझ कर फिर धारण करना चाहिए।
- स्मृति में लाना चाहिए।
- यहाँ तुम बच्चे आते हो, फुर्सत मिलती है।
- विचार सागर मंथन यहाँ अच्छा कर सकते हो।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) सर्वोत्तम कुल की स्मृति से गृहस्थ व्यवहार में रहते कमल फूल समान पवित्र बनना है।
- कभी भी सद्गुरू की निंदा नहीं करानी है।
- 2) श्रीमत पर भारत को स्वर्ग बनाने की सेवा करनी है।
- स्वदर्शन चक्रधारी बनना और बनाना है।
- जब भी फुर्सत मिले तो विचार सागर मंथन जरूर करना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- बापदादा के कर्तव्य को अपना निशाना बनाने वाले मास्टर मर्यादा पुरुषोत्तम भव
- कहा जाता है “अपनी घोट तो नशा चढ़े'' दूसरे की कमाई में कभी भी आंख नहीं जानी चाहिए।
- दूसरे के नशे को निशाना बनाने के बजाए बापदादा के गुण और कर्तव्य को निशाना बनाओ।
- बापदादा के साथ अधर्म विनाश और सतधर्म की स्थापना के कर्तव्य में मददगार बनो।
- अधर्म विनाश करने वाले अधर्म का कार्य वा दैवी मर्यादा को तोड़ने का कार्य कर नहीं सकते, वे मास्टर मर्यादा पुरुषोत्तम होते हैं।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- नॉलेजफुल बन व्यर्थ प्रश्नों को स्वाहा कर दो तो समय बच जायेगा।
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