29-11-2021 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - दुनिया में भल और किसी का डर नहीं रखो लेकिन इस बाप का डर जरूर रखो, डर रखना माना पाप कर्मो से बचे रहना''
प्रश्नः-
बाबा हर एक बच्चे को अपनी जांच करने (चार्ट रखने) की श्रीमत क्यों देते हैं?
उत्तर:-
क्योंकि ईश्वरीय कायदे बड़े कड़े हैं।
अगर ब्राह्मण बनकर छोटी-मोटी भूलें होती तो बहुत कड़ी सज़ा खानी पड़ेगी, इसलिए बाबा कहते अपनी जांच रखो।
अगर कोई भी पुराना हिसाब-किताब रह गया तो मानी और मोचरा खाना पड़ेगा।
अब कयामत का समय बहुत नजदीक है इसलिए अपने सब हिसाब-किताब योगबल से चुक्तू करो।
-
- ओम् शान्ति।
- बाप की याद में तो बच्चे आपेही रहते हैं।
- घड़ी-घड़ी कहने की भी दरकार नहीं रहती।
- बाप का डायरेक्शन है कि चलते-फिरते, उठते-बैठते बाप को याद करो तो रावण जिसने तुमको पतित बना दिया है, उन पर जीत पा लेंगे।
- तुमको कोई हथियार आदि नहीं देते, सिर्फ योगबल से तुम रावण पर जीत पाते हो।
- जीत पानी है जरूर और संगम पर ही पाते हो, जबकि रावण राज्य खत्म हो रामराज्य की स्थापना होनी है।
- बाप हिंसा तो कभी सिखला न सकें।
- देवताओं का है ही अहिंसा परमोधर्म।
- दुनिया यह नहीं जानती कि वहाँ काम कटारी की हिंसा होती नहीं।
- जो कल्प पहले निर्विकारी बने होंगे वही तुम्हारी बातों को मानेंगे।
- अभी तुम युद्ध के मैदान में हो।
- गाया भी हुआ है शिव शक्ति सेना।
- तुम हो गुप्त वारियर्स, हर एक अपने लिए कर रहे हैं।
- माया जीत जगतजीत बनना है।
- तुम अपने लिए करते हो, गोया अपने भारत देश के लिए करते हो।
- इसमें जो अच्छी रीति पुरुषार्थ करते हैं वह पाते हैं।
- जो 5 विकारों पर जीत पायेंगे वही जगतजीत बनेंगे और कोई चीज़ पर जीत पानी नहीं है।
- तुम्हारा है ही रावण राज्य पर जीत पाना अर्थात् दैवीगुण धारण करना।
- सिवाए दैवीगुण धारण किये सतयुग में जा नहीं सकते।
- तो अपने से पूछना है कि कहाँ तक हमने दैवीगुण धारण किये हैं?
- दैवीगुण धारण करना माना रावण पर जीत पाना।
- कहते हैं रामराज्य था तो एक राम ने तो राज्य नहीं किया होगा?
- प्रजा भी तो होगी।
- यहाँ राजा, रानी तथा प्रजा सब रावण पर जीत पा रहे हैं।
- दैवी-गुण धारण कर रहे हैं।
- दैवीगुणों में खान-पान, बोलना करना सब शुद्ध पवित्र होता है।
- हर बात में सच बताना है।
- बाप है ही सत्य।
- तो ऐसे बाप के साथ कितना सच्चा बनना चाहिए।
- अगर सच्चे नहीं बनेंगे तो कितनी बुरी गति होगी।
- गति तो ऊंच पानी चाहिए।
- नर से नारायण, नारी से लक्ष्मी बनना है।
- कहा भी जाता है - तुम्हरी गति मत तुम ही जानो।
- बाप जो मत देते, उससे कितनी ऊंच गति होती है।
- ऊंचे ते ऊंचा बाप ऊंचे से ऊंची गति प्राप्त कराते हैं।
- तो अब श्रीमत पर चलकर दैवीगुण धारण करने हैं।
- जन्म-जन्मान्तर के पाप योगबल बिना कट नहीं सकते इसके लिए याद की यात्रा बड़ी अच्छी चाहिए।
- याद अच्छी रहेगी - अमृतवेले।
- उस समय वायुमण्डल अच्छा होता है।
- दिन में भल कितना समय भी बैठो, परन्तु अमृतवेले जैसा समय नहीं है।
- अपनी बातें गुप्त हैं।
- अंग्रेजी में कहते हैं “वी आर एट वार'' हमारी युद्ध है रावण के साथ।
- यह है नम्बरवन दुश्मन।
- राम सम्प्रदाय ने रावण सम्प्रदाय पर जीत पाई है श्रीमत से।
- बाप सर्वशक्तिमान् है ना।
- दुनिया तो बिचारी इस समय घोर अन्धियारे में है।
- उनको मालूम ही नहीं कि हमने हार खाई है।
- माया से हारे हार है, माया किसको कहा जाता है - यह भी कोई नहीं जानता है।
- सारी लंका पर रावण का राज्य था।
- शास्त्रों में भक्ति मार्ग की कितनी दन्त कथायें लिख दी हैं, जो जन्म-जन्मान्तर पढ़ी हैं।
- अब भी कहते हैं शास्त्र तो जरूर पढ़ने चाहिए।
- जो नहीं पढ़ते उनको नास्तिक कहा जाता है और बाप कहते हैं - शास्त्र पढ़ते-पढ़ते सब नास्तिक बन पड़े हैं।
- यह बातें बच्चों को अच्छी तरह समझानी चाहिए कि भारत जब सतोप्रधान था तो उसको स्वर्ग कहा जाता था।
- वही भारतवासी 84 जन्म लेते-लेते अब पतित तमोप्रधान बने हैं।
- अब फिर पावन कैसे बनें।
- बाप कहते हैं - मुझे याद करो तो सतोप्रधान पावन बन जायेंगे, और कोई भी देहधारी को याद नहीं करो।
- किसको गुरू नहीं बनाओ।
- कहा जाता है गुरू बिना घोर अन्धियारा।
- ढेर के ढेर गुरू हैं।
- परन्तु सब अन्धियारे में ले जाने वाले हैं।
- बाप कहते हैं - ज्ञान सूर्य जब आये तब घोर अन्धियारा दूर हो।
- संन्यासी भल पावन बनते हैं परन्तु जन्म तो विकार से लेते हैं ना।
- देवी-देवता तो विकार से पैदा नहीं होते।
- यहाँ सबके शरीर मूत पलीती हैं।
- बाप ऐसे मूत पलीती कपड़े साफ करते हैं।
- आत्मा पवित्र बने फिर शरीर भी अच्छा मिले।
- उसके लिए पुरुषार्थ करना है।
- अपनी जांच रखनी है - मेरे से कोई बुरा काम तो नहीं होता है।
- ईश्वरीय कायदे भी कड़े हैं।
- कोई बुरा काम करे तो उनकी सजा बहुत कड़ी है।
- कयामत का समय है।
- सब हिसाब-किताब चुक्तू करना है - योगबल से।
- अगर चुक्तू नहीं किया तो मोचरा खाना पड़ेगा।
- फिर कहा भी जाता है - मोचरा और मानी।
- मानी तो (रोटी तो) सबको मिलनी है।
- मुक्ति और जीवनमुक्ति की मानी सबको देंगे।
- कोई पास विद् ऑनर, कोई को मोचरा मिलेगा फिर थोड़ी मानी मिलेगी, बेइज्जती से।
- तख्त पर तो वह बैठ न सकें।
- कोई भी बुरा काम किया तो बेइज्जती होगी, सो भी बाप के आगे।
- शिवबाबा बैठे हैं ना।
- तुमको साक्षात्कार करायेंगे कि हम इसमें था, तुमको कितना समझाते थे।
- अभी मैं सम्पूर्ण (ब्रह्मा) में हूँ।
- तुम बच्चियाँ सम्पूर्ण बाबा के पास जाती हो।
- उस द्वारा शिवबाबा डायरेक्शन आदि देते हैं ना।
- तुमको बाबा साक्षात्कार करायेगा कि इसमें बैठकर तुमको कितना पढ़ाते थे, समझाते थे कि दैवीगुण धारण करो, सर्विस करो।
- किसी की निंदा नहीं करो।
- तुमने फिर भी यह काम किये, अब खाओ सजा।
- जितने-जितने पाप किये होंगे तो सजा खानी पड़ेगी।
- कोई बहुत सजायें खाते हैं, कोई कम।
- उनमें भी नम्बरवार हैं, जितना हो सके योगबल से विकर्मो को काटते रहना है।
- यह बड़े ते बड़ा फुरना बच्चों को रखना है कि हम सम्पूर्ण पक्का सोना कैसे बनें?
- उठते बैठते यही बुद्धि में रहे, जितना याद करेंगे उतना ऊंच पद पायेगे।
- माया के तूफानों की परवाह नहीं करनी है, जितना समय मिले बाप को याद करना है।
- मुझे तमोप्रधान से सतोप्रधान बनना है।
- बाप को याद करेंगे तो पाप कट जायेंगे।
- कोई पाप भी नहीं करना चाहिए।
- नहीं तो सौगुणा बन जायेगा।
- माफी नहीं ली तो फिर वृद्धि को पाते-पाते सत्यानाश हो जाती है।
- पाप पिछाड़ी पाप माया कराती रहेगी।
- बेहद के बाप से बे-अदबी हो जाती है।
- यह भी बहुतों को पता नहीं पड़ता है।
- बाबा हमेशा समझाते हैं ऐसे समझो कि शिवबाबा मुरली चलाते हैं।
- शिवबाबा डायरेक्शन देते हैं तो याद भी रहे, डर भी रहे।
- बहुत पाप करते रहते हैं।
- साफ बोलना चाहिए कि बाबा हमसे यह भूल हुई।
- बाप समझाते हैं पापों का बोझा सिर पर बहुत है।
- जो कुछ किया है वह बताओ।
- सच बताने से आधा कम हो जायेगा।
- बाबा ने समझाया है जो नम्बरवन पुण्य आत्मा बनते हैं, वही फिर पाप आत्मा भी नम्बरवन बनते हैं।
- बाबा खुद कहते हैं - तुम्हारा बहुत जन्मों के भी अन्त का जन्म है।
- तुम पुण्य आत्मा थे, सो अब पाप आत्मा बने हो फिर पुण्य आत्मा बनना है।
- अपना कल्याण तो करना है।
- यहाँ तुम्हें माथा आदि टेकने की भी दरकार नहीं है, सिर्फ बाप को याद करना है।
- भल यह भी बुजुर्ग है, नमस्ते करते हैं।
- बच्चे घर में घड़ी-घड़ी थोड़ेही नमस्ते करते हैं।
- एक बार नमस्ते किया फिर रेसपान्ड में भी किया जाता है।
- बाप कहते हैं - तुम मुझे बड़ा समझकर नमस्ते करते हो, मैं फिर तुमको विश्व का मालिक समझ नमस्ते करता हूँ।
- अर्थ है ना।
- मनुष्य तो राम-राम कह देते हैं परन्तु अर्थ कुछ नहीं समझते।
- वास्तव में राम अर्थात् शिवबाबा।
- राम वह रघुपति नहीं, यह राम निराकार है।
- उनका नाम है शिवबाबा।
- शिव के आगे कोई ऐसा नहीं कहेगा कि मैं राम की पूजा करता हूँ।
- अब बाप कहते हैं तुम मन्दिरों में जाकर समझाओ कि यह भी मनुष्य थे।
- तुम इन्हों के आगे जाकर महिमा गाते हो - आप निर्विकारी, सर्वगुण सम्पन्न, हम पापी नींच हैं।
- यह तन भी मनुष्य का है और वह तन भी मनुष्य का है लेकिन उसमें दैवीगुण हैं इसलिए देवता है।
- तुम खुद कहते हो - हमारे में आसुरी गुण हैं इसलिए बन्दर हैं।
- सूरत दोनों की एक है।
- सीरत में फ़र्क है।
- भारतवासी ही सिरताज थे।
- अभी नो ताज, गरीब भी भारतवासी ही हैं।
- बाप भी भारत में ही आते हैं, जहाँ स्वर्ग बनाना है वहाँ बाप आयेगा ना।
- कहा जाता है कलंगी अवतार, कितने कलंक लगाये हैं।
- अगर और धर्म वाले भी कुछ कहते हैं, वह भी भारतवासियों को फालो करते हैं।
- पत्थरबुद्धि होने के कारण मुझे भी पत्थर-भित्तर में कह देते हैं।
- बाप को जानते ही नहीं कि बाप इसमें प्रवेश कर भारत को कितना सिरताज बनाते हैं।
- भारत की कितनी सेवा करते हैं।
- बाप कहते हैं मेरी तुम ग्लानि करते हो।
- मैं तुमको स्वर्ग का मालिक बनाता हूँ।
- तुम कितना अपकार करते हो।
- रावण ने तुम्हारी मत कितनी मार डाली है।
- बुरी गति हो गई है, तब बुलाते हैं पतित-पावन आओ।
- समझानी कितनी सहज मिलती है।
- फिर भी कई बच्चे भूल जाते हैं।
- योग नहीं तो धारणा भी नहीं होती है इसलिए बाबा कहते हैं बांधेलियाँ सबसे जास्ती याद करती हैं।
- शिवबाबा की याद में सहन भी करती हैं।
- भारतवासियों में जो देवी-देवता बनने वाले हैं वही यहाँ आयेंगे।
- आर्य समाजी तो देवताओं की मूर्तियों को मानते ही नहीं।
- झाड़ के पिछाड़ी में टाली है, 2-3 जन्म भी मुश्किल होंगे।
- बहुत लोग समझते हैं - विकार बिना दुनिया कैसे चलेगी।
- अरे देवताओं को सम्पूर्ण निर्विकारी कहा जाता है ना।
- यह भी किसको पता नहीं कि वहाँ विकार होता ही नहीं है।
- कल्प पहले वाले झट समझ जाते हैं।
- गायन भी है; भगवानुवाच - काम महाशत्रु है।
- परन्तु भगवान ने कब कहा था - यह किसको पता नहीं है।
- अभी तुम बच्चे जगतजीत बन रहे हो।
- परन्तु ऊंच पद पाने के लिए मेहनत करनी है।
- बाप कहते हैं - गृहस्थ व्यवहार में रहते सिर्फ बुद्धियोग मेरे से लगाओ।
- जबकि बाप के बन गये हो तो बाप से लव होना चाहिए।
- बाकी औरों के साथ काम निकालने के लिए प्यार रखना है।
- बुद्धि में यह ख्याल रखना है कि बिचारों को स्वर्गवासी कैसे बनायें।
- सच्ची यात्रा पर चलने की युक्ति बतायें।
- वह है जिस्मानी यात्रा, जो जन्म-जन्मान्तर करते आये हैं।
- यह एक ही याद की यात्रा है।
- अभी हमारे 84 जन्म पूरे हुए फिर सतयुग की हिस्ट्री रिपीट होनी है।
- पतित तो घर जा नहीं सकते।
- पावन बनाने के लिए पतित-पावन बाप चाहिए।
- भल संन्यासी पावन बनते हैं परन्तु वापिस जा नहीं सकते।
- सबको ले जाने वाला बाप ही है।
- बाप आकर सबको रावण से छुड़ाए मुक्त कर देते हैं।
- सतयुग में दु:ख देने वाली कोई चीज़ होती नहीं।
- नाम ही है सुखधाम।
- यह है दु:खधाम।
- वह क्षीरसागर, यह है विषय सागर।
- अभी तुम जानते हो स्वर्ग में कितने सुख आराम से रहते हैं।
- क्षीर सागर से निकल विषय सागर में कैसे आते हैं, यह कोई नहीं जानते।
- बाप समझाते हैं श्रीमत पर चलना है फिर जवाबदार वह है।
- श्रीमत कहती है - हाँ भल जाओ, बच्चों को सम्भालो।
- उनको भूँ-भूँ करते रहो, तो कुछ न कुछ कल्याण हो जायेगा।
- स्वर्ग में तो आ जायेंगे।
- बाप आकर नर्कवासी से स्वर्गवासी बनाते हैं 21 जन्म के लिए।
- यह भी तुम्हारी बुद्धि में है।
- मनुष्य तो कुछ भी नहीं जानते।
- यह भी पहले कुछ नहीं जानते थे।
- जैसे इनके 84 जन्मों की कहानी है - “तत्त्वम्'' यह भी राजयोग सीख रहे हैं।
- तुम हो राजऋषि।
- वह हैं हठयोग ऋषि।
- तुम गृहस्थ व्यवहार में रहकर राजाई प्राप्त कर रहे हो।
- तुम सब शरणागति होने आये हो ना।
- अब समझते हैं हम तो स्वर्ग में बैठे हैं।
- दुनिया में है माया का पाम्प।
- जब तक नर्क का विनाश न हो तब तक स्वर्ग कैसे हो सकता है।
- मायावी पुरुष इसको ही स्वर्ग समझ बैठे हैं।
- बाबा को नई दुनिया स्थापन करने में कितनी मेहनत लगती है।
- पूरे नर्कवासी हैं।
- स्वर्गवासी बनते ही नहीं हैं।
- बाप कितना प्यार से समझाते हैं।
- अच्छा! मीठे-मीठे बच्चों रावण पर जीत पाने से ही तुम जगतजीत बनेंगे।
- उसके लिए पूरा पुरुषार्थ करना है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) ऐसा कोई काम नहीं करना है जो बेइज्जती हो।
- सजायें खानी पड़ें।
- माया के तूफानों की परवाह न कर जितना समय मिले बाप को याद करना है।
- एक बाप से सच्चा-सच्चा लव रखना है।
- 2) अपनी ऊंच गति बनाने के लिए सच्चे बाप से सच्चा रहना है।
- कोई भी बात छिपानी नहीं है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- याद के मंत्र द्वारा संकल्प और कर्म में अविनाशी सिद्धि प्राप्त करने वाले सिद्धि स्वरूप भव
- आप बच्चे आलमाइटी गवर्मेन्ट के मैसेन्जर हो इसलिए कोई से भी डिस्कस करने में अपना माइन्ड डिस्टर्व नहीं करना।
- याद का मन्त्र यूज़ करना।
- जैसे कोई वाणी से या अन्य किसी तरीके से वश नहीं होते हैं तो मन्त्र-जन्त्र करते हैं, आपके पास आत्मिक दृष्टि का नेत्र और मनमनाभव का मन्त्र है जिससे अपने संकल्पों को सिद्ध कर सिद्धि स्वरूप बन सकते हो।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- एक्शन कानसेस के बजाए सोल कानसेस बनो।
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