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ओम् शान्ति।
- गुडमार्निंग बच्चों को।
- आज है गुरूवार।
- तुम बच्चों के लिए यह वृक्षपति डे वा ब्रहस्पतिवार है उत्तम।
- सप्ताह में सबसे उत्तम दिन यह है।
- वृक्षपति का नाम गाया हुआ है।
- ब्रहस्पति की दशा बैठी हुई है।
- वृक्षपति बाबा फिर से हमको अपना बेहद सुख का वर्सा दे रहे हैं।
- बेहद का संन्यास भी करवाते हैं, निवृत्ति मार्ग वालों का तो हद का संन्यास है।
- सबको संन्यास करना है।
- बाप कहते हैं आगे चलकर तो बहुत ही सुनेंगे।
- पतित-पावन बाप, जो गाइड और लिबरेटर है, वह कहते हैं मैं आया हूँ सबको मुक्तिधाम में वापिस ले चलने के लिए।
- भक्ति मार्ग में मुक्ति के लिए ही पुरूषार्थ करते हैं।
- भक्ति में कितना समय रहना पड़ता है।
- जो भक्ति के बाद भक्ति का फल मिले।
- यह तुम्हारे सिवाए कोई नहीं जानते हैं।
- तुम बच्चे जानते हो कि पूरे 2500 वर्ष लगते हैं।
- यह भी ड्रामा में नूँध है।
- यह बना-बनाया खेल है।
- हर एक अपना-अपना पार्ट बजाते रहते हैं।
- तुम भी कल्प-कल्प यही पार्ट बजाते हो।
- कितनी खुशी की बात है।
- हमारे ऊपर ब्रहस्पति की दशा बैठी हुई है।
- हम 21 जन्मों के लिए स्वर्ग के मालिक बनते हैं।
- अब हमारी चढ़ती कला है।
- नर्क मुर्दाबाद, स्वर्ग जिंदाबाद होता है।
- सुख-दु:ख का खेल भी तुम बच्चों के लिए है।
- बाप कहते हैं यह आदि सनातन देवी-देवता धर्म बहुत सुख देने वाला है।
- वह है ही नई दुनिया।
- वहाँ खानियां भी नई होंगी।
- जो कुछ वहाँ पैदाइस होती है, सब कुछ नया होगा।
- पुरानी चीज़ हो जाने पर वह सत (सार) नहीं रहता।
- तो अब दुनिया में भी कोई सार नहीं है।
- बाप को कहते हैं सर्वशक्तिमान।
- तो क्या शक्ति दिखलाते हैं?
- वह तो तुम बच्चे ही जानते हो।
- पतित-पावन सद्गति दाता, लिबरेटर बाप आकर तुमको इतनी शक्ति देते हैं।
- अनेक धर्मों का विनाश कराए एक धर्म, एक राज्य की स्थापना करना, क्या यह शक्ति का काम नहीं है?
- यह ऊंच कार्य तुम बच्चों द्वारा करवाते हैं।
- तुमको कितनी शक्ति मिलेगी जो कि तुम्हारे सब पाप कट जायेंगे और तुम पुण्य आत्मा बन जायेंगे।
- जितनी जो मेहनत करेगा उतना ऊंच पद पायेगा।
- फिर भी स्वर्ग के लायक तो बन ही जायेंगे।
- पहले न्यु वर्ल्ड थी, अब है ओल्ड वर्ल्ड।
- यह भी समझते नहीं हैं, बिल्कुल ब्लाइन्ड फेथ है।
- तुम बच्चे जानते हो - पहले हम बुद्धिहीन थे, गाया भी हुआ है अन्धे की औलाद अन्धे।
- सब भगवान को ढूँढते ही रहते हैं, ठोकरें खाते रहते हैं।
- मिलता कुछ भी नहीं है।
- बहुत मेहनत करते हैं।
- कोई तो बिचारे प्राण भी त्याग देते हैं।
- देवताओं को राज़ी करने के लिए बलि भी चढ़ाते हैं।
- उनको फिर महाप्रसाद समझते हैं।
- अब गऊ हत्या के लिए एनाउन्स करते हैं।
- समझते हैं गऊ माता है, दूध देती है।
- ऐसे तो बकरियां भी दूध देती हैं, उनकी रक्षा क्यों नहीं करते?
- तो कहते हैं कृष्ण का गऊ के साथ प्यार था।
- अब ऐसी बात नहीं है।
- बाप समझाते हैं तुम तो सतयुग के प्रिन्स प्रिन्सेज थे, फिर 84 जन्म लेकर आए तमोप्रधान बने हो।
- अब फिर पुरुषार्थ कर सतोप्रधान प्रिन्स-प्रिन्सेज बनना है।
- यह है ही डबल ताजधारी प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने की पाठशाला।
- भल गीता पाठशालायें तो बहुत हैं, परन्तु वहाँ यह नहीं सुनाते हैं कि तुम स्वर्ग में प्रिन्स-प्रिन्सेज कृष्ण जैसे बनेंगे।
- ऐसे कोई गीता पाठी बताते हैं क्या?
- यहाँ तो बाप बतलाते हैं, यह इम्तहान है ही प्रिन्स-प्रिन्सेज बनने का।
- उनमें भी बहुत नम्बर हैं।
- 16108 की माला गाई जाती है, सिर्फ 108 थोड़ेही होंगे।
- अभी तो अनगिनत मनुष्य हैं।
- वह कम तो होने ही हैं।
- तुम कोई-कोई बातें अखबार में भी डाल सकते हो, यह जो गऊ हत्या के लिए भूख हड़ताल आदि कर रहे हैं, यह कल्प पहले भी किया था।
- नथिंगन्यु।
- इस समय परमात्मा को पुकारते हैं - हमको पावन दुनिया में ले चलो।
- अब कैसे ले चलेंगे, यह तो तुम बच्चे ही जानते हो।
- परन्तु वह दैवीगुण अभी आये नहीं हैं।
- दैवीगुणों की धारणा बहुत ही कम है।
- ज्ञान तो बहुतों को अच्छा भी लगता है।
- समझते हैं बी.के. पवित्र रहते हैं, सादगी में रहते हैं।
- जेवर आदि नहीं पहनते हैं परन्तु चलन भी अच्छी चाहिए।
- जो घर में भी रहते हैं वह कब पति को वा माँ बाप को नहीं कह सकते कि हमको अच्छे जेवर, अच्छे कपड़े लेकर दो।
- नहीं, क्योंकि तुम जानते हो कि अभी हम वनवाह में बैठे हैं।
- यह पुराना शरीर, यह वस्त्र छोड़ हम विष्णुपुरी में जा रहे हैं।
- शिवबाबा हमारा पतियों का पति, गुरूओं का गुरू है तभी तो सब उनको याद करते हैं कि हे पतित-पावन आओ।
- वही आकर सबको सद्गति देते हैं।
- सिक्ख लोग भी कहते हैं अकालमूर्त।
- सत श्री अकाल।
- आत्मा को कभी काल नहीं खाता है।
- शरीर तो विनाश हो जाता है।
- आत्मा तो विनाश होती नहीं है।
- तो उस सतगुरू, अकाल मूर्त को याद करते हैं कि आकर हमको सद्गति दो।
- अकाल घर में ले चलो, जहाँ से हम आये हैं।
- तो तुम बच्चों को यह समझाना है कि सतगुरू अकालमूर्त वह एक ही है फिर तुम अपने को गुरू कैसे कहलाते हो?
- बाप समझाते हैं यह भक्ति मार्ग के अथाह गुरू हैं।
- ज्ञान सागर तो एक ही बाप है।
- उनसे तुम नदियां निकलती हो।
- यह बातें बाबा ही समझाते हैं।
- बेहद का बाप बेहद का वर्सा देते हैं।
- लौकिक टीचर भी पढ़ाई का वर्सा देते हैं।
- अब बाबा आकर कहते हैं मामेकम् याद करो तो विकर्म विनाश होंगे।
- सिर पर पापों का बोझा है ना।
- बाप को याद करने से बुद्धि गोल्डन बनेगी।
- अभी तो सबकी बुद्धि छी-छी, आइरन एज है।
- मूर्ति के आगे जाकर कहते हैं हम छी-छी हैं।
- आप वाह-वाह हो।
- तुम ही पावन ऊंच थे।
- तुम ही पतित बन नीचे आये हो।
- नाटक ही भारत पर है।
- 84 जन्मों की कहानी भी तुमसे ही लगती है।
- जो कृष्ण की राजधानी में पहले आयेंगे वही पूरे 84 जन्म लेंगे।
- यह भी किसको मालूम नहीं है कि अब स्वर्ग, कृष्णपुरी स्थापन हो रही है।
- तुम क्लीयर कर लिख सकते हो कि हम योगबल से भारत को श्रेष्ठाचारी बना देंगे।
- बर्थ कन्ट्रोल के लिए इतना माथा मारते हैं परन्तु यह तो बाप का ही काम है।
- विनाश के बाद बाकी 9 लाख ही रह जायेंगे।
- इसमें बाप कोई खर्चा नहीं करते हैं।
- न कोई दुआ आदि की बात है।
- परन्तु इस पुरानी दुनिया का विनाश होना ही है।
- यह है संगम।
- गाया भी हुआ है कि ब्रह्मा द्वारा स्थापना तो जरूर यहाँ ही चाहिए ना।
- तो ब्रह्मा को बिठाया है।
- लोग कहते हैं दादा को क्यों बिठाया है?
- कोई को भी बिठायेंगे तो कहेंगे फलाने को क्यों बिठाया है!
- ब्रह्मा तो बिल्कुल साधारण है।
- सबसे बड़ा तो ब्रह्मा ही हो सकता है।
- बात तो बिल्कुल सिम्पुल है।
- परन्तु कितना समझाना पड़ता है।
- भगवान आते ही हैं पतित शरीर और पतित दुनिया में।
- पावन शरीर तो यहाँ किसका हो न सके।
- सीढ़ी के चित्र में भी दिखाया है कि कांटों के जंगल में खड़े हैं।
- यह पतित दुनिया है ना।
- भगवान आते ही हैं पतित साधारण तन में, फिर उनका नाम ब्रह्मा रखा है।
- यह सब बातें बुद्धि में रखनी हैं।
- अनेक प्रकार के लोग प्रश्न पूछते हैं।
- सीढ़ी का चित्र समझाने वालों की बुद्धि बड़ी अच्छी चाहिए।
- परन्तु जिनका यहाँ आने का पार्ट ही नहीं है, वह आकर फालतू प्रश्न करेंगे।
- 84 का चक्र गाया भी हुआ है।
- सो भी सब तो ले नहीं सकते।
- जो पूज्य हैं वही पुजारी बनते हैं।
- ज्ञान तो बिल्कुल सहज है।
- सिर्फ बाबा को याद करो तो विकर्म विनाश होंगे और तुम देवी-देवता बन जायेंगे।
- ब्राह्मण ही फिर देवता बनेंगे।
- विराट रूप का चित्र, गोला, सीढ़ी, त्रिमूर्ति यह चित्र आपस में कनेक्शन रखते हैं।
- बाप कितनी समझाने की युक्ति बताते हैं।
- कोई तो धारणा करते हैं।
- कोई तो एक कान से सुन दूसरे से निकाल भी देते हैं।
- तुम बच्चों की बुद्धि में है कि हमारी किंगडम स्थापन हो रही है।
- तुम हो अब संगमयुग पर।
- संगम का ही गायन है कि आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल।
- हम ही पहले सतयुग में आते हैं।
- बाकी सब शान्तिधाम में होते हैं।
- पहले वही आयेंगे जो कल्प पहले आये होंगे और जो अच्छी रीति पढ़ेंगे।
- जो अच्छी रीति नहीं पढ़ेंगे वह पिछाड़ी में आयेंगे।
- सब हिसाब-किताब है।
- यह बातें सर्विसएबुल बच्चों की बुद्धि में बैठेंगी।
- गाया भी हुआ है धन दिये धन ना खुटे..।
- दान नहीं करते तो गोया पढ़ते नहीं।
- बाप देखते हैं कौन भारत के रूहानी सेवाधारी हैं।
- जैसेकि वह अपना ही कल्याण करते हैं।
- बाप पढ़ाई भी पढाते हैं।
- साक्षी होकर देखते भी हैं कि कौन-कौन अपना ऊंच जीवन बनाते हैं और कौन पास होंगे।
- तुम भी देखते हो कि सबसे ऊंच सर्विसएबुल कौन हैं?
- प्रदर्शनी में भी उन बच्चों को ही बुलाते हैं।
- कोई तो ऐसे ही चले जाते हैं।
- जाकर देखें, अनुभव करें।
- इस ज्ञान में मैनर्स भी अच्छे चाहिए।
- फँक भी नहीं होना चाहिए।
- एक छुईमुई की बूटी होती है, हाथ लगाने से मुरझा जाती है।
- कितनी वन्डरफुल बूटी है।
- दूसरी है संजीवनी बूटी, जो पहाड़ों पर होती है।
- वास्तव में बाबा आकर तुमको संजीवनी बूटी देते हैं कि मन्मनाभव।
- बाकी शास्त्रों में तो क्या-क्या लिख दिया है।
- तुम ही नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार महावीर महावीरनियां हो।
- तुम भी माया पर विजय पाते हो।
- तुम हो इनकागनीटो वारियर्स।
- बड़े से बड़ी हिंसा है काम कटारी चलाना।
- दूसरा नम्बर है; क्रोध करना, कडुवा बोलना - यह भी हिंसा है।
- बच्चों को तो सदैव खुशी का पारा चढ़ा रहना चाहिए।
- जो बच्चे सर्विस में तत्पर हैं, उनमें भी माताओं का नाम आगे है।
- तुम हो शिव शक्ति सेना।
- गवर्नर ने भी कहा कि मातायें जो कार्य कर रहीं हैं, यह बहुत अच्छा है।
- परन्तु यहाँ तो यह दोनों के लिए ज्ञान है।
- हाँ माताओं की मैजारिटी है।
- यह थोड़ेही कि प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सिर्फ कुमारियां ही हुई।
- कुमार भी तो हैं ना।
- जब दोनों ज्ञान लेवें तब तो प्रवृत्ति ठीक चले।
- जिसके घर में बच्ची होती है तो समझते हैं लक्ष्मी आई।
- जहाँ बच्ची नहीं होती तो समझते हैं यह घर निभागा है।
- देखो, लक्ष्मी की पूजा करते हैं, स्त्री को घर का श्रृंगार माना जाता है।
- लक्ष्मी है तो उनके साथ नारायण भी होगा।
- आजकल माताओं का बहुत रिगॉर्ड रखते हैं।
- सबसे जास्ती रिगॉर्ड तो बाप ही आकर रखते हैं।
- पहले लक्ष्मी फिर नारायण।
- आजकल मिस्टर और मिसेज अक्षर निकाल श्री नाम रख दिया है।
- यह है माया की मत।
- और कोई खण्ड में श्री अक्षर नहीं है।
- श्री क्राइस्ट कभी नहीं कहेंगे।
- श्रीमत है ही एक भगवान की, जो श्रीमत से आकर श्रेष्ठाचारी बनाते हैं।
- तुम बच्चों को तो बहुत पुरूषार्थ करना चाहिए।
- परन्तु कोई देह-अभिमान में आकर अपना पद भ्रष्ट कर देते हैं।
- इस समय सब देह-अभिमानी हैं।
- और कोई पाठशाला ऐसे हो नहीं सकती जहाँ कि आत्माओं को बैठ परमात्मा पढ़ाते हो।
- अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
- कोई का भी ड्रामा में ऐसा पार्ट नहीं है।
- आत्मा में ही सारा अविनाशी पार्ट भरा हुआ है - 84 जन्मों का।
- सीढ़ी का चित्र तो क्लीयर कर देता है।
- यह तुम जानते हो कि जिसने 84 जन्म लिये होंगे वही आयेंगे।
- बाकी के लिए ऐसे ही समझना है कि पिछाड़ी में आने वाले हैं।
- अब बच्चों को बहुत ही समझदार बनना है।
- अच्छी रीति पढ़ना है।
- जो अच्छी रीति पढ़ेंगे और फिर पढ़ायेंगे, वही ऊंच पद पायेंगे।
- बाप समझानी तो बहुत अच्छी देते हैं कि देह सहित सबको भूलो।
- अपने को आत्मा समझो।
- इस पुरानी दुनिया को भूल जाना है, सिर्फ एक बाप को याद करना है।
- याद से ही बाप का वर्सा पायेंगे।
- आजकल ईशारा भी करते हैं कि भगवान को याद करो तो जरूर एक ही बाप है ना।
- बाकी सब बच्चे हैं।
- ऊंचे ते ऊंचा है ही शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर जगत अम्बा.. भक्ति मार्ग का पसारा (विस्तार) है झाड़।
- ज्ञान है बीज।
- अच्छा!
मीठे मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) इस समय स्वयं को वनवाह में समझना है।
- अच्छे कपड़े, अच्छे जेवर पहनने का शौक छोड़ देना है।
- सादगी में रहते हुए चलन बहुत रॉयल रखनी है।
- 2) छुईमुई कभी नहीं बनना है।
- मुख से कड़ुवे बोल नहीं बोलने हैं।
- संजीवनी बूटी से माया जीत बनना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- साकार बाप समान अपने हर कर्म को यादगार बनाने वाले आधारमूर्त और उद्धारमूर्त भव
- जैसे साकार बाप ने अपना हर कर्म यादगार बनाया ऐसे आप सभी का हर कर्म यादगार तब बनेगा जब स्वयं को आधारमूर्त और उद्धारमूर्त समझकर चलेंगे।
- जो अपने को विश्व परिवर्तन के आधारमूर्त समझते हो, उनका हर कर्म ऊंचा होता है और वृत्ति-दृष्टि में जब सर्व के कल्याण की भावना रहती है तो हर कर्म श्रेष्ठ हो जाता है।
- ऐसे श्रेष्ठ कर्म ही यादगार बनते हैं।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- सत्यता की शक्ति को धारण करने के लिए सहनशील बनो।
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