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ओम् शान्ति।
- जब बाप ओम् शान्ति कहते हैं तो दादा भी ओम् शान्ति कहते हैं।
- बच्चे भी अन्दर में कहते हैं ओम् शान्ति।
- जब कोई भाषण करते हैं तो ओम् शान्ति कहते हैं।
- वहाँ सब बैठे हुए भी कहते हैं ओम् शान्ति।
- रेसपान्ड जरूर देना होता है।
- अभी तुम बच्चे समझते हो आत्माओं और परमात्मा का अभी मिलन हो रहा है।
- गाया भी हुआ है - आत्मा परमात्मा अलग रहे बहुकाल... जिससे बहुत काल अलग रहते हैं, उनसे ही सम्मुख मिलते हैं।
- वह आते हैं अपना पार्ट बजाने।
- भक्ति मार्ग में जिसको इतना ढूँढते रहते हैं, आखिर वह दिन भी आता है जबकि बाप से मिलना होता है।
- सिर्फ एक भारत ही अविनाशी खण्ड है, बाकी सब हैं विनाशी खण्ड।
- नई दुनिया में तो सिर्फ भारत ही होता है।
- भारत का कभी विनाश नहीं होता है।
- यह तो है ही।
- अभी तो कितने खण्ड हैं।
- भारत में जब देवी-देवताओं का राज्य था तो वहाँ कोई खण्ड नहीं था, सिर्फ भारतवासी ही थे और कोई मनुष्य नहीं थे।
- भारत में सिर्फ सूर्यवंशी देवी-देवताओं का राज्य था।
- अभी उन्हों के सिर्फ चित्र रह गये हैं।
- यादगार तो रहना चाहिए ना।
- पहले कितना छोटा झाड़ होता है।
- उसको कहा जाता है रामराज्य, ईश्वरीय राज्य।
- ईश्वर की स्थापना है ना।
- अभी तो है आसुरी स्थापना और सतयुग की है दैवी स्थापना।
- ईश्वर की स्थापना आधाकल्प चलती है फिर आसुरी स्थापना होती है, जिसको रावणराज्य कहा जाता है।
- वह है निर्विकारी दुनिया और यह है विकारी दुनिया।
- दुनिया में कोई जानते नहीं कि यह दुनिया का चक्र कैसे फिरता है।
- देवी-देवता फिर कहाँ गये।
- पावन सो फिर पतित कैसे बनें।
- सीढ़ी उतरना होता है ना।
- कलायें कम होती जाती हैं।
- जैसे चन्द्रमा को ग्रहण लगता है तो कहा जाता है दे दान तो छूटे ग्रहण।
- अभी बाप कहते हैं 5 विकारों को छोड़ो।
- जब तुम रावण की जेल से छूटेंगे तो रामराज्य स्थापन हो जायेगा।
- वहाँ यह 5 विकार होते नहीं।
- यह भी किसको पता नहीं।
- मनुष्य समझते हैं यह सदा से ही चले आते हैं।
- दुनिया में मनुष्यों की हैं अनेक मत।
- तुम्हारी है एक मत, इसको कहा जाता है अद्वैत मत।
- यहाँ है आसुरी मत।
- तुम जानते हो हम भारतवासी रामराज्य में थे।
- पूज्य सो पुजारी बने हैं।
- तुम बच्चों की बुद्धि में यह नॉलेज अभी बैठी है।
- हम ही पूज्य थे फिर पुनर्जन्म लेते-लेते पुजारी बने हैं।
- वह समझते हैं परमात्मा ही पूज्य पुजारी बनते हैं, उनकी ही सारी लीला है, सभी परमात्मा ही परमात्मा हैं, यह सबसे बड़ी भूल है।
- अभी तुम बच्चों को तो खुशी होती है, जिस बाप को आधाकल्प याद किया है, अब वह मिला है।
- कहते हैं दु:ख में सिमरण सब करे, सुख में करे न कोई।
- वही आत्मायें फिर दु:ख में आती हैं तो बाप को याद करती हैं।
- सतयुग में कोई भी बाप को बुलायेंगे नहीं।
- तो अभी आत्माओं का परमात्मा से, परमात्मा का हम आत्माओं से मेला होता है।
- बाप ही ज्ञान का सागर है, इसमें पानी के सागर की बात नहीं।
- संगम पर देखो कुम्भ का कितना बड़ा मेला लगता है, अभी सच्चा-सच्चा मेला तुम्हारा लगा हुआ है।
- सब तो इकट्ठे मिल नहीं सकते।
- कोई कहाँ से, कोई कहाँ से आते हैं।
- मेले पर कितने लाखों मनुष्य जाते हैं स्नान करने।
- जन्म-जन्मान्तर यह स्नान करते आये हैं।
- कहते हैं यह मेला लगता ही रहता है।
- छोटा और बड़ा कुम्भ भी कहते हैं।
- अब बाप तो एक ही बार आते हैं पतितों को पावन बनाने।
- गंगा पतित-पावनी है तो क्या वह ज्ञान सुनायेगी?
- यहाँ तो पतित-पावन बाप बैठ सृष्टि के आदि मध्य अन्त का ज्ञान सुनाते हैं।
- बच्चे जानते हैं अभी दुनिया की हालत क्या है?
- विनाश तो बच्चों ने देखा है।
- अर्जुन तो यह ब्रह्मा ठहरा ना।
- यह तो है मनुष्य का रथ।
- यह बताते हैं हमने विनाश भी देखा, अपनी राजधानी भी देखी तब छोड़ा।
- घर आदि सब कुछ फट से छोड़ दिया।
- विनाश तो होना ही है।
- यह कोई नई बात नहीं है।
- यह है ईश्वरीय दरबार, इसमें कोई पतित को बैठना नहीं चाहिए।
- नहीं तो वह एकदम रसातल में चला जायेगा पतित बनने से, इसलिए पतित को आने का हुक्म ही नहीं है।
- ऐसे कोई-कोई आ जाते हैं।
- समझते हैं इन्हों को क्या पता कि हम विकार में गये।
- यह बड़ी गन्दी चीज़ है।
- विलायत में 4-5 बच्चे पैदा करने वालों को इनाम मिलता है।
- सतयुग में तो एक ही बच्चा होता है, सो भी विकार की वहाँ बात नहीं।
- वहाँ तो रावण राज्य ही नहीं।
- वह है रामराज्य।
- कन्या शादी करती है तो कन्या को गुप्त रीति से बहुत कुछ देते हैं, जो किसको पता नहीं पड़ता।
- बाप भी कहते हैं बच्चे तुमको गुप्त दान देता हूँ।
- किसको पता पड़ता है क्या, हम क्या दे रहे हैं।
- यह है गुप्त।
- कोई समझ नहीं सकते कि यह बी.के. विश्व के मालिक बनेंगे।
- यह तुम अभी समझते हो, हम विश्व के मालिक थे फिर 84 जन्म लेते हैं।
- हम कल्प-कल्प बाबा से वर्सा लेते हैं।
- कहते हैं बाबा हम कल्प-कल्प आपसे मिलते हैं।
- कल्प पहले भी मिले थे।
- बाबा को ही राम कहते हैं।
- राम त्रेता वाला नहीं, उनको तो सिर्फ उनका बच्चा ही बाबा कहेगा।
- यह तो है बेहद का बाप।
- अब बाप तुम बच्चों को कहते हैं।
- तुम बच्चों को दैवीगुण धारण कर ऐसा बनना है।
- इन देवी-देवताओं की कितनी महिमा करते हैं।
- परन्तु समझते कुछ भी नहीं।
- कहते हैं अचतम् केशवम्... अब कहाँ राम, कहाँ नारायण।
- सबको मिला देते हैं।
- अर्थ कुछ भी नहीं निकलता।
- अभी तुमको नटशेल में सब कुछ समझाया जाता है।
- द्वापर से लेकर यह भक्ति मार्ग शुरू होता है।
- 84 का चक्र लगाकर नीचे उतरना ही है।
- 84 जन्म गाये जाते हैं।
- बाबा ने पूछा - यहाँ तुम बैठे हो तो क्या सब 84 जन्म लेंगे या कोई 80-82 भी लेंगे?
- क्या सब पास होंगे?
- क्या भागन्ती हो जाने वालों के जन्म कम जास्ती नहीं होंगे?
- अवस्था अनुसार ही हर एक का पार्ट होगा ना।
- बहुत हैं जो आश्चर्यवत भागन्ती हो जायेंगे।
- फिर सतयुग में कैसे आयेंगे।
- वह तो प्रजा में भी बहुत देरी से आयेंगे क्योंकि ग्लानी करते हैं।
- इतने सब थोड़ेही सूर्यवंशी में आ सकते हैं।
- नम्बरवार पुरुषार्थ अनुसार माला बनती है।
- बाप तो ज्ञान का सागर है।
- कौन सा उसमें ज्ञान है, यह भी कोई नहीं जानते हैं।
- तुमको अब ज्ञान मिल रहा है।
- वह तो सिर्फ स्तुति करते हैं, समझते कुछ भी नहीं।
- इसको कहा जाता है भक्ति मार्ग।
- त्योहार भी जो मनाये जाते हैं वह हैं सब इस समय के, जो फिर बाद में मनाये जाते हैं।
- तुमको तो आधाकल्प सुख में हॉली डे मिल जाती है।
- कभी दु:ख का नाम नहीं देखेंगे।
- हॉली डे हो जाता है क्योंकि तुम पवित्र हो जाते हो ना।
- बाप समझाते हैं तुम्हारा यह अन्तिम जन्म है।
- जब रावणराज्य शुरू होता है, उसको मृत्युलोक कहा जाता है।
- मृत्युलोक मुर्दाबाद... अमरलोक जिंदाबाद होता है।
- सुख और दु:ख, राम और रावण का यह खेल है।
- राम द्वारा तुम राज्य पाते हो, रावण द्वारा तुम राज्य गँवाते हो।
- बाप कहते हैं - तुम अपने जीवन को नहीं जानते हो और कोई ऐसे कह न सके, बाप ही बतलाते हैं।
- वह तो 84 लाख कह देते हैं।
- फिर तो कल्प की आयु लाखों वर्ष हो जाती है।
- कुछ भी बुद्धि में नहीं आता, जो इन बातों को समझ सकें।
- कल्प की आयु भी रांग लिख दी है।
- यह शास्त्र आदि सब भक्ति मार्ग के हैं।
- तुम बच्चों को कितना सहज समझाया जाता है।
- आगे चलकर और अच्छी रीति समझायेंगे।
- जब कोई मरता है तो उस समय सिर्फ थोड़ा वैराग्य आता है, उसको कहा जाता है शमशानी वैराग्य।
- शमशान से बाहर निकल मार्केट में गये तो खलास, जाकर मास मदिरा खरीद करेंगे।
- तुम बच्चों को इस समय है सारी पुरानी दुनिया से वैराग्य।
- बाबा समझाते हैं वैराग्य दो प्रकार का है।
- निवृत्ति मार्ग वालों का है हद का वैराग्य।
- वह प्रवृत्ति मार्ग के लिए ज्ञान देंगे ही नहीं।
- दोनों पवित्र बनो - यह वह कह नहीं सकते।
- गीता वह सुना न सकें।
- तुमको तो ज्ञान सागर से ज्ञान मिलता है।
- वह समझते भी हैं परन्तु उनको डर रहता है।
- आगे चलकर मान लेंगे बरोबर गीता कृष्ण ने नहीं सुनाई।
- अगर अब कहेंगे तो उनके सब फालोअर्स भाग जायेंगे।
- फट से कहेंगे इनको बी.के. का जादू लगा है।
- अब बाप समझाते हैं अगर देवता बनना है तो दैवीगुण धारण करो।
- मुख्य बात है पवित्रता की।
- यहाँ मनुष्यों का खान पान ही देखो कितना आसुरी है।
- जन्म-जन्मान्तर की पाप आत्मायें हैं।
- पुण्य आत्मा एक भी नहीं है।
- अभी तुम बन रहे हो।
- सतयुग में सब पुण्य आत्मायें होती हैं।
- वहाँ हैं ही श्रेष्ठाचारी पावन।
- यहाँ है भ्रष्टाचारी पतित।
- सतयुग में 5 विकार होते नहीं।
- रामराज्य रावणराज्य में कितना फ़र्क पड़ जाता है, इनको तो रावण राज्य कहेंगे ना।
- पतित-पावन एक ही गॉड फादर है।
- तुम जानते हो वह हमारा बेहद का बाप है।
- बेहद के बाप, रचयिता को रचना याद करती है।
- बाबा ने समझाया है - सतयुग में है एक बाप।
- फिर होते हैं दो बाप।
- लौकिक और पारलौकिक।
- तुमको हैं तीन बाप।
- लौकिक, पारलौकिक, अलौकिक।
- भक्ति मार्ग में लौकिक बाप होते भी पारलौकिक बाप को याद करते हैं।
- यहाँ तो यह वन्डरफुल है - बाप और दादा।
- दोनों बैठे हैं।
- यह भी तुम बच्चे जानते हो - फिर घड़ी-घड़ी भूल जाते हो।
- प्रजापिता ब्रह्मा तो गाया हुआ है ना।
- वह अभी ही मिलता है।
- प्रजापिता ब्रह्मा है साकार।
- वह है निराकार।
- निराकार और साकार दोनों इकट्ठे हैं।
- दोनों का हाइएस्ट पोजीशन है, इनसे बड़ा कोई होता नहीं और कितना साधारण रीति बैठे हैं।
- पढ़ाई भी कितनी सहज है बच्चों के लिए।
- बाप सिर्फ कहते हैं अपने को आत्मा समझो।
- आत्मा अविनाशी है, यह देह विनाशी है।
- एक शरीर से आत्मा निकल जाकर दूसरा शरीर लेती है, तुमको रोने की दरकार नहीं है।
- मनुष्य शरीर को याद करने से रोते हैं।
- तुमको रोने की दरकार नहीं।
- सतयुग में कभी रोते नहीं।
- वहाँ हैं ही मोहजीत।
- यह सब बातें तुमको संगम पर ही समझाई जाती हैं।
- तुमको यह लक्ष्मी-नारायण का चित्र देखकर बहुत खुशी होनी चाहिए इसलिए बाप ने कहा है यह लक्ष्मी-नारायण, त्रिमूर्ति का बैज वा मेडल जेब में डाल दो।
- घड़ी-घड़ी पॉकेट से निकाल कर देखो।
- ओहो!
- हम तो यह बनने वाले हैं।
- बहुत खुशी होगी।
- औरों को भी दिखाकर खुश करो कि हम यह बन रहे हैं।
- देखने से खुशी होगी।
- मैं तो शिव बाबा का बच्चा हूँ।
- मुझे किसी बात की क्या परवाह करनी है।
- कुछ घाटा पड़ा सो क्या!
- हम तो भविष्य 21 जन्मों के लिए पदमपति बनते हैं।
- देखो, बाबा ने सब कुछ दे दिया।
- फिर फायदे में हैं या घाटे में हैं?
- बाबा अब सम्मुख समझा रहे हैं।
- तुम्हारा यह धन दौलत सब कुछ मिट्टी में मिल जाने वाला है।
- अपना जीवन सफल करना है तो अपना तन-मन-धन इसमें लगाओ फिर इनके एवज में देखो तुमको क्या मिलता है!
- आत्मा भी गोल्डन बन जाती तो तन भी सुन्दर, धन तो अथाह रहता है।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- धारणा के लिए मुख्य सार:-
- 1) मैं शिवबाबा का बच्चा हूँ, मुझे भविष्य 21 जन्मों के लिए पदमपति बनना है, इसी खुशी में रहना है और सबको खुश करना है।
- किसी बात की परवाह नहीं करनी है।
- 2) एक बाप की अद्वेत मत पर चलकर बेहद का वैरागी बनना है।
- वरदान:-
- ( All Blessings of 2021)
- रूहाब और रहम के गुण द्वारा विश्व नव निर्माण करने वाले विश्व कल्याणकारी भव
- विश्व कल्याणकारी बनने के लिए मुख्य दो धारणायें आवश्यक हैं एक ईश्वरीय रूहाब और दूसरा रहम।
- अगर रूहाब और रहम दोनों साथ-साथ और समान हैं तो रूहानियत की स्टेज बन जाती है।
- तो जब भी कोई कर्तव्य करते हो वा मुख से शब्द वर्णन करते हो तो चेक करो कि रहम और रूहाब दोनों समान रूप में हैं?
- शक्तियों के चित्रों में इन दोनों गुणों की समानता दिखाते हैं, इसी के आधार पर विश्व नव-निर्माण के निमित्त बन सकते हो।
- स्लोगन:-
- (All Slogans of 2021)
- बाप के प्यार के पीछे व्यर्थ संकल्प न्योछावर कर दो - यही सच्ची कुर्बानी है।
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