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ओम् शान्ति।
- यह गीत तो बच्चे समय प्रति समय सुनते भी हैं और अपने पारलौकिक परमपिता परमात्मा को याद भी करते हैं।
- याद हमेशा उनको किया जाता है जिससे कुछ न कुछ सुख मिलता है।
- बनारस में शिव के मन्दिर हैं।
- वहाँ बहुत जाते हैं और निराकार बाप को याद करते हैं।
- जैसे लक्ष्मी-नारायण को सब याद करते हैं क्योंकि उनके राज्य में सुख था, तब ही राजा रानी की महिमा निकलती है।
- सारी दुनिया याद करती है ओ गाड फादर।
- वह एक ही वर्ल्ड का फादर है और कोई तो वर्ल्ड का फादर नहीं है, वर्ल्ड का फादर है निराकार गॉड, उस एक को ही अवतार अर्थात् रीइनकारनेशन भी कहते हैं।
- वह एक ही बाप है जिसको अपना सूक्ष्म वा स्थूल शरीर नहीं है।
- ब्रह्मा, विष्णु, शंकर को भी सूक्ष्म शरीर है।
- उनको भी अवतार नहीं कहेंगे।
- अवतार अक्षर बहुत ऊंचा है।
- वह सबका बाप, सबको सुख देने वाला पतित-पावन है।
- सर्व मनुष्य आत्मायें जो भी आती हैं वह पहले सतोप्रधान फिर सतो रजो तमों में आती हैं।
- उनको पतित दु:खी होना ही है।
- पुनर्जन्म तो सब लेते हैं ना।
- ब्रह्मा को भी मनुष्य कहा जाता, विष्णु के दो रूप लक्ष्मी-नारायण को भी मनुष्य कहा जाता।
- तो उन्हों को भी हम अवतार नहीं कह सकते हैं।
- अवतार तो सिर्फ एक ही है।
- बाप आते ही हैं बच्चों को वर्सा देने।
- आते भी तब हैं जब सारी दुनिया पतित हो जाती है।
- जो भी मनुष्य मात्र हैं, सब गॉड फादर की रचना हैं।
- भिन्न नाम रूप से सब गॉड फादर जरूर कहते हैं।
- हर एक आत्मा की बुद्धि उस बाप को याद करती है।
- ऐसे नहीं ब्रह्मा विष्णु शंकर को याद करते हैं।
- ब्रह्मा विष्णु शंकर को बाप नहीं कहेंगे।
- बाप तो एक क्रियेटर को ही कहेंगे।
- जब संगमयुग होता है, सभी मनुष्य पतित हो जाते हैं तब बाप अवतार लेते हैं, कल्प के संगमयुग पर, कलियुग को सतयुग बनाने।
- क्रियेटर है ना।
- दिखाते हैं ब्रह्मा द्वारा स्थापना कराते हैं, शंकर द्वारा विनाश, विष्णु द्वारा पालना कराते हैं।
- आते भी हैं भारत में।
- शिवरात्रि भी भारत में ही मनाई जाती है।
- परन्तु जानते नहीं कि शिव का नाम रूप देश काल क्या है!
- बाप कहते हैं मुझे न जान सर्वव्यापी कह देते हैं।
- मेरी बहुत ग्लानी कर देते हैं, जिस कारण भारतवासी बिल्कुल ही पतित हो गये हैं।
- जब भारत में सब पतित आत्मायें बन जाती हैं तब फिर मैं आता हूँ।
- कलियुग में कोई भी पुण्य आत्मा, पवित्र आत्मा नहीं हो सकती।
- पवित्र दुनिया में पवित्र आत्मायें रहती हैं, उसको कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया।
- उसकी भेंट में कलियुग है विशश दुनिया।
- कलियुग के अन्त और सतयुग के आदि को कहा जाता है संगम।
- द्वापर और त्रेता को नहीं मिलायेंगे।
- अन्त माना सारी पुरानी दुनिया का अन्त और नई दुनिया का आदि।
- सतयुग है पावन दुनिया फिर कलायें कमती होती जाती हैं।
- सतयुग त्रेता को भी एक समान नहीं रखेंगे।
- बाप कहते हैं मुझे बच्चों ने नम्बरवार ही पहचाना है - इस समय ही यह कहा जाता है क्योंकि माया सामने खड़ी है, घड़ी-घड़ी भुला देती है।
- कहते हैं हम ब्रह्मा के बच्चे शिव के पोत्रे हैं।
- यह कहते भी भूल जाते हैं।
- अज्ञान में ऐसी बात कभी नहीं भूलेंगे।
- यहाँ सामने कह देते हैं कि हम ब्रह्मा के बच्चे नहीं हैं।
- एकदम भूल जाते हैं।
- इतना भूल जाते हैं जो फिर कभी याद भी नहीं करते हैं।
- यह एक बड़ा वन्डर है।
- भारतवासी यह भी जानते हैं कि स्वर्ग बनाने वाला परमपिता परमात्मा है और नर्क बनाने वाला माया रावण है।
- फिर दोनों ही बातें भूल जाते हैं।
- न बाप को जानते, न रावण को जानते।
- शिव को पूजते हैं और रावण को जलाते हैं।
- परन्तु वन्डर यह है जिन्हों को पूजते हैं उनके आक्यूपेशन, बायोग्राफी का पता नहीं और रावण जिसको जलाते हैं उनका भी पता नहीं कि रावण क्या चीज़ है।
- मनुष्य मात्र यथा राजा रानी तथा प्रजा उसमें सब आ जाते हैं, सब तुच्छ बुद्धि हैं।
- बाप समझाते हैं और जो धर्म स्थापन करने आते हैं, उनको रीइनकारनेशन नहीं कहेंगे।
- अवतरण एक बाप का ही होता है भारत में।
- परन्तु भारतवासी खुद ही भूल जाते हैं।
- भल परमपिता परमात्मा की पूजा करते हैं परन्तु वह कब आया, क्या किया, कुछ भी जानते नहीं।
- न बाप को, न रचना के आदि-मध्य-अन्त को जानते हैं, न देवी-देवताओं की बायोग्राफी को जानते हैं, इसलिए ही दु:खी हैं।
- भारतवासी पहले कितने सुखी थे, बिल्कुल ही विश्व के मालिक थे।
- अब वह भारतवासी यह नहीं जानते कि हम सब पावन श्रेष्ठाचारी थे।
- अगर थे तो कैसे बनें, कुछ भी नहीं जानते, यह है वन्डर।
- बाप कितना क्लीयर कर समझाते हैं।
- किसको समझायेंगे?
- अपने बच्चों को समझाता हूँ।
- बच्चों के ही सामने प्रत्यक्ष होता हूँ।
- परन्तु बच्चे भी प्रत्यक्ष हो, मम्मा-बाबा कहकर फिर भूल जाते हैं।
- यही वन्डर है।
- अज्ञानकाल में कभी बाप टीचर गुरू को भूल न सकें।
- यहाँ यह पारलौकिक बाप जो इतना बड़ा है, जो सब दु:ख दूर करते हैं, उनको भूल जाते हैं, तब कहा जाता है आश्चर्यवत सुनन्ती, कथन्ती अहो मम माया तुम कितनी प्रबल हो।
- बेहद बाप के बनन्ती, टीचर समझ उनसे पढ़ते हुए, पतित-पावन सतगुरू पक्का समझते हुए फिर तीनों को ही भूल जाते हैं।
- एक को भूले तो तीनों को ही भूले।
- एक को याद करो तो तीनों ही याद पड़ेंगे क्योंकि यह तीनों ही कम्बाइन्ड हैं।
- खुद ही बाप टीचर और सतगुरू है, सो भी एक्यूरेट है।
- कहते हैं मैं बाप हूँ तुमको जरूर अपने परमधाम में ले जाऊंगा।
- मैं तुम्हारा शिक्षक हूँ, पढ़ाकर तुमको जरूर राजाओं का राजा बनाऊंगा।
- मैं सतगुरू हूँ, तुम बच्चों को नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार सबको वापिस जरूर ले जाऊंगा।
- यह गैरन्टी करते हैं।
- ऐसे बाप को भी चलते-चलते भूल जाते हैं।
- माया की ग्रहचारी ऐसी है जो आज कहेंगे बाबा, कल कहेंगे हमको संशय पड़ता है।
- ऐसे ही होता रहता है।
- हाँ कोई तो फिर अन्त में आकर वर्सा लेंगे।
- ग्रहचारी उतरेगी तो आ जायेंगे।
- ऐसे ड्रामा में नूँध है।
- विनाश तो होना ही है, फिर किसकी शरण लेंगे?
- सबका सद्गति दाता तो एक ही है। सबको शरण में लेने वाला भी है, सब आकर माथा झुकाने वाले हैं।
- परन्तु उस समय क्या कर सकेंगे।
- फिर ऐसा होगा तो इतनी भीड़ इकट्ठी आ न सके।
- यह खेल ही बड़ा वन्डरफुल बना हुआ है।
- इतनी भीड़ आकर क्या करेगी?
- फिर शीघ्र ही विनाश समाने आ जायेगा।
- हाँ, आवाज सुनेंगे कि बाप कहते हैं मुझे याद करो, अब वापिस जाना है।
- बाकी मिलने से क्या फायदा।
- बाबा डायरेक्शन देते हैं कि भल कोई विलायत में है तो भी बाप को याद करते रहो तो विकर्म विनाश होंगे।
- अन्त मती सो गति हो जायेगी।
- सबको पैगाम तो मिलना ही है।
- एक जगह पर इतने थोड़ेही मिल सकेंगे।
- परन्तु ड्रामा बड़ा वन्डरफुल बना हुआ है।
- सबको पता पड़ेगा कि फादर आया हुआ है।
- क्रिश्चियन सब थोड़ेही पोप से मिलते हैं।
- सब पहुँच न सकें।
- यह भी सबको अन्त में पता पड़ेगा कि बाप आया है, सबको लिबरेट कर ले जायेंगे।
- कितना बड़ा विनाश होना है।
- रुद्र माला कितनी जबरदस्त है।
- उनकी भेंट में विष्णु की माला कितनी छोटी है।
- यूँ तो कहें कि यह सारी माला विष्णु की है।
- पहला-पहला तो विष्णु ठहरा ना।
- ह्युमनिटी का ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर ब्रह्मा ही ठहरा।
- ब्रह्मा ही फिर विष्णु बनते हैं।
- विष्णु के दो रूप हैं लक्ष्मी-नारायण।
- फ़र्क कुछ भी नहीं।
- यह बड़ी वन्डरफुल बातें हैं, इसको सिमरण करते रहो तो खुशी भी रहे।
- बाबा ने समझाया है - रीइनकारनेशन सिर्फ एक को ही कहा जाता है क्योंकि उनको अपना शरीर नहीं है और सबको अपना-अपना शरीर है।
- बाबा को तो शरीर का लोन लेना पड़े।
- औरों को तो अपना-अपना शरीर है।
- लोन लेने वाली चीज़ दूसरे की होती है।
- कोई भी आत्मा थोड़ेही कहेगी कि हम लोन लेते हैं। आत्मा तो कहती है - मेरा शरीर है।
- शिवबाबा तो कह न सके कि यह मेरा शरीर है।
- वह सिर्फ आधार लेते हैं, बच्चों को नॉलेज देने और योग सिखलाने।
- बच्चे भी जानते हैं कि बाबा ने आधार लिया है फिर भी घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
- देह-अभिमानी बनते हैं तो वह रिगार्ड गुम हो जाता है।
- नहीं तो बाबा क्या चीज़ है, अगर जाने तो उनके फरमान पर जरूर चलें।
- कदम-कदम श्रीमत लेनी पड़े।
- परन्तु माया भुला देती है।
- कभी श्रीमत पर, कभी आसुरी मत पर चल पड़ते हैं।
- कभी वह तरफ भारी, वह हल्का।
- कभी उनकी मत पर, कभी उनकी मत पर।
- एक ही शिवबाबा की श्रीमत पर चलते रहें तो ठीक, ऊपर भी चढ़ते रहें। परन्तु अपनी मत पर भी चल पड़ते हैं।
- बाप जो डायरेक्शन आदि देते हैं उनको अमल में जरूर लाना पड़े।
- फिर कुछ भी हो जाता है तो कहेंगे ड्रामा में ऐसा था।
- राजधानी तो स्थापन होनी ही है, इसमें ज़रा भी फ़र्क नहीं पड़ सकता।
- मिलने लिए तो बहुत आते हैं फिर घर गये तो खलास।
- पूरे निश्चय से थोड़ेही आते हैं।
- कोई को 5 प्रतिशत निश्चय है तो कोई को 15 प्रतिशत।
- अज्ञानकाल में जब पता लग जाता है यह मेरा चाचा है, मामा है तो फिर संशय थोड़ेही पड़ता है।
- यहाँ तो माया संशय में लाकर गिरा देती है।
- गोया निश्चय बैठा ही नहीं है।
- निश्चय बैठे-बैठे भी फिर गुम हो जाते हैं।
- वन्डर है ना।
- यह एक ही बाप टीचर सतगुरू है।
- हर एक नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार कल्प पहले मुआफिक उठाते हैं।
- कल्प पहले जिसने जितना वर्सा लिया है, हर एक की वही एक्ट चल रही है।
- इस समय हम ब्राह्मणों की माला नहीं बन सकती क्योंकि ग्रहचारी आती रहती है तो टूट पड़ते हैं।
- फिर प्रजा की माला में आ जाते हैं।
- प्रजा में भी कब कैसे, कब कैसे।
- माला है तो जरूर।
- रुद्र माला और विष्णु की माला - वह है रूहानी माला, वह है जिस्मानी माला।
- इसको समझने की बड़ी अच्छी विशाल और स्वच्छ बुद्धि चाहिए।
- व़फादार, फरमानबरदार चाहिए जो श्रीमत पर पूरा ध्यान देता रहे।
- शिवबाबा की कितनी बड़ी सर्विस है।
- कहते हैं पतित-पावन आओ।
- बाबा पावन दुनिया स्थापन करते हैं।
- वही फिर पतित बनते हैं।
- फिर उनको ही पावन बनाने बाप को आना पड़ता है।
- कितना वन्डरफुल पार्ट बजता है इस समय, इसलिए बलिहारी इस समय परमपिता परमात्मा के पार्ट बजाने की है।
- नम्बरवन यादगार है ही एक का।
- जो सब कुछ करते हैं, उनकी ही जयन्ती मनाते हैं।
- जिसको बनाते हैं उनकी कितनी महिमा है।
- बाकी इस समय जो भी मनुष्य मात्र हैं सब पतित, भ्रष्टाचारी हैं।
- सतयुग में थे श्रेष्ठाचारी, परिस्तानी, कितना रात-दिन का फ़र्क है।
- अभी हम शिवबाबा से वर्सा ले रहे हैं।
- अब हमको क्या मनाना है?
- मनाना होता है भक्ति मार्ग में।
- इस समय श्रीमत पर तुमको खूब पुरूषार्थ करना है, सर्विस करनी है।
- यह प्रदर्शनी पर समझाने की रसम बड़ी अच्छी निकली है।
- ईश्वरीय सर्विस पर बच्चों को पूरा ध्यान देना है।
- जो ईश्वरीय खजाने से पलते हैं उनको तो पूरी सर्विस करनी है, जो जल्दी-जल्दी मनुष्यों का कल्याण हो जाए।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) चढ़ती कला में जाने के लिए कदम-कदम श्रीमत पर चलना है।
- बाप को यथार्थ पहचान कर, देही-अभिमानी बन पूरा रिगार्ड रखना है।
2) ईश्वरीय सर्विस पर पूरा-पूरा ध्यान देना है।
- याद से बुद्धि को स्वच्छ और विशाल बनाना है।
वरदान:-
( All Blessings of 2021-22)
- नॉलेज की लाइट और माइट द्वारा सोलकान्सेस रहने वाले स्मृति स्वरूप भव
- आपका अनादि रूप निराकार ज्योति स्वरूप आत्मा है और आदि स्वरूप है देव आत्मा।
- दोनों स्वरूप सदा स्मृति में तब रहेंगे जब नॉलेज की लाइट-माइट के आधार से सोलकान्सेस स्थिति में रहने का अभ्यास होगा।
- ब्राह्मण बनना अर्थात् नॉलेज की लाइट-माइट के स्मृति स्वरूप बनना।
- जो स्मृति स्वरूप हैं, वह स्वयं भी सन्तुष्ट रहते और दूसरों को भी सन्तुष्ट करते हैं।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
साधारणता में महानता का अनुभव करना ही महान आत्मा बनना है।
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