16-05-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - तुम ईश्वरीय फैमिली के हो, ईश्वरीय फैमिली का लॉ (नियम) है - भाई-भाई हो रहना, ब्राह्मण कुल का लॉ है भाई-बहन हो रहना इसलिए विकार की दृष्टि हो नहीं सकती''
प्रश्नः-
यह संगमयुग कल्याणकारी युग है - कैसे?
उत्तर:-
इसी समय बाप अपने लाडले बच्चों के सम्मुख आते हैं और बाप, टीचर, सतगुरू का पार्ट अभी ही चलता है।
यही कल्याणकारी समय है जब तुम बच्चे बाप की न्यारी मत, जो नर्क को स्वर्ग बनाने की वा सबको सद्गति देने की है, उस श्रीमत को जानते और उस पर चलते हो।
प्रश्नः-
तुम्हारा संन्यास सतोप्रधान संन्यास है - कैसे?
उत्तर:-
तुम बुद्धि से इस सारी पुरानी दुनिया को भूलते हो।
तुम इस संन्यास में सिर्फ बाप और वर्से को याद करते, पवित्र बनते और परहेज रखते, जिससे देवता बन जाते हो।
उनका संन्यास हद का है, बेहद का नहीं।
गीत:-भोलेनाथ से निराला...
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- ओम् शान्ति।
- पहले-पहले बाप बच्चों को समझाते हैं कि अपने को आत्मा समझ बाप को याद करो।
- 5 हजार वर्ष पहले भी बाप ने कहा था कि मनमनाभव।
- देह के सब सम्बन्ध छोड़ अपने को अशरीरी आत्मा समझो।
- सभी अपने को आत्मा समझते हो?
- अपने को कोई परमात्मा तो नहीं समझते हैं?
- गाते भी हैं पाप आत्मा, पुण्य आत्मा, महान आत्मा।
- महान परमात्मा नहीं कहा जाता।
- आत्मा पवित्र बनती है तो शरीर भी पवित्र मिलता है।
- खाद आत्मा में ही पड़ती है।
- बाप बच्चों को युक्ति से बैठ समझाते हैं।
- यह तो जरूर है कि आत्मा रूप में हम सब भाई-भाई हैं और शरीर के सम्बन्ध में आये तो भाई और बहन हैं।
- अब कई युगल बैठे हैं उन्हों को कहें कि अपने को भाई-बहन समझो तो बिगड़ पड़ें।
- परन्तु यह लॉ समझाया जाता है कि हम सब आत्माओं का बाप एक है तो भाई-भाई हो गये।
- फिर मनुष्य तन में आते हैं तो प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा रचना रचते हैं।
- तो जरूर उनकी मुख वंशावली आपस में भाई-बहन ठहरे।
- सब कहते भी हैं कि परमपिता परम आत्मा।
- बाप है ही स्वर्ग का रचयिता।
- हम उनके बच्चे हैं तो क्यों न हम स्वर्ग के मालिक बनें।
- परन्तु स्वर्ग तो होता ही है सतयुग में।
- ऐसे नहीं कि बाप कोई नई सृष्टि आकर रचते हैं।
- बाप तो आकर पुरानी को नया बनाते हैं अर्थात् इस विश्व को बदलते हैं।
- तो जरूर बाप यहाँ आया है।
- भारत को स्वर्ग का वर्सा दिया है।
- उसका यादगार सोमनाथ का मन्दिर सबसे बड़ा बनाया है।
- बरोबर भारत में एक देवी-देवता धर्म था और कोई धर्म नहीं था और सभी बाद में वृद्धि हुए हैं।
- तो जरूर बाकी सभी आत्मायें निर्वाणधाम में बाप के पास रहेंगी।
- भारतवासी जीवनमुक्त थे।
- सूर्यवंशी घराने में थे।
- अब जीवनबन्ध में हैं।
- जनक का भी मिसाल है कि उनको सेकेण्ड में जीवनमुक्ति मिली।
- जीवनमुक्त सारे स्वर्ग को कहेंगे।
- फिर उसमें बाकी जिन्होंने जितनी मेहनत की उतना पद पाया।
- जीवनमुक्त तो सबको कहेंगे।
- तो जरूर मुक्ति जीवनमुक्ति दाता एक सतगुरू होना चाहिए।
- परन्तु यह किसको पता नहीं है।
- अभी तो सब माया के बन्धन में हैं।
- कहा जाता है कि ईश्वर की गति मत न्यारी... उनकी है श्रीमत।
- वह आते हैं जरूर।
- पिछाड़ी में सब कहेंगे कि अहो प्रभु।
- तुम अब कह रहे हो कि अहो प्रभु तेरी इस नर्क को स्वर्ग बनाने की गत बड़ी न्यारी है।
- तुम जानते हो फिर से हम सहज राजयोग सीख रहे हैं।
- कल्प पहले भी संगम पर ही सिखलाया होगा ना।
- बाप खुद कहते हैं - “लाडले बच्चों'', मैं तुम बच्चों के ही सम्मुख आता हूँ।
- वह सुप्रीम बाप भी है, तो सुप्रीम टीचर भी है।
- नॉलेज देते हैं और कोई भी इस सृष्टि चक्र की नॉलेज दे न सके।
- इस सृष्टि चक्र के आदि-मध्य-अन्त वा वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी को कोई नहीं जानते।
- परमपिता परमात्मा स्थापना और विनाश का कार्य कैसे कराते हैं, यह कोई भी जानते नहीं।
- तुम बच्चे अब जान गये हो।
- मनुष्य से देवता किये... यह महिमा उनकी है।
- मूत पलीती कपड़ धोए... अब अपने से हरेक पूछे कि हम मूत पलीती हैं वा पवित्र हैं?
- अकाल तख्त है ना।
- अकालमूर्त उनका तख्त कहाँ है?
- वह तो जरूर परमधाम अथवा ब्रह्म महतत्व है।
- हम आत्मायें भी वहाँ रहती हैं।
- उनको भी अकालतख्त कहा जाता है।
- वहाँ कोई आ न सके।
- उस स्वीट होम में हम रहते हैं, बाबा भी वहाँ रहता है।
- बाकी वहाँ कोई तख्त वा कुर्सियां आदि रहने लिए नहीं हैं।
- वहाँ तो अशरीरी हैं ना।
- तो समझाना चाहिए कि सेकण्ड में जीवनमुक्ति मिलती है अर्थात् लायक बनते हैं।
- बाप कहते हैं कि शिवबाबा को याद करो, विष्णुपुरी को याद करो।
- अभी तुम ब्रह्मापुरी में बैठे हो।
- ब्रह्मा की सन्तान हो और शिवबाबा के बच्चे भी हो।
- अगर अपने को भाई-बहन नहीं समझेंगे तो काम विकार में चले जायेंगे।
- यह है ईश्वरीय फैमिली।
- पहले तुम बैठे हो, दादा भी है, बाबा भी है और तुम उनके बच्चे हो तो तुम हुए शिवबाबा की ब्रह्मा द्वारा सन्तान।
- शिव के पोत्रे ठहरे।
- फिर मनुष्य तन में हैं तो बहन-भाई हुए।
- इस समय तुम बहन-भाई प्रैक्टिकल में हो।
- यह ब्राह्मणों का कुल है।
- यह बुद्धि से समझने की बात है।
- जीवनमुक्ति भी सेकेण्ड में मिलती है।
- बाकी मर्तबे तो बहुत हैं।
- वहाँ दु:ख देने वाली माया तो होती नहीं।
- ऐसे नहीं कि सतयुग से लेकर कलियुग तक रावण को जलाते रहेंगे।
- जो कहते हैं कि परम्परा से जलाते आते हैं, यह असम्भव है।
- स्वर्ग में असुर कहाँ से आये?
- बाप ने कहा है कि यह आसुरी सम्प्रदाय हैं।
- फिर उनका नाम रख दिया है अकासुर-बकासुर।
- कहते हैं कृष्ण ने गायें चराई, यह भी पार्ट चला है, शिवबाबा की गायें तुम ठहरी ना।
- शिवबाबा सबको ज्ञान घास खिलाते हैं।
- घास खिलाने वाला, परवरिश करने वाला वह है।
- मनुष्य मन्दिरों में जाकर देवताओं की महिमा गाते हैं कि आप सर्वगुण सम्पन्न और हम नींच पापी...हैं।
- अपने को देवता कह न सकें, हिन्दू कह देते हैं।
- असुल नाम भारत है।
- गीता में भी है यदा यदाहि धर्मस्य... गीता में हिन्दुस्तान तो नहीं कहा है।
- यह है भगवानुवाच।
- भगवान एक निराकार है जिसको सब जानते हैं।
- स्वर्ग में हैं सब दैवी गुण वाले मनुष्य।
- उन्हों को ही 84 जन्म लेने हैं।
- तो जरूर स्वर्ग से नर्क में आयेंगे।
- आपेही पूज्य आपेही पुजारी।
- उनका भी अर्थ होगा ना।
- नम्बरवन पूज्य श्रीकृष्ण है।
- किशोर अवस्था को सतोप्रधान कहा जाता है।
- बाल अवस्था को सतो, युवा है रजो, वृद्ध है तमो।
- सृष्टि भी सतो रजो तमो होती है।
- कलियुग के बाद फिर सतयुग आना चाहिए।
- बाप आते ही हैं संगम पर।
- यह है मोस्ट कल्याणकारी युग।
- ऐसा युग कोई हो नहीं सकता।
- सतयुग से त्रेता में आये, उनको कल्याणकारी नहीं कहेंगे क्योंकि दो कला कम हुई तो उनको कल्याणकारी युग कैसे कहेंगे?
- फिर द्वापर में आयेंगे तो और कला कमती हो जायेगी।
- तो यह कल्याणकारी युग नहीं रहा।
- कल्याणकारी यह संगमयुग है, जबकि बाप खास भारत को और आम सबको गति सद्गति देते हैं।
- अभी तुम स्वर्ग के लिए पुरूषार्थ कर रहे हो।
- बाप कहते हैं कि यह देवी-देवता धर्म ही सुख देने वाला है।
- तुम अपने धर्म को भूल गये हो तब और-और धर्मो में घुस जाते हो।
- वास्तव में तो तुम्हारा धर्म सबसे ऊंचा है।
- अब फिर तुम वही राजयोग सीख रहे हो तो श्रीमत पर चलना पड़े।
- बाकी सब हैं आसुरी रावण मत पर।
- सबमें 5 विकार हैं, उनमें भी पहला है अशुद्ध अहंकार।
- बाप कहते हैं देह-अहंकार छोड़ देही-अभिमानी बनो, अशरीरी भव।
- तुम मुझ बाप को भूल गये हो।
- यह भी भूल-भुलैया का खेल है।
- कई फिर कहते हैं नीचे गिरना ही है तो फिर पुरूषार्थ क्यों करें?
- अरे पुरूषार्थ नहीं करेंगे तो स्वर्ग की राजाई कैसे मिलेगी।
- ड्रामा को भी समझना है।
- यह एक ही सृष्टि है, जिसका चक्र फिरता है।
- सतयुग आदि सत है, है भी सत, होसी भी सत... कहते भी हैं वर्ल्ड की हिस्ट्री जॉग्राफी रिपीट होती है।
- तो कब शुरू होगी?
- कैसे रिपीट होगी? उसके लिए तुम पुरूषार्थ करते हो।
- बाप कहते हैं फिर से तुमको राजयोग सिखलाने आया हूँ।
- तुम भी सीखते हो।
- राजाई स्थापन होगी।
- यादव कौरव खत्म हो गये और जयजयकार हो गई।
- फिर मुक्ति जीवनमुक्ति के दरवाजे खुल जाते हैं।
- नहीं तो तब तक रास्ता बन्द रहता है।
- जब लड़ाई लगती है तब ही गेट खुलता है।
- बाप आकर गाइड बन ले जाते हैं।
- लिबरेटर भी है।
- माया के फन्दे से छुड़ाते हैं।
- गुरूओं की जंजीरों में बहुत फंसे हुए हैं।
- बहुत डरते हैं कि कहाँ गुरू की आज्ञा न मानी तो कुछ श्राप न मिल जाये।
- अरे आज्ञा तो तुम मानते ही कहाँ हो।
- वह निर्विकारी पवित्र और तुम विकारी अपवित्र।
- गुरू में मनुष्यों की कितनी भावना रहती है।
- क्या करते हैं, कुछ भी पता नहीं।
- भक्ति मार्ग का प्रभाव है।
- अब तुम समझू सयाने बने हो।
- तुम जानते हो कि ब्रह्मा, विष्णु, शंकर हैं सूक्ष्मवतन वासी।
- उसमें भी ब्रह्मा सो विष्णु का पार्ट यहाँ है।
- शंकर को यहाँ आने की दरकार नहीं।
- यहाँ है जगदम्बा, जगतपिता और तुम बच्चे।
- फिर इतनी भुजा वाली देवियां आदि कितना बैठ बनाते हैं, अथाह चित्र हैं।
- यह सब चित्र हैं भक्ति मार्ग के लिए।
- मनुष्य तो मनुष्य ही हैं।
- राधे कृष्ण आदि को भी चार भुजायें दे देते हैं।
- दीपमाला में महालक्ष्मी की पूजा करते हैं, वह हैं दो भुजा लक्ष्मी की, दो भुजा नारायण की इसलिए दोनों की पूजा होती है, कम्बाइन्ड रूप में।
- यह प्रवृत्ति मार्ग है, और कुछ है नहीं।
- काली की जीभ कैसी दिखलाते हैं।
- कृष्ण को भी काला बना दिया है।
- वाम मार्ग में जाने कारण काली हो जाती है।
- फिर ज्ञान चिता पर बैठने से गोरी बन जाती है।
- जगदम्बा ऐसी मीठी मम्मा सबकी मनोकामना पूर्ण करने वाली, उसकी मूर्ति को भी काला बना दिया है।
- कितनी देवियां बनाते हैं।
- पूजा कर समुद्र में डुबो देते हैं।
- तो यह गुड़ियों की पूजा हुई ना।
- बाबा कहते हैं यह सब ड्रामा में नूँध है, फिर भी होगा।
- भक्ति मार्ग का बड़ा पेशगीर (विस्तार) है।
- कितने मन्दिर, कितने चित्र, शास्त्र आदि हैं।
- बात मत पूछो।
- वेस्ट ऑफ टाइम... वेस्ट आफ मनी... मनुष्य बिल्कुल इस समय तुच्छ बुद्धि हैं।
- कौड़ी मिसल बन जाते हैं।
- बाप कहते हैं अब भक्तिमार्ग के धक्के बहुत खाये।
- अब बाप तुमको इन झंझटों से छुड़ा देते हैं।
- सिर्फ बाप को और वर्से को याद करो और पवित्र भी जरूर बनना पड़े।
- परहेज भी रखनी पड़े।
- नहीं तो जैसा अन्न वैसा मन हो जाता है।
- संन्यासियों को भी गृहस्थियों के पास जन्म लेना पड़ता है।
- वह है रजोप्रधान संन्यास।
- यह है सतोप्रधान संन्यास।
- तुम पुरानी दुनिया का संन्यास करते हो।
- उस संन्यास में भी कितना बल है।
- प्रेजीडेन्ट भी गुरूओं के आगे माथा टेकते हैं।
- भारत पवित्र था।
- उनकी महिमा गाई जाती है।
- भारतवासी सर्वगुण सम्पन्न थे।
- अभी तो सम्पूर्ण विकारी हैं।
- देवताओं के मन्दिर में जाते हैं तो जरूर उस धर्म के होंगे।
- गुरूनानक के मन्दिर में जाते तो जरूर सिक्ख धर्म के होंगे ना।
- परन्तु यह सब अपने को देवता धर्म के कहला नहीं सकते क्योंकि पवित्र नहीं हैं।
- अब बाप कहते हैं फिर से मैं शिवालय बनाने आया हूँ।
- स्वर्ग में सिर्फ देवी-देवता ही रहते हैं।
- यह ज्ञान फिर प्राय: लोप हो जाता है।
- गीता रामायण आदि सब खत्म होने हैं।
- ड्रामानुसार फिर अपने समय पर निकलेंगे।
- कितनी समझने की बातें हैं।
- यह पाठशाला ही है मनुष्य से देवता बनने की।
- परन्तु मनुष्य, मनुष्य की सद्गति कदाचित कर नहीं सकते।
- अल्पकाल का सुख तो सभी एक दो को देते रहते हैं।
- यहाँ है अल्पकाल का सुख, बाकी दु:ख ही दु:ख है।
- सतयुग में दु:ख का नाम ही नहीं।
- नाम ही है स्वर्ग, सुखधाम।
- स्वर्ग का नाम कितना बाला है।
- बाप कहते हैं कि भल गृहस्थ व्यवहार में रहो, परन्तु इस अन्तिम जन्म में बाप से प्रतिज्ञा करनी है कि बाबा हम आपका बच्चा हूँ।
- यह अन्तिम जन्म जरूर पवित्र बन, पवित्र दुनिया का वर्सा लूँगा।
- बाप को याद करना बहुत सहज है।
- अच्छा !
- मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का यादप्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) देह-अहंकार को छोड़ देही-अभिमानी बनना है।
अशरीरी बनने का अभ्यास करना है।
2) ड्रामा को यथार्थ रीति समझकर पुरूषार्थ करना है।
ड्रामा में होगा तो करेंगे, ऐसा सोच कर पुरूषार्थ हीन नहीं बनना है।
वरदान:-
( All Blessings of 2021-22)
- संगमयुग के महत्व को जान श्रेष्ठ प्रालब्ध बनाने वाले तीव्र पुरूषार्थी भव
- संगमयुग छोटा सा युग है, इस युग में ही बाप के साथ का अनुभव होता है।
- संगम का समय और यह जीवन दोनों ही हीरे तुल्य हैं।
- तो इतना महत्व जानते हुए एक सेकण्ड भी साथ को नहीं छोड़ना।
- सेकण्ड गया तो सेकण्ड नहीं लेकिन बहुत कुछ गया।
- सारे कल्प की श्रेष्ठ प्रालब्ध जमा करने का यह युग है, अगर इस युग के महत्व को भी याद रखो तो तीव्र पुरूषार्थ द्वारा राज्य अधिकार प्राप्त कर लेंगे।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
- सर्व को स्नेह और सहयोग देना ही विश्व सेवाधारी बनना है।
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