03-06-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - यह खेल है कब्रिस्तान और परिस्तान का, इस समय कब्रिस्तान है फिर परिस्तान बनेगा - तुम्हें इस कब्रिस्तान से दिल नहीं लगानी है''
प्रश्नः-
मनुष्य कौन सी एक बात को जान लें तो सब संशय दूर हो जायेंगे?
उत्तर:-
बाप कौन है, वह कैसे आते हैं - यह बात जान लें तो सब संशय दूर हो जायेंगे।
जब तक बाप को नहीं जाना तब तक संशय मिट नहीं सकते।
निश्चयबुद्धि बनने से विजय माला में आ जायेंगे लेकिन एक-एक बात में सेकण्ड में पूरा निश्चय होना चाहिए।
गीत:-छोड़ भी दे आकाश सिंहासन...
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- ओम् शान्ति।
- बाप बैठ बच्चों को समझाते हैं।
- यह है बेहद का रूहानी बाप।
- आत्मायें सभी रूप तो जरूर बदलती हैं।
- निराकार से साकार में आते हैं पार्ट बजाने, कर्मक्षेत्र पर।
- बच्चे कहते हैं बाबा आप भी हमारे मुआफिक रूप बदलो।
- जरूर साकार रूप धारण करके ही तो ज्ञान देंगे ना।
- मनुष्य का ही रूप लेंगे ना!
- बच्चे भी जानते हैं हम निराकार हैं फिर साकार बनते हैं।
- बरोबर है भी ऐसे।
- वह है निराकारी दुनिया।
- यह बाप बैठ सुनाते हैं।
- कहते हैं तुम अपने 84 जन्मों की कहानी को नहीं जानते हो।
- मैं इनमें प्रवेश कर इनको समझा रहा हूँ, यह तो नहीं जानते हैं ना।
- कृष्ण तो सतयुग का प्रिन्स है, इनको आना पड़ता है पतित दुनिया, पतित शरीर में।
- कृष्ण गोरा था, फिर काला कैसे हुआ?
- यह कोई जानते नहीं।
- कहते हैं सर्प ने डसा।
- वास्तव में यह है 5 विकारों की बात।
- काम-चिता पर बैठने से काले बन जाते हैं।
- श्याम-सुन्दर कृष्ण को ही कहते हैं।
- मेरा तो शरीर ही नहीं है - जो गोरा वा सांवरा बने।
- मैं तो एवर पावन हूँ।
- मैं कल्प-कल्प संगम पर आता हूँ, जब कलियुग का अन्त, सतयुग का आदि होता है।
- मुझे ही आकर स्वर्ग की स्थापना करनी है।
- सतयुग है सुखधाम।
- कलियुग है दु:खधाम।
- इस समय मनुष्य मात्र सब पतित हैं।
- सतयुग के लक्ष्मी-नारायण, महाराजा-महारानी की गवर्मेन्ट को भ्रष्टाचारी तो नहीं कहेंगे।
- यहाँ सब हैं पतित।
- भारत स्वर्ग था तो देवी-देवताओं का राज्य था।
- एक ही धर्म था।
- सम्पूर्ण पावन, श्रेष्ठाचारी थे।
- भ्रष्टाचारी, श्रेष्ठाचारियों की पूजा करते हैं।
- संन्यासी पवित्र बनते हैं तो अपवित्र उनको माथा टेकते हैं।
- संन्यासी को गृहस्थी फालो तो कुछ करते नहीं, सिर्फ कह देते हैं मैं फलाने संन्यासी का फालोअर्स हूँ।
- सो तो जब फालो करो।
- तुम भी संन्यासी बन जाओ तब कहेंगे फालोअर, गृहस्थी फालोअर्स बनते हैं परन्तु वह पवित्र तो बनते नहीं।
- न संन्यासी उनको समझाते हैं, न वह खुद समझते हैं कि हम फालो तो करते नहीं हैं।
- यहाँ तो पूरा फालो करना है - मात-पिता को।
- गाया जाता है फालो फादर-मदर, और संग बुद्धियोग तोड़ना है, सभी देहधारियों से तोड़ मुझ एक बाप से जोड़ो तो बाप के पास पहुँच जायेंगे, फिर सतयुग में आ जायेंगे।
- तुम आलराउन्डर हो।
- 84 जन्म लेते हो।
- आदि से अन्त तक, अन्त से आदि तक तुम जानते हो हमारा आलराउन्ड पार्ट चलता है।
- दूसरे धर्म वालों का आदि से अन्त तक पार्ट नहीं चलता है।
- आदि सनातन है ही एक देवी-देवता धर्म।
- पहले-पहले सूर्यवंशी थे।
- अब तुम जानते हो हम आलराउन्ड 84 जन्मों का चक्कर लगाते हैं।
- बाद में आने वाले तो आलराउन्डर हो न सकें।
- यह समझ की बात है ना।
- बाप के सिवाए कोई समझा न सके।
- पहले-पहले है ही डिटीज्म।
- आधाकल्प सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी राज्य चलता है।
- अभी तो यह बहुत छोटा सा युग है, इनको ही संगम कहते हैं, कुम्भ भी कहते हैं।
- उनको ही याद करते हैं - हे परमपिता परमात्मा आकर हम पतितों को पावन बनाओ।
- बाप से मिलने लिए कितना भटकते रहते हैं।
- यज्ञ-तप, दान-पुण्य आदि करते रहते हैं।
- फायदा कुछ भी नहीं होता है।
- अब तुम भटकने से छूट गये हो।
- वह है भक्ति काण्ड।
- यह है ज्ञान काण्ड।
- भक्ति मार्ग आधाकल्प चलता है।
- यह है ज्ञान मार्ग।
- इस समय तुमको पुरानी दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं इसलिए तुम्हारा यह है बेहद का वैराग्य क्योंकि तुम जानते हो यह सारी दुनिया कब्रिस्तान होनी है।
- इस समय कब्रिस्तान है फिर परिस्तान बनेगा।
- यह खेल है कब्रिस्तान, परिस्तान का।
- बाप परिस्तान स्थापन करते हैं, जिसको याद करते हैं।
- रावण को कोई याद नहीं करते हैं।
- मुख्य एक बात समझने से फिर सब संशय मिट जायेंगे, जब तक पहले बाप को नहीं जाना है तो संशय बुद्धि ही रहेंगे।
- संशयबुद्धि विनश्यन्ती.. बरोबर हम सब आत्माओं का वह बाप है, वही बेहद का वर्सा देते हैं।
- निश्चय से ही विजय माला में पिरो सकते हैं।
- एक-एक अक्षर में सेकण्ड में निश्चय होना चाहिए।
- बाबा कहते हैं तो पूरा निश्चय होना चाहिए ना।
- बाप निराकार को कहा जाता है।
- ऐसे तो गांधी को भी बापू जी कहते थे।
- परन्तु यहाँ तो वर्ल्ड का बापू जी चाहिए ना।
- वह तो है ही वर्ल्ड का गॉड फादर।
- वर्ल्ड का गॉड फादर वह तो बहुत बड़ा हुआ ना।
- उनसे वर्ल्ड की बादशाही मिलती है।
- ब्रह्मा द्वारा स्थापना होती है, विष्णु के राज्य की।
- तुम जानते हो हम ही विश्व के मालिक थे।
- हम सो देवी-देवता थे फिर चन्द्रवंशी, वैश्यवंशी, शूद्रवंशी बनें।
- इन सब बातों को तुम बच्चे ही समझते हो।
- बाप कहते भी हैं इस मेरे ज्ञान यज्ञ में विघ्न बहुत पड़ेंगे।
- यह है रूद्र ज्ञान यज्ञ, इससे विनाश ज्वाला प्रज्जवलित होती है।
- इसमें सारी पुरानी दुनिया खत्म हो, एक देवता धर्म की स्थापना हो जायेगी।
- तुमको समझाने वाला बाप है, वह सच बोलते हैं, नर से नारायण बनने की सत्य कथा सुनाते हैं।
- यह कथा तुम अभी ही सुनते हो।
- यह कोई परम्परा नहीं चलती है।
- अब बाप कहते हैं तुमने 84 जन्म पूरे किये हैं।
- अब फिर नई दुनिया में तुम्हारा राज्य होगा।
- यह है राजयोग का ज्ञान।
- सहज राजयोग की नॉलेज एक परमपिता परमात्मा के पास ही है, जिसको प्राचीन भारत का राजयोग कहते हैं।
- बरोबर कलियुग को सतयुग बनाया था।
- विनाश भी शुरू हुआ था, मूसलों की ही बात है।
- सतयुग त्रेता में तो कोई लड़ाई होती नहीं, बाद में शुरू होती है।
- यह मूसलों की है लास्ट लड़ाई।
- आगे तलवार से लड़ते थे, फिर बन्दूक बाजी चलाई।
- फिर तोप निकाली, अब बाम्ब्स निकाले हैं, नहीं तो सारी दुनिया का विनाश कैसे हो।
- फिर उनके साथ नेचुरल कैलेमिटीज़ भी है।
- मूसलधार बरसात, फैमन, यह है नेचुरल कैलेमिटीज़।
- समझो अर्थक्वेक होती है, उसको कहते हैं नेचुरल कैलेमिटीज़।
- उसमें कोई क्या कर सकते हैं।
- कोई ने अपना इन्श्योरेंस भी किया हो तो कौन और किसको देगा।
- सब मर जायेंगे, किसको कुछ भी मिलेगा नहीं।
- अभी तुम्हें फिर इनश्योर करना है बाप के पास।
- इनश्योर भक्ति में भी करते हैं, परन्तु वह आधाकल्प का रिटर्न मिलता है।
- यह तो तुम डायरेक्ट इनश्योर करते हो।
- कोई सब कुछ इनश्योर करेगा तो उनको बादशाही मिल जायेगी।
- जैसे बाबा अपना बतलाते हैं - सब कुछ दे दिया।
- बाबा पास फुल इनश्योर कर लिया तो फुल बादशाही मिलती है।
- बाकी तो यह दुनिया ही खत्म हो जाती है।
- यह है मृत्युलोक।
- किनकी दबी रहेगी धूल में, किनकी राजा खाए... जब कहाँ आग लगती है वा कोई आफत आती है तो चोर लोग लूटते हैं।
- यह समय ही अन्त का है, इसलिए अब बाप को याद करना है।
- मदद करनी है।
- इस समय सब पतित हैं, वह पावन दुनिया स्थापन कर न सकें।
- यह तो बाप का ही काम है।
- बाप को ही बुलाते हैं, निराकारी दुनिया से आओ, आकर रूप धरो।
- तो बाप कहते हैं मैं साकार में आया हूँ, रूप धरा है।
- परन्तु हमेशा इसमें नहीं रह सकता हूँ।
- सवारी कोई सारा दिन थोड़ेही होती है।
- बैल की सवारी दिखाते हैं।
- भाग्यशाली रथ मनुष्य का दिखाते हैं।
- अब यह राइट है या वह?
- गऊशाला दिखाते हैं ना।
- गऊमुख भी दिखाया है।
- बैल पर सवारी और फिर गऊमुख से नॉलेज देते हैं।
- यह ज्ञान अमृत निकलता है।
- अर्थ है ना।
- गऊमुख का मन्दिर भी है।
- बहुत लोग जाते हैं तो समझते हैं गऊ के मुख से अमृत टपकता है।
- वह जाकर पीना है।
- 700 सीढ़ियां हैं।
- सबसे बड़ा गऊमुख तो यह है।
- अमरनाथ पर कितनी मेहनत कर जाते हैं।
- वहाँ है कुछ भी नहीं।
- सब ठगी है, दिखाते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई।
- अब क्या पार्वती की दुर्गति हुई, जो उनको कथा बैठ सुनाई?
- मनुष्य मन्दिर आदि बनाने में कितना खर्चा करते हैं।
- बाप कहते हैं खर्चा करते-करते तुमने सब पैसे गंवा दिये हैं।
- तुम कितने सालवेन्ट थे, अब इनसाल्वेन्ट बन गये हो फिर मैं आकर सालवेन्ट बनाता हूँ।
- तुम जानते हो बाप से हम वर्सा लेने आये हैं।
- तुम बच्चों को दे रहे हैं।
- भारत है परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस।
- तो सबसे बड़ा तीर्थ हुआ ना।
- फिर सर्व पतितों को पावन भी बाप ही बनाते हैं।
- गीता में अगर बाप का नाम होता तो सभी यहाँ आकर फूल चढ़ाते।
- बाप के सिवाए सभी को सद्गति कौन दे सकता।
- भारत ही सबसे बड़े से बड़ा तीर्थ है, परन्तु कोई को मालूम नहीं है।
- नहीं तो जैसे बाप की महिमा अपरमपार है वैसे भारत की भी महिमा है।
- हेल और हेविन भारत बनता है।
- अपरमअपार महिमा है ही हेविन की।
- अपरमअपार निंदा फिर हेल की करेंगे।
- तुम बच्चे सचखण्ड के मालिक बनते हो।
- यहाँ आये हो बाबा से बेहद का वर्सा लेने।
- बाप कहते हैं मनमनाभव और सबसे बुद्धियोग हटाए मामेकम् याद करो।
- याद से ही पवित्र बनेंगे।
- नॉलेज से वर्सा लेना है, जीवनमुक्ति का वर्सा तो सबको मिलता है परन्तु स्वर्ग का वर्सा राजयोग सीखने वाले ही पाते हैं।
- सद्गति तो सबकी होनी है ना, सबको वापस ले जायेंगे।
- बाप कहते हैं मैं कालों का काल हूँ।
- महाकाल का भी मन्दिर है।
- बाप ने समझाया है अन्त में प्रत्यक्षता होगी तब समझेंगे कि बरोबर इन्हों को बतलाने वाला बेहद का बाप ही है।
- कथा सुनाने वाले अगर अब कहें गीता का भगवान कृष्ण नहीं, शिव है तो सब कहेंगे इनको भी बी.के. का भूत लगा है इसलिए इन्हों का अभी टाइम नहीं है।
- पिछाड़ी को मानेंगे।
- अभी मान लेवें तो उन्हों की सारी ग्राहकी चली जाए।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) और सब संग तोड़ मात-पिता को पूरा-पूरा फालो करना है। इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य रख इसे भूल जाना है।
2) यह अन्त का समय है, सब खत्म होने के पहले अपने पास जो कुछ है, उसे इनश्योर कर भविष्य में फुल बादशाही का अधिकार लेना है।
वरदान:-
( All Blessings of 2021-22)
- ब्राह्मण जीवन में सदा खुशी की खुराक खाने और खिलाने वाले श्रेष्ठ नसीबवान भव
- विश्व के मालिक के हम बालक सो मालिक हैं - इसी ईश्वरीय नशे और खुशी में रहो।
- वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य अर्थात् नसीब।
- इसी खुशी के झूले में सदा झूलते रहो।
- सदा खुशनसीब भी हो और सदा खुशी की खुराक खाते और खिलाते भी हो।
- औरों को भी खुशी का महादान दे खुशनसीब बनाते हो।
- आपकी जीवन ही खुशी है।
- खुश रहना ही जीना है।
- यही ब्राह्मण जीवन का श्रेष्ठ वरदान है।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
- हर परिस्थिति में सहनशील बनो तो मौज का अनुभव करते रहेंगे।
- मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
- 1-
- यह अपना ईश्वरीय ज्ञान अपनी बुद्धि से नहीं निकाला हुआ है, न कोई अपनी समझ अथवा कल्पना है अथवा संकल्प है परन्तु यह ज्ञान सारी सृष्टि का जो रचता है उस द्वारा सुना हुआ ज्ञान है। और साथ-साथ सुनकर अनुभव और विवेक में जो लाया जाता है वो प्रैक्टिकल आपको सुना रहे हैं। अगर अपने विवेक की बात होती तो सिर्फ अपने पास चलती परन्तु यह तो परमात्मा द्वारा सुन विवेक से अनुभव में धारणा करते हैं। जो बात धारण करते हैं वो जरूर जब विवेक और अनुभव में आती है तब अपनी मानी जाती है। यह बात भी इन द्वारा हम जान चुके हैं। तो परमात्मा की रचना क्या है? परमात्मा क्या है? बाकी कोई अपने संकल्प की बात नहीं है अगर होती तो अपने मन में उत्पन्न होती, यह अपना संकल्प है इसलिए जो अपने को स्वयं परमात्मा द्वारा मुख्य धारणा योग्य प्वाइन्ट मिली हुई हैं वो है मुख्य योग लगाना परन्तु योग के पहले ज्ञान चाहिए। योग करने के लिये पहले ज्ञान क्यों कहते हैं? पहले सोचना, समझना और बाद में योग लगाना.. हमेशा ऐसे कहा जाता है पहले समझ चाहिए, नहीं तो उल्टा कर्म चलेगा इसलिए पहले ज्ञान जरूरी है। ज्ञान एक ऊंची स्टेज है जिसको जानने के लिए बुद्धि चाहिए क्योंकि ऊंचे ते ऊंचा परमात्मा हमको पढ़ाता है।
- 2)
- यह ईश्वरीय ज्ञान एक तरफ तोड़ना दूसरे तरफ जोड़ना। एक परमात्मा के संग जोड़ो, जिस शुद्ध सम्बन्ध से हमारे ज्ञान की सीढ़ी आगे बढ़ेगी क्योंकि इसी समय आत्मा कर्मबन्धन वश हो गई है। वह आदि में कर्मबन्धन से रहित थी, बाद में कर्मबन्धन में आई और अब फिर से उनको अपने कर्मबन्धनों से छूटना है। अब अपने कर्मों की बंधायमानी भी न हो और कर्म करना अपने हाथ में रहे माना कर्म पर कन्ट्रोल हो तब ही कर्मों की बंधायमानी नहीं आयेगी, इसको ही जीवनमुक्ति कहते हैं। नहीं तो कर्मबन्धन में, चक्र में आने से सदाकाल के लिये जीवनमुक्ति नहीं मिलेगी। अब तो आत्मा से पॉवर निकल गई है और उनके कन्ट्रोल बिगर कर्म हो रहे हैं लेकिन कर्म आत्मा से होना चाहिए और आत्मा में जोर आना चाहिए और कर्मों को इस स्थिति में आना चाहिए जो कर्मों की बंधायमानी न रहे, नहीं तो मनुष्य दु:ख सुख के लपेट में आ जाते हैं क्योंकि कर्म उन्हों को खींचता रहता है, आत्मा की शक्ति उस पॉवर में आती है, जो कर्मों के बंधायमानी में न आवे, यह है रिजल्ट। इन बातों को धारण करने से सहज हो जायेगा, इस क्लास का मकसद यही है। बाकी अपने को कोई वेद शास्त्र पढ़ डिग्री हांसिल नहीं करनी है, बल्कि इस ईश्वरीय ज्ञान से अपने को अपनी जीवन बनानी है जिस कारण ईश्वर से वो शक्ति लेनी है। अच्छा - ओम् शान्ति।
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