- आज बापदादा अपने चारों ओर की सन्तुष्ट मणियों को देख रहे हैं।
- संगमयुग है ही सन्तुष्ट रहने और सन्तुष्ट बनाने का युग।
- ब्राह्मण जीवन की विशेषता सन्तुष्टता है।
- सन्तुष्टता ही बड़े ते बड़ा खजाना है।
- सन्तुष्टता ही ब्राह्मण जीवन के प्योरिटी की पर्सनालिटी है।
- इस पर्सनालिटी से विशेष आत्मा सहज बन जाते हैं।
- सन्तुष्टता की पर्सनालिटी नहीं तो विशेष आत्मा कहला नहीं सकते हैं।
- आजकल दो प्रकार की पर्सनालिटी गाई जाती है - एक शारीरिक पर्सनालिटी, दूसरी पोजीशन की पर्सनालिटी।
- ब्राह्मण जीवन में जिस ब्राह्मण आत्मा में सन्तुष्टता की महानता है - उनकी सूरत में, उनके चेहरे में भी सन्तुष्टता की पर्सनालिटी दिखाई देती है और श्रेष्ठ स्थिति के पोजीशन की पर्सनालिटी दिखाई देती है।
- सन्तुष्टता का आधार है बाप द्वारा सर्व प्राप्त हुए प्राप्तियों की सन्तुष्टता अर्थात् भरपूर आत्मा।
- असन्तुष्टता का कारण अप्राप्ति होती है।
- सन्तुष्टता का कारण है सर्व प्राप्तियां, इसलिए बापदादा ने आप सभी ब्राह्मण बच्चों को ब्राह्मण जन्म होते ही पूरा वर्सा दे दिया ना या किसको थोड़ा, किसको बहुत दिया?
- बापदादा सदैव सब बच्चों को यही कहते कि बाप और वर्से को याद करना है।
- वर्सा है सर्व प्राप्तियां।
- इसमें सर्व शक्तियां भी आ जातीं, गुण भी आ जाते, ज्ञान भी आ जाता है।
- सर्व शक्तियां, सर्व गुण और सम्पूर्ण ज्ञान।
- सिर्फ ज्ञान नहीं, लेकिन सम्पूर्ण ज्ञान।
- सिर्फ शक्तियां और गुण नहीं लेकिन सर्व गुण और सर्व शक्तियां हैं, तो वर्सा सर्व अर्थात् सम्पन्नता का है।
- कोई कमी नहीं है।
- हर ब्राह्मण बच्चे को पूरा वर्सा मिलता है, अधूरा नहीं।
- सर्व गुणों में से दो गुण आपको, दो गुण इसको ऐसे नहीं बांटा है।
- फुल वर्सा अर्थात् सम्पन्नता, सम्पूर्णता।
- जब हर एक को पूरा वर्सा मिलता है तो जहाँ सर्व प्राप्ति है वहाँ सन्तुष्टता होगी।
- बापदादा सर्व ब्राह्मणों के सन्तुष्टता की पर्सनालिटी देख रहे थे कि कहाँ तक यह पर्सनालिटी आई है।
- ब्राह्मण जीवन में असन्तुष्टता का नाम-निशान नहीं।
- ब्राह्मण जीवन का मजा है तो इस पर्सनालिटी में है।
- यही मजे की जीवन है, मौज की जीवन है।
- तपस्या का अर्थ ही है सन्तुष्टता की पर्सनालिटी नयनों में, चैन में, चेहरे में, चलन में दिखाई दे।
- ऐसे सन्तुष्ट मणियों की माला बना रहे थे।
- कितनी माला बनी होगी?
- सन्तुष्ट मणि अर्थात् बेदाग मणि।
- सन्तुष्टता की निशानी है - सन्तुष्ट आत्मा सदा प्रसन्नचित्त स्वयं को भी अनुभव करेगी और दूसरे भी प्रसन्न होंगे।
- प्रसन्नचित्त स्थिति में प्रश्न चित्त नहीं होता।
- एक होता है प्रसन्नचित्त, दूसरा है प्रश्नचित्त।
- प्रश्न अर्थात् क्वेश्चन।
- प्रसन्नचित्त ड्रामा के नॉलेजफुल होने के कारण प्रसन्न रहता, प्रश्न नहीं करता।
- जो भी प्रश्न अपने प्रति या किसके प्रति भी उठता उसका उत्तर स्वयं को पहले आता।
- पहले भी सुनाया था व्हाट (क्या) और व्हाई (क्यों) नहीं, लेकिन डॉट।
- क्या, क्यों नहीं, फुल-स्टॉप बिन्दु।
- एक सेकेण्ड में विस्तार, एक सेकेण्ड में सार।
- ऐसा प्रसन्नचित्त सदा निश्चिन्त रहता है।
- तो चेक करो - ऐसी निशानियां मुझ सन्तुष्ट मणि में हैं?
- बापदादा ने तो सबको टाइटिल दिये हैं - सन्तुष्ट मणि का।
- तो बापदादा पूछ रहे हैं कि हे सन्तुष्ट मणियों, सन्तुष्ट हो?
- फिर प्रश्न है - स्वयं से अर्थात् स्वयं के पुरुषार्थ से, स्वयं के संस्कार परिवर्तन के पुरुषार्थ से, स्वयं के पुरुषार्थ की परसेन्टेज में, स्टेज में सदा सन्तुष्ट हो?
- अच्छा दूसरा प्रश्न - स्वयं के मन्सा, वाचा और कर्म, अर्थात् सम्बन्ध-सम्पर्क द्वारा सेवा में सदा सन्तुष्ट हो?
- तीनों ही सेवा, सिर्फ एक सेवा नहीं।
- तीनों ही सेवा में और सदा सन्तुष्ट हो?
- सोच रहे हैं, अपने को देख रहे हैं कि कहाँ तक सन्तुष्ट हैं?
- अच्छा, तीसरा प्रश्न - सर्व आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में स्वयं द्वारा वा सर्व द्वारा सदा सन्तुष्ट हो?
- क्योंकि तपस्या वर्ष में तपस्या का, सफलता का फल यही प्राप्त करना है।
- स्वयं में, सेवा में और सर्व में सन्तुष्टता।
- चार घण्टा तो योग किया - बहुत अच्छा, और चार से आठ घण्टा तक भी पहुँच जायेंगे।
- यह भी बहुत अच्छा।
- योग का सिद्धि स्वरूप हो।
- योग विधि है।
- लेकिन इस विधि से सिद्धि क्या मिली?
- योग लगाना यह विधि है, योग की प्राप्ति यह सिद्धि है।
- तो जैसे 8 घण्टे का लक्ष्य रखा है तो कम से कम यह तीन प्रकार की सन्तुष्टता की सिद्धि का स्पष्ट श्रेष्ठ लक्ष्य रखो।
- कई बच्चे स्वयं को मिया-मिट्ठू मुआफिक भी सन्तुष्ट समझते हैं।
- ऐसे सन्तुष्ट नहीं बनना।
- एक है दिल माने, दूसरा है दिमाग माने।
- दिमाग से अपने को समझते सन्तुष्ट हैं ही, क्या परवाह है।
- हम तो बेपरवाह हैं।
- तो दिमाग से स्वयं को सन्तुष्ट समझना - ऐसी सन्तुष्टता नहीं, यथार्थ समझना है।
- सन्तुष्टता की निशानियां स्वयं में अनुभव हो।
- चित्त सदा प्रसन्न हो, पर्सनालिटी हो।
- स्वयं को पर्सनालिटी समझें और दूसरे नहीं समझें इसको कहा जाता है - मियां मिट्ठू।
- ऐसे सन्तुष्ट नहीं।
- लेकिन यथार्थ अनुभव द्वारा सन्तुष्ट आत्मा बनो।
- सन्तुष्टता अर्थात् दिल-दिमाग सदा आराम में होंगे।
- सुख-चैन की स्थिति में होंगे।
- बेचैन नहीं होंगे।
- सुख चैन होगा।
- ऐसी सन्तुष्ट मणियां सदा बाप के मस्तक में मस्तक मणियों समान चमकती हैं।
- तो स्वयं को चेक करो।
- सन्तुष्टता बाप की और सर्व की दुवाएं दिलाती है।
- सन्तुष्ट आत्मा समय प्रति समय सदा अपने को बाप और सर्व की दुवाओं के विमान में उड़ता हुआ अनुभव करेगी।
- यह दुवाएं उनका विमान है।
- सदा अपने को विमान में उड़ता हुआ अनुभव करेगा।
- दुवा मांगेगा नहीं, लेकिन दुवाएं स्वयं उसके आगे स्वत: ही आयेगी।
- ऐसे सन्तुष्ट मणि अर्थात् सिद्धि स्वरूप तपस्वी।
- अल्प-काल की सिद्धियां नहीं, यह अविनाशी और रूहानी सिद्धियां हैं।
- ऐसी सन्तुष्टमणियों को देख रहे थे।
- हरेक अपने आपसे पूछे - मैं कौन?
- तपस्या वर्ष का उमंग-उत्साह तो अच्छा है।
- हर एक यथा शक्ति कर भी रहे हैं।
- और आगे के लिए भी उत्साह है।
- यह उत्साह बहुत अच्छा है।
- अभी तपस्या द्वारा प्राप्तियों को स्वयं अपने जीवन में और सर्व के सम्बन्ध-सम्पर्क में प्रत्यक्ष करो।
- अपने आपमें अनुभव करते हो लेकिन अनुभव को सिर्फ मन-बुद्धि से अनुभव किया, यहाँ तक नहीं रखो।
- उनको चलन और चेहरे तक लाओ, सम्बन्ध-सम्पर्क तक लाओ।
- तब पहले स्वयं में प्रत्यक्ष होंगे, फिर सम्बन्ध में प्रत्यक्ष होंगे फिर विश्व की स्टेज पर प्रत्यक्ष होंगे।
- तब प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा।
- जैसे आपके यादगार शास्त्रों में कहते हैं - शंकर ने तीसरी आंख खोली और विनाश हो गया।
- तो शंकर अर्थात् अशरीरी तपस्वी रूप।
- विकारों रूपी सांप को गले का हार बना दिया।
- सदा ऊंची स्थिति और ऊंचे आसनधारी।
- यह तीसरी आंख अर्थात् सम्पूर्णता की आंख, सम्पन्नता की आंख।
- जब आप तपस्वी सम्पन्न, सम्पूर्ण स्थिति से विश्व परिवर्तन का संकल्प करेंगे तो यह प्रकृति भी सम्पूर्ण हलचल की डांस करेगी।
- उपद्रव मचाने की डांस करेगी।
- आप अचल होंगे और वह हलचल में होगी क्योंकि इतने सारे विश्व की सफाई कौन करेगा?
- मनुष्यात्माएं कर सकती हैं?
- यह वायु, धरती, समुद्र, जल - इनकी हलचल ही सफाई करेगी।
- तो ऐसी सम्पूर्णता की स्थिति इस तपस्या से बनानी है।
- प्रकृति भी आपका संकल्प से आर्डर तब मानेगी जब पहले आपके स्वयं के, सदा के सहयोगी कर्मेन्द्रियां मन-बुद्धि-संस्कार आर्डर मानें।
- अगर स्वयं के, सदा के सहयोगी आर्डर नहीं मानते तो प्रकृति क्या आर्डर मानेगी?
- इतनी पॉवरफुल तपस्या की ऊंची स्थिति हो जो सर्व के एक संकल्प, एक समय पर उत्पन्न हो।
- सेकेण्ड का संकल्प हो - “परिवर्तन'', और प्रकृति हाज़िर हो जाये।
- जैसे विश्व की ब्राह्मण आत्माओं का एक ही टाइम वर्ल्ड पीस का योग करते हो ना।
- तो सभी का एक समय और एक ही संकल्प यादगार रहता है।
- ऐसे सर्व के एक संकल्प से प्रकृति हलचल की डांस शुरू कर देगी, इसलिए कहते ही हो - स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन।
- यह पुरानी दुनिया से नई दुनिया परिवर्तन कैसे होगी?
- आप सर्व के शक्तिशाली संकल्प से संगठित रूप से सबका एक संकल्प उत्पन्न होगा।
- समझा क्या करना है?
- तपस्या इसको कहा जाता है। अच्छा।
- बापदादा डबल विदेशी बच्चों को देख सदा हर्षित रहते हैं।
- ऐसे नहीं कि भारतवासियों को देख हर्षित नहीं होते।
- अभी डबल विदेशियों का टर्न है इसलिए कहते हैं।
- भारत पर तो बाप सदा प्रसन्न हैं।
- तब तो भारत में आये हैं।
- और आप सबको भी भारतवासी बना दिया है।
- इस समय आप सभी विदेशी हो या भारतवासी हो।
- भारतवासी में भी मधुबन वासी।
- मधुबन वासी बनना अच्छा लगता है।
- अभी जल्दी-जल्दी सेवा पूरी करो तो मधुबन वासी बन ही जायेंगे।
- सारे विदेश में सन्देश जल्दी जल्दी देकर पूरा करो।
- फिर यहाँ आयेंगे तो फिर भेजेंगे नहीं।
- तब तक स्थान भी बन जायेंगे।
- देखो मैदान तो लम्बा-चौड़ा (पीस पार्क) पड़ा ही है, वहाँ पहले से प्रबन्ध कर लेंगे फिर आपको तकलीफ नहीं होगी।
- लेकिन जब ऐसा समय आयेगा उस समय अपनी अटैची पर भी सो जायेंगे।
- खटिया नहीं लेंगे। वह समय ही और होगा।
- यह समय और है।
- अभी तो सेवा का एक ही समय पर, मन्सा-वाचा-कर्मणा इकट्ठा संकल्प हो तब है सेवा की तीव्र गति।
- मन्सा द्वारा पॉवरफुल, वाणी द्वारा नॉलेजफुल, सम्बन्ध-सम्पर्क अर्थात् कर्म द्वारा लवफुल।
- यह तीनों अनुभूतियां एक ही समय पर इकट्ठी हों।
- इसको कहा जाता है तीव्र गति की सेवा।
- अच्छा तन से ठीक हैं, मन से ठीक हैं?
- फिर भी दूर-दूर से आते हैं तो बापदादा भी दूर से आये हुए बच्चों को खुश देख खुश होते हैं।
- फिर भी दूर से आने वाले अच्छे हो।
- क्योंकि विमान में आते हो।
- जो इस कल्प में पहली बार आये हैं उन्हों को बापदादा विशेष यादप्यार दे रहे हैं।
- फिर भी हिम्मत वाले अच्छे हैं।
- यहाँ से जाते ही टिकेट का इकट्ठा करते हैं और आ जाते हैं।
- यह भी एक याद की विधि है।
- जाना है, जाना है, जाना है...।
- यहाँ आते हो तो सोचते हो - विदेश जाना है।
- फिर जाने के साथ आना सोचते हो।
- ऐसा भी टाइम आना ही है, जो गवर्मेन्ट भी समझेगी कि आबू की शोभा यह ब्राह्मण आत्माएं ही है।
- पार्टियों के साथ अव्यक्त बापदादा की मुलाकात
- सभी अपने को होली हंस समझते हो?
- होलीहंस का विशेष कर्म क्या है?
- (हरेक ने सुनाया) जो विशेषताएं सुनाई वह प्रैक्टिकल में कर्म में आती हैं?
- क्योंकि सिवाए आप ब्राह्मणों के होलीहंस और कौन हो सकता है?
- इसलिए फलक से कहो।
- जैसे बाप सदा ही प्योर हैं, सदा सर्वशक्तियां कर्म में लाते हैं, ऐसे ही आप होलीहंस भी सर्वशक्तियां प्रैक्टिकल में लाने वाले और सदा पवित्र हैं।
- थे और सदा रहेंगे।
- तीनों ही काल याद है ना?
- बापदादा बच्चों का अनेक बार बजाया हुआ पार्ट देख हर्षित होते हैं, इसलिए मुश्किल नहीं लगता है ना।
- मास्टर सर्वशक्तिवान के आगे कभी मुश्किल शब्द स्वप्न में भी नहीं आ सकता।
- ब्राह्मणों की डिक्शनरी में मुश्किल अक्षर है?
- कहाँ छोटे अक्षरों में तो नहीं है?
- माया के भी नॉलेजफुल हो गये हो ना?
- जहाँ फुल है वहाँ फेल नहीं हो सकते।
- फेल होने का कारण क्या होता है?
- जानते हुए भी फेल क्यों होते हो?
- अगर कोई जानता भी हो और फेल भी होता है तो उसे क्या कहेंगे?
- कोई भी बात होती है तो फेल होने का कारण है कि कोई न कोई बात फील कर लेते हो।
- फीलिंग फ्लु हो जाता है।
- और फ्लु क्या करता है - पता है?
- कमजोर कर देता है।
- उससे बात छोटी होती है लेकिन बड़ी बन जाती है तो अभी फुल बनो।
- फेल नहीं होना है, पास होना है।
- जो भी बात होती है उसे पास करते चलो तो पास विथ ऑनर हो जायेंगे।
- तो पास करना है, पास होना है और पास रहना है।
- जब फलक से कहते हो कि बापदादा से जितना मेरा प्यार है उतना और किसी का नहीं है।
- तो जब प्यार है तो पास रहना है या दूर रहना है?
- तो पास रहना है और पास होना है।
- यू.के. वाले तो बापदादा की सर्व आशाओं को पूर्ण करने वाले हो ना।
- सबसे नम्बरवन बाप की शुभ आशा कौन सी है?
- खास यू.के. वालों के लिए कह रहे हैं।
- बड़े बड़े माइक लाने हैं।
- जो बाप को प्रत्यक्ष करने के निमित्त बनें और बाप के नजदीक आएं।
- अभी यू.के. में, अमेरिका में और भी विदेश के देशों में माइक निकले जरूर है लेकिन एक हैं सहयोगी और दूसरे हैं सहयोगी, समीप वाले।
- तो ऐसे माइक तैयार करो।
- वैसे सेवा में वृद्धि अच्छी हो रही है, होती भी रहेगी।
- अच्छा, रशिया वाले छोटे बच्चे हैं लेकिन लकी हैं।
- आपका बाप से कितना प्यार है!
- अच्छा है बापदादा भी बच्चों की हिम्मत पर खुश हैं।
- अभी मेहनत भूल गई ना। अच्छा।
चारों ओर की सर्व महान सन्तुष्ट आत्माओं को, सदा प्रसन्नचित्त निश्चिन्त रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा एक ही समय तीन सेवा करने वाले तीव्र गति के सेवाधारी आत्माओं को, सदा श्रेष्ठ स्थिति के आसनधारी तपस्वी आत्माओं को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
वरदान:-
( All Blessings of 2021-22)
- हर संकल्प, बोल और कर्म द्वारा पुण्य कर्म करने वाले दुआओं के अधिकारी भव
- अपने आपसे यह दृढ़ संकल्प करो कि सारे दिन में संकल्प द्वारा, बोल द्वारा, कर्म द्वारा पुण्य आत्मा बन पुण्य ही करेंगे।
- पुण्य का प्रत्यक्षफल है हर आत्मा की दुआयें।
- तो हर संकल्प में, बोल में दुआयें जमा हों।
- सम्बन्ध-सम्पर्क से दिल से सहयोग की शुक्रिया निकले।
- ऐसे दुआओं के अधिकारी ही विश्व परिवर्तन के निमित्त बनते हैं। उन्हें ही प्राइज़ मिलती है।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
- सदा एक बाप की कम्पनी में रहो और बाप को अपना कम्पेनियन बनाओ - यही श्रेष्ठता है।
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