02-07-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - माया के प्रभाव से बचने के लिए तुम घड़ी-घड़ी अपने सच्चे प्रीतम को याद करो, प्रीतम आया है तुम सब प्रीतमाओं को अपने साथ वापस घर ले चलने''
प्रश्नः-
कौन सा राज़ जानने के कारण तुम बच्चे शान्ति वा सुख मांगते नहीं हो?
उत्तर:-
तुम ड्रामा के राज़ को जानते हो।
तुम्हें पता है कि यह नाटक पूरा होगा।
हम पहले शान्ति में जायेंगे फिर सुख में आयेंगे, इसलिए तुम शान्ति वा सुख मांगते नहीं, अपने शान्त स्वरूप में स्थित होते हो।
मनुष्य तो अपने स्वधर्म को भी नहीं जानते और ड्रामा के राज़ को भी नहीं जानते इसलिए कहते हैं मेरे मन को शान्ति दो।
अब शान्ति तो वास्तव में आत्मा को चाहिए, न कि मन को।
गीत:- प्रीतम आन मिलो....
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- ओम् शान्ति।
- जैसे शास्त्रों में कोई-कोई बात समझ में आती है, उसमें भी गीता में कोई-कोई बात ठीक, राइट है।
- अब प्रीतम अक्षर तो ठीक कहा है परन्तु जियरा बुलावे, जियरा (शरीर) तो बुलाते नहीं।
- जीव में रहने वाली आत्मा बुलाती है क्योंकि आत्मा ही दु:खी है।
- पतित आत्मा कहा जाता है ना।
- आत्मा में ही खाद पड़ती है।
- आत्मा ही सतोप्रधान, आत्मा ही तमोप्रधान बनती है।
- सच्चा सोना ही फिर झूठा बनता है।
- ऐसे कभी नहीं समझना कि आत्मा निर्लेप है।
- मनुष्य समझते हैं आत्मा ही परमात्मा है इसलिए निर्लेप कह देते हैं, बहुत मूँझे हुए हैं।
- यह किसकी मत है?
- रावण की मत।
- ईश्वर अर्थ जो कुछ भी करते हैं - भक्ति आदि सब ईश्वर से मिलने अर्थ करते हैं।
- सबकी चाहना ही यह रहती है कि ईश्वर से कैसे मिलें?
- इनके लिए ही यज्ञ तप दान पुण्य आदि करते हैं।
- फिर भी ईश्वर तो मिलता नहीं है।
- अगर ईश्वर मिलता तो तीर्थों पर नहीं जाते।
- समझो किसको मूर्ति का साक्षात्कार हो जाता है।
- परन्तु वह भी ईश्वर तो नहीं मिला ना।
- ईश्वर को सब पुकारते हैं हे पतित-पावन, हे प्रीतम आओ क्योंकि आत्मा को दु:ख होता है।
- शरीर को चोट लगती है तो आत्मा को दु:ख फील होता है।
- आत्मा शरीर से निकल जाती है फिर शरीर को कुछ भी करो तो आत्मा को कुछ लगता होगा?
- आत्मा और शरीर कम्बाइन्ड है तो आत्मा को फील होता है।
- तुम बच्चे जानते हो सतयुग में कोई दु:ख नहीं होता क्योंकि वहाँ तो माया का राज्य ही नहीं होता।
- तुम पुरुषार्थ करते हो स्वर्ग में चलने का, जहाँ माया नहीं।
- यह माया का राज्य पूरा होने वाला है।
- मनुष्य तो बिचारे कुछ भी नहीं जानते।
- कहते हैं मन को शान्ति नहीं।
- यह नहीं कहते कि आत्मा को शान्ति नहीं है।
- मन के लिए ही कह देते हैं।
- आत्मा में ही मन-बुद्धि है, आत्मा कहती है हमको शान्ति चाहिए।
- ऐसे नहीं कि मन को शान्ति चाहिए।
- आत्मा शान्ति चाहती है।
- यह भी समझते हैं हम आत्मा परमधाम से आती हैं।
- इस शरीर में आत्मा को आरगन्स मिलते हैं।
- आत्मा कहती है - प्रीतम आन मिलो।
- जियरा दु:खी है।
- अब जीव और मन में कितना फ़र्क है।
- मन और बुद्धि आत्मा की शक्तियां हैं और यह शरीर आरगन्स है।
- इन बातों को और कोई नहीं जानते।
- वास्तव में आत्मा का नाम लेना चाहिए।
- शान्ति आत्मा को चाहिए।
- अब आत्मा आरगन्स द्वारा विकर्मों पर जीत पा रही है।
- ऐसे नहीं कि मन पर जीत पा रही है।
- नहीं, माया पर जीत पाते हैं, परमपिता परमात्मा की श्रीमत से।
- बाकी मन को शान्ति चाहिए - यह कहना भी रांग है।
- ऐसे नहीं कि मन को सुख चाहिए।
- आत्मा शान्ति मांगती है क्योंकि उनको अपना शान्तिधाम याद आता है।
- अभी तुम बच्चे आत्मा और परमात्मा के भेद को जान गये हो।
- बाप कहते हैं हे प्रीतमायें अपने प्रीतम को घड़ी-घड़ी याद करते रहो।
- प्रीतम भी जानते हैं कि इन पर माया का बहुत वार है।
- घड़ी-घड़ी माया भुला कर देह-अभिमान में ले आती है।
- आत्मा को पहचान मिलती है - हम शान्त स्वरूप हैं।
- आत्मा का स्वधर्म ही है शान्ति।
- स्वधर्म को भूल आत्मा दु:खी होकर पुकारती है - हमको शान्ति चाहिए, मुक्ति चाहिए।
- शान्ति के बाद फिर है सुख।
- संन्यासी तो ड्रामा के राज़ को जानते नहीं।
- शान्ति देश को भी नहीं जानते।
- तुमको पक्का-पक्का निश्चय है हम आत्मा परमधाम की रहने वाली हैं।
- हमने 84 जन्मों का पार्ट बजाया है।
- अब पार्ट पूरा हुआ है।
- यह आत्मा कहती है - प्रीतम हमको मिला है।
- भक्ति मार्ग में सब प्रीतम को याद करते हैं।
- सच्चा प्रीतम एक है।
- एक का ही नाम लेते हैं।
- तुम सब समझते हो, हमको प्रीतम मिला हुआ है।
- अभी इस साधारण तन में बैठे हैं इनका नाम ब्रह्मा है।
- तुम ब्रह्माकुमार कुमारियां हो।
- सबको यह समझाओ।
- ब्रह्माकुमार कुमारियों के आगे प्रजापिता अक्षर न आने से यह मूँझ हो जाती है।
- प्रजापिता अक्षर न होने से मनुष्य समझ नहीं सकते।
- प्रजापिता को तो सब जानते हैं।
- ब्रह्मा को फिर सूक्ष्मवतन वासी समझ लेते हैं।
- तुम प्रजापिता ब्रह्मा कहेंगे तो समझेंगे प्रजापिता ब्रह्माकुमार कुमारियां बरोबर हैं इसलिए पूछा जाता है प्रजापिता से क्या सम्बन्ध है?
- पिता अक्षर तो पहले है ही।
- शिव को परमपिता परमात्मा कहते हैं।
- अब तुम जान गये हो एक है पारलौकिक पिता, दूसरा है प्रजापिता ब्रह्मा।
- लौकिक बाप को तो जानते ही हैं।
- तुमने तीन पिताओं को अब समझा है और कोई दुनिया में नहीं जानते।
- सतयुग में भी पारलौकिक बाप को नहीं जानते।
- वहाँ उनको एक पिता होता है।
- अब इस संगम पर तुम्हारे 3 पितायें हैं।
- तीनों ही पितायें संगम पर ही हो सकते हैं।
- फिर कभी हो न सकें।
- एक हैं ऊंच ते ऊंच बाप, जिससे वर्सा मिलता है दूसरा बच्चा ब्रह्मा जिससे बच्चों को एडाप्ट करता हूँ।
- ब्रह्मा मुख वंशावली गाये हुए हैं।
- वह ब्राह्मण लोग सिर्फ कहते हैं - हम ब्रह्मा की औलाद हैं।
- परन्तु ऐसा नहीं समझते कि हम ब्रह्मा की मुख वंशावली हैं।
- वह तो हैं ही कुख वंशावली।
- मुख वंशावली सिर्फ इस समय ही होते हैं।
- शिव के लिए मुख वंशावली नहीं कहेंगे।
- उनको सब फादर मानते हैं, तीन पितायें हैं, शिवबाबा की और प्रजापिता ब्रह्मा की सब सन्तान हैं।
- लौकिक में तो हैं ही।
- तो यह पक्का याद करना चाहिए।
- फिर समझाया जाता है - परमपिता शिवबाबा का कोई बाप टीचर नहीं है।
- यह भी उस बाप को याद करते हैं।
- वही परमपिता भी है, परम शिक्षक भी है।
- रोज़ शिक्षा दे रहे हैं, भिन्न-भिन्न प्रकार की।
- तुम जानते हो कि प्रीतम हम प्रीतमाओं को बैठ समझाते हैं।
- वही पतित-पावन है।
- हमको ले जाने लिये आये हैं, दु:ख से छुड़ाते हैं।
- तुम जानते हो अब यह दु:ख की नगरी बदली होकर सुख की होगी।
- रावण राज्य खत्म होना है।
- आखरीन मौत तो आयेगा जरूर।
- रावण का बुत भी यहाँ ही बनाते हैं।
- रामराज्य और रावणराज्य।
- बाप आकर समझाते हैं इस रावण ने ही तुम भारतवासियों का राज्य छीना है।
- हार और जीत तुम भारतवासियों की ही होती है।
- रावण के आने से तुम वाम मार्ग में चले जाते हो।
- रजो तमो होते-होते तमोप्रधान हो जाते हो।
- रावण को तुम यहाँ जलाते हो।
- बरोबर रावण राज्य है।
- बाकी सीता आदि को चुराने की कोई बात ही नहीं है।
- यह तो राज्य ही रावण का है।
- सब मनुष्य मात्र रावण के राज्य में हैं।
- रावण-राज्य में है दु:ख, राम राज्य में है सुख।
- राम भगवान को ही कहा जाता है।
- तुम्हारी बुद्धि वहाँ चली जाती है और कोई की बुद्धि में यह बातें हैं नहीं।
- बाप ही आकर पारसबुद्धि बनाते हैं।
- बरोबर नाम ही रखा जाता है पारसनाथ।
- वहाँ भी विष्णु के ही दो रूप हैं।
- कितनी गुंजाइस है समझने की।
- बाप बैठ डिटेल में समझाते हैं।
- तुम गीत का एक अक्षर सुनने से ही जाग जायेंगे।
- तुम अब यात्रा पर जा रहे हो।
- जानते हो रूहानी यात्रा हम ही करते हैं।
- बरोबर हम सब आत्माओं का पण्डा एक ही है।
- अब तुमको दु:ख से लिबरेट कर ले जाते हैं।
- सभी का गाइड वह एक ही है।
- सबको वापिस मुक्तिधाम में ले जाने खुद आते हैं, जबकि इनको सबकी सद्गति करने आना ही है।
- तो जरूर किस रूप में आयेंगे ना!
- घर बैठे इनको आना है।
- बरोबर शिवरात्रि गाई जाती है।
- कोई से भी पूछो कि शिव तो निराकार है फिर उनकी रात्रि कैसे होती है?
- जिनका नाम और रूप नहीं फिर उनकी रात्रि कैसे होती है?
- लिंग भी दिखाते हैं - उनका नाम भी है, रूप भी है, देश भी है, समय भी है।
- उनकी महिमा भी गाते हैं सुख का सागर, तो जरूर सुख देंगे ना।
- अभी सब पतित हैं।
- जो गुणवान हैं, उन्हों के आगे जाकर गाते हैं - हमारे में कोई गुण नाही।
- हम काले हैं।
- यह काली दुनिया है ना।
- काले बैंगन में कोई गुण नाही।
- काले अर्थात् सांवरे (पतित) आदमियों में कोई गुण नहीं हैं।
- गुण तो जो गोरे (पावन) हैं उनमें ही होंगे।
- तुम एक बाप से सुनते हो और कोई बात सुनते नहीं हो।
- एक दो को यही ज्ञान की प्वाइंट्स सुनाओ।
- रिपीट कराओ।
- यहाँ जो सुख तुमको मिलता है, यहाँ जो धारणा होती है वह बहुत अच्छी है।
- हॉस्टल में थोड़े दिन के लिए आते हो, कोई 4 दिन, कोई 6-8 दिन के लिए आते हैं।
- वह बैठ बाप से सुनते रहते हैं।
- यह निश्चय हो जाए कि हम मात-पिता के साथ घर में बैठे हैं।
- यह ईश्वरीय घर है।
- दर कहो वा घर कहो बात एक ही है।
- दर में आया तो घर में भी आया।
- दर से अन्दर घर में आया।
- तो यहाँ ईश्वरीय घर है, भाई बहन हैं इसलिए इनको इन्द्रप्रस्थ भी कहते हैं।
- यह ज्ञान सब्ज परियां हैं, नम्बरवार नाम रख दिया है।
- यह है शिवबाबा की दरबार।
- यहाँ से तुम बाहर जाते हो तो तुम्हारी अवस्था में रात-दिन का फर्क पड़ जाता है।
- सर्विस पर जाने वालों की बुद्धि में यह रहता है कि सर्विस करें।
- ड्रामा चक्र को भी समझाना बहुत सहज है।
- हम अब तैयारी कर रहे हैं, बाबा हमें लेने के लिये आये हैं।
- बैग बैगेज तैयार करना है।
- बाप को पुराना कखपन देते हैं।
- बाबा बदले में सब सोना देते हैं।
- ज्ञान मान-सरोवर में तुम डुबकी लगाते हो।
- यह है पढ़ाई की बात, जिससे तुम स्वर्ग की परी बन जाते हो।
- बाकी परी और कोई चीज़ नहीं, पंख आदि नहीं हैं।
- वहाँ के महल जेवर आदि कैसे अच्छे होंगे।
- अभी माया ने पंख तोड़ डाले हैं, उड़ नहीं सकते हैं।
- यह समझने की बात है।
- समझाया जाता है - आत्मा जैसे रॉकेट है।
- रॉकेट ऊपर में जाते हैं, तो समझते हैं खुदा के नजदीक जाते हैं।
- अब खुदा वहाँ कोई बैठा है क्या?
- यह सारी पलटन आत्माओं की जाती है।
- बुद्धि में आना चाहिए - बाबा हमारा पण्डा है।
- ढेर की ढेर आत्माओं को ले जाते हैं।
- बाप कहते हैं मेरा काम ही यह है।
- मैं सहज राजयोग और ज्ञान सिखलाता हूँ।
- मैं नॉलेजफुल हूँ।
- मैं आता तो हूँ ना, इनमें बैठ तुमको अपना परिचय देता हूँ।
- जैसे तुम्हारी आत्मा में 84 जन्मों का पार्ट है तो मेरे में भी पार्ट है, जो मैं रिपीट करता हूँ।
- तुम्हारा पार्ट जास्ती है।
- मैं तो आधाकल्प के लिए वानप्रस्थ में बैठ जाता हूँ।
- तुम्हारा आलराउन्ड पार्ट है।
- कहते हैं भगवान को प्रेरणा आई सृष्टि रचने की, समझते नहीं हैं।
- बाप कहते हैं मेरा पार्ट आता है तो मैं इस साधारण तन में आकर तुमको राजयोग सिखलाता हूँ।
- मैं गर्भ में तो आऊंगा नहीं।
- जरूर मनुष्य तन में ही आकर राजयोग सिखलाऊंगा या कच्छ मच्छ में आऊंगा?
- मैं पतित को पावन कैसे बनाता हूँ - यह भी तुम जानते हो।
- शिक्षा बैठ देता हूँ।
- परमपिता परमात्मा आकर सहज राजयोग और ज्ञान सिखला कर विश्व का मालिक बनाते हैं, इनको जादूगर भी कहते हैं क्योंकि नर्क को स्वर्ग बना देते हैं।
- तुमको सारा राज़ अच्छी रीति समझाते रहते हैं।
- सृष्टि का विनाश कैसे होगा?
- यह आपस में कैसे लड़ेंगे?
- रक्त की नदियां कैसे बहेंगी।
- फिर दूध घी की नदियां बहेंगी।
- यह बाप बैठ समझाते हैं।
- पाण्डव लड़ते हैं क्या?
- बाप कहते हैं - देह-अभिमान छोड़ मामेकम् याद करो तो अन्त मती सो गति हो जायेगी।
- तत्व योगी समझते हैं हम ब्रह्म में लीन हो जायेंगे।
- परन्तु ब्रह्म में लीन अथवा ज्योति में कोई समाते नहीं हैं।
- बाप कहते हैं मनमनाभव।
- सिर पर बोझा बहुत है, याद से ही विकर्म विनाश होंगे।
- नहीं तो धर्मराज द्वारा बहुत सजायें खानी पड़ेंगी।
- हमको तो बस शिवबाबा की याद में जाना चाहिए।
- अगर बहुत समय से याद नहीं करेंगे तो पिछाड़ी में वह अवस्था नहीं रहेगी।
- बहुत संन्यासी लोग भी ऐसे बैठे-बैठे जाते हैं।
- भक्तों की महिमा भी कोई कम नहीं है, फिर भी पुनर्जन्म तो सबको लेना ही है।
- अब बाप कहते हैं हम सब आत्माओं को साथ ले जाऊंगा।
- रात-दिन यही चिंता रहे कि कैसे बाप का परिचय दें। अच्छा!
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) एक बाप से ही सुनना है और कोई से कोई बात नहीं सुननी है।
ज्ञान ही मुख से रिपीट करना और कराना है।
2) बाप के साथ वापिस जाना है इसलिए पुराना कखपन दे बैग-बैगेज ट्रासंफर कर देना है।
सबको बाप का परिचय मिल जाए - इसी एक चिंता में रहना है।
वरदान:-
( All Blessings of 2021-22)
- सदा सर्व प्राप्तियों की स्मृति द्वारा मांगने के संस्कारों से मुक्त रहने वाले सम्पन्न व भरपूर भव
- एक भरपूरता बाहर की होती है, स्थूल वस्तुओं से, स्थूल साधनों से भरपूर, लेकिन दूसरी होती है मन की भरपूरता।
- जो मन से भरपूर रहता है उसके पास स्थूल वस्तु या साधन नहीं भी हो फिर भी मन भरपूर होने के कारण वे कभी अपने में कमी महसूस नहीं करेंगे।
- वे सदा यही गीत गाते रहेंगे कि सब कुछ पा लिया, उनमें मांगने के संस्कार अंश मात्र भी नहीं होंगे।
स्लोगन:-
(All Slogans of 2021-22)
- पवित्रता ऐसी अग्नि है जिसमें सभी बुराईयां जलकर भस्म हो जाती हैं।
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