06-08-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन


"मीठे बच्चे - ज्ञान सागर बाप और ब्रह्म-पुत्रा नदी का यह संगम हीरे समान है, यहाँ तुम बच्चे आते हो - कौड़ी से हीरे जैसा बनने''

 

प्रश्नः-

सतयुगी राजधानी की स्थापना कब और कैसे होगी?

उत्तर:-

जब सारी पतित सृष्टि की सफाई हो अर्थात् पुरानी सृष्टि का विनाश हो तब सतयुगी राजधानी की स्थापना होगी।

उसके पहले तुम्हें तैयार होना है, पावन बनना है।

नई राजधानी का संवत तब शुरू होगा जब एक भी पतित नहीं रहेगा।

यहाँ से संवत शुरू नहीं होगा।

भल राधे-कृष्ण का जन्म हो जायेगा लेकिन उस समय से सतयुग नहीं कहेंगे।

जब वह लक्ष्मी-नारायण के रूप में राज-गद्दी पर बैठेंगे तब संवत प्रारम्भ होगा, तब तक आत्मायें आती जाती रहेंगी।

यह सब विचार सागर मंथन करने की बातें हैं।

गीत:- यही बहार है...

  • ओम् शान्ति।
  • यह बच्चे कहाँ आये हुए हैं?
  • ज्ञान सागर के कण्ठे पर।
  • वैसे रहते हैं ज्ञान गंगाओं के कण्ठे पर और अभी आये हैं ज्ञान सागर के कण्ठे पर।
  • कौन आये हैं?
  • ज्ञान गंगायें।
  • क्या बनने लिए?
  • कौड़ी से हीरे अथवा कंगाल से सिरताज बनने लिए।
  • ब्रह्मा है ब्रह्म-पुत्रा और शिव है ज्ञान सागर।
  • यह है ब्रह्मपुत्रा नदी।
  • बच्चा तो है ना।
  • ब्रह्मा वल्द शिव।
  • तुम हो पोत्रे और पोत्रियां।
  • कलकत्ता में सागर और नदी का बड़ा भारी मेला लगता है।
  • वहाँ गंगा, ब्रह्मपुत्रा और सागर मिलते हैं।
  • ब्रह्मपुत्रा में और भी नदियां मिलती हैं।
  • मुख्य है ब्रह्म पुत्रा और सागर का संगम।
  • उनको ही कहते हैं डायमन्ड हारबर।
  • यह नाम अंग्रेजों ने रखा है।
  • अर्थ कुछ भी नहीं समझते, नाम सिर्फ ऐसे ही रख दिया है।
  • बाप अर्थ समझाते हैं।
  • तुम आये हो इस समय ब्रह्म पुत्रा और ज्ञान सागर के पास सम्मुख।
  • वहाँ भी सागर के सम्मुख जाते हो हीरा बनने के लिए।
  • परन्तु हीरों के बदले पत्थर बन जाते हो क्योंकि वह है भक्ति मार्ग।
  • यह संगम है आत्माओं और परमात्मा का।
  • दोनों इकट्ठे हैं, वह जड़ यह चैतन्य।
  • यह तो कहाँ भी जा सकते हैं।
  • तो बच्चों को हमेशा यह समझना चाहिए कि ब्रह्मपुत्रा और सागर दोनों इकट्ठे हैं चैतन्य में।
  • यह जैसेकि हीरे बनने का संगम हो गया।
  • तुम हीरे जैसा बनो।
  • यह है ब्रह्मपुत्रा और एडाप्टेड ज्ञान गंगायें।
  • यह नदियां तो अनगिनत हैं।
  • उन नदियों का तो सबको मालूम है कि भारत में इतनी नदियां हैं।
  • यह तो अनगिनत हैं।
  • इन ज्ञान नदियों का तो अन्त नहीं पाया जा सकता है।
  • सागर से नदियां इस समय ही निकलती हैं।
  • पहले तो ब्रह्मपुत्रा निकलती है फिर उनसे छोटी-छोटी नदियां निकलती हैं।
  • तुम जानते हो नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार।
  • कोई बड़े हैं कोई छोटे हैं, यह सब मनुष्यों को हीरे जैसा बनाते हैं।
  • ऐसे भी नहीं कहेंगे कि सूर्यवंशी ही महाराजा महारानी बनते हैं।
  • नहीं। यथा राजा रानी तथा प्रजा।
  • तुम सबका जीवन हीरे जैसा बनता है, जो स्वर्ग के लिए थोड़ा भी पुरूषार्थ करते हैं वह हीरे जैसा बनते हैं।
  • यह ब्रह्म पुत्रा नदी और सागर दोनों इकट्ठे रहते हैं।
  • तुम बच्चे जब आते हो तो अन्दर में जानते हो कि हम जाते हैं - बापदादा के पास।
  • बाप ज्ञान का सागर है फिर प्रवेश करते हैं इस ब्रह्मपुत्रा अर्थात् ब्रह्मा में।
  • इन द्वारा हमको हीरे जैसा बनाते हैं।
  • अब जो जितना पुरूषार्थ कर श्रीमत पर चले।
  • यह भी जानते हो जहाँ तक जीना है वहाँ तक पुरूषार्थ करना है।
  • शिक्षा तो मिलती रहती है।
  • इम्तहान की रिजल्ट तो विनाश के समय ही निकलती है।
  • एक तरफ रिजल्ट निकलेगी दूसरे तरफ विनाश शुरू होगा, फिर तो हाहाकार हो जाता है।
  • बात मत पूछो इसलिए विनाश होने के पहले, लड़ाई होने के पहले तैयार होना है।
  • समझना चाहिए बाकी और क्या समय होगा और यह भी जानते हो कि जब हमारी राजधानी स्थापन होती है तो यह सारी सफाई भी होनी है।
  • तुम पावन बनते रहते हो।
  • वह हैं पतित।
  • सब पतित खलास हो जाएं, हिसाब-किताब चुक्तू कर सब वापिस चले जायें।
  • एक भी पतित न रहे तब कहेंगे पावन दुनिया।
  • तुम इस समय हो पावन परन्तु सारी दुनिया तो पावन नहीं है ना।
  • पावन बनेंगी जरूर।
  • जब विनाश होगा तब सारी दुनिया पावन होगी, उसको नई दुनिया कहेंगे।
  • नई दुनिया का संवत कोई पूछे तो समझाना चाहिए जब महाराजा महारानी तख्त पर बैठते हैं तब नया संवत शुरू होता है।
  • जब तक नया संवत शुरू हो तब तक पुराना जरूर कायम रहेगा।
  • यहाँ से संवत शुरू नहीं होगा।
  • हम ब्राह्मण भल नये हैं।
  • परन्तु दुनिया अथवा सारी पृथ्वी थोड़ेही नई है।
  • अभी है संगम।
  • कलियुग के बाद सतयुग आना है।
  • हम कहते ही हैं फर्स्ट प्रिन्स प्रिन्सेज राधे कृष्ण, फिर भी हम उस समय सतयुग नहीं कहेंगे।
  • जब तक लक्ष्मी-नारायण तख्त पर नहीं बैठे हैं तब तक कुछ न कुछ खिटपिट होती रहेगी, भल राधे कृष्ण आ जाते हैं।
  • देखो यह हैं विचार सागर मंथन करने की बातें।
  • सतयुग जब शुरू होगा तब संवत शुरू होगा।
  • सूर्यवंशी डिनायस्टी का संवत फलाना।
  • परन्तु प्रिन्स प्रिन्सेज के नाम पर संवत कभी नहीं होता।
  • बाकी बीच के समय में आना जाना होता रहता है।
  • छी-छी मनुष्यों को भी जाना है।
  • कुछ न कुछ बचे हुए तो रहते ही हैं ना।
  • जो भी बचे हुए होंगे वह भी वापिस जायें, टाइम लगता है।
  • यह कौन समझाते हैं?
  • ज्ञान सागर भी समझाते हैं तो ब्रह्मपुत्रा ज्ञान नदी भी है, दोनों इकट्ठे समझाते हैं।
  • वह कुम्भ का मेला तो वर्ष-वर्ष लगता है।
  • यह कुम्भ का मेला, सागर और ज्ञान नदियों का मेला तो संगमयुग पर ही होता है।
  • तुम बच्चे कहेंगे हम जाते हैं मात-पिता वा ज्ञान सागर और बड़ी नदी के पास।
  • बाबा हमको इस बड़ी नदी और इन नदियों द्वारा वर्सा दे रहे हैं अर्थात् हीरे जैसा बनाते हैं।
  • कुम्भ के मेले में कितना खुशी से बड़ी शुद्धि से जाते हैं और वहाँ मन्सा-वाचा-कर्मणा पवित्र रहते हैं।
  • वह है जड़ यात्रा।
  • यात्री अपना कल्याण करना चाहते हैं।
  • पण्डों का इतना कल्याण नहीं होता है जितना यात्रियों का।
  • पण्डे लोग तो पैसा इकट्ठा करने जाते हैं।
  • उन्हों की इतनी भावना नहीं होती जितनी यात्रियों की रहती है।
  • यात्री बड़ी शुद्ध भावना से जाते हैं, तो कईयों को साक्षात्कार हो जाता है।
  • अमरनाथ पर बर्फ का लिंग बना रहता है।
  • सामने जाने से बर्फ ही बर्फ जैसे देखने में आती है।
  • भावना वाले जैसे देखते तो खुश हो जाते हैं, यह तो कुदरत है।
  • बर्फ में लिंग बन जाता है, मनुष्यों की ऐसी भावना बैठ जाती है। है कुछ भी नहीं।
  • सच्ची यात्रा तो अभी तुम्हारी हो रही है। मनुष्य समझते हैं भगवान के पिछाड़ी बहुत धक्का खाया है, भगवान से मिलने, परन्तु भगवान मिलता ही नहीं।
  • बाबा ने समझाया है भगवान का तो चित्र नहीं निकाल सकते हैं।
  • बिन्दी का फोटो क्या होगा!
  • वह तो समझाने के लिए कहा जाता है कि स्टार है।
  • भ्रकुटी के बीच चमकता है...कई बच्चियां भ्रकुटी में टीका लगाती है।
  • यह सुना हुआ है ना कि आत्मा का निवास भ्रकुटी में है तो स्टार लगाती हैं, सच्चा तिलक अगर कहें तो वह है।
  • राजाई का तिलक फिर बड़ा होता है।
  • वह स्थूल राजतिलक मिलता है।
  • तुम बच्चों को ज्ञान आ जाता है कि हम आत्माओं को अब राजतिलक मिलता है।
  • आत्मा समझती है कि अभी हमको परमपिता परमात्मा से राजतिलक मिलता है।
  • भ्रकुटी के बीच बहुत अच्छा स्टार लगाते हैं।
  • सोने का भी लगाते हैं।
  • अभी तुमको सारा ज्ञान मिला हुआ है, हम स्टार अब हीरे जैसा बनते हैं। हम आत्मा स्टार हैं।
  • परमपिता परमात्मा भी स्टार इतना ही छोटा है, परन्तु उनमें सारी नॉलेज है, यह बातें बड़ी गुह्य हैं।
  • तुमको ज्ञान अर्थात् सोझरा मिला है।
  • परमपिता परमात्मा के रूप को भी देखा, समझा है।
  • जैसे आत्मा का साक्षात्कार होता है वैसे परमात्मा का भी होता है।
  • कहेंगे जैसे तुम हो वैसे मैं हूँ।
  • बाकी बच्चे को बाप का क्या साक्षात्कार चाहिए।
  • आत्मा छोटी बड़ी नहीं होती।
  • जैसे तुम वैसे बाप है।
  • सिर्फ महिमा और पार्ट अलग-अलग है और सबसे भिन्न-भिन्न है, एक न मिले दूसरे से।
  • एक्टर्स का पार्ट एक जैसा थोड़ेही हो सकता है।
  • इसको ईश्वर की कुदरत कहा जाता है।
  • वास्तव में ड्रामा की कुदरत कहें क्योंकि बाबा ऐसे नहीं कहते कि मैंने ड्रामा बनाया है।
  • फिर प्रश्न उठेगा कि कब बनाया?
  • इनको कहा ही जाता है कुदरत।
  • यह चक्र कैसे फिरता है सो अभी तुम जान गये हो।
  • आत्मा स्टार है उसमें कितना बड़ा पार्ट है।
  • परमपिता परमात्मा सर्वशक्तिमान, वर्ल्ड आलमाइटी अथॉरिटी है।
  • ज्ञान का सागर कहा जाता है।
  • यहाँ किसको ज्ञान का सागर नहीं कहा जाता।
  • वेद शास्त्र पढ़ने वाले शास्त्रों का ही ज्ञान सुनाते हैं।
  • बाकी बाप में जो ज्ञान है वह तो कोई में नहीं है।
  • भगवान ही आकर सहज राजयोग का ज्ञान सिखलाते हैं।
  • उनको ही ज्ञान का सागर कहेंगे।
  • तो यह नदियों का मेला लगता है।
  • यह भी समझते हो कि सागर से ही नदियां निकलती हैं।
  • कई बच्चों को यह भी मालूम नहीं रहता है।
  • वैसे ही तुम्हारी बातों को भी कोई नहीं जानते।
  • ज्ञान सागर कैसे आता होगा, उनसे ज्ञान गंगायें कैसे ज्ञान पाती होंगी।
  • यह हैं ज्ञान की बातें।
  • मनुष्यों द्वारा बुद्धि में जो बातें बैठी हैं तो सच्ची बातों का किसको पता नहीं है।
  • तुम अब उस सागर और इस ज्ञान सागर को जान गये हो।
  • अभी वह सागर और नदियां तो दु:ख देती रहती हैं।
  • सागर भी उछल पड़े तो कितना नुकसान कर देते हैं।
  • अभी ज्ञान सागर पतित-पावन को सब याद करते हैं, उस सागर वा नदियों को कोई याद नहीं करते।
  • पतित-पावन, ज्ञान सागर को याद करते हैं।
  • उस सागर से ही यह नदियां निकली हैं।
  • उनके नाम रूप देश काल को कोई जानते नहीं हैं।
  • भल शिव नाम कहते भी हैं सिर्फ लिंग का नाम रख दिया है।
  • बाबा का नाम अविनाशी है ना।
  • शिवबाबा रचयिता एक है, उनकी रचना भी एक है और अनादि है।
  • कैसे अनादि है, वह बाप बैठ समझाते हैं।
  • सतयुग में यह त्योहार आदि कुछ भी होते नहीं।
  • सब गायब हो जाते हैं।
  • फिर भक्तिमार्ग में शुरू होंगे।
  • मनुष्य समझते हैं - स्वर्ग था फिर स्वर्ग आयेगा परन्तु इस समय तो नर्क है।
  • इनकी आयु का किसको पता नहीं है, घोर अन्धियारा है।
  • कल्प की आयु का भी किसको पता नहीं है।
  • कहते भी हैं यह जो ड्रामा है यह फिरता रहता है।
  • परन्तु आयु का पता न होने के कारण कुछ भी समझते नहीं हैं।
  • ब्रह्मा के मुख द्वारा बाप बैठ सभी वेदों शास्त्रों का सार समझाते हैं तो उन्होंने फिर ब्रह्मा के हाथ में शास्त्र दे दिये हैं।
  • वह भी सब शास्त्र हाथ में थोड़ेही पकड़ सकते हैं वा ब्रह्मा द्वारा कोई सब शास्त्र थोड़ेही सुनाते हैं।
  • जानते हैं यह सब भक्ति मार्ग के हैं।
  • यह तो पढ़ते आये हैं।
  • कब से पढ़ते आये हैं, जानते कुछ भी नहीं।
  • सिर्फ कह देते यह अनादि हैं।
  • वेद व्यास ने रचे हैं।
  • वेदों को ऊंचा मानते हैं।
  • परन्तु लिखा हुआ है - वेद शास्त्र आदि सब गीता की रचना हैं।
  • तुम बच्चे जानते हो यह वेद शास्त्र आदि वही फिर बनेंगे।
  • फिर वह नाम रखेंगे।
  • अभी तुम जानते हो हम फिर पूज्य बन रहे हैं फिर पुजारी बनेंगे तो मन्दिर आदि बनायेंगे।
  • राजा रानी मन्दिर बनायेंगे तो प्रजा भी बनायेगी।
  • भक्तिमार्ग शुरू होने से फिर सब मन्दिर बनाने लगते हैं।
  • घर-घर में भी बनायेंगे।
  • लक्ष्मी-नारायण की राजधानी में तो राधे कृष्ण का मन्दिर बन नहीं सकता।
  • मन्दिर तो भक्तिमार्ग में बनते हैं।
  • जैसे जैसे गिरते जाते हैं, मन्दिर बनाते जाते हैं।
  • सूर्यवंशी और चन्द्रवंशियों की जो प्रापर्टी है वह वैश्य वंशी, शूद्र वंशी भोगते हैं।
  • नहीं तो यह राजाई कहाँ से आये।
  • प्रापर्टी चलती आती है।
  • बड़ी-बड़ी जो प्रापर्टी है वह छोटी-छोटी होते फिर आखरीन कुछ भी नहीं रहता है।
  • आपस में बांटते जाते हैं।
  • तो बच्चों को अब समझ में आ गया है कि कैसे हम पूज्य बनते हैं।
  • कितना समय बनते हैं फिर कैसे पुजारी बनते हैं।
  • अभी समझ गये ना कि परमपिता परमात्मा का नाम रूप देश काल और उनका पार्ट क्या है।
  • भक्ति मार्ग में भी भक्तों की शुद्ध भावना बाप ही पूरी करते हैं।
  • अशुद्ध भावना रावण पूरी करते हैं।
  • अभी तुमको ज्ञान सागर ने सारा ज्ञान बुद्धि में बिठाया है।
  • सब तो नहीं समझेंगे।
  • जो कल्प पहले वाले हैं वही निकलते रहेंगे।
  • अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।


  • धारणा के लिए मुख्य सार:-
  • 1) जब तक जीना है पुरूषार्थ करते रहना है।

    बाप की शिक्षाओं को अमल में लाना है।

    बाप समान मास्टर ज्ञान सागर बनना है।

    2) रूहानी पण्डा बन सबको सच्ची यात्रा करानी है।

    हीरे जैसा बनना और बनाना है।



  • ( All Blessings of 2021-22)
  • श्रेष्ठ और शुभ वृत्ति द्वारा वाणी और कर्म को श्रेष्ठ बनाने वाले विश्व परिवर्तक भव

    जो बच्चे अपनी कमजोर वृत्तियों को मिटाकर शुभ और श्रेष्ठ वृत्ति धारण करने का व्रत लेते हैं, उन्हें यह सृष्टि भी श्रेष्ठ नज़र आती है।

    वृत्ति से दृष्टि और कृत्ति का भी कनेक्शन है।

    कोई भी अच्छी वा बुरी बात पहले वृत्ति में धारण होती है फिर वाणी और कर्म में आती है।

    वृत्ति श्रेष्ठ होना माना वाणी और कर्म स्वत: श्रेष्ठ होना।

    वृत्ति से ही वायब्रेशन, वायुमण्डल बनता है।

    श्रेष्ठ वृत्ति का व्रत धारण करने वाले विश्व परिवर्तक स्वत: बन जाते हैं।



  • (All Slogans of 2021-22)
    • विदेही वा अशरीरी बनने का अभ्यास करो तो किसी के भी मन के भाव को जान लेंगे।