17-09-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - तुम्हारी यह लाइफ मोस्ट वैल्युबुल है, तुम्हें इस जन्म में कौड़ी से हीरे जैसा बनना है, इसलिए जितना हो सके बाप को याद करो''
प्रश्नः-
किस एक बात में खबरदार न रहने से सारा रजिस्टर खराब हो जाता है?
उत्तर:-
अगर किसी को भी दु:ख दिया तो दु:ख देने से रजिस्टर खराब हो जाता है। इस बात में बड़ी खबरदारी चाहिए। दूसरे को भी दु:ख देना माना स्वयं को दु:खी करना। जब बाप कभी किसी को दु:ख नहीं देते तो बच्चों को बाप समान बनना है। 21 जन्मों का राज्य भाग्य लेने के लिए एक तो पवित्र बनो, दूसरा - मन्सा-वाचा-कर्मणा किसी को भी दु:ख न दो। गृहस्थ व्यवहार में बहुत मीठा व्यवहार करो।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ...
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- ओम् शान्ति।
- तुम जानते हो कि हम आत्मायें अपनी क्या तकदीर बनाकर आये हैं।
- अभी फिर नई दुनिया के लिए हम तकदीर बना रहे हैं।
- यह भी जानते हो वह हैं जिस्मानी लड़ाई पर, तुम ब्राह्मण हो रूहानी लड़ाई पर।
- नई दुनिया का मालिक बनने के लिए, रावण पर विजय पाने के लिए तुम लड़ाई पर हो, बाप इस समय सम्मुख बैठकर समझाते हैं तो ठीक लगता है, बाहर निकलने से कितनी अच्छी-अच्छी प्वाइंट्स भूल जाते हैं।
- तुम मुरझा जाते हो।
- बाप है श्रीमत देने वाला।
- नई दुनिया का स्वराज्य देने वाला।
- स्व अर्थात् आत्मा कहती है पहले मुझे गदाई थी, अब राजाई मिलती है।
- उनको गदाई क्यों कहते हैं?
- गधे का मिसाल देते हैं क्योंकि गधे को श्रृंगार कर धोबी लोग कपड़े की गठरी रखते हैं, गधे ने मिट्टी देखी तो मिट्टी में लथेड़ी लगाने लगते हैं, (लेट जाते हैं)।
- तो यहाँ भी बाप आये हैं, बच्चों को स्वराज्य देने।
- श्रृंगार करते हैं।
- चलते-चलते बच्चे फिर माया की धूल में पड़कर श्रृंगार सारा खलास कर देते हैं।
- बच्चे खुद भी समझते हैं कि बाबा हमको श्रृंगारते बहुत अच्छा हैं।
- फिर माया ऐसी प्रबल है जो हम लथेड़ कर श्रृंगार खराब कर देते हैं।
- सबसे बड़ी धूल है विकार की।
- तुम्हारी लड़ाई है ही खास विकारों से।
- बाप कहते हैं काम विकार महाशत्रु है।
- कैसे शत्रु बना, यह कोई भी नहीं जानता।
- बाप ने हमको स्वराज्य दिया था, अब गंवाया है।
- फिर बाप आकर विकारों पर जीत पाने की युक्तियाँ बताते हैं।
- वास्तव में तुम्हारी लड़ाई काम महा-शत्रु से है।
- अब बाप कहते हैं कि कामी से निष्कामी बनो।
- निष्कामी अर्थात् कोई भी कामना नहीं, जिसमें कोई विकार नहीं उसको निष्कामी कहेंगे। बाप काम पर जीत पहनाते हैं।
- कोई को पता नहीं कि रावण राज्य कब से शुरू हुआ।
- जगन्नाथ के मन्दिर में देवताओं के बड़े गन्दे चित्र लगे हैं, इससे सिद्ध होता है देवताओं के वाम मार्ग में जाने से मनुष्य कामी बन जाते हैं।
- अभी तुम कामी मनुष्य से निष्कामी देवता बन रहे हो।
- तुम्हारी युद्ध न्यारी है।
- बाबा छी-छी दुनिया से वैराग्य दिलाते हैं।
- यह है विषय वैतरणी नदी।
- तुम्हारी यह लाइफ मोस्ट वैल्युबुल है, इसमें कौड़ी से हीरे जैसा बनना है।
- है सारी बुद्धि की बात।
- तुम्हें बाबा की याद में रहना है।
- आजकल तो मौत के लिए अनेक बाम्ब्स बनाये हैं।
- मनुष्यों ने तो कोई गुनाह नहीं किया है।
- आगे तो लड़ाई हमेशा शहर से बाहर मैदान में होती थी फिर विजय पाकर शहर के अन्दर आते थे।
- आजकल तो जहाँ देखो वहाँ बाम्ब्स ठोक देते हैं।
- बच्चों को कहाँ भी आना-जाना है तो बाप की याद में रहकर औरों को याद कराना है।
- तुम्हारी तो ब्रान्चेज खुलती ही रहेंगी।
- दान क्या करना चाहिए, सो भी तुम बच्चे ही समझते हो।
- उत्तम से उत्तम दान है अविनाशी ज्ञान रत्नों का।
- घर-घर में तुम यह हॉस्पिटल खोल दो।
- तुम्हारे हॉस्पिटल में दवाई आदि कुछ भी नहीं है, सिर्फ बाप का परिचय देना है कि उठते-बैठते बाप को याद करो।
- ऐसे नहीं कि एक जगह बैठ जाना है।
- यह तो जब कोई याद नहीं करते हैं तो संगठन में बिठाया जाता है, संगठन में बल मिलेगा।
- संग तारे कुसंग बोरे।
- बाहर जाने से फिर भूल जाते हैं।
- बाप ने समझाया है, सवेरे उठ बाप को याद करो, याद का चार्ट रखो।
- भारत का प्राचीन योग मशहूर है।
- बहुत जगह योग आश्रम हैं।
- वह सब हठयोग सिखाते हैं, उनसे कोई फायदा नहीं है।
- उसको हठयोग कहा जाता है।
- राजयोग मनुष्य, मनुष्यों को सिखला न सकें।
- विलायत में जाते हैं भारत का प्राचीन योग सिखाने।
- परन्तु वह सब है ठगी।
- सर्वोत्तम संन्यास तो तुम्हारा है।
- तुम पुरानी दुनिया का संन्यास करते हो।
- यह बाप ही आकर सिखलाते हैं।
- बाप कहते हैं बुद्धि से पुरानी दुनिया का संन्यास करो।
- तुमको गृहस्थ व्यवहार में रहते पवित्र रहना है।
- 5 विकारों का संन्यास करना है, फिर युक्ति मिलती है।
- अनेक जन्मों का सिर पर जो पाप है वा इस जन्म में जो पाप किये हैं वह कैसे छूटें?
- उसका प्रायश्चित कैसे हो?
- बाप कहते हैं कल्प-कल्प तुम बच्चों को मैं समझाता हूँ - बाप को याद करना है और चक्र भी घुमाना है।
- तुम्हारा स्वदर्शन चक्र फिरता रहता है।
- इस चक्र से तुम्हारे सब पाप नाश हो जाते हैं।
- स्वदर्शन चक्र की कितनी महिमा है।
- उन्होंने फिर दिखाया है श्रीकृष्ण ने स्वदर्शन चक्र चलाया, कितने मर गये।
- वह तो हैं सब दन्त कथायें।
- तुम बच्चों को अर्थ समझाया जाता है।
- बाप बच्चों को समझाते हैं - एक तो कोई को भी दु:ख नहीं देना है।
- बाबा कभी किसको दु:ख नहीं देते तो तुम बच्चों को भी ऐसा बनना है।
- दूसरे को दु:ख दिया गोया अपने को दु:ख दिया।
- किसको दु:ख देते हैं गोया अपना ही खाता खराब करते हैं, इसमें बड़ी खबरदारी चाहिए।
- ऐसा कोई पाप कर्म नहीं करना है, जिससे रजिस्टर खराब हो।
- बच्चे लिखते हैं कि बाबा आज हमसे यह भूल हो गई।
- उस पर क्रोध किया।
- आज मैं गिर गया।
- बाबा हमारा इसमें मोह हैं।
- बहुत रिपोर्ट आती है।
- फिर उनको समझाया जाता है।
- तुम्हारा अन्जाम (वायदा) है कि आप जब आयेंगे तो मैं आपके साथ ही बुद्धियोग रखूँगा।
- नष्टोमोहा बनूंगा।
- संन्यासी तो छोड़कर चले जाते हैं।
- प्राप्ति तो कुछ भी नहीं।
- तुमको तो प्राप्ति बहुत है इसलिए नष्टोमोहा पूरा बनना है।
- प्यार एक बाप में रखो।
- उनको ही याद करना है।
- ऐसे भी बहुत हैं जो बाबा के प्यार में ऑसू बहाते हैं कि ऐसे बाबा से हम दूर क्यों हैं?
- हम तो बस शिवबाबा से ही लटके रहें।
- यहाँ प्राप्ति बहुत भारी है।
- बाहर के सतसंगों में ढेर जाते हैं।
- प्राप्ति तो कुछ भी नहीं।
- वह तो ऐसे किसको नहीं समझाते कि काम महाशत्रु है।
- मनुष्य, मनुष्य को राजयोग सिखला न सकें।
- हाँ, कोई राजा बनते हैं, अल्पकाल सुख के लिए।
- बहुत दान-पुण्य गरीबों को करते हैं तो कहाँ राजा के पास जन्म मिल जाता है।
- यहाँ तो तुमको 21 जन्मों का राज्य भाग्य मिलता है।
- बाप कहते हैं एक तो पवित्र बनो, दूसरा मन्सा-वाचा-कर्मणा किसको दु:ख नहीं दो।
- नहीं तो सजा के निमित्त बन पड़ेंगे क्योंकि यहाँ धर्मराज बैठा है, जो बाबा का राइट हैण्ड है।
- तुम्हारा रजिस्टर खराब हो जायेगा।
- बहुत सजा के निमित्त बन पड़ेंगे।
- मुख से बोला, इन्द्रियों से कुछ विकर्म किया तो वह कर्मणा हो जायेगा।
- बाप समझाते हैं कि कर्मणा में नहीं आओ।
- तूफान भल आयें परन्तु तुमको बहुत मीठा बनना है।
- क्रोधी से क्रोध नहीं करना चाहिए।
- मुस्कराना होता है।
- क्रोध में मनुष्य गाली देते हैं।
- समझते हैं इनमें क्रोध का भूत आया हुआ है।
- ज्ञान से समझाना होता है।
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गृहस्थ व्यवहार में तुम्हारा व्यवहार बहुत मीठा होना चाहिए।
बहुतों के लिए कहते भी हैं कि आगे तो इनमें बहुत क्रोध था, अभी बहुत मीठा बन गया है।
महिमा करते हैं।
कोई तो पवित्रता पर बिगड़ते हैं कि विकार बिगर सृष्टि कैसे चलेगी।
अरे संन्यासी विकार में नहीं जाते हैं फिर उनके लिए तो कुछ कहो।
पवित्र बनना तो अच्छा है ना।
यहाँ तो घरबार भी नहीं छुड़ाया जाता है।
बहुत मीठा बनना है सबसे।
एक बाप को याद करना है।
वह है रचयिता, हम हैं रचना।
वर्सा बाप से मिलता है।
भाई-भाई से वर्सा मिल न सके।
गाते भी हैं हम सब भाई-भाई हैं।
तो जरूर बाप भी होगा ना।
ब्रदर्स बाप बिगर होते हैं क्या?
अभी देखो तुम कैसे भाई-बहन बनते हो।
वर्सा दादे से मिलता है।
मुख वंशावली ठहरे।
गाया भी जाता है प्रजापिता।
इतनी सारी प्रजा है तो जरूर एडाप्टेड होगी।
कुख वंशावली हो न सके।
तुम ब्राह्मण फिर देवता बनते हो।
यह बाजोली तुम खेलते हो, यह चक्र फिरता रहता है, इनको नई रचना कहा जाता है।
तुम बच्चों की तकदीर अब अच्छी बन रही है।
नर से नारायण बनने आये हो।
यह है एम-आब्जेक्ट।
लक्ष्मी-नारायण बन रहे हो।
चित्र सामने खड़े हैं।
फिर यह क्यों कहते हैं कि साक्षात्कार हो तब हम मानें।
अरे, तुम्हारा बाप मर जाये तो चित्र तो देखेंगे ना, ऐसे थोड़ेही कहेंगे कि वह बाप जिंदा हो जाए, बाप का दीदार हो तब मानें।
बाप को देखना है तो नौधा भक्ति करो तो बाबा वह साक्षात्कार करा देंगे।
परन्तु साक्षात्कार से होगा क्या?
यहाँ तो तुमको साक्षात्कार होता है, तुम सो देवी-देवता प्रिन्स प्रिन्सेज बनेंगे।
तो यह समझने की बातें हैं।
तुमको इस धुन में ही रहना है।
तुम तो जानते हो कि अभी राजधानी स्थापन हुई नहीं है।
अभी लड़ाई लग ही नहीं सकती।
कर्मातीत अवस्था अजुन कहाँ हुई है।
अभी तुम देखेंगे कि गली-गली में यह रूहानी हॉस्पिटल कॉलेज खुलते जायेंगे।
बाबा बुद्धि का ताला खोलते जायेंगे।
ब्राह्मणों की वृद्धि होती जायेगी।
ब्राह्मणों को ही फिर देवता बनना है।
तुम्हारे में भी ताकत आती जायेगी।
अभी भाषण से एक दो निकलते हैं फिर 50-100 निकलेंगे।
पुरूषार्थ करने लग पड़ेंगे।
होना तो है ना।
गृहस्थ व्यवहार में भी रहना है।
छोड़ना नहीं है।
कोई निकाल भी देते हैं।
परन्तु इसमें नष्टोमोहा अच्छा होना चाहिए इसलिए बाप शरण भी बड़ी खबरदारी से देते हैं।
नहीं तो फिर यहाँ आकर तंग करते हैं।
बच्चों को तो बहुत मीठा बनना है।
तुम्हारा ज्ञान है ही गुप्त। कान में मंत्र देते हैं ना।
तुम भी किसको कहते हो शिवबाबा को याद करो।
आगे चल सिर्फ कहने से ही बुद्धि में ठका हो जायेगा और झट पुरूषार्थ करने लग पड़ेंगे।
धीरे-धीरे झाड़ बढ़ेगा।
बच्चों को बहुत पुरूषार्थ करना है।
अन्धों की लाठी बनना है।
नम्बरवार बनते हैं ना।
सब एक समान तो नहीं होते हैं।
हाँ, सतयुग में सब पवित्र हो जायेंगे।
वहाँ दु:ख का नाम नहीं होता।
दीपमाला होती है सतयुग में।
दशहरा है संगमयुग पर।
वहाँ तो सदैव दीवाली है।
दीवाली का अर्थ ही है सब आत्माओं की ज्योत जग जाती है।
ऐसे नहीं कि सतयुग में कोई दीपावली मनाते हैं, दीवे आदि जगाते हैं।
नहीं, वहाँ तो खुशियाँ मनाते हैं, जब कारोनेशन होता है।
यह ज्ञान की बातें हैं।
हर एक की आत्मा साफ शुद्ध होती है।
वहाँ सब पवित्र ही होते हैं।
तुमको रोशनी मिली है।
जैसे बाबा को नॉलेज है वैसे तुम बच्चों को भी है।
बाकी तो वहाँ सब पवित्र ही होते हैं।
तो खुशियाँ ही खुशियाँ हैं।
तो बाप समझाते हैं बच्चों को कभी डरना नहीं है।
तुम्हारी लड़ाई बिल्कुल ही अलग है।
तुम्हारी लड़ाई है ही पुराने दुश्मन रावण से।
तुम माया पर जीत पाकर जगतजीत बनते हो।
बाप तुमको विश्व का मालिक बना रहे हैं।
बाहुबल से कोई विश्व का मालिक बन न सके।
अभी टाइम बाकी थोड़ा है।
विनाश सामने खड़ा है।
कल्प पहले मुआफिक हम राजयोग सीख रहे हैं गुप्त।
कितनी गुप्त पढ़ाई है, इसको कोई नहीं जानते।
जिन्होंने कल्प पहले राज्य भाग्य लिया है, वही अब लेंगे।
उन्हों का ही पुरूषार्थ चलेगा।
जितना-जितना रावण पर जीत पाते जायेंगे उतनी याद से शक्ति मिलती जायेगी।
बच्चों को टाइम वेस्ट नहीं करना चाहिए।
बाबा कहते हैं कि बच्चे सर्विस करते-करते थक मत जाना।
कोटों में कोई ही निकलते हैं।
फिर भी माया का थप्पड़ लगने से फेल हो जाते हैं।
माया भी सर्वशक्तिमान् है तो बाबा भी सर्वशक्तिमान् है।
आधाकल्प तो माया भी जीत लेती है ना।
तो बाप को याद करना है और श्रीमत लेते रहना है।
...अच्छा! मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुड़मार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
1) सच्चा प्यार एक बाप से रखना है।
बाकी सबसे नष्टोमोहा बनना है।
मुख से वा कर्मेन्द्रियों से कोई भी पाप कर्म नहीं करना है।
रजिस्टर सदा ठीक रखना है।
बाप समान सबके दु:ख दूर करने हैं।
2) सर्विस में कभी थकना नहीं है।
अपना टाइम वेस्ट नहीं करना है।
घर-घर में रूहानी हॉस्पिटल खोल सबको याद की दवाई देनी है।
( All Blessings of 2021-22)
प्रवृत्ति में रहते लौकिकता से न्यारे रह प्रभू का प्यार प्राप्त करने वाले लगावमुक्त भव
प्रवृत्ति में रहते लक्ष्य रखो कि सेवा-स्थान पर सेवा के लिए हैं, जहाँ भी रहते वहाँ का वातावरण सेवा स्थान जैसा हो, प्रवृत्ति का अर्थ है पर-वृत्ति में रहने वाले अर्थात् मेरापन नहीं, बाप का है तो पर-वृत्ति है।
कोई भी आये तो अनुभव करे कि ये न्यारे और प्रभु के प्यारे हैं।
किसी में भी लगाव न हो।
वातावरण लौकिक नहीं, अलौकिक हो, कहना और करना समान हो तब नम्बरवन मिलेगा।
(All Slogans of 2021-22)
- सदा खजानों से सम्पन्न और सन्तुष्ट रहो तो परिस्थितियां आयेंगी और बदल जायेंगी।
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