28-10-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
"मीठे बच्चे - भोलानाथ बाप एक है जो तुम्हारी झोली ज्ञान रत्नों से भरते हैं, वही कल्प वृक्ष का बीजरूप है, उनकी भेंट और किससे कर नहीं सकते''
प्रश्नः-
बहुत बच्चे बाप को भी ठगने की कोशिश करते हैं, कैसे और क्यों?
उत्तर:-
बाप को यथार्थ न पहचानने के कारण भूल करके भी छिपाते हैं, सच नहीं बताते हैं, सभा में छिपकर बैठ जाते हैं।
उन्हें पता ही नहीं कि धर्मराज बाबा सब कुछ जानता है।
यह भी सजाओं को कम करने की युक्ति है कि सच्चे बाबा को सच सुनाओ।
गीत:- भोलेनाथ से निराला....
|
ओम् शान्ति।
बच्चे समझ गये हैं कि भोलानाथ सदा शिव को कहा जाता है।
शिव भोला भण्डारी।
शंकर को भोलानाथ नहीं कहेंगे।
न और कोई को ज्ञान सागर कह सकते हैं।
बाप कहते हैं मैं ही आकर बच्चों को आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज अथवा ज्ञान सुनाता हूँ।
तो एक ही ज्ञान का सागर ठहरा, न शंकर, न अव्यक्त ब्रह्मा।
अव्यक्त ब्रह्मा तो सूक्ष्मवतन में रहता है।
बहुत इस बात में मूंझते हैं कि दादा को भगवान ब्रह्मा क्यों कहते हैं?
लेकिन अव्यक्त ब्रह्मा को भी भगवान नहीं कह सकते।
अब बाप समझाते हैं कि मैं ही तुम्हारा पारलौकिक पिता हूँ।
परलोक न स्वर्ग को, न नर्क को कहेंगे।
परलोक है परे ते परे लोक, जहाँ आत्मायें निवास करती हैं इसलिए उनको कहते हैं परमप्रिय पारलौकिक परमपिता क्योंकि वह परलोक में रहने वाले हैं।
भक्ति-मार्ग वाले भी प्रार्थना करेंगे तो आंखे ऊपर जरूर जायेंगी।
तो बाप समझाते हैं कि मैं सारे कल्प वृक्ष का बीजरूप हूँ।
एक शिव के सिवाय किसको भी क्रियेटर नहीं कह सकते।
वही एक क्रियेटर है बाकी सब उनकी क्रियेशन हैं।
अब क्रियेटर ही क्रियेशन को वर्सा देते हैं।
सब कहते हैं हमको ईश्वर ने अथवा खुदा ने पैदा किया है।
तो उस एक ईश्वर को सब फादर कहेंगे।
गाँधी को तो फादर नहीं कहेंगे।
बेहद का रचता बाप एक ही है।
वही समझाते हैं कि मैं तुम्हारा पारलौकिक परमपिता हूँ।
बाकी आत्मायें तो सब एक जैसी हैं, कोई बड़ी छोटी नहीं होती।
जैसे ज्ञान सूर्य, ज्ञान चन्द्रमा, ज्ञान सितारे.. तो उस सूर्य चांद की साइज़ में तो फर्क है लेकिन आत्माओं का साइज़ एक जैसे है।
बाबा कहते हैं मैं कोई साइज़ में बड़ा नहीं हूँ लेकिन परमधाम का रहने वाला हूँ इसलिए मुझे परम आत्मा कहते हैं।
परमात्मा में ही सारा ज्ञान है।
वह कहते हैं जैसे मैं अशरीरी हूँ वैसे आत्मा भी कुछ समय परमधाम में अशरीरी रहती है।
बाकी स्टेज पर जास्ती समय रहती है।
तो जैसे तुम आत्मा सितारे सदृश्य हो वैसे मैं भी हूँ।
अगर मैं बड़ा होता तो इस शरीर में फिट नहीं होता।
जैसे और सभी आत्मायें पार्ट बजाने आती हैं, वैसे मैं भी आता हूँ।
बाबा का भक्ति-मार्ग से पार्ट शुरू होता है।
सतयुग त्रेता में तो पार्ट ही नहीं।
अब खुद आकर हमको पूरा वर्सा देते हैं।
अपने से भी दो रत्ती ऊपर ले जाते हैं।
हमको ब्रह्माण्ड और सृष्टि दोनों का मालिक बनाते हैं।
यह तो हर एक बाप का फ़र्ज होता है बच्चों को लायक बनाना, कितनी सेवा करते हैं।
कोई के 7 बच्चे होते हैं, कोई डाक्टर, इन्जीनियर, वकील बनता है तो बाप फूला नहीं समाता।
लोग भी उनकी सराहना करते हैं कि बाप ने सब बच्चों को पढ़ाकर लायक बनाया है।
परन्तु सब एक जैसे तो नहीं बनते।
कोई क्या बनता, कोई क्या।
वैसे बाबा कहते हैं मैं तुमको कितना लायक बनाता हूँ।
यह बाबा देखो कैसा है!
इसका स्थूल नाम रूप कोई है नहीं।
दूसरे के तन में प्रवेश कर पढ़ाते हैं।
यह हूबहू कल्प पहले वाली पाठशाला है, तो जरूर गीता के भगवान ने गीता पाठशाला बनाई है।
जहाँ सबको ज्ञान घास, ज्ञान अमृत खिलाया है।
कोई कहते श्रीकृष्ण की गऊशाला, कोई कहते ब्रह्मा की।
लेकिन है क्या, जो शिवबाबा को शरीर न होने कारण ब्रह्मा से मिला दिया है।
बाकी श्रीकृष्ण को तो गऊ पालने की दरकार नहीं।
श्रीकृष्ण को पतित-पावन नहीं कहते।
गाँधी भी गीता को उठाए मुख से सीताराम उच्चारते रहते थे क्योंकि वह राम, कृष्ण, कच्छ-मच्छ सबमें भगवान मानते हैं।
पहले हम भी ऐसे समझते थे।
हमारा भी बुद्धि का ताला बन्द था।
अब बाप ने आकर जगाया।
सभी को कब्र से निकाल वापिस ले जाते हैं, मच्छरों के सदृश्य।
फिर उतरते धीरे-धीरे अपने समय पर हैं।
तुमको बाप समझाते हैं कि मुझ एक को याद करो।
स्टूडेन्ट को भी बाप टीचर याद रहता है।
तुमको तो बाप पढ़ाते हैं।
यही तुम्हारा गुरू भी है।
तीनों का ही फोर्स है।
फिर भी ऐसे बाप को भूल जाते हो!
ऐसे भी (फुलकास्ट कहलाने वाले) बच्चे हैं - जो 5 मिनट भी याद नहीं करते हैं।
तब कहते हैं अहो मम् माया मैं बच्चों का ताला खोलता हूँ, तुम बंद कर देती हो।
जरा भी विकार में गया तो बुद्धि का ताला लॉकप हो जाता है।
फिर भी सच सुनाने से सज़ा कम हो जाती है।
अगर आपेही जाकर जज को अपना दोष बताये तो कम सजा देंगे।
बाबा भी ऐसे करते हैं, अगर कोई बुरा काम कर छिपाता है तो उसको कड़ी सजा मिलती है।
तो धर्मराज से कुछ छिपाना नहीं चाहिए।
ऐसे बहुत हैं जो विकार में जाकर फिर छिपकर सभा में बैठ जाते हैं लेकिन धर्मराज से क्या छिपा सकते हैं?
निश्चय नहीं है तो ऐसे बाप को भी ठगने की कोशिश करते हैं।
लेकिन साकार को भल ठग लें, निराकार बाबा तो सब जानते हैं, तुम्हें इस तन से शिक्षा भी वही दे रहे हैं।
तुमसे बहुत पूछते हैं कि दादा के तन में परमात्मा कैसे आते हैं?
यह तो गृहस्थी था।
बाल बच्चे थे, इसमें कैसे आते हैं, क्यों नहीं कोई साधू सन्त के तन में आते हैं?
लेकिन परमात्मा को तो पतितों को पावन बनाना है।
जो पुजारी से पूज्य बना रहे हैं, ये भी जैसे बाजोली खेलते हैं।
ब्राह्मण ही देवता फिर क्षत्रिय, वैश्य.... यह वर्ण भी भारत में हैं।
और कहाँ वर्ण नहीं।
अब मैनें 15 मिनट भाषण किया।
ऐसे तुम भी समझा सकते हो।
बाबा करके डायरेक्ट बात करते हैं।
तुम कहेंगे शिवबाबा ऐसे समझाते हैं शिव अलग है, शंकर अलग है - यह भी साफ-साफ समझाना है।
यह है बाबा का परिचय देना।
जब गवर्मेन्ट का किताब निकलता है - हू इज हू।
वैसे ही हू इज हू प्रीआर्डीनेट ड्रामा।
हम कहेंगे ऊंचे ते ऊंचा शिवबाबा फिर ब्रह्मा, विष्णु, शंकर फिर लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता फिर धर्म स्थापन करने वाले।
इस रीति दुनिया पुरानी होती जाती है।
तुम देवतायें वाममार्ग में चले जाते हो।
अब बाप आकर जगाते हैं कहते हैं सब मेरे हवाले कर दो और मेरी मत पर चलो।
श्रीमत तो उनकी कहेंगे।
बाकी लक्ष्मी-नारायण, सीता-राम, जिनको याद करते वह सब वाममार्ग में चले गये और कौन श्रीमत दे सकता है।
भक्तों की मनोकामना भी बाबा ही पूरी करते, भल कोई कच्छ-मच्छ में भावना रखे तो उनकी भी भावना मैं पूरी करता हूँ।
उसका अर्थ यह निकाला है कि कच्छ-मच्छ सबमें भगवान है।
बाबा बहुत राज़ समझाते हैं।
लेकिन समझने वाले नम्बरवार हैं तो पद भी नम्बरवार हैं।
ये डीटी किंगडम स्थापन हो रही है, धर्म नहीं।
धर्म तो दूसरे धर्म वाले स्थापन करते हैं।
शिवबाबा तो ब्रह्मा द्वारा राजाओं का राजा बनाते हैं।
राजाओं का राजा का अर्थ भी तुमको समझाया है।
तुमको विकारी राजायें पूजते हैं, तो कितना बड़ा पद तुमको मिलता है।
बाबा की मीठी-मीठी बातें तुमको बहुत अच्छी लगती हैं परन्तु फिर उठकर चाय पी तो नशा कम हो जाता है।
गांव में गये तो एकदम उतर जाता है।
यहाँ तो जैसे तुम शिवबाबा के घर में बैठे हो।
वहाँ बहुत फ़र्क पड़ जाता है।
जैसे पति जब परदेश जाते हैं तो पत्नि आंसू बहाती है।
वह तो कोई सुख देते नहीं, यह बाबा तो तुम्हें कितना सुख देते हैं, तो इनको छोड़ने में भी रोना आता है!
बहुत कहते हैं हम यहाँ ही बैठ जायें।
फिर आपके बाल बच्चे कहाँ जायेंगे?
कहते हैं आप सम्भालो।
हम कितनों के बच्चे सम्भालेंगे!
लेकिन ठहरो, सर्विसएबुल बनो तो तुम्हारे बच्चों का भी प्रबन्ध हो जायेगा।
शुरू में थोड़े थे तो उनके बच्चे सम्भाले, अब कितने हैं।
उन्हों के बच्चे बैठ सम्भालें, उनसे कोई गुम हो जाये तो कहेंगे हमारा बच्चा गुम कर दिया।
जिसको सम्भालने रखें - वह भी कहेंगे हम औरों का कर्मबंधन क्यों सम्भालें।
अच्छा फिर तो एक ही शिव बच्चे को सम्भालो तो वह तुम्हारे बच्चे सम्भालेंगे।
बाकी ऐसे बाबा को कभी फारकती मत देना।
ऐसे बहुतों ने फारकती दी है।
उन्हों को मूर्खों के अवतार कहें।
भल कोई ब्रह्माकुमार कुमारी से रूठ जाओ लेकिन शिवबाबा से कभी नहीं रूठना।
वह तो तुमको राज्य-भाग्य देने आया है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) अपना सब कुछ बाप हवाले कर पूरा श्रीमत पर चलना है।
कोई भी बुरा काम करके छिपाना नहीं है, जज को सच बताने से सजा कम हो जायेगी।
2) बाप से कभी रूठना नहीं है, सर्विसएबुल बनना है।
अपने कर्मबन्धन स्वयं कांटने हैं।
( All Blessings of 2021-22)
संगमयुग की हर घड़ी को उत्सव के रूप में मनाने वाले सदा उमंग-उत्साह सम्पन्न भव
कोई भी उत्सव, उमंग उत्साह के लिए मनाते हैं।
आप ब्राह्मण बच्चों की जीवन ही उत्साह भरी जीवन है।
जैसे इस शरीर में श्वांस है तो जीवन है ऐसे ब्राह्मण जीवन का श्वांस ही उमंग-उत्साह है।
इसलिए संगमयुग की हर घड़ी उत्सव है।
लेकिन श्वांस की गति सदा एकरस, नार्मल होनी चाहिए।
अगर श्वांस की गति बहुत तेज हो जाए या स्लो हो जाए तो यथार्थ जीवन नहीं कही जायेगी।
तो चेक करो कि ब्राह्मण जीवन के उमंग-उत्साह की गति नार्मल अर्थात् एकरस है!
(All Slogans of 2021-22)
- सर्व शक्तियों के खजाने से सम्पन्न रहना - यही ब्राह्मण स्वरूप की विशेषता है।
- मातेश्वरी जी के अनमोल महावाक्य
- 1) यह जो मनुष्य गीत गाते हैं ओ गीता के भगवान अपना वचन निभाने आ जाओ। अब वो स्वयं गीता का भगवान अपना कल्प पहले वाला वचन पालन करने के लिये आया है और कहते हैं हे बच्चे, जब भारत पर अति धर्म ग्लानि होती है तब मैं इसी समय अपना अन्जाम पालन करने (वायदा निभाने) के लिये अवश्य आता हूँ, अब मेरे आने का यह मतलब नहीं कि मैं कोई युगे युगे आता हूँ। सभी युगों में तो कोई धर्म ग्लानि नहीं होती, धर्म ग्लानि होती ही है कलियुग में, तो मानो परमात्मा कलियुग के समय आता है। और कलियुग फिर कल्प कल्प आता है तो मानो मैं कल्प कल्प आता हूँ। कल्प में फिर चार युग हैं, इसको ही कल्प कहते हैं। आधाकल्प सतयुग त्रेता में सतोगुण सतोप्रधान है, वहाँ परमात्मा के आने की कोई जरूरत नहीं। और फिर तीसरा द्वापर युग से तो फिर दूसरे धर्मों की शुरूआत है, उस समय भी अति धर्म ग्लानि नहीं है इससे सिद्ध है कि परमात्मा तीनों युगों में तो आता ही नहीं है, बाकी रहा कलियुग, उसके अन्त में अति धर्म ग्लानि होती है। उसी समय परमात्मा आए अधर्म विनाश कर सत् धर्म की स्थापना करता है। अगर द्वापर में आया हुआ होता तो फिर द्वापर के बाद तो अब सतयुग होना चाहिए फिर कलियुग क्यों? ऐसे तो नहीं कहेंगे परमात्मा ने घोर कलियुग की स्थापना की, अब यह तो बात नहीं हो सकती इसलिए परमात्मा कहते हैं मैं एक हूँ और एक ही बार आए अधर्म का विनाश कर, कलियुग का विनाश कर सतयुग की स्थापना करता हूँ तो मेरे आने का समय संगमयुग है।
2) अब यह तो हम जानते हैं कि मनुष्य आत्मा की किस्मत बनाने वाला कौन है और किस्मत बिगाड़ने वाला कौन है? हम ऐसे नहीं कहेंगे कि किस्मत बनाने वाला, बिगाड़ने वाला वही परमात्मा है। बाकी यह जरूर है कि किस्मत को बनाने वाला परमात्मा है और किस्मत को बिगाड़ने वाला खुद मनुष्य है। अब यह किस्मत बने कैसे? और फिर गिरे कैसे? इस पर समझाया जाता है। मनुष्य जब अपने को जानते हैं और पवित्र बनते हैं तो फिर से वो बिगड़ी हुई तकदीर को बना लेते हैं। अब जब हम बिगड़ी हुई तकदीर कहते हैं तो इससे साबित है कोई समय अपनी तकदीर बनी हुई थी, जो फिर बिगड़ गई है। अब वही फिर बिगड़ी तकदीर को परमात्मा खुद आकर बनाते हैं। अब कोई कहे परमात्मा खुद तो निराकार है वो तकदीर को कैसे बनायेगा? इस पर समझाया जाता है, निराकार परमात्मा कैसे अपने साकार ब्रह्मा तन द्वारा, अविनाशी नॉलेज द्वारा हमारी बिगड़ी हुई तकदीर को बनाते हैं। अब यह नॉलेज देना परमात्मा का काम है, बाकी मनुष्य आत्मायें एक दो की तकदीर को नहीं जगा सकती हैं। तकदीर को जगाने वाला एक ही परमात्मा है तभी तो उन्हों का यादगार मन्दिर कायम है। अच्छा। ओम् शान्ति।
|