22-11-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - पुरुषार्थ कर सर्वगुण सम्पन्न बनना है, दैवीगुण धारण करने हैं, देखना है मेरे में अब तक क्या-क्या अवगुण हैं, हम आत्म-अभिमानी कहाँ तक बने हैं
प्रश्नः-
सर्विसएबुल बच्चों की बुद्धि में अब कौन सी तात लगी रहनी चाहिए?
उत्तर:-
मनुष्यों को देवता कैसे बनायें, कैसे सबको लक्ष्मी-नारायण, राम-सीता की बायोग्राफी सुनायें - यह तात बच्चों में लगी रहनी चाहिए।
लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में बहुरूपी बन, वेष बदलकर टिपटॉप होकर जाना चाहिए।
उनके पुजारियों से वा ट्रस्टियों से अलग समय लेकर मिलना चाहिए।
फिर युक्ति से पूछना है कि आपने यह जो मन्दिर बनाया है, इनकी जीवन कहानी क्या है?
युक्ति से बात करते, उन्हें परिचय देना है।
गीत:- हमारे तीर्थ न्यारे हैं....
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- ओम् शान्ति।
- गीत का अर्थ बहुत बारी समझाया है।
- हम अभी यात्रा कर रहे हैं।
- वापिस अपने स्वीट होम जाने की।
- हम अभी 84 जन्म पूरे कर वापिस जा रहे हैं।
- यह कौन कहते हैं? ब्रह्मा मुख वंशावली ब्राह्मण।
- तुम कर्मयोगी तो हो ही।
- धन्धाधोरी आदि यह भी कर्म है।
- नींद भी कर्म है।
- कर्म तो करना ही है।
- तुम जब इस यात्रा पर बाप की याद में रहेंगे तो तुम देवता जैसा बन जायेंगे।
- मनमनाभव का अर्थ भी यह है, मामेकम् याद करो तो तुम मनुष्य से देवता बन जायेंगे।
- देवतायें भी भारत के मनुष्य ही थे।
- सिर्फ उन्हों के चित्र दिखाये जाते हैं कि ऐसे होकर गये हैं।
- भारत में लक्ष्मी-नारायण होकर गये हैं।
- भारत में बहुत मन्दिर बनाते हैं।
- ऐसे और कोई राजायें आदि नहीं हैं, जिनके मन्दिर बने हैं और मनुष्य बैठ उन्हों की महिमा गाते हैं।
- लक्ष्मी-नारायण, राधे-कृष्ण, राम-सीता सबकी महिमा गाते हैं।
- सबसे जास्ती महिमा है लक्ष्मी-नारायण की, वो 16 कला सम्पूर्ण, वह 14 कला वाले।
- यह बातें तुम अभी समझते हो और तुम फिर से ऐसे बन रहे हो।
- उन्हों को भी कोई ने जरूर ऐसा बनाया होगा।
- बाप ने ही संगम पर कर्म-अकर्म-विकर्म की गति को समझाए देवता बनाया है।
- भारतवासी देवताओं की महिमा गाते हैं - आप सर्वगुण सम्पन्न...... अपने को देवता नहीं समझते।
- भारत के महाराजा महारानी होकर गये हैं।
- उन्हों में दैवीगुण थे इसलिए उन्हों को देवता कहा जाता है।
- थे मनुष्य ही।
- क्राइस्ट, बुद्ध आदि भी मनुष्य थे।
- मनुष्यों की ही यह दुनिया है।
- लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर भी मनुष्य बनाते हैं।
- लाखों रूपया खर्च कर मन्दिर बनाते हैं।
- परन्तु यह नहीं जानते तो उन्हों को यह राजाई कैसे मिली?
- ऐसे गुणवान वह कैसे बनें?
- हम अपने को पापी, नीच क्यों कहते हैं?
- यह तो बहुत फ़र्क हो जाता है।
- सब एक ही देश भारत के रहने वाले, वह भी मनुष्य, हम भी मनुष्य।
- परन्तु उन्हों की सीरत देवताओं जैसी है और इस दुनिया के मनुष्यों की सीरत असुरों जैसी है।
- यह भी आदत पड़ गई है।
- मन्दिरों में जाकर महिमा गाते हैं।
- हैं वह भी मनुष्य परन्तु उनमें दैवी-गुण, हमारे में आसुरी गुण।
- गोया हम असुर हैं वह देवता हैं।
- कहते हैं असुर और देवताओं की लड़ाई लगी।
- अब देवतायें हैं स्वर्ग में, असुर हैं नर्क में, देवतायें यहाँ कैसे आये जो लड़ाई लगी।
- नाम है देवता, वह लड़ाई कैसे करेंगे?
- देवताओं के राज्य में असुरों का नाम निशान नहीं।
- असुरों का युग - कलियुग पुरानी पृथ्वी, देवताओं का युग - सतयुग नई पृथ्वी, फिर दोनों की युद्ध कैसे होगी?
- देवताओं को युद्ध करने की दरकार नहीं।
- वह तो वहाँ राज्य करते हैं।
- बात बहुत सहज है समझने और समझाने की।
- हम त्रिमूर्ति भी दिखाते हैं।
- लक्ष्मी-नारायण को शिवबाबा ने ब्रह्मा द्वारा यह राज्य दिया, परन्तु मनुष्य समझते नहीं।
- जो भगवान आकर समझाते हैं कि मनुष्य से देवता बनना है।
- दैवीगुण धारण करो तो भी समझते नहीं।
- जैसे बाप ने लक्ष्मी-नारायण को ऐसा बनाया, वह अब तुमको भी बना रहे हैं।
- तो पुरुषार्थ कर सर्वगुण सम्पन्न बनना चाहिए।
- देखना चाहिए मेरे में क्या अवगुण हैं।
- देह-अभिमान बहुत है।
- देवतायें आत्म-अभिमानी थे वहाँ यह जानते हैं कि हम आत्मा एक शरीर छोड़ दूसरा लेंगी।
- वहाँ अकाले मृत्यु नहीं होता, बीमार नहीं होते।
- सम्पूर्ण थे, यथा राजा तथा प्रजा .... इसलिए नाम ही स्वर्ग था।
- यहाँ है नर्क।
- किसको कहो तुम नर्कवासी हो तो बिगड़ पड़ते हैं।
- तुम समझा सकते हो जब भारत स्वर्ग था तो लक्ष्मी-नारायण का राज्य था।
- यह नर्क है, तो उन्हों का राज्य ही नहीं।
- देवतायें जो पूज्य थे वही पुजारी बनें।
- सतोप्रधान से तमोप्रधान हर चीज़ को बनना है।
- ऐसी कोई वस्तु नहीं जो नई से पुरानी न हो।
- तुम वेष बदलकर भी जा सकते हो।
- लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में बहुत मेला लगता है।
- तुमको यह तात लगनी चाहिए कि मनुष्यों को यह बतायें कि उन्हों को बाप ने यह राज्य-भाग्य कैसे दिया।
- अब तो कोई अपने को देवता नहीं कहलाता, सब हिन्दू हैं।
- हिन्दू कोई धर्म नहीं।
- हिन्दू धर्म किसने स्थापन किया?
- कान्फ्रेन्स में लक्ष्मी-नारायण का चित्र भी ले जाना पड़े।
- यह फर्स्टक्लास चित्र है।
- बम्बई में लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर फर्स्टक्लास बना हुआ है।
- बड़े रमणीक चित्र हैं।
- फर्स्टक्लास कारीगर होते हैं तो चित्र भी फर्स्टक्लास बनाते हैं।
- लक्ष्मी-नारायण की झांकी दिखलाकर उन्हों को समझाना है कि यह कौन हैं, इन्होंने कैसे यह पद पाया?
- इन्होंने पूरे 84 जन्म लिए हैं।
- अभी फिर से यह राजयोग सीख रहे हैं - भविष्य में देवता बनने के लिए।
- मूल बात अच्छी तरह समझानी है।
- बच्चे समझते हैं - प्रदर्शनी पर हमने बहुत अच्छा समझाया।
- परन्तु बहुत अच्छा तो आगे चलकर समझाना है।
- अभी तो पुरुषार्थ अनुसार समझाया।
- सुनते बहुत हैं, एक कान से सुन दूसरे से निकाल देते हैं।
- बाबा घड़ी-घड़ी कहते हैं, पहले-पहले बाप का परिचय दो।
- बाप ने स्वर्ग बनाया था।
- यह लक्ष्मी-नारायण के चित्र खड़े हैं।
- हम यह बनने का पुरुषार्थ कर रहे हैं।
- प्रजापिता ब्रह्मा है शिवबाबा का बच्चा।
- ब्रह्मा को भगवान नहीं कहेंगे, वह रचना है।
- इन देवी-देवताओं को राज्य-भाग्य हेविनली गॉड फादर ने दिया - ब्रह्मा द्वारा।
- अभी शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा राज्य स्थापन कर रहे हैं।
- हम कहते शिव भगवानुवाच - ब्रह्मा द्वारा।
- वह हमको पढ़ाने वाला है।
- इस पर ज़ोर देना है - भभके से।
- ढेर बी.के. हैं।
- तो नशे से कहना चाहिए कि मैं बी.के. शिवबाबा का पोत्रा हूँ।
- शिवबाबा से हमको वर्सा मिल रहा है, ब्रह्मा द्वारा हमको राजयोग सिखला रहे हैं।
- हमको एडाप्ट किया है।
- शिवबाबा तुम्हारा भी दादा है।
- प्रजापिता ब्रह्मा के तुम भी बच्चे हो।
- सिर्फ हम जानते हैं और वर्सा ले रहे हैं।
- तुम नहीं जानते हो, हम तुमको परिचय देते हैं।
- परन्तु किसके भाग्य में नहीं है तो समझते नहीं।
- निश्चय नहीं करते कि हम बी.के. हैं।
- शिवबाबा ब्रह्मा द्वारा राजयोग सिखलाते हैं।
- हमको भी देवता बनाते हैं। शिव जयन्ती मनाते हैं।
- यह भारत परमपिता परमात्मा का बर्थ प्लेस है।
- बहुत फ़खुर से बोलना चाहिए।
- सर्व का सद्गति दाता एक बाप है, भारत उनका बर्थ प्लेस है।
- अब बाप फिर आया हुआ है।
- जयन्ती मनाते हैं परन्तु वह कब और किसके तन में आता है, यह नहीं जानते।
- जरूर ब्रह्मा के तन में आयेंगे।
- नहीं तो राज्य भाग्य कैसे दें, राजयोग कैसे सिखलाये?
- ऐसे क्लीयर कर समझाना है।
- तुम भी बाप से राज्य-भाग्य लो।
- महाभारत लड़ाई सामने खड़ी है।
- अब बाप से अपनी भक्ति का फल लो, हम आपको राय दे रहे हैं।
- आते बहुत हैं।
- शक्ल मनुष्य जैसी है परन्तु सीरत बन्दर जैसी है।
- तुम समझाओ कि हम श्रीमत पर चलते हैं - इस यज्ञ में विघ्न पड़ेंगे।
- विष के कारण अबलाओं पर अत्याचार होते हैं।
- ब्रह्माकुमारियों की निंदा इसीलिए होती है क्योंकि विष (विकार) छुड़ाती हैं।
- इस पर मारामारी होती है।
- बाप ने कहा है काम महाशत्रु है।
- इस समय सब धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हैं, सब नर्कवासी हैं।
- बाप आकर स्वर्ग वासी बनाते हैं।
- अब पुरुषार्थ कर बाप से वर्सा लेना है।
- परमपिता परमात्मा पढ़ा रहे हैं।
- ब्रह्मा द्वारा भक्ति का फल दे रहे हैं।
- ऐसा निश्चय हो जाए तो फौरन भागें।
- परन्तु विरला कोई भागता है।
- तुमको चित्र बहुत अच्छे बनाने चाहिए।
- इनके साथ त्रिमूर्ति, झाड़ का भी कनेक्शन है।
- कई बच्चे बहुत अच्छी सर्विस करते हैं, दूसरे फिर डिससर्विस भी करते हैं।
- बाप जानते हैं यह सब कुछ होना ही है।
- नौकर चाकर आदि सब चाहिए।
- अगर ब्राह्मण बनना है तो श्रीमत पर चलो।
- किसको दु:ख मत दो।
- बाप का परिचय सबको देते रहो।
- बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प के संगमयुग पर भारत में ही आता हूँ।
- सर्व की सद्गति करता हूँ।
- मेरे पास तो सबको आना पड़े।
- तुम जानते हो सबका लिबरेटर और गाइड यहाँ भारत में ही जन्म लेते हैं।
- बाप को नाम रूप से न्यारा और सर्वव्यापी कह दिया है।
- भारतवासियों ने ही ग्लानी कर दी है।
- उनका ही बेड़ा गर्क होता है।
- धर्म भ्रष्ट, कर्म भ्रष्ट हो अपने को हिन्दू कहला रहे हैं।
- बाप सम्मुख कहते हैं - तुमने कितनी धर्म ग्लानी की है।
- मेरी भी ग्लानी की है।
- तुम ही पवित्र देवी देवता थे।
- अब अपवित्र बन पड़े हो।
- यही देवी-देवता भारत के मालिक थे और भारत स्वर्ग था।
- यह तो सब कहते हैं अभी कलियुग है फिर जरूर चक्र रिपीट होना है।
- बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प दुनिया को नया बनाता हूँ।
- तुम लक्ष्मी-नारायण के मन्दिर में जाकर ट्रस्टी से मिल सकते हो।
- आजकल माताओं का मान कम है क्योंकि भीख मांगने वाली बहुत निकली हैं।
- तुम राखी बांधने जाती हो तो वह समझेंगे - भीख माँगने आई हैं।
- कह देंगे फुर्सत नहीं है, भगाने की कोशिश करेंगे।
- सफेद वस्त्रधारी भी बहुत निकले हैं इसलिए बाबा समझाते हैं - बहुरूपी बनो, टिपटॉप होकर जाओ।
- मोटर में चढ़कर जाओ।
- युक्ति से बात करो।
- हमने सुना है आपने लक्ष्मी-नारायण का मन्दिर बनाया है, हम आपका दर्शन करने आये हैं।
- भला आपको मालूम है - यही स्वर्ग के महाराजा महारानी थे।
- हमको मन्दिर बहुत अच्छा लगा तब हमारी दिल हुई बनाने वाले का दर्शन करें।
- आप जरूर उनकी जीवन कहानी जानते होंगे, हमको भी थोड़ा परिचय दो।
- ऐसे पूछकर फिर उन्हें यथार्थ बात सुनानी चाहिए।
- संन्यासियों आदि को भी तुमसे ही मुक्ति का रास्ता मिलना है, उन्हें भी समझाओ।
- तुम्हारे बिगर तो उन्हों का भी कल्याण होना नहीं है।
- तो इतना ज्ञान का नशा होना चाहिए।
- सर्विस पर होगा तो नशा भी रहेगा।
- ऐसे नहीं थोड़ी बात में अवस्था डगमग हो जाए।
- गाया जाता है - स्तुति-निंदा में समान रहना चाहिए।
- लक्ष्मी-नारायण को बाबा कितना याद करते हैं।
- क्यों नहीं याद करेंगे?
- बन रहे हैं ना।
- मनुष्य बहुत बड़े-बड़े मन्दिर बनाते हैं, लक्ष्मी-नारायण का चित्र ऐसा हो जो देख खुश हो जाएं।
- सारा दिन ख्यालात चलना चाहिए - कैसे जाकर सर्विस करें?
- जांचकर भाषण करना चाहिए।
- लक्ष्मी-नारायण की महिमा करनी चाहिए।
- ऐसी जगह जाना चाहिए जो बड़ों-बड़ों से आवाज निकले तो अच्छा है।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) ज्ञान के नशे में रहना है।
निंदा-स्तुति में समान स्थिति रखनी है।
अवस्था डगमग नहीं करनी है।
2) सबको बाप का परिचय दे लक्ष्मी-नारायण की सच्ची जीवन कहानी सुनानी है।
कल्याणकारी बन सर्व का कल्याण कर श्रीमत पर बढ़ते रहना है।
( All Blessings of 2021-22)
‘मैं'शब्द की स्मृति द्वारा अपने ओरीज्नल स्वरूप में स्थित होने वाले देह के बंधन से मुक्त भव
एक ‘मैं' शब्द ही उड़ाने वाला है और ‘मैं' शब्द ही नीचे ले आने वाला है।
मैं कहने से ओरीज्नल निराकार स्वरूप याद आ जाये, यह नेचुरल हो जाए, देह भान का मैं समाप्त हो जाए तो देह के बंधन से मुक्त बन जायेंगे क्योंकि यह मैं शब्द ही देह-अहंकार में लाकर कर्म-बंधन में बांध देता है।
लेकिन मैं निराकारी आत्मा हूँ, जब यह स्मृति आती है तो देहभान से परे हो, कर्म के संबंध में आयेंगे, बंधन में नहीं।
(All Slogans of 2021-22)
- निश्चित विजय और निश्चिंत स्थिति का अनुभव करने के लिए सम्पूर्ण निश्चयबुद्धि बनो।
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