05-12-2022 प्रात:मुरली ओम् शान्ति "बापदादा" मधुबन
मीठे बच्चे - जितना ज्ञान रत्नों का दान करेंगे उतना खजाना भरता जायेगा, विचार सागर मंथन चलता रहेगा, धारणा अच्छी होगी''
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प्रश्नः-
जिन आत्माओं के भाग्य में बेहद का सुख नहीं है, उनकी निशानी क्या होगी?
उत्तर:-
वह ज्ञान को सुनेंगे लेकिन ऐसे जैसे उल्टा घड़ा।
बुद्धि में कुछ भी बैठेगा नहीं।
अच्छा-अच्छा करेंगे, महिमा करेंगे।
कहेंगे हाँ, सबको यह सुनाना चाहिए, मार्ग बहुत अच्छा है।
परन्तु खुद उस पर नहीं चलेंगे।
बाबा कहते यह भी तकदीर।
तुम बच्चों का फ़र्ज है सर्विस करना। हजारों को सुनाते रहो।
प्रजा तो बनती है।
माँ-बाप मिसल बेहद के बाप से वर्सा लेने का पुरुषार्थ करो।
नॉलेज को धारण कर आप समान बनाते रहो।
गीत:- तकदीर जगाकर आई हूँ...
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- ओम् शान्ति।
- तकदीर सदैव दो प्रकार की होती है।
- एक अच्छी दूसरी बुरी।
- एक सुख की दूसरी दु:ख की।
- भारत के सुख की तकदीर भी है, तो दु:ख की तकदीर भी है।
- भारत ही सुखधाम था, भारत ही दु:खधाम है।
- मकान नया है तो अच्छी तकदीर है।
- पुराना है तो बुरी तकदीर।
- भारत ही पहले नया था, अब फिर पुराना हुआ है।
- इन बातों को भी तुम बच्चे ही समझ सकते हो, दुनिया नहीं जानती।
- तुम्हारा ध्यान इन बातों तरफ खिंचवाया जाता है कि बच्चे तुम कितने तकदीरवान थे।
- देवी-देवता विश्व के मालिक थे, अभी नहीं हैं।
- अच्छी तकदीर बदल अब बुरी हो गई है।
- अच्छी तकदीर कैसे और कब होती है, यह समझने की बात है।
- समझाने वाला एक ही बेहद का बाप है।
- भारत की ऊंची तकदीर कब थी?
- जब स्वर्ग था।
- बुरी तकदीर अब है।
- गाते भी हैं हे पतित-पावन आकर हमारी पावन तकदीर बनाओ।
- भारत पावन था तो जबरदस्त तकदीर थी।
- अभी वही भारत पतित है क्योंकि विकारी हैं।
- विकारी और निर्विकारी दोनों होते हैं।
- हम अगर इस समय निर्विकारी बनेंगे तो देवता बनेंगे।
- अब बाप को बुलाते रहते हैं।
- कुम्भ के मेले पर भी जरूर गाते होंगे - पतित-पावन सीताराम...।
- पतित-पावनी नदी तो है नहीं।
- मनुष्यों की जब तकदीर बुरी होती है तो कितने पत्थरबुद्धि हो जाते हैं।
- दु:ख और सुख का यह खेल है।
- दु:ख कौन देते हैं?
- सुख कौन देते हैं?
- दोनों के चित्र बहुत नामी-ग्रामी हैं।
- सुख के लिए परमपिता परमात्मा को याद करते हैं।
- हे दु:ख हर्ता सुखकर्ता।
- तो इससे सिद्ध है कि बाप कभी दु:ख नहीं देते।
- वो लोग समझते हैं भगवान ही दु:ख सुख दोनों देते हैं।
- पाई-पैसे की बात भी कोई समझते नहीं हैं।
- अभी तुमको बाप ने पारसबुद्धि बनाया है।
- बुद्धि का ताला खोला है।
- तुम जानते हो सृष्टि का चक्र फिरता रहता है।
- सृष्टि पुरानी होती है तो उसमें दु:ख है।
- अभी तुमको 3 ऑखें मिली हैं।
- तुम सबको समझा सकते हो जबकि गाते हो पतित-पावन आओ, फिर नदी पर क्यों आकर बैठे हो?
- यह यज्ञ तप आदि करना, वेद शास्त्र आदि पढ़ना सब भक्ति मार्ग है।
- बाप कहते हैं - मैं इनसे नहीं मिलता हूँ।
- जब तुम्हारी भक्ति पूरी होती है तब मैं आकर सद्गति देता हूँ।
- योग का भी ज्ञान चाहिए।
- पावन बनने के लिए भी ज्ञान चाहिए।
- शास्त्र पढ़ने से तो पावन बनने की कोई बात नहीं।
- विवेक कहता है भारत जब पावन था, सम्पूर्ण निर्विकारी था तब धनवान भी बहुत थे।
- ऐसा धनवान और पवित्र किसने बनाया?
- क्या गंगा स्नान करने से बनें या शास्त्रों को पढ़ने से बनें?
- यह तो तुम करते ही आये हो फिर भी पुकारते हैं कि हे पतित-पावन आओ।
- जब पतित दुनिया का समय पूरा होगा तब ही पतित-पावन बाप आकर स्वर्ग की स्थापना करेंगे।
- पावन दुनिया है सतयुग, पतित दुनिया है कलियुग।
- यह कोई समझते नहीं हैं कि पतित-पावन एक ही परमात्मा है।
- गाते हैं पतित-पावन सीता-राम... उसका अर्थ भी बाप ही समझाते हैं कि सभी सीताओं का राम एक ही परमात्मा है।
- कहते हैं सबका दाता राम।
- दाता क्या?
- यह भी नहीं समझते हैं।
- बाप समझाते हैं सबका दाता राम तो एक निराकार ही है।
- बुद्धि को बिल्कुल ताला लगा हुआ है।
- बुद्धि में बैठता ही नहीं है।
- सतयुग में सब पारसबुद्धि हैं, नाम ही है पारसनाथ, पारसपुरी।
- तुम बच्चे भी इस समय पारसनाथ बनते हो।
- आत्मा गोल्डन एज बनती है।
- अभी आइरन एज बुद्धि है।
- गोल्डन एज बुद्धि सुख उठाते हैं, आइरन एज बुद्धि दु:ख उठाते हैं।
- मनुष्य विष के पीछे हैरान होते हैं।
- पवित्र बनने में देखो कितना हंगामा करते हैं।
- गाया भी हुआ है कंस, जरासन्धी, दु:शासन, पूतना, सूपनखा.... यह सब पास्ट की बातों का गायन है।
- जरूर संगमयुग का ही गायन है।
- हर बात संगम की ही गाई जाती है।
- बाप कहते हैं - मैं भी पतितों को पावन बनाने एक ही बार आता हूँ।
- तुम जानते हो कि बाबा का धन्धा ही है पतितों को पावन बनाना।
- बाप रचयिता है तो जरूर नई रचना ही रचेंगे।
- रावण है पतित बनाने वाला।
- बाप है पावन बनाने वाला।
- उसका यथार्थ नाम शिव है।
- शिवरात्रि भी मनाते हैं।
- रात्रि का भी अर्थ तुम समझते हो।
- बाप आयेगा तब जब भक्ति अर्थात् रात पूरी हो दिन होगा।
- अब बाप कहते हैं बच्चे पावन बनो।
- अब वापिस जाने का है।
- सतयुग था अब फिर चक्र रिपीट होगा।
- तुम बच्चों को मनुष्य से देवता बना रहा हूँ।
- देवतायें भी मनुष्य ही थे और कोई फ़र्क नहीं है।
- सिर्फ वह गोरे अर्थात् पावन हैं और अभी के मनुष्य सांवरे अर्थात् पतित हैं।
- भारत गोल्डन एजेड था, अभी आइरन एजेड है।
- आत्मा में खाद पड़ गई है - वह निकलेगी योग अग्नि से।
- आगे मनमनाभव अक्षर पढ़ते थे।
- अर्थ कुछ भी नहीं समझते थे।
- परमपिता परमात्मा के साथ बुद्धियोग लगाना है, परन्तु उनके रूप का ही किसको पता नहीं है तो योग कैसे लग सकता है।
- कहते हैं परमात्मा नाम रूप से न्यारा है तो योग किससे लगायें?
- भगवानुवाच - मनमनाभव।
- देह का अभिमान छोड़ो, अपने को आत्मा समझो।
- आत्मा का रूप क्या है?
- कहते हैं आत्मा स्टार है, भ्रकुटी के बीच में रहती है।
- तो आत्माओं का बाप भी ऐसा ही होगा।
- उनको फिर नाम रूप से न्यारा कहते हैं।
- बाप के लिए कहते हैं ब्रह्म है, अखण्ड ज्योति तत्व है।
- ब्रह्म तो बेअन्त हो गया।
- जैसे आकाश का अन्त नहीं पा सकते।
- अच्छा कोई कर
- के अन्त पा भी लेवे।
- परन्तु उससे मुक्ति जीवनमुक्ति तो कोई को मिलती नहीं है।
- मुक्ति जीवनमुक्ति का अर्थ भी तुम बच्चे ही समझते हो।
- दुनिया तो कुछ भी नहीं जानती।
- गाते भी हैं ज्ञान का सागर, मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है।
- सत है, चैतन्य है, पतित-पावन है तो जरूर पतित दुनिया में आयेंगे।
- तुम समझाते हो जब ज्ञान है तो भक्ति हो न सके।
- ज्ञान है दिन सतयुग त्रेता।
- भक्ति है रात।
- ज्ञान का सागर परमपिता परमात्मा है न कि पानी - यह सबको समझाना है।
- सारे भारत को कैसे पैगाम देना है उनके लिए बाबा अच्छी-अच्छी युक्तियाँ समझाते रहते हैं।
- मेला तो वास्तव में आत्मा और परमात्मा का ही गाया हुआ है।
- परमात्मा तो एक ठहरा।
- परमात्मा सर्वव्यापी है - यह कोई हिसाब नहीं बनता है।
- बाप ही आकर सबको दु:ख से छुड़ाते हैं।
- दु:ख में सिमरण सब करते हैं।
- कितनी रड़ियाँ मारते हैं।
- पूछो यह कब से करते आये हो?
- कहते हैं परम्परा से।
- फिर पावन तो कोई हुए नहीं और पतित होते गये।
- तुम्हारी बुद्धि में अब सारा ज्ञान भरा हुआ है।
- ज्ञान को कहा जाता है ब्रह्मा का दिन।
- विष्णु का दिन नहीं कहते क्योंकि ज्ञान अभी ही मिलता है।
- दिन-प्रतिदिन प्वाइंट्स रिफाइन निकलती जाती हैं।
- जीवनमुक्ति है भी सेकेण्ड की बात, फिर कहते हैं ज्ञान का सागर है, कितना भी लिखते जाओ अन्त नहीं आयेगा।
- बाप जब समझाकर पूरा करते हैं तो फिर इम्तहान भी पूरा हो जाता है।
- शुरू से लेकर कितना सुनते आये हो।
- गीता तो बिल्कुल छोटी बना दी है।
- कितनी ज्ञान की बातें हैं।
- समझाना भी बहुत सहज है।
- बरोबर सतयुग में एक धर्म था।
- अभी तो कितने धर्म हैं।
- कितना हंगामा है।
- आपस में ही हंगामा हो गया है।
- एक धर्म था तो लड़ाई आदि का नाम नहीं था, सुख ही सुख था।
- चक्र का राज़ बुद्धि में है।
- बच्चों को समझाया है तुम 84 जन्म कैसे लेते हो।
- चक्र रिपीट होता है।
- अभी तुम तमोप्रधान से सतोप्रधान बन रहे हो, योगबल से।
- तुम अभी आस्तिक बने हो।
- त्रिकालदर्शी भी बने हो।
- दुनिया में और कोई भी रचता और रचना को नहीं जानते हैं।
- तुम बच्चे ही जानते हो परन्तु धारणा कर औरों को नहीं समझाते हैं तो प्वाइंट्स भूल जाती हैं।
- एक माल बुद्धि में नहीं बैठता है तो दूसरा कैसे बैठेगा।
- दान देते जायेंगे तो खजाना भरता जायेगा।
- विचार सागर मंथन चलता रहेगा।
- किसको कैसे समझायें।
- भक्ति की महिमा तब है जब ज्ञान नहीं है।
- जो सर्विस पर हैं उन्हों की बुद्धि में नशा रहता है।
- नम्बरवार तो हैं ही।
- महारथी वह जो दूसरों को आप समान बनाते रहते हैं।
- नॉलेज धारण करते हैं।
- पद भी उनको ऐसा मिलता है।
- यह मेहनत सारी गुप्त है।
- तुम बाप के बने हो तो समझते हो बाप से जरूर स्वर्ग का वर्सा मिलेगा।
- वहाँ रावण होता नहीं।
- रावण का राज्य ही अलग है, रामराज्य अलग है।
- तुम बच्चे अभी समझते हो कि रामायण, भागवत आदि में सब इस समय की बातें हैं।
- गुड़ियों का खेल है।
- बाप समझाते हैं इस समय सारा झाड़ तमोप्रधान है।
- खत्म होने का है।
- तुम्हारी बुद्धि में सारा राज़ है।
- समझाने लिए कितनी युक्तियाँ बताते रहते हैं।
- समझेंगे फिर भी कोटों में कोई, सैपलिंग लग रहा है।
- जो और धर्मो में कनवर्ट हो गये हैं वह सब निकल आयेंगे।
- हिन्दू वास्तव में हैं असुल देवी-देवता धर्म के।
- समझाना है तुम भारतवासी देवी-देवता नसल के हो ना।
- देवी-देवताओं को ही पूजते हो।
- देवता ही तुम्हारा धर्म है।
- पहले तुम देवता थे फिर तुम क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र बने।
- अब फिर तुम ब्राह्मण बन देवता बनो।
- हम समझायेंगे भारतवासियों को।
- अब सैपलिंग लगता है।
- बाप बैठ समझाते हैं मैं कैसे शूद्र से कनवर्ट करता हूँ।
- ब्राह्मण बन फिर देवता बनेंगे।
- कितनी समझानी अच्छी है।
- तुमसे कोई पूछे शास्त्र पढ़े हुए हो?
- बोलो, भक्ति मार्ग में शास्त्र सब पढ़े हैं, परन्तु सद्गति तो बाप ही आकर करते हैं, तब तो तुम उनको बुलाते हो ना कि हे पतित-पावन आओ।
- युक्ति से समझाओ तो समझेंगे जरूर।
- समझाने के लिए बच्चों में हिम्मत चाहिए।
- ड्रामा तुमसे सर्विस करायेगा - ऐसा देखने में आता है।
- कल्प पहले भी इसने इतना पुरुषार्थ कर यह पद पाया, बाबा से वर्सा पाने का पुरुषार्थ पूरा करना है।
- जबकि बाप का वर्सा मिलता है तो हम रावण के वर्से को हाथ क्यों लगायें?
- क्यों न मीठे बन जायें।
- सर्वगुण सम्पन्न बनना है।
- यह है राजयोग - नर से नारायण बनने का अर्थात् राजाई पाने का योग।
- बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आता हूँ।
- यह है चढ़ती कला का युग।
- बाकी सब हैं उतरती कला के युग।
- उतरती कला और चढ़ती कला होती है।
- यह चक्र बुद्धि में रहना चाहिए।
- बाप बैठ आत्माओं (बच्चों) से बात करते हैं कि मुझे याद करो।
- यह अन्तिम जन्म पतित नहीं बनो तो मैं तुमको विश्व का मालिक बनाऊंगा।
- क्या तुम मेरी नहीं मानेंगे?
- फिर तो बेहद का सुख भी तुम पा नहीं सकेंगे।
- तुम यह जन्म तो पवित्र बनो।
- मैं गैरन्टी करता हूँ, तुमको विश्व का मालिक बनाऊंगा।
- बाप की भी नहीं मानेंगे क्या?
- जो फूल बनने वाला होगा उनको झट तीर लगेगा।
- भाग्य में नहीं होगा तो सुनेगा ऐसे जैसे उल्टा घड़ा।
- प्रदर्शनी में तुम कितनों को समझाते हो, अच्छा-अच्छा करते हैं।
- कहेंगे मार्ग बहुत सहज है, परन्तु खुद कुछ भी करेंगे नहीं।
- सिर्फ महिमा की औरों को कहा अच्छा है, परन्तु खुद चलना नहीं है, इससे क्या हुआ।
- कहेंगे तकदीर में नहीं है।
- ऐसे-ऐसे प्रजा में आ जायेंगे।
- परन्तु बच्चों में सर्विस का शौक होना चाहिए।
- हजारों को सुनाना पड़े।
- बेहद के बाप से वर्सा लेने के लिए माँ-बाप मिसल पुरुषार्थ करना चाहिए।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमार्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) बाप से पूरा वर्सा लेने के लिए अति मीठा, सर्वगुण सम्पन्न बनना है।
रावण के वर्से को हाथ नहीं लगाना है।
2) नॉलेज को धारण कर रूहानी नशे में रह सर्विस करनी है।
बेहद का सुख पाने के लिए बाप की हर राय को मानकर उस पर चलना है।
( All Blessings of 2021-22)
अटेन्शन की विधि द्वारा माया की छाया से स्वयं को सेफ रखने वाले हलचल में अचल भव
वर्तमान समय प्रकृति की तमोगुणी शक्ति और माया की सूक्ष्म रॉयल समझदारी की शक्ति अपना कार्य तीव्रगति से कर रही है।
बच्चे प्रकृति के विकराल रूप को जान लेते हैं लेकिन माया के अति सूक्ष्म स्वरूप को जानने में धोखा खा लेते हैं क्योंकि माया रांग को भी राइट अनुभव कराती है, महसूसता की शक्ति को समाप्त कर देती है, झूठ को सच सिद्ध करने में होशियार बना देती है इसलिए “अटेन्शन'' शब्द को अन्डरलाइन कर माया की छाया से स्वयं को सेफ रखो और हलचल में भी अचल बनो।
(All Slogans of 2021-22)
- हर संकल्प में उमंग-उत्साह हो तो संकल्पों की सिद्धि हुई पड़ी है।
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