- ओम् शान्ति। भक्ति मार्ग के सतसंगों से यह ज्ञान मार्ग का सतसंग विचित्र है।
- तुमको भक्ति का अनुभव तो है।
- जानते हो अनेकानेक साधू-सन्त भक्ति मार्ग के शास्त्र आदि सुनाते हैं।
- यहाँ तो बिल्कुल ही उनसे अलग है।
- यहाँ तुम किसके सामने बैठे हो?
- डबल बाप और माँ। वहाँ तो ऐसे नहीं है।
- तुम जानते हो यहाँ बेहद का बाप भी है, मम्मा भी है, छोटी मम्मा भी है।
- इतने सब सम्बन्ध हो जाते हैं।
- वहाँ तो ऐसा कोई संबंध नहीं।
- न कोई वह फालोअर्स ही हैं।
- वो तो है निवृति मार्ग।
- उनका धर्म ही अलग है।
- तुम्हारा धर्म ही अलग है।
- रात-दिन का फ़र्क है।
- यह भी तुम जानते हो - लौकिक बाप से अल्पकाल क्षणभंगुर सुख एक जन्म के लिए मिलेगा।
- फिर नया बाप नई बात।
- यहाँ तो लौकिक भी है, पारलौकिक भी है और फिर अलौकिक भी है।
- लौकिक से भी वर्सा मिलता है और पारलौकिक से भी वर्सा मिलता है।
- बाकी यह अलौकिक बाप है वन्डरफुल, इनसे कोई वर्सा नहीं मिलता है।
- हाँ इनके द्वारा शिवबाबा वर्सा देते हैं इसलिए उस पारलौकिक बाप को बहुत याद करते हैं।
- लौकिक को भी याद करते हैं।
- बाकी इस अलौकिक ब्रह्मा बाप को कोई याद नहीं करते।
- तुम जानते हो यह है प्रजापिता, यह कोई एक का पिता नहीं।
- प्रजापिता ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर है।
- शिवबाबा को ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर नहीं कहते।
- लौकिक सम्बन्ध में लौकिक फादर और ग्रैन्ड फादर होता है।
- यह है ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर।
- ऐसे न लौकिक को, न पारलौकिक को कहेंगे।
- अब ऐसे ग्रेट-ग्रेट ग्रैन्ड फादर से फिर वर्सा मिलता नहीं।
- यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं।
- भक्ति मार्ग की तो बात ही न्यारी है।
- ड्रामा में वह भी पार्ट है जो फिर चलता रहेगा।
- बाप बतलाते हैं तुमने कैसे 84 जन्म लिए हैं, 84 लाख नहीं।
- बाप आकर अभी सारी दुनिया और हमको राइटियस बनाते हैं।
- इस समय धर्मात्मा कोई बनता नहीं।
- पुण्य आत्माओं की दुनिया ही दूसरी है।
- जहाँ पाप आत्मायें रहती हैं वहाँ पुण्य आत्मायें नहीं रहती।
- यहाँ पाप आत्मायें, पाप आत्माओं को ही दान-पुण्य करती हैं।
- पुण्य आत्माओं की दुनिया में दान-पुण्य आदि करने की दरकार ही नहीं रहती।
- वहाँ यह ज्ञान रहता नहीं कि हमने संगम पर 21 जन्मों का वर्सा लिया है।
- नहीं, यह ज्ञान यहाँ बेहद के बाप से तुमको ही मिलता है, जिससे 21 जन्मों के लिए सदा सुख, हेल्थ, वेल्थ सब मिल जाता है।
- वहाँ तुम्हारी आयु बड़ी होती है।
- नाम ही है अमरपुरी।
- कहते हैं शंकर ने पार्वती को कथा सुनाई।
- सूक्ष्मवतन में तो यह बातें होती नहीं।
- सो भी अमरकथा एक को थोड़ेही सुनाई जाती है।
- यह हैं भक्तिमार्ग की बातें, जिस पर अभी तक खड़े हैं।
- सबसे बड़ा गपोड़ा है ईश्वर को सर्वव्यापी कहना।
- यह डिफेम करते हैं।
- बेहद का बाप जो तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं उनके लिए कहते हैं सर्वव्यापी है, ठिक्कर-भित्तर में, कण-कण में है।
- अपने से भी जास्ती ग्लानि कर दी।
- मैं तुम्हारी कितनी निष्काम सेवा करता हूँ।
- मुझे कुछ भी लोभ नहीं है कि पहला नम्बर बनूँ। नहीं।
- औरों को बनाने का रहता है।
- इसको कहा जाता है निष्काम सेवा।
- तुम बच्चों को नमस्ते करते हैं।
- बाबा कितना निराकार, निरंहकारी है, कोई अंहकार नहीं।
- कपड़े आदि भी वही हैं।
- कुछ भी बदला नहीं है।
- नहीं तो वह लोग सारी ड्रेस बदली करते हैं।
- इनकी ड्रेस वही साधारण है।
- ऑफीसर्स की ड्रेस भी बदलाते हैं, इनकी तो वही साधारण पहरवाइस है।
- कोई फ़र्क नहीं।
- बाप भी कहते हैं मैं साधारण तन लेता हूँ।
- वह भी कौन-सा?
- जो खुद ही अपने जन्मों को नहीं जानता कि हम कितने पुनर्जन्म लेते हैं।
- वह तो 84 लाख कह देते हैं।
- सुनी-सुनाई बातें हैं।
- इससे फायदा कुछ नहीं।
- डराते हैं - ऐसा काम किया तो गधा कुत्ता आदि बनेंगे, गाय का पूँछ पकड़ने से तर जायेंगे।
- अब गाय कहाँ से आई?
- स्वर्ग की गायें ही अलग होती हैं।
- वहाँ की गायें बहुत फर्स्टक्लास होती हैं।
- जैसे तुम 100 परसेन्ट सम्पूर्ण, तो गायें भी ऐसी फर्स्टक्लास होती हैं।
- श्रीकृष्ण कोई गऊ नहीं चराते हैं।
- उनको क्या पड़ी है।
- यह वहाँ की ब्युटी दिखाते हैं।
- बाकी ऐसे नहीं कि श्रीकृष्ण ने कोई गऊयें पाली हैं।
- श्रीकृष्ण को ग्वाला बना दिया है।
- कहाँ सर्वगुण सम्पन्न सतयुग का फर्स्ट प्रिन्स और कहाँ ग्वाला!
- कुछ भी समझते नहीं हैं क्योंकि देवता धर्म तो अब है नहीं।
- यह एक ही धर्म है जो प्राय:लोप हो जाता है।
- यह बातें कोई शास्त्रों में नहीं हैं।
- बाप कहते हैं यह ज्ञान मै तुम बच्चों को देता हूँ - विश्व का मालिक बनाने के लिए।
- मालिक बन गये फिर ज्ञान की दरकार नहीं।
- ज्ञान हमेशा अज्ञानियों को दिया जाता है।
- गायन है ज्ञान सूर्य प्रगटा, अज्ञान अंधेर विनाश..... अभी बच्चे जानते हैं सारी दुनिया अन्धियारे में है।
- कितने ढेर सतसंग हैं।
- यह कोई भक्ति मार्ग नहीं है।
- यह है सद्गति मार्ग।
- एक बाप ही सद्गति करता है।
- तुमने भक्ति मार्ग में पुकारा है कि आप आयेंगे तो हम आपके ही बनेंगे।
- आप बिगर दूसरा न कोई क्योंकि आप ही ज्ञान का सागर, सुख का सागर, पवित्रता का सागर, सम्पत्ति का सागर हो।
- सम्पत्ति भी देते हैं ना।
- कितना मालामाल कर देते हैं।
- तुम जानते हो हम शिवबाबा से 21 जन्मों के लिए झोली भरने आये हैं अर्थात् नर से नारायण बनते हैं।
- भक्ति मार्ग में कथायें तो बहुत सुनी, सीढ़ी नीचे उतरते ही आये।
- चढ़ती कला कोई की हो न सके।
- कल्प की आयु भी कितनी लम्बी-चौड़ी कर देते हैं।
- ड्रामा के ड्युरेशन को लाखों वर्ष कह देते हैं।
- अब तुमको पता पड़ा है कल्प है ही 5000 वर्ष का।
- मैक्सीमम हैं 84 जन्म और मिनीमम है एक जन्म।
- पीछे आते रहते हैं।
- निराकारी झाड़ है ना।
- फिर नम्बरवार आते हैं पार्ट बजाने।
- असुल में तो हम निराकारी झाड़ के हैं।
- फिर वहाँ से यहाँ आते हैं पार्ट बजाने।
- वहाँ सब पवित्र रहते हैं।
- परन्तु पार्ट सबका अलग-अलग है।
- यह बुद्धि में रखो।
- झाड़ भी बुद्धि में रखो।
- सतयुग से कलियुग अन्त तक यह बाप ही बताते हैं।
- यह कोई मनुष्य नहीं बताते, दादा नहीं बताते हैं।
- एक ही सतगुरू है जो सर्व की सद्गति करते हैं।
- बाकी तो सब गुरू हैं भक्ति मार्ग के।
- कितने कर्मकाण्ड करते हैं।
- भक्ति मार्ग का शो कितना है।
- यह रुण्य का पानी (मृगतृष्णा) है।
- इसमें ऐसे फँसे हैं जो कोई निकालने जाते हैं तो खुद ही फँस जाते हैं।
- यह भी ड्रामा की नूँध है।
- कोई नई बात नहीं।
- तुम्हारा सेकण्ड-सेकण्ड जो पास होता है, सारा ड्रामा बना हुआ है।
- तुम जानते हो अब हम बेहद के बाप से राजयोग सीख नर से नारायण, विश्व का मालिक बनते हैं।
- तुम बच्चों को यह नशा रहना चाहिए।
- बेहद का बाप पांच-पांच हज़ार वर्ष के बाद भारत में ही आते हैं।
- वह शान्ति का सागर, सुख का सागर है।
- यह महिमा पारलौकिक बाप की ही है।
- तुम जानते हो यह महिमा बिल्कुल ठीक है।
- सब-कुछ एक से मिलता है।
- वही दु:ख हर्ता, सुख कर्ता है, जिसके सामने तुम बैठे हो।
- तुम अपने सेन्टर पर बैठे होंगे तो कहाँ योग लगायेंगे।
- बुद्धि में आयेगा शिवबाबा मधुबन में है।
- उनको ही याद करते हो।
- शिवबाबा खुद कहते हैं मैंने साधारण बूढ़े तन में प्रवेश किया है, फिर से भारत को स्वर्ग बनाने।
- मैं ड्रामा के बंधन में बांधा हुआ हूँ।
- तुम मेरी कितनी ग्लानि करते हो।
- मैं तुमको पूज्यनीय बनाता हूँ।
- कल की बात है।
- तुम कितनी पूजा करते थे।
- तुमको अपना राज्य-भाग्य दिया।
- सब गँवा दिया।
- अब फिर तुमको विश्व का मालिक बनाता हूँ।
- कब किसकी बुद्धि में नहीं बैठेगा।
- यह हैं दैवीगुण वाले देवतायें।
- हैं तो मनुष्य, कोई 80-100 फुट लम्बे तो नहीं हैं।
- ऐसे तो नहीं कि उन्हों की आयु बड़ी है इसलिए छत जितने बड़े होंगे।
- कलियुग में तुम्हारी आयु कम हो जाती है।
- बाप आकर तुम्हारी आयु बड़ी कर देते हैं इसलिए...
- बाप कहते हैं हेल्थ मिनिस्टर को भी समझाओ।
- बोलो, हम आपको ऐसी युक्ति बतायें जो कभी बीमार नहीं होना पड़े।
- भगवानुवाच - अपने को आत्मा समझ मामेकम् याद करो तो तुम पतित से पावन एवरहेल्दी बन जायेंगे।
- हम गैरन्टी करते हैं।
- योगी पवित्र होते हैं तो आयु भी बड़ी होती है।
- अभी तुम राजयोगी, राजऋषि हो।
- वह संन्यासी तो कभी राजयोग सिखला न सकें।
- वो कहते हैं गंगा पतित-पावनी है, वहाँ दान करो।
- अब गंगा में थोड़ेही दान किया जाता है।
- मनुष्य पैसे डालते हैं, पण्डित लोग ले जाते हैं।
- अब तुम बाप द्वारा पावन बन रहे हो।
- बाप को देते क्या हो?
- कुछ नहीं, बाप तो दाता है।
- तुम भक्ति मार्ग में ईश्वर अर्थ गरीबों को देते थे।
- गोया पतितों को देते थे।
- तुम भी पतित, लेने वाले भी पतित।
- अब तुम पावन बनते हो।
- वो पतित, पतित को दान करते हैं।
- कुमारी जो पहले पवित्र है उसे भी दान देते हैं, माथा टेकते हैं, खिलाते हैं, दक्षिणा भी देते हैं।
- शादी के बाद बरबादी हो जाती है।
- ड्रामा में नूँध है फिर भी ऐसा रिपीट होगा।
- भक्ति मार्ग का भी पार्ट हुआ।
- सतयुग का भी समाचार बाप बताते हैं।
- अब तुम बच्चों को समझ मिली है।
- पहले बेसमझ थे।
- शास्त्रों में तो हैं भक्ति मार्ग की बातें, उनसे मेरे को कोई पाते नहीं।
- मैं जब आता हूँ, तब ही आकर सद्गति करता हूँ सभी की।
- और मैं एक ही बार आकर पुराने को नया बनाता हूँ।
- मैं गरीब निवाज हूँ।
- गरीबों को साहूकार बनाता हूँ।
- गरीब तो झट बाबा का बन जाते हैं।
- कहते हैं बाबा हम भी आपके हैं।
- यह सब-कुछ आपका है।
- बाप कहते हैं ट्रस्टी होकर रहो।
- बुद्धि से समझो यह हमारा नहीं है, बाप का है।
- इसमें बड़े सयाने बच्चे चाहिए।
- फिर तुम घर में भोजन बनाकर खाते हो गोया यज्ञ से खाते हो क्योंकि तुम भी यज्ञ के हुए।
- सब-कुछ यज्ञ का हो गया।
- घर में भी ट्रस्टी होकर रहते हो तो शिवबाबा के भण्डारे से खाते हो।
- परन्तु पूरा निश्चय चाहिए।
- निश्चय में गड़बड़ हुई तो.... हरिश्चन्द्र का मिसाल देते हैं।
- बाबा को तो सब कुछ बताना है।
- मैं गरीब निवाज़ हूँ।
- गीत - आखिर वह दिन आया आज....
-
आधाकल्प भक्ति में याद किया अब आखिर मिला।
- अभी ज्ञान जिंदाबाद होना है।
- सतयुग जरूर आना है।
- बीच में है संगम, जिसमें तुम उत्तम ते उत्तम पुरुष बनते हो।
- तुम पवित्र प्रवृत्ति मार्ग वाले थे।
- फिर 84 जन्म के बाद अपवित्र बनते हो, फिर पवित्र बनना है।
- कल्प पहले भी तुम ऐसे ही बने थे।
- कल्प पहले जिसने जितना पुरुषार्थ किया है वह करेंगे।
- अपना वर्सा लेंगे।
- साक्षी हो देखते हैं।
- बाप कहते हैं तुम मैसेन्जर हो और तो कोई मैसेन्जर, पैगम्बर होते नहीं।
- सतगुरू सद्गति करने वाला एक है।
- अन्य धर्मनेतायें आते हैं धर्म की स्थापना करने।
- तो गुरू कैसे ठहरे।
- मैं तो सबको सद्गति देता हूँ।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
1) सदा इसी नशे में रहना है कि शान्ति, सुख, सम्पत्ति का सागर बाप हमें मिला है, हमें सब-कुछ एक से मिलता है। ऐसे बाप के हम सम्मुख बैठे हैं। वह हमें पढ़ा रहे हैं।
2) अपना अहंकार छोड़ बाप समान निष्काम सेवा करनी है। निरहंकारी होकर रहना है। मैसेन्जर-पैगम्बर बन सबको पैगाम देना है।
सर्व पदार्थो की आसक्तियों से न्यारे अनासक्त, प्रकृतिजीत भव
अगर कोई भी पदार्थ कर्मेन्द्रियों को विचलित करता है अर्थात् आसक्ति का भाव उत्पन्न होता है तो भी न्यारे नहीं बन सकेंगे। इच्छायें ही आसक्तियों का रूप हैं। कई कहते हैं इच्छा नहीं है लेकिन अच्छा लगता है। तो यह भी सूक्ष्म आसक्ति है - इसकी महीन रूप से चेकिंग करो कि यह पदार्थ अर्थात् अल्पकाल सुख के साधन आकर्षित तो नहीं करते हैं? यह पदार्थ प्रकृति के साधन हैं, जब इनसे अनासक्त अर्थात् न्यारे बनेंगे तब प्रकृतिजीत बनेंगे।
|