मीठे बच्चे - अन्तर्मुखी बन विचार सागर मंथन करो तो खुशी और नशा रहेगा, तुम बाप समान टीचर बन जायेंगे
प्रश्नः-
किस आधार पर अन्दर की खुशी स्थाई रह सकती है?
उत्तर:-
स्थाई खुशी तब रहेगी जब औरों का भी कल्याण कर सबको खुश करेंगे। रहमदिल बनो तो खुशी रहे। जो रहमदिल बनते हैं उनकी बुद्धि में रहता कि ओहो, हमें सर्व आत्माओं का बाप पढ़ा रहे हैं, पावन बना रहे हैं, हम विश्व का महाराजा बनते हैं! ऐसी खुशी का वह दान करते रहते हैं।
ओम् शान्ति। रूहानी बाप रूहानी बच्चों से पूछते हैं - बच्चे, यह ओम् शान्ति किसने कहा?
(शिवबाबा ने) हाँ शिवबाबा ने कहा; क्योंकि बच्चों को मालूम है यह सभी आत्माओं का बाप है।
कहते हैं मैं कल्प-कल्प इस रथ में ही आकर पढ़ाता हूँ।
अब यह हुआ पढ़ाने वाला टीचर।
टीचर आयेगा तो कहेगा गुडमॉर्निंग।
बच्चे भी कहेंगे गुडमॉर्निंग।
यह बच्चे जानते हैं कि आत्माओं को परमात्मा गुडमॉर्निंग करते हैं।
लौकिक रीति से गुडमॉर्निंग तो बहुत ही करते रहते हैं।
यह तो बेहद का बाप है, जो आकर पढ़ाते हैं।
बच्चों को सारे झाड़ अथवा ड्रामा का राज़ समझाते हैं।
तुम जानते हो जो भी सभी आत्मायें हैं, सबका बाप आया हुआ है।
यह निश्चय सारा दिन बुद्धि में रहे कि बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं, वह हमारा बाप टीचर गुरू है।
उनको रचता भी कहते हैं - यह भी समझना पड़े।
आत्माओं को रचते नहीं हैं।
समझाते हैं - मैं बीजरूप हूँ।
इस मनुष्य सृष्टि रूपी झाड़ का नॉलेज तुमको सुनाता हूँ।
सिवाए बीज के यह नॉलेज कौन दे?
ऐसे नहीं कहेंगे कि झाड़ को उसने रचा।
कहते हैं - बच्चे, यह तो अनादि है।
नहीं तो मैं तिथि-तारीख सब-कुछ बताऊं - कब और कैसे रचा।
परन्तु यह तो अनादि रचना है।
बाप को ज्ञान का सागर कहा जाता है।
जानी जाननहार अर्थात् झाड़ के आदि-मध्य-अन्त का राज़ जानते हैं।
बाप ही मनुष्य सृष्टि का बीजरूप है, ज्ञान का सागर है।
उनमें ही सारी नॉलेज है, वही आकर बच्चों को पढ़ाते हैं।
सब मनुष्य कहते रहते हैं - पीस कैसे हो?
तुम अभी कहेंगे कि पीस तो शान्ति का सागर ही स्थापन करेंगे।
वह शान्ति, सुख और ज्ञान का सागर है।
कौन-सा ज्ञान है?
सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त का।
वो लोग ज्ञान तो शास्त्रों को भी समझते हैं।
ऐसे तो शास्त्र सुनाने वाले ढेर हैं।
यह बेहद का बाप खुद ही आकर परिचय देते हैं और सृष्टि के आदि-मध्य-अन्त की नॉलेज भी देते हैं।
यह भी समझते हैं कि उनके आने से ही पीस स्थापन हो जाती है।
वहाँ है ही पीस।
यह भी कोई नहीं जानते कि शान्तिधाम में सब शान्ति में थे।
वह कहते रहते हैं यहाँ पीस कैसे हो?
यहाँ थी जरूर।
पीस चाहिए राम राज्य वाली।
राम राज्य कब था - यह किसको मालूम नहीं है।
बाप जानते हैं कितनी ढेर आत्मायें हैं।
मैं इन सबका बाप हूँ।
ऐसे और कोई कह नहीं सकते।
जो भी सब आत्मायें हैं, सब इस समय यहाँ हैं।
पहले शान्तिधाम में थी फिर सुखधाम में आई, फिर सुखधाम से दु:खधाम में आई हैं।
सुख-दु:ख का यह खेल कैसा बना हुआ है - यह कोई नहीं जानते।
ऐसे ही सिर्फ कह देते हैं कि आवागमन का खेल है।
तो अब तुम बच्चों की बुद्धि में है कि वह हम सब आत्माओं का बाप है।
वह हमको नॉलेज सुना रहे हैं।
वह आकर स्वर्ग का राज्य स्थापन करते हैं।
हमको पढ़ाते हैं।
कहते हैं - बच्चे, तुम ही देवता थे।
ऐसे तो और कोई कहेंगे नहीं, सभी आत्माओं का बाप तुमको पढ़ाते हैं।
कितना बेहद का बड़ा नाटक है, वह लाखों वर्ष कह देते।
तुम कहेंगे यह 5 हज़ार वर्ष का खेल है।
अभी तुम जान गये हो शान्ति दो प्रकार की है
- एक है शान्तिधाम की, दूसरी है सुखधाम की।
यह तुम बच्चों की बुद्धि में है कि सभी आत्माओं का बाप हमको पढ़ाते हैं।
यह तो कोई शास्त्र में भी नहीं है।
बेहद का बाप है ना।
सभी धर्म वाले उनको अल्लाह, गॉड फादर, प्रभू आदि-आदि कहते हैं।
उनकी पढ़ाई भी जरूर इतनी ऊंची होगी।
यह सारा दिन अन्दर में रहना चाहिए।
बाप कहते हैं मैं तुमको नई बातें सुनाता हूँ।
नये किस्म से पढ़ाता हूँ।
तुम फिर औरों को पढ़ाते हो।
भक्ति मार्ग में देवियों का भी बहुत मान हैं।
वास्तव में यह ब्रह्मा भी बड़ी माँ है।
इनको (शिव को) तो सिर्फ पिता कहेंगे।
मात-पिता फिर इनको कहेंगे।
इस माता द्वारा बाप तुमको एडाप्ट करते हैं।
बच्चे-बच्चे कहते रहते हैं।
बाप कहते हैं मैं हर 5 हज़ार वर्ष के बाद तुमको यह नॉलेज सुनाता हूँ।
यह चक्र भी तुम्हारी बुद्धि में है।
तुम एक-एक अक्षर नया सुनते हो।
ज्ञान सागर बाप की है रूहानी नॉलेज।
रूह बाप ही ज्ञान का सागर है।
आत्मा कहती है बाबा।
बच्चे भी सब बातें अच्छी रीति बुद्धि में धारण करते हैं।
अन्तर्मुख हो ऐसे-ऐसे जब विचार सागर मंथन करेंगे तब वह खुशी और नशा रहेगा।
बड़ा टीचर तो है शिवबाबा।
वह फिर तुमको भी टीचर बनाते हैं।
उनमें भी नम्बरवार हैं।
बाबा जानते हैं - यह बच्चा बहुत अच्छा पढ़ाते हैं।
सब खुश होते हैं।
कहते हैं ऐसे बाबा के पास हमको भी जल्दी ले चलो, जिसने तुमको ऐसा बनाया है।
बाबा बतलाते हैं - मैं इनके बहुत जन्मों के भी अन्त के जन्म के भी अन्त में इनमें प्रवेश कर तुमको पढ़ाता हूँ।
कल्प-कल्प हम कितना वारी इस भारत में आये होंगे।
तुम यह नई बातें सुनकर वन्डर खाते हो।
बेहद का बाप हमको पढ़ाते हैं।
उनके ही भक्ति मार्ग में कितने नाम हैं,
कोई परमात्मा, राम, प्रभू, अल्लाह.. कहते हैं।
एक ही टीचर के देखो कितने नाम रख दिये हैं।
टीचर का तो एक ही नाम होता है।
अनेक होते हैं क्या?
कितनी ढेर भाषायें हैं।
तो कोई खुदा, कोई गॉड, क्या-क्या कह देते हैं।
खुद समझते हैं मैं आया हूँ बच्चों को पढ़ाने।
जब पढ़कर देवता बनेंगे तो विनाश हो जायेगा।
अब तो पुरानी दुनिया है, उनको नया कौन बनायेगा?
बाप कहते हैं मेरा ही पार्ट है।
मैं ड्रामा के वश हूँ।
यह भी बच्चे जानते हैं भक्ति का कितना विस्तार है।
यह भी खेल है।
आधा कल्प भक्ति को लगता है।
अब फिर बाप आये हैं, हमको पढ़ाने वाला भी वही है।
वही शान्ति स्थापन करने वाला भी है।
जब इन लक्ष्मी-नारायण का राज्य था तो शान्ति थी।
यहाँ है अशान्ति।
बाप है एक।
आत्मायें कितनी ढेर हैं।
कितना वन्डरफुल खेल है।
बाबा सब आत्माओं का बाप वही हमको पढ़ा रहे हैं।
कितनी खुशी होनी चाहिए।
तुम समझते हो गोप-गोपियां तो हम ही हैं और गोपी वल्लभ बाप है।
सिर्फ आत्माओं को गोप-गोपियां नहीं कहेंगे।
शरीर है तब ही गोप-गोपियां अथवा भाई-बहिन कहा जाता है।
गोपी-वल्लभ शिवबाबा के बच्चे हैं।
गोप-गोपियां अक्षर ही मीठा है।
गायन भी है अचतम् केश्वम्, गोपी वल्लभम्, जानकी नाथम्..... यह महिमा भी इस समय की है।
परन्तु न जानने के कारण सब बातें गुड़-गुड़धानी बना दी है।
यह बाप बैठ वर्ल्ड की हिस्ट्री-जॉग्राफी सुनाते हैं।
वो लोग तो सिर्फ इन खण्डों को जानते हैं।
सतयुग में किसका राज्य था, कितना समय चला - यह नहीं जानते क्योंकि कल्प की आयु लाखों वर्ष कह दी है।
बिल्कुल घोर अन्धियारे में हैं।
अब बाप आकर तुमको सृष्टि चक्र की नॉलेज देते हैं।
जिसको जानने से तुम त्रिकालदर्शी, त्रिनेत्री बन जाते हो।
यह पढ़ाई है।
बाप खुद कहते हैं - मैं कल्प-कल्प, कल्प के संगमयुग पर आकरके तुमको पुरुषोत्तम बनाता हूँ।
नम्बरवार तुम ही बनते हो।
पढ़ाई से ही मर्तबा मिलता है।
तुम जानते हो हमको बेहद का बाप पढ़ाते हैं।
वो तो कह देते परमात्मा नाम-रूप से न्यारा है, ठिक्कर-भित्तर में है।
क्या-क्या कहते रहते हैं।
देवियों को भी कितनी भुजायें दे दी हैं।
रावण को 10 शीश देते हैं।
तो बच्चों को दिल में आना चाहिए सब आत्माओं का बाप हमको पढ़ाते हैं, पावन बनाते हैं तो अन्दर में कितनी खुशी होनी चाहिए।
परन्तु वह खुशी भी तब आयेगी, जब फिर औरों का कल्याण कर सबको खुश करो, रहमदिल बनो।
ओहो, बाबा हमको विश्व का महाराजा बना देते हो!
राजा, रानी, प्रजा सब विश्व के मालिक बनेंगे ना।
वहाँ वजीर होते नहीं।
अब राजायें नहीं हैं तो वजीर ही वजीर हैं।
अभी तो प्रजा का प्रजा पर राज्य है तो घड़ी-घड़ी यह बुद्धि में आना चाहिए कि बेहद का बाप हमको क्या पढ़ाते हैं।
जो अच्छी रीति पढेंगे वही पहले आयेंगे और ऊंच पद पायेंगे।
यह लक्ष्मी-नारायण इतने साहूकार कैसे बने?
क्या किया?
भक्ति मार्ग में कोई बहुत साहूकार होते हैं तो समझा जाता है इसने ऐसे ऊंच कर्म किये हैं।
ईश्वर अर्थ दान-पुण्य भी करते हैं।
समझते हैं इनकी एवज़ में हमको बहुत कुछ मिलेगा।
तो दूसरे जन्म में साहूकार बन जाते हैं।
परन्तु वह देते हैं इनडायरेक्ट, जिससे अल्पकाल के लिए कुछ मिलता है।
अब बाप डायरेक्ट आया है।
सब उनको याद करते हैं कि आकर पावन बनाओ।
ऐसे नहीं कहेंगे कि यह नॉलेज दे ऐसा लक्ष्मी-नारायण हमको बनाओ।
मनुष्यों की बुद्धि में तो श्रीकृष्ण ही याद आता है।
बाप को न जानने के कारण कितना दु:खी हो पड़े हैं।
अब बाप तुमको दैवी सम्प्रदाय का बनाते हैं।
तुम शान्तिधाम जाकर फिर सुखधाम में आयेंगे।
बाप कितना अच्छी रीति समझाते हैं।
भल सुनते हैं परन्तु जैसेकि सुनते ही नहीं हैं।
पत्थरबुद्धि से पारसबुद्धि होते ही नहीं हैं।
सारा दिन बाबा-बाबा ही याद रहना चाहिए।
स्त्री का पति पिछाड़ी कैसे प्राण निकल जाता है।
स्त्री का बहुत लव रहता है।
यहाँ तो तुम सब बच्चे हो।
फिर भी नम्बरवार तो हैं ना।
तुम जानते हो ऐसे बेहद के बाप को हम घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
बाप कहते हैं मुझे याद करने से तुम्हारे विकर्म विनाश होंगे।
फिर भी भूल जाते हैं।
अरे, ऐसा बाप, जो तुमको विश्व का मालिक बनाते हैं, उनको तुम भूलते क्यों हो?
माया के त़ूफान आयेंगे फिर भी तुम कोशिश करते रहो।
बाप को याद किया तो वर्सा मिल जायेगा।
स्वर्गवासी देवतायें तो सब बन जाते हैं।
बाकी सजायें खाकर फिर बनते हैं।
फिर पद भी बहुत कम हो जाता है।
यह सब नई बातें हैं।
ध्यान में तब आयेंगी जब बाप को, टीचर को याद करते रहेंगे।
तुम टीचर को भी भूल जाते हो।
बाप कहते हैं जब तक मैं हूँ, विनाश का समय आये और सब कुछ इस ज्ञान यज्ञ में स्वाहा हो जाए तब तक पढ़ाई चलती रहेगी।
तुम कहेंगे पढ़ाया तो सब कुछ है और फिर क्या पढ़ायेंगे?
बाबा कहते हैं नई-नई प्वाइंट्स निकलती रहती हैं।
तुम सुनकर खुश होते हो ना।
तो अच्छी रीति पढ़ो और सुदामा मिसल जो ट्रान्सफर करना है वह भी करते रहो।
यह भी बहुत बड़ा व्यापार है।
बाबा व्यापार में बहुत फ्राकदिल थे।
रूपये से एक आना धर्माऊ निकालते थे।
भल घाटा पड़ता था क्योंकि सबसे पहले हमको डालना पड़ता था।
कहते थे आप जितना जास्ती भरेंगे आपको देख सब भरेंगे।
तो बहुतों का कल्याण हो जायेगा।
वह था भक्ति मार्ग, यहाँ तो सब-कुछ बाप को दे दिया।
बाबा यह सब-कुछ लो।
बाप कहते हैं तुमको सारे विश्व की बादशाही देता हूँ।
विनाश का साक्षात्कार, चतुर्भुज का भी साक्षात्कार हुआ।
तो उस समय समझ में आया कि हम विश्व का मालिक बनेंगे।
बाबा की प्रवेशता थी ना।
विनाश देखा।
बस, यह दुनिया खत्म हो रही है, यह धन्धा आदि क्या करूँ।
छोड़ो गदाई को।
हमको राजाई मिल रही है।
अब बाप तुमको भी समझा रहे हैं कि सारी पुरानी दुनिया विनाश होने वाली है।
तुमको कुम्भकरण की नींद से जगाने का कितना पुरूषार्थ करा रहे हैं, तो भी तुम जगते नहीं हो।
तो बच्चों को एक बाप को ही याद करना है।
सब-कुछ बाप को दे दिया तो जरूर एक बाप ही याद आयेगा।
तुम बच्चे जास्ती याद कर सकते हो, जिनके माथे मामला...
कितनी बांधेलियों के समाचार आते हैं।
बाबा को ख्याल होता है - बिचारियां मार खाती हैं।
पति कितना सताते हैं।
भल समझते हैं ड्रामा में है, हम कर ही क्या सकते हैं।
कल्प पहले भी अबलाओं पर अत्याचार हुए थे।
नई दुनिया तो स्थापन होनी ही है।
बाप तो कहते हैं बहुत जन्मों के अन्त के जन्म के भी अन्त में मैं प्रवेश करता हूँ।
तो जरूर हम ही गोरे थे जो अब सांवरे बने हैं।
मैं ही पहले नम्बर में जाऊंगा।
हम जाकर श्रीकृष्ण बनेंगे।
इस चित्र को देखता हूँ तो ख्याल आता है कि यह जाकर बनूँगा।
तो बाप बच्चों को अच्छी रीति समझाते हैं, अब बच्चों का काम है समझकर दूसरों को समझाना।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) हम गोपी-वल्लभ की गोप-गोपियां हैं - इस खुशी वा नशे में रहना है। अन्तर्मुखी बन विचार सागर मंथन कर बाप समान टीचर बनना है।
2) सुदामा मिसल अपना सब कुछ ट्रान्सफर करने के साथ-साथ पढ़ाई भी अच्छी रीति पढ़नी है। विनाश के पहले बाप से पूरा वर्सा लेना है। कुम्भकरण की नींद में सोये हुए को जगाना है।
मधुरता के गुण द्वारा संस्कार मिलन करते हुए मंगल मिलन मनाने वाले होलीहंस भव
जैसे होली पर रंग खेलते और एक दो का मुख मीठा कराते मंगल मिलन मनाते हैं। ऐसे आप होलीहंस बच्चे जब एक दो को रूहानियत के संग का रंग लगाकर मधुरता की मिठाई खिलाते हो, आपके नयनों से, मुख से, चलन से मधुरता प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देती है तब मंगल मिलन अर्थात् संस्कार मिलन होता है। आपस में संस्कारों का मिलन होना ही प्रत्यक्षता का आधार है, इसी से ही जयजयकार होगी।