- ओम् शान्ति। यह स्कूल वा पाठशाला है। किसकी पाठशाला है?
- आत्माओं की पाठशाला।
- यह तो जरूर है आत्मा शरीर बिगर कुछ सुन नहीं सकती।
- जब कहा जाता है आत्माओं की पाठशाला तो समझना चाहिए - आत्मा शरीर बिगर तो समझ नहीं सकती।
- फिर कहना पड़ता है जीव आत्मा।
- अभी जीव आत्माओं की पाठशाला तो सभी हैं इसलिए कहा जाता है यह है आत्माओं की पाठशाला और परमपिता परमात्मा आकर पढ़ाते हैं।
- वह है जिस्मानी पढ़ाई, यह है रूहानी पढ़ाई, जो बेहद का बाप पढ़ाते हैं।
- तो यह हो गई गॉड फादर की युनिवर्सिटी।
- भगवानुवाच है ना।
- यह भक्ति मार्ग नहीं है, यह पढ़ाई है।
- स्कूल में पढ़ाई होती है।
- भक्ति मन्दिर टिकाणों आदि में होती है।
- इसमें कौन पढ़ाते हैं?
- भगवानुवाच।
- और कोई भी पाठशाला में भगवानुवाच होता ही नहीं है।
- सिर्फ यह एक ही जगह है जहाँ भगवानुवाच है।
- ऊंचे ते ऊंचे भगवान् को ही ज्ञान सागर कहा जाता है, वही ज्ञान दे सकते हैं।
- बाकी सब है भक्ति।
- भक्ति के लिए बाप ने समझाया है कि उससे कोई सद्गति नहीं होती।
- सर्व का सद्गति दाता एक परमात्मा है, वह आकर राजयोग सिखलाते हैं।
- आत्मा सुनती है शरीर द्वारा। और कोई नॉलेज आदि में भगवानुवाच है ही नहीं।
- भारत ही है जहाँ शिव जयन्ती भी मनाई जाती है।
- भगवान् तो निराकार है फिर शिव जयन्ती कैसे मनाते हैं।
- जयन्ती तो तब होती है जब शरीर में प्रवेश करते हैं।
- बाप कहते हैं मैं तो कभी गर्भ में प्रवेश नहीं करता हूँ।
- तुम सब गर्भ में प्रवेश करते हो।
- 84 जन्म लेते हो।
- सबसे जास्ती जन्म यह लक्ष्मी-नारायण लेते हैं।
- 84 जन्म लेकर फिर सांवरा, गाँवड़े का छोरा बनते हैं।
- लक्ष्मी-नारायण कहो या राधे-कृष्ण कहो।
- राधे-कृष्ण हैं बचपन के।
- वह जब जन्म लेते हैं तो स्वर्ग में लेते हैं, जिसको बैकुण्ठ भी कहा जाता है।
- पहला नम्बर जन्म इनका है, तो 84 जन्म भी यह लेते हैं।
- श्याम और सुन्दर, सुन्दर सो फिर श्याम।
- श्रीकृष्ण सबको प्यारा लगता है।
- श्रीकृष्ण का जन्म तो होता ही है नई दुनिया में।
- फिर पुनर्जन्म लेते-लेते आकर पुरानी दुनिया में पहुँचते हैं तो श्याम बन जाते हैं।
- यह खेल ही ऐसा है।
- भारत पहले सतोप्रधान सुन्दर था, अब काला हो गया है।
- बाप कहते हैं इतनी सब आत्मायें मेरे बच्चे हैं।
- अभी सब काम चिता पर बैठकर जलकर काले हो गये हैं।
- मैं आकर सबको वापिस ले जाता हूँ।
- यह सृष्टि का चक्र ही ऐसा है।
- फूलों का बगीचा वह फिर कांटों का जंगल बन जाता है।
- बाप समझाते हैं तुम बच्चे कितने सुन्दर विश्व के मालिक थे, अब फिर बन रहे हो।
- यह लक्ष्मी-नारायण विश्व के मालिक थे।
- यह 84 जन्म भोग फिर ऐसे बन रहे हैं अर्थात् उन्हों की आत्मा अब पढ़ रही है।
- तुम जानते हो सतयुग में अपार सुख हैं, जो कभी बाप को याद करने की दरकार भी नहीं रहती है।
- गायन है - दु:ख में सिमरण सब करें.... किसका सिमरण?
- बाप का।
- इतने सबका सिमरण नहीं करना है।
- भक्ति में कितना सिमरण करते हैं।
- जानते कुछ भी नहीं।
- श्रीकृष्ण कब आया, वह कौन है - कुछ भी जानते नहीं।
- श्रीकृष्ण और श्रीनारायण के भेद को भी नहीं जानते हैं।
- शिवबाबा है ऊंच ते ऊंच।
- फिर उनके नीचे ब्रह्मा, विष्णु, शंकर... उनको फिर देवता कहा जाता है।
- लोग तो सभी को भगवान् कहते रहते हैं।
- सर्वव्यापी कह देते हैं।
- बाप कहते हैं - सर्वव्यापी तो माया 5 विकार हैं जो एक-एक के अन्दर हैं।
- सतयुग में कोई विकार होता नहीं।
- मुक्तिधाम में भी आत्मायें पवित्र रहती हैं।
- अपवित्रता की कोई बात नहीं।
- तो यह रचयिता बाप ही आकर अपना परिचय देते हैं, आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझाते हैं, जिससे तुम आस्तिक बनते हो।
- तुम एक ही बार आस्तिक बनते हो।
- तुम्हारा यह जीवन देवताओं से भी उत्तम है।
- गाया भी जाता है मनुष्य जीवन दुर्लभ है।
- और जब पुरूषोत्तम संगमयुग होता है तो हीरे जैसा जीवन बनता है।
- लक्ष्मी-नारायण को हीरे जैसा नहीं कहेंगे।
- तुम्हारा हीरे जैसा जन्म है।
- तुम हो ईश्वरीय सन्तान, यह हैं दैवी सन्तान।
- यहाँ तुम कहते हो हम ईश्वरीय सन्तान हैं, ईश्वर हमारा बाप है, वह हमको पढ़ाते हैं क्योंकि ज्ञान का सागर है ना, राजयोग सिखलाते हैं।
- यह ज्ञान एक ही बार पुरूषोत्तम संगमयुग पर मिलता है।
- यह है उत्तम ते उत्तम पुरूष बनने का युग, जिसको दुनिया नहीं जानती।
- सब कुम्भकरण की अज्ञान नींद में सोये पड़े हैं।
- सबका विनाश सामने खड़ा है इसलिए अब कोई से भी बच्चों को सम्बन्ध नहीं रखना है।
- कहते हैं अन्तकाल जो स्त्री सिमरे..... अन्त समय में शिवबाबा को सिमरेंगे तो नारायण योनि में आयेंगे।
- यह सीढ़ी बहुत अच्छी है।
- लिखा हुआ है - हम सो देवता फिर सो क्षत्रिय, आदि।
- इस समय है रावण राज्य, जबकि अपने आदि सनातन देवी-देवता धर्म को भूल और धर्मों में फँस पड़े हैं।
- यह सारी दुनिया लंका है।
- बाकी सोने की लंका कोई थी नहीं।
- बाप कहते हैं तुमने अपने से भी जास्ती मेरी ग्लानि की है, अपने लिए 84 लाख और मुझे कण-कण में कह दिया है।
- ऐसे अपकारी पर मैं उपकार करता हूँ।
- बाप कहते हैं तुम्हारा दोष नहीं, यह ड्रामा का खेल है।
- सतयुग आदि से लेकर कलियुग अन्त तक यह खेल है, जो फिरना ही है।
- इसको सिवाए बाप के कोई समझा न सके।
- तुम सब ब्रह्माकुमार-कुमारियां हो।
- तुम ब्राह्मण हो ईश्वरीय सन्तान।
- तुम ईश्वरीय परिवार में बैठे हो।
- सतयुग में होगा दैवी परिवार।
- इस ईश्वरीय परिवार में बाप तुमको सम्भालते भी हैं, पढ़ाते भी हैं फिर गुल-गुल बनाकर साथ भी ले जायेंगे।
- तुम पढ़ते हो मनुष्य से देवता बनने के लिए।
- ग्रंथ में भी है मनुष्य से देवता किये... इसलिए परमात्मा को जादूगर कहा जाता है।
- नर्क को स्वर्ग बनाना, जादू का खेल है ना।
- स्वर्ग से नर्क बनने में 84 जन्म फिर नर्क से स्वर्ग चपटी में (सेकण्ड में) बनता है।
- एक सेकण्ड में जीवनमुक्ति।
- मैं आत्मा हूँ, आत्मा को जान लिया, बाप को भी जान लिया।
- और कोई मनुष्य यह नहीं जानते कि आत्मा क्या है?
- गुरू अनेक हैं, सतगुरू एक है।
- कहते हैं सतगुरू अकाल।
- परमपिता परमात्मा एक ही सतगुरू है।
- परन्तु गुरू तो ढेर हैं।
- निर्विकारी कोई है नहीं।
- सब विकार से ही जन्म लेते हैं।
- अभी राजधानी स्थापन हो रही है।
- तुम सब यहाँ राजाई के लिए पढ़ते हो।
- राजयोगी हो, बेहद के संन्यासी हो।
- वह हठयोगी हैं हद के संन्यासी।
- बाप आकर सभी की सद्गति कर सुखी बनाते हैं।
- मुझे ही कहते हैं सतगुरू अकाल मूर्त।
- वहाँ हम घड़ी-घड़ी शरीर छोड़ते और लेते नहीं।
- काल नहीं खाता।
- तुम्हारी भी आत्मा अविनाशी है, परन्तु पतित और पावन बनती है।
- निर्लेप नहीं है।
- ड्रामा का राज़ भी बाप ही समझाते हैं।
- रचयिता ही रचना के आदि-मध्य-अन्त का राज़ समझायेंगे ना।
- ज्ञान का सागर वही एक बाप है।
- वही तुमको मनुष्य से देवता डबल सिरताज बनाते हैं।
- तुम्हारा जन्म कौड़ी जैसा था।
- अब तुम हीरे जैसा बन रहे हो।
- बाप ने हम सो, सो हम का मंत्र भी समझाया है।
- वह कह देते आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो आत्मा, हम सो, सो हम।
- बाप कहते हैं आत्मा सो परमात्मा कैसे बन सकती है!
- बाप तुमको समझाते हैं - हम आत्मा इस समय तो ब्राह्मण हैं फिर हम आत्मा ब्राह्मण सो देवता बनेंगे, फिर सो क्षत्रिय बनेंगे, फिर शूद्र सो ब्राह्मण।
- सबसे ऊंचा जन्म तुम्हारा है।
- यह है ईश्वरीय घर।
- तुम किसके पास बैठे हो?
- मात-पिता के पास।
- सब भाई-बहिन हैं।
- बाप आत्माओं को शिक्षा देते हैं।
- तुम सब हमारे बच्चे हो, वर्से के हकदार हो, इसलिए परमात्मा बाप से हर एक वर्सा ले सकते हैं।
- बुढ़े, छोटे, बड़े, सबको हक है बाप से वर्सा लेने का।
- तो बच्चों को भी यही समझाओ - अपने को आत्मा समझो और बाप को याद करो तो पाप कट जायेंगे।
- भक्ति मार्ग वाले इन बातों को कुछ भी समझेंगे नहीं।
- अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
- रात्रि क्लास
- बच्चे बाप को पहचानते भी हैं, समझते भी हैं कि बाप पढ़ा रहे हैं, उनसे बेहद का वर्सा मिलना है।
- परन्तु मुश्किलात यह है जो माया भुला देती है।
- कोई न कोई विघ्न डाल देती है जिससे बच्चे डर जायें।
- उसमें भी पहले नम्बर में विकार में गिरते हैं।
- आंखें धोखा देती हैं।
- आंखें कोई निकालने की बात नहीं।
- बाप ज्ञान का नेत्र देते हैं, ज्ञान और अज्ञान की लड़ाई चलती है।
- ज्ञान है बाप, अज्ञान है माया।
- इनकी लड़ाई बहुत तीखी है।
- गिरते हैं तो समझ में नहीं आता।
- फिर समझते हैं मैं गिरा हुआ हूँ, मैंने अपना बहुत अकल्याण किया है।
- माया ने एक बार हराया तो फिर चढ़ना मुश्किल हो जाता है।
- बहुत बच्चे कहते हैं हम ध्यान में जाते, परन्तु उसमें भी माया प्रवेश हो जाती है।
- पता भी नहीं पड़ता है।
- माया चोरी करायेगी, झूठ बुलवायेगी।
- माया क्या नहीं कराती है!
- बात मत पूछो।
- गंदा बना देती है।
- गुल-गुल बनते-बनते फिर छी-छी बन जाते हैं।
- माया ऐसी जबरदस्त है जो घड़ी-घड़ी गिरा देती है।
- बच्चे कहते हैं बाबा हम घड़ी-घड़ी भूल जाते हैं।
- तदबीर कराने वाला तो एक ही बाप है, परन्तु किसकी तकदीर में नहीं है तो तदबीर भी कर नहीं सकते।
- इसमें कोई की पास-खातिरी भी नहीं हो सकती।
- न एक्स्ट्रा पढ़ाते हैं।
- उस पढ़ाई में तो एक्स्ट्रा पढ़ने लिए टीचर को बुलाते हैं।
- यह तो तकदीर बनाने लिए सभी को एकरस पढ़ाते हैं।
- एक-एक को अलग कहाँ तक पढ़ायेंगे?
- कितने ढेर बच्चे हैं!
- उस पढ़ाई में कोई बड़े आदमी के बच्चे होते हैं, अधिक खर्च कर सकते हैं तो उनको एक्स्ट्रा भी पढ़ाते हैं।
- टीचर जानते हैं कि यह डल है इसलिए पढ़ाकर उनको स्कालरशिप लायक बनाते हैं।
- यह बाप ऐसे नहीं करते हैं।
- यह तो सभी को एकरस पढ़ाते हैं।
- वह हुआ टीचर का एक्स्ट्रा पुरूषार्थ कराना।
- यह तो एक्स्ट्रा पुरूषार्थ किसको अलग कराते नहीं हैं।
- एक्स्ट्रा पुरूषार्थ माना ही टीचर कुछ कृपा करते हैं।
- भल ऐसे पैसे लेते हैं।
- खास टाईम दे पढ़ाते हैं जिससे वह जास्ती पढ़कर होशियार होते हैं।
- यहाँ तो जास्ती कुछ पढ़ने की बात ही नहीं।
- इनकी तो बात ही एक है।
- एक ही महामंत्र देते हैं - मन्मनाभव का।
- याद से क्या होता है, यह तो तुम बच्चे समझते हो।
- बाप ही पतित-पावन है जानते हो उनको याद करने से ही हम पावन बनेंगे।
अच्छा - गुडनाईट।
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
1) सारी दुनिया अब कब्रदाखिल होनी है, विनाश सामने है, इसलिए कोई से भी सम्बन्ध नहीं रखना है। अन्त-काल में एक बाप ही याद रहे।
2) श्याम से सुन्दर, पतित से पावन बनने का यह पुरूषोत्तम संगमयुग है, यही समय है उत्तम पुरूष बनने का, सदा इसी स्मृति में रह स्वयं को कौड़ी से हीरे जैसा बनाना है।
ज्ञान धन द्वारा प्रकृति के सब साधन प्राप्त करने वाले पदमा-पदमपति भव
ज्ञान धन स्थूल धन की प्राप्ति स्वत: कराता है। जहाँ ज्ञान धन है वहाँ प्रकृति स्वत: दासी बन जाती है। ज्ञान धन से प्रकृति के सब साधन स्वत: प्राप्त हो जाते हैं इसलिए ज्ञान धन सब धन का राजा है। जहाँ राजा है वहाँ सर्व पदार्थ स्वत: प्राप्त होते हैं। यह ज्ञान धन ही पदमा-पदमपति बनाने वाला है, परमार्थ और व्यवहार को स्वत: सिद्ध करता है। ज्ञान धन में इतनी शक्ति है जो अनेक जन्मों के लिए राजाओं का राजा बना देती है।
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