प्रश्नः-
बाप की ज्ञान डांस किन बच्चों के सम्मुख बहुत अच्छी होती है?
उत्तर:-
जो ज्ञान के शौकीन हैं, जिन्हें योग का नशा है, उनके सामने बाप की ज्ञान डांस बहुत अच्छी होती है। नम्बरवार स्टूडेन्ट हैं। परन्तु यह वन्डरफुल स्कूल है। कइयों में जरा भी ज्ञान नहीं है, सिर्फ भावना बैठी हुई है, उस भावना के आधार पर भी वर्से के अधिकारी बन जाते हैं।
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- ओम् शान्ति। रूहानी बच्चों को रूहानी बाप समझाते हैं, इसको कहा जाता है रूहानी ज्ञान वा स्प्रीचुअल नॉलेज।
- स्प्रीचुअल नॉलेज सिर्फ एक बाप में ही होती है और कोई भी मनुष्य मात्र में रूहानी नॉलेज होती नहीं।
- रूहानी नॉलेज देने वाला ही एक है, जिसको ज्ञान का सागर कहा जाता है।
- हर एक मनुष्य में अपनी-अपनी खूबी होती है ना।
- बैरिस्टर, बैरिस्टर है।
- डॉक्टर, डॉक्टर है।
- हर एक की ड्युटी, पार्ट अलग-अलग है।
- हर एक की आत्मा को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है और अविनाशी पार्ट है।
- कितनी छोटी आत्मा है।
- वन्डर है ना।
- गाते भी हैं चमकता है भ्रकुटी के बीच... यह भी गाया जाता है निराकार आत्मा का यह शरीर है तख्त।
- है बहुत छोटी-सी बिन्दी।
- और सब आत्मायें एक्टर्स हैं।
- एक जन्म के फीचर्स न मिले दूसरे से, एक जन्म का पार्ट न मिले दूसरे से।
- किसको भी पता नहीं है कि हम पास्ट में क्या थे फिर फ्युचर में क्या होंगे।
- यह बाप ही संगम पर बैठ समझाते हैं।
- सुबह को तुम बच्चे याद की यात्रा में बैठते हो तो उझाई हुई आत्मा प्रज्जवलित होती रहती है क्योंकि आत्मा में बहुत जंक लगी हुई है।
- बाप सोनार का भी काम करते हैं।
- पतित आत्मायें, जिनमें खाद पड़ती है, उनको प्योर बनाते हैं।
- खाद पड़ती तो है ना। चांदी, तांबा, लोहा आदि नाम भी ऐसे हैं।
- गोल्डन एज, सिलवर एज... सतोप्रधान, सतो, रजो, तमो... यह बातें और कोई भी मनुष्य, गुरू नहीं समझायेंगे।
- एक सतगुरू ही समझायेंगे।
- सतगुरू का अकाल तख्त कहते हैं ना।
- उस सतगुरू को भी तख्त चाहिए ना।
- जैसे तुम आत्माओं को अपना-अपना तख्त है, उनको भी तख्त लेना पड़ता है।
- कहते हैं मैं कौन-सा तख्त लेता हूँ-यह दुनिया में कोई को पता नहीं है।
- वह तो नेती-नेती कहते आये हैं।
- हम नहीं जानते हैं।
- तुम बच्चे भी समझते हो पहले हम कुछ भी नहीं जानते थे।
- जो कुछ भी नहीं समझते हैं, उनको बेसमझ कहा जाता है।
- भारतवासी समझते हैं हम बहुत समझदार थे।
- विश्व का राज्य-भाग्य हमारा था।
- अब बेसमझ बन पड़े हैं।
- बाप कहते हैं तुम शास्त्र आदि भल कुछ भी पढ़े हो, यह सब अब भूल जाओ।
- सिर्फ एक बाप को याद करो।
- गृहस्थ व्यवहार में भी भल रहो।
- संन्यासियों के फालोअर्स भी अपने-अपने घर में रहते हैं।
- कोई-कोई सच्चे फालोअर्स होते हैं तो उनके साथ रहते हैं।
- बाकी कोई कहाँ, कोई कहाँ रहते हैं।
- तो यह सब बातें बाप बैठ समझाते हैं।
- इसको कहा जाता है ज्ञान की डांस।
- योग तो है साइलेन्स।
- ज्ञान की होती है डांस।
- योग में तो बिल्कुल शान्त रहना होता है।
- डेड साइलेन्स कहते हैं ना।
- तीन मिनट डेड साइलेन्स।
- परन्तु उसका भी अर्थ कोई जानते नहीं।
- संन्यासी शान्ति के लिए जंगल में जाते हैं परन्तु वहाँ थोड़ेही शान्ति मिल सकती है।
- एक कहानी भी है रानी का हार गले में... यह मिसाल है शान्ति के लिए।
- बाप इस समय जो बातें समझाते हैं वह दृष्टान्त फिर भक्ति मार्ग में चले आते हैं।
- बाप इस समय पुरानी दुनिया को बदल नई दुनिया बनाते हैं।
- तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं।
- यह तो तुम समझ सकते हो।
- बाकी यह दुनिया ही तमोप्रधान पतित है क्योंकि सब विकारों से पैदा होते हैं।
- देवतायें तो विकार से पैदा नहीं होते।
- उनको कहा जाता है सम्पूर्ण निर्विकारी दुनिया।
- वाइसलेस वर्ल्ड अक्षर कहते हैं परन्तु उनका अर्थ नहीं समझते।
- तुम ही पूज्य सो पुजारी बने हो।
- बाबा के लिए कभी ऐसे नहीं कहा जाता।
- बाप कभी पुजारी बनते नहीं।
- मनुष्य तो कण-कण में परमात्मा कह देते हैं।
- तब बाप कहते हैं भारत में जब-जब ऐसी धर्म ग्लानि होती है...।
- वो लोग तो सिर्फ ऐसे ही श्लोक पढ़ लेते हैं, अर्थ कुछ भी नहीं जानते।
- वह समझते हैं शरीर ही पतित बनता है, आत्मा नहीं बनती है।
- बाप कहते हैं पहले आत्मा पतित बनी है तब शरीर भी पतित बना है।
- सोने में ही खाद पड़ती है तो फिर जेवर भी ऐसा बनता है।
- परन्तु वह सब है भक्ति मार्ग में।
- बाप समझाते हैं हर एक में आत्मा विराजमान है, कहा भी जाता है जीव आत्मा।
- जीव परमात्मा नहीं कहा जाता।
- महान् आत्मा कहा जाता है, महान् परमात्मा नहीं कहा जाता।
- आत्मा ही भिन्न-भिन्न शरीर लेते पार्ट बजाती है।
- तो योग है बिल्कुल साइलेन्स।
- यह फिर है ज्ञान डांस।
- बाप की ज्ञान डांस भी उन्हों के आगे होगी जो शौकीन होंगे।
- बाप जानते हैं किसमें कितना ज्ञान है, कितना उनमें योग का भी नशा है।
- टीचर तो जानते होंगे ना।
- बाप भी जानते हैं कौन-कौन अच्छे गुणवान बच्चे हैं।
- अच्छे-अच्छे बच्चों का ही जहाँ-तहाँ बुलावा होता है।
- बच्चों में भी नम्बरवार हैं।
- प्रजा भी नम्बरवार पुरूषार्थ अनुसार बनती है।
- यह स्कूल अथवा पाठशाला है ना।
- पाठशाला में हमेशा नम्बरवार बैठते हैं।
- समझ सकते हैं फलाना होशियार है, यह मीडियम है।
- यहाँ तो यह बेहद का क्लास है, इसमें किसको नम्बरवार बिठा नहीं सकते।
- बाबा जानते हैं हमारे सामने यह जो बैठे हुए हैं इनमें कुछ भी ज्ञान नहीं है।
- सिर्फ भावना है।
- बाकी तो न ज्ञान है, न याद है।
- इतना निश्चय है - यह बाबा है, इनसे हमको वर्सा लेना है।
- वर्सा तो सबको मिलना है।
- परन्तु राजाई में तो नम्बरवार पद हैं।
- जो बहुत अच्छी सर्विस करते हैं उनको तो बहुत अच्छी प्राइज़ मिलती है।
- यहाँ सभी को प्राइज़ देते रहते हैं, जो राय देते हैं, माथा मारते हैं, उनको प्राइज़ मिल जाती है।
- अभी तुम जानते हो विश्व में सच्ची शान्ति कैसे हो?
- बाप ने कहा है उनसे पूछो तो सही कि विश्व में शान्ति कब थी?
- कभी सुनी वा देखी है?
- किस प्रकार की शान्ति मांगते हो?
- कब थी?
- तुम प्रश्न पूछ सकते हो क्योंकि तुम जानते हो जो प्रश्न पूछे और खुद न जानता हो तो उनको क्या कहेंगे?
- तुम अ़खबारों द्वारा पूछो कि किस प्रकार की शान्ति मांगते हो?
- शान्तिधाम तो है, जहाँ हम सब आत्मायें रहती हैं।
- बाप कहते हैं एक तो शान्तिधाम को याद करो, दूसरा सुखधाम को याद करो।
- सृष्टि के चक्र का पूरा ज्ञान न होने कारण कितने गपोड़े आदि लगा दिये हैं।
- तुम बच्चे जानते हो हम डबल सिरताज बनते हैं।
- हम देवता थे, अब फिर मनुष्य बने हैं।
- देवताओं को देवता कहा जाता है, मनुष्य नहीं क्योंकि दैवी गुणों वाले हैं ना।
- जिनमें अवगुण हैं वह कहते हैं मुझ निर्गुण हारे में कोई गुण नाही।
- शास्त्रों में जो बातें सुनी हैं वह सिर्फ गाते रहते हैं - अचतम् केशवम...।
- जैसे तोते को सिखलाया जाता है।
- कहते हैं बाबा आकर हम सबको पावन बनाओ।
- ब्रह्मलोक को वास्तव में दुनिया नहीं कहेंगे।
- वहाँ तुम आत्मायें रहती हो।
- वास्तव में पार्ट बजाने की दुनिया यही है।
- वह है शान्तिधाम।
- बाप समझाते हैं मैं बैठ तुम बच्चों को अपना परिचय देता हूँ।
- मैं आता ही उसमें हूँ जो अपने जन्मों को नहीं जानते।
- यह भी अभी सुनते हैं।
- मैं इनमें प्रवेश करता हूँ।
- पुरानी पतित दुनिया, रावण की दुनिया है।
- जो नम्बरवन पावन था वही फिर नम्बर लास्ट पतित बना है।
- उनको अपना रथ बनाता हूँ।
- फर्स्ट सो लास्ट में आया है।
- फिर फर्स्ट में जाना है।
- चित्र में भी समझाया है - ब्रह्मा द्वारा मैं आदि सनातन देवी-देवता धर्म की स्थापना करता हूँ।
- ऐसे तो नहीं कहते हैं देवी-देवता धर्म में आता हूँ।
- जिस शरीर में आकर बैठते हैं वही फिर जाकर नारायण बनते हैं।
- विष्णु कोई और नहीं है।
- लक्ष्मी-नारायण अथवा राधे-कृष्ण की जोड़ी कहो।
- विष्णु कौन है - यह भी कोई नहीं जानते हैं।
- बाप कहते हैं मैं तुमको वेदों-शास्त्रों, सब चित्रों आदि का राज़ समझाता हूँ।
- मैं जिसमें प्रवेश करता हूँ वह फिर यह बनते हैं।
- प्रवृत्ति मार्ग है ना।
- यह ब्रह्मा, सरस्वती, फिर वह (लक्ष्मी-नारायण) बनते हैं।
- इनमें (ब्रह्मा में) मैं प्रवेश कर ब्राह्मणों को ज्ञान देता हूँ।
- तो यह ब्रह्मा भी सुनते हैं।
- यह फर्स्ट नम्बर में सुनते हैं।
- यह है बड़ी नदी ब्रह्मपुत्रा।
- मेला भी सागर और ब्रह्मपुत्रा नदी पर लगता है।
- बड़ा मेला लगता है, जहाँ सागर और नदी का संगम होता है।
- मैं इसमें प्रवेश करता हूँ।
- यह वह बनते हैं।
- इनको वह (ब्रह्मा सो विष्णु) बनने में एक सेकण्ड लगता है।
- साक्षात्कार हो जाता है और झट निश्चय हो जाता है - मैं यह बनने वाला हूँ।
- विश्व का मालिक बनने वाला हूँ।
- तो यह गदाई क्या करेंगे?
- सब छोड़ दिया।
- तुमको भी पहले मालूम हुआ - बाबा आया हुआ है, यह दुनिया खत्म होने वाली है तो झट भागे।
- बाबा ने नहीं भगाया।
- हाँ, भट्ठी बननी थी।
- कहते हैं कृष्ण ने भगाया।
- अच्छा, कृष्ण ने भगाया तो पटरानी बनाया ना।
- तो इस ज्ञान से विश्व के महाराजा-महारानी बनते हो।
- यह तो अच्छा ही है।
- इसमें गाली खाने की दरकार नहीं।
- फिर कहते हैं कलंक जब लगते हैं तब ही कलंगीधर बनते हैं।
- कलंक लगते हैं शिव-बाबा पर।
- कितनी ग्लानि करते हैं।
- कहते हैं हम आत्मा सो परमात्मा, परमात्मा सो हम आत्मा।
- अब बाप समझाते हैं - ऐसे है नहीं।
- हम आत्मा अभी सो ब्राह्मण हैं।
- ब्राह्मण है सबसे ऊंच कुल।
- इनको डिनायस्टी नहीं कहेंगे।
- डिनायस्टी अर्थात् जिसमें राजाई होती है।
- यह तुम्हारा कुल है।
- है बहुत सहज, हम ब्राह्मण सो देवता बनने वाले हैं इसलिए दैवीगुण जरूर धारण करने हैं।
- सिगरेट, बीड़ी आदि का देवताओं को भोग लगाते हो क्या?
- श्रीनाथ द्वारे में बहुत घी के माल ठाल बनते हैं।
- भोग इतना लगाते हैं जो फिर दुकान लग जाती है।
- यात्री जाकर लेते हैं।
- मनुष्यों की बहुत भावना रहती है।
- सतयुग में तो ऐसी बातें होती नहीं।
- ऐसी मक्खियाँ आदि होंगी नहीं, जो किसी चीज़ को खराब करें।
- ऐसी बीमारी आदि वहाँ होती नहीं।
- बड़े आदमियों के पास सफाई भी बहुत होती है।
- वहाँ तो ऐसी बातें ही नहीं होती।
- रोग आदि होते नहीं।
- यह सब बीमारियां द्वापर से निकलती हैं।
- बाप आकर तुमको एवर हेल्दी बनाते हैं।
- तुम पुरूषार्थ करते हो बाप को याद करने का, जिससे तुम एवरहेल्दी बनते हो।
- आयु भी बड़ी होती है।
- कल की बात है।
- 150 वर्ष आयु थी ना।
- अभी तो 40-45 वर्ष एवरेज है क्योंकि वह योगी थे, यह भोगी हैं।
- तुम राजयोगी, राजऋषि हो इसलिए तुम पवित्र हो।
- परन्तु यह है पुरुषोत्तम संगमयुग।
- मास या वर्ष नहीं।
- बाप कहते हैं मैं कल्प-कल्प पुरूषोत्तम संगम युगे-युगे आता हूँ।
- बाप रोज़-रोज़ समझाते रहते हैं।
- फिर भी कहते हैं एक बात कभी नहीं भूलना - पावन बनना है तो मुझे याद करो।
- अपने को आत्मा समझो।
- देह के सभी धर्म त्याग करो।
- अब तुमको वापिस जाना है।
- मै आया हूँ तुम्हारी आत्मा को साफ करने, जिससे फिर शरीर भी पवित्र मिलेगा।
- यहाँ तो विकार से पैदा होते हैं।
- आत्मा जब सम्पूर्ण पवित्र बनती है तब तुम पुरानी जुत्ती को छोड़ते हो।
- फिर नई मिलेगी।
- तुम्हारा गायन है - वन्दे मातरम्।
- तुम धरती को भी पवित्र बनाती हो।
- तुम मातायें स्वर्ग का द्वार खोलती हो।
- परन्तु यह कोई नहीं जानता।
अच्छा!
मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।
धारणा के लिए मुख्य सार:-
1) आत्मा रूपी ज्योति को प्रज्जवलित करने के लिए सवेरे-सवेरे याद की यात्रा में बैठना है। याद से ही जंक निकलेगी। आत्मा में जो खाद पड़ी है वह याद से निकाल सच्चा सोना बनना है।
2) बाप से ऊंच पद की प्राइज़ लेने के लिए भावना के साथ-साथ ज्ञानवान और गुणवान भी बनना है। सर्विस करके दिखाना है।
( All Blessings of 2021-22)
चलन और चेहरे से पवित्रता के श्रृंगार की झलक दिखाने वाले श्रंगारी मूर्त भव
पवित्रता ब्राह्मण जीवन का श्रंगार है। हर समय पवित्रता के श्रंगार की अनुभूति चेहरे वा चलन से औरों को हो। दृष्टि में, मुख में, हाथों में, पांवों में सदा पवित्रता का श्रंगार प्रत्यक्ष हो। हर एक वर्णन करे कि इनके फीचर्स से पवित्रता दिखाई देती है। नयनों में पवित्रता की झलक है, मुख पर पवित्रता की मुस्कराहट है। और कोई बात उन्हें नज़र न आये - इसको ही कहते हैं - पवित्रता के श्रंगार से श्रंगारी हुई मूर्त।
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