साथ तुम्हारा प्रभु कितना है प्यारा...



Avyakt Baapdada - 23.10.1999


"... यह ब्राह्मण जन्म ही

याद और सेवा के लिए है।

और कुछ करना

है क्या? यही है ना!

 

 

हर श्वांस, हर सेकण्ड याद और

सेवा साथ-साथ है

या सेवा के घण्टे अलग हैं

और याद के घण्टे अलग हैं?

नहीं है ना!

 

 

अच्छा, बैलेन्स है?

अगर 100 परसेन्ट सेवा है तो

100 परसेन्ट ही याद है?

दोनों का बैलेन्स है?

 


अन्तर पड़ जाता है ना?

कर्म योगी का अर्थ ही है

- कर्म और याद,

सेवा और याद -

दोनों का बैलेन्स समान,

समान होना चाहिए।

 

 

ऐसे नहीं

कोई समय याद ज्यादा है

और सेवा कम,

या सेवा ज्यादा है याद कम।

 

 

जैसे आत्मा और शरीर

जब तक स्टेज पर है

तो साथ-साथ है ना।

अलग हो सकते हैं?

 

 

ऐसे याद और सेवा साथ-साथ रहे।

याद अर्थात् बाप समान,

स्व के स्वमान की भी याद।

 

 

जब बाप की याद रहती है तो

स्वत: ही स्वमान की भी

याद रहती है।

अगर स्वमान में नहीं रहते तो

याद भी पावरफुल नहीं रहती।..."

 

 

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