BrahmLok Ka Rahnewala Baba Aaya Hai..


07.05.1969

"...पुरुषार्थ करते-करते

जो माया के विघ्न आते हैं

उन पर विजय प्राप्त करने के लिए

कौन-सा सलोगन है?

 

"स्वर्ग का स्वराज्य हमारा

जन्म सिद्ध अधिकार है"।

 

और संगम के समय

बाप का खजाना

जन्म सिद्ध अधिकार है।

 

यह सलोगन भूल गये हो।

अधिकार भूल गये हो

तो क्या होगा?

 

 

हम किस -किस चीजों के

अधिकारी हैं।

वह तो जानते हो।

 

 

लेकिन हमारे यह सभी चीज़ें

जन्म सिद्ध अधिकार हैं।

 

 

जब अपने को अधिकारी समझेंगे

तो माया के अधीन नहीं होंगे।

अधीन होने से बचने लिये

अपने को अधिकारी समझना है।

 

 

पहले संगमयुग के

सुख के अधिकारी हैं

और फिर भविष्य में

स्वर्ग के सुखों के

अधिकारी हैं।

तो अपना अधिकार भूलो नहीं। ..."

 


 

31.12.1970

"...आँख खुलते ही

मैं शरीर नहीं आत्मा हूँ,

यह है आदि समय का

आदि परिवर्तन संकल्प,

 

 

इसी आदि संकल्प के साथ

सारे दिन की दिनचर्या का आधार है।

अगर आदि संकल्प में

परिवर्तन नहीं हुआ तो

सारा दिन स्वराज्य

वा विश्व-कल्याण में

सफल नहीं हो सकेंगे।

 

 

आदि समय से

परिवर्तन शक्ति कार्य में लाओ।

 

 

जैसे सृष्टि के आदि में

ब्रह्म से देव-आत्मा

सतोप्रधान आत्मा

पार्ट में आयेगी,

 

 

ऐसे हर रोज़ अमृतवेला

आदिकाल है।

 

 

इसलिए इस आदिकाल के समय

उठते ही पहला संकल्प

याद में

ब्राह्मण आत्मा पधारे

– बाप से मिलन मनाने के लिए।

 

 

यही समर्थ संकल्प,

श्रेष्ठ संकल्प,

श्रेष्ठ बोल, श्रेष्ठ कर्म का आधार

बन जायेगा।

 

 

पहला परिवर्तन – “मैं कौन!”

तो यही फाउंडेशन

परिवर्तन शक्ति का आधार है।

 

 

इसके बाद –

दूसरा परिवर्तन

"मैं किसका हूँ"

सर्व सम्बन्ध किससे हैं।

सर्व प्राप्तियां किससे हैं!

 

 

पहले देह का परिवर्तन

फिर देह के सम्बन्ध का परिवर्तन,

फिर सम्बन्ध के आधार पर

प्राप्तियों का परिवर्तन

– इस परिवर्तन को ही

सहज याद कहा जाता है।..."

 


 

 

30.05.1971

"...अटूट, अटल

अनुभव होना चाहिए।

तब ही अटल,

अखण्ड स्वराज्य प्राप्त करेंगे।

तो अटूट रहता है

वा बीच-बीच में टूटता है?

 

 

टूटी हुई चीज फिर

जुड़ी हुई हो और

कोई बिल्कुल अटूट चीज़ है

- तो दोनों से

क्या अच्छा लगेगा?

 

 

अटूट चीज अच्छी लगेगी ना।

तो यह अतीन्द्रिय सुख भी

अटूट होना चाहिए।

तब समझो कि बाप के

वर्से के अधिकारी बनेंगे।

 

 

अगर अटूट, अटल नहीं तो

क्या समझना चाहिए?

वर्से के अधिकारी नहीं बने हैं

लेकिन थोड़ा बहुत

दान-पुण्य की रीति से

प्राप्त कर लिया है,

जो कभी-कभी प्राप्त हो जाता है।

 

 

वर्सा सदैव अपनी प्राप्ति होती है।

दान-पुण्य तो

कभी-कभी की प्राप्ति होती है।

 

 

वारिस हो तो

वारिस की निशानी है

- अतीन्द्रिय सुख के

वर्से के अधिकारी।

 

 

वारिस को बाप

सभी-कुछ विल करता है।

जो वारिस नहीं होंगे

उनको थोड़ा-बहुत देकर

खुश करेंगे। ..."

 


 

02.05.1974

"...जिसका अपनी आवश्यक और

समीप की चेतन शक्तियों,

संकल्पों और बुद्धि अथवा

मन और बुद्धि पर कन्ट्रोल नहीं,

अधिकार नहीं या

विजय नहीं तो क्या,

विश्व के स्वराज्य का अधिकारी

व विजयी रत्न बन सकता है?

 

 

जिस राज्य के

मुख्य अधिकारी

अपने अधिकार में न हों,

क्या वह राज्य अटल,

अखण्ड, और निर्विघ्न

चल सकता है?

 

 

यह मन और बुद्धि

आप आत्मा की समीप

शक्तियाँ व मुख्य राज्य अधिकारी हैं,

व कार्य अधिकारी हैं,

यदि वह भी वश में नहीं,

तो ऐसे को क्या कहा जायेगा?

महान् विजयी या महान् कमज़ोर?

 

 

 

तो अपने आपको देखो कि

क्या मेरे मुख्य

राज्य-अधिकारी, मेरे अधिकार में हैं?

 

 

अगर नहीं, तो

विश्व राज्य अधिकारी

अथवा राजन् कैसे बनेंगे?

 

 

अपने ही छोटे छोटे

कार्यकर्त्ता अपने को धोखा दें,

तो क्या ऐसे को

महावीर कहा जायेगा?

 

 

चैलेन्ज तो करते हो,

कि हम लॉ और ऑर्डर

सम्पन्न राज्य स्थापित कर रहे हैं।

 

 

 

तो चैलेन्ज करने वाले के

यह छोटे-छोटे कार्यकर्ता

अर्थात् कर्मेन्द्रियाँ अपने ही

लॉ और आर्डर में नहीं,

और वे स्वयं ही

कार्यकर्त्ता के वशीभूत हों

तो क्या ऐसे वे विश्व में

लॉ और ऑर्डर स्थापित कर सकते हैं?

 

 

 

हर कर्मेन्द्रियाँ कहाँ तक

अपने अधिकार में हैं?

यह चैक करो और

अभी से विजयीपन के

संस्कार धारण करो।..."

 


 

07.10.1975

"...वर्तमान स्वराज्य अर्थात्

स्व का इन सर्व-कर्मइन्द्रियों पर

राज्य - इसको कहते हैं स्वराज्य

और वही है

भविष्य का डबल राज्य अधिकारी। ..."

 


 

14.11.1978

"... पहले स्वराज्य फिर है

विश्व का राज्य।

जो स्वराज्य नहीं कर सकते

वह विश्व के राज्य के

अधिकारी नहीं बन सकते।

 

 

 

इसलिए अभी

अपने आप को चैक करो।

अर्न्तमुखी बन

स्वचिन्तन में रहो।

 

 

 

जो आदि में

पहले दिन की पहेली

सुनाई जाती है ‘‘मैं कौन?’’

 

 

अब फिर इसी पहेली को

अपने सम्पूर्ण स्टेज के प्रमाण,

श्रेष्ठ पोजीशन (Position) के प्रमाण

बाप द्वारा प्राप्त

टाईटल्ज़ के प्रमाण चैक करो,

व्हाट एम आई?

(What Am I? )।

 

 

 

यह पहेली अभी हल करनी है।

अपने सारे दिन की

स्थिति द्वारा स्वयं को

जान सकते हो कि

आदिकाल के अधिकारी हैं

या सतयुग के

या मध्यकाल के अधिकारी हैं?

 

 

 

जबकि लक्ष्य है

आदिकाल के अधिकारी बनने का

तो उसी प्रमाण

अपने वर्तमान को सदा

समर्थ बनाओ।

 

 

 

ज्ञान के मनन के साथ

अपनी स्थिति की चैकिंग भी

बहुत ज़रूरी है।

 

 

हर दिन के जमा हुए

खाते में स्वयं से सन्तुष्ट हैं या

अब तक भी

यही कहेंगे कि

जितना चाहते हैं उतना नहीं।

अब तक ऐसी रिज़ल्ट

नहीं होनी चाहिए।

 

 

जो स्वयं से संतुष्ट नहीं होगा

वह विश्व की आत्माओं को

संतुष्ट करने वाला

कैसे बन सकेगा।

 

 

सतयुग के आदिकाल में

आत्मायें तो क्या

प्रकृति भी संतुष्ट है,

क्योंकि सम्पूर्ण हैं -

तो संतुष्टमणी बनो।

समझा अभी क्या करना है। ..."

 


 

08.01.1979

"...जैसे ब्रह्मा बाप सदा

स्वराज्य करने वाले

अर्थात् स्व अधीन नहीं

लेकिन स्व अधिकारी थे।

 

 

ऐसे ब्रह्मा बाप को

फालो करने वाले

जिन्हों का सदा

संकल्प साकार में है कि

स्वराज्य हमारा

जन्मसिद्ध अधिकार है,

ऐसे स्वराज्य करने वाले

वहाँ भी साथ में राज्य करेंगे। ..."

 


 

12.01.1979

"...इतनी सिकीलधे श्रेष्ठ आत्मायें हो

जो स्वयं भगवान

आपको पढ़ाने के लिए

परमधाम से आते हैं।

 

 

लण्डन वा अमेरिका से

नहीं आते हैं - इस लोक से भी पार

जहाँ तक साइन्स वाले

स्वप्न में भी पहुँच नहीं सकते

ऐसे परमधाम से

स्पेशल आपके पढ़ाने के लिए

आते हैं।

 

 

और फिर पढ़ाने की फी नहीं लेते।

और ही पढ़ाई की

प्रालबध स्वर्ग का

स्वराज्य स्वयं नहीं लेते,

आपको देते हैं।

 

 

 

तो इससे बड़ी खुशी और

क्या होती है।

इस स्मृति से खज़ाने को

यूज़ करो ..."

 


 

10.12.1979

"...अब स्वराज्यधारी और

भविष्य में विश्व-राज्यधारी।

जितना स्वराज्य

उतना ही विश्व पर राज्य।

 

 

जितने यहाँ अधिकारी बनते,

उतना वहाँ भी बनते हैं।

 

 

तो सभी स्वराज्यधारी हो?

स्व पर राज्य अधिकारी

बनने वाले अन्य आत्माओं को भी

स्वराज्य के अधिकारी

बना सकते हैं। ..."

 


 

04.01.1980

"...हरेक का राज्य-कारोबार

अर्थात् स्वराज्य ठीक चल रहा है?

जैसे सतयुगी सृष्टि के लिए

कहते हैं - एक राज्य एक धर्म है।

 

 

ऐसे ही अब स्वराज्य में भी

एक राज्य अर्थात् स्व के ईशारे पर

सर्व चलने वाले हैं।

 

 

एक धर्म अर्थात्

एक ही धारणा सब की है कि

सदा श्रेष्ठाचारी चढ़ती कला में चलना है।

मन अपनी मनमत पर चलावे,

बुद्धि अपनी निर्णय शक्ति की

हलचल करे, मिलावट करे,

संस्कार आत्मा को भी

नाच नचाने वाले हो जाएँ तो

इसको एक धर्म नहीं कहेंगे,

एक राज्य नहीं कहेंगे। ..."

 


 

07.01.1980

"...स्वयं भी सदा

अकालतख्त पर विराजमान हैं।

अपनी कर्मेन्द्रियों द्वारा

साक्षी हो कार्य करते हुए

स्वराज्य अधिकारी हो।

 

 

अकालतख्तनशीन आत्मा

अर्थात् राज्य-अधिकारी।

ऐसे राज्य अधिकारी बन

करके चलते हो?

 

 

कर्मेन्द्रियों के

अधीन तो नहीं होते।

जहाँ अधीनता होगी,

वहाँ कमज़ोरी होगी।

 

 

आधा कल्प कमज़ोर रहे

अब अपना राज्य लिया है?

राज्य अथवा अधिकार लेने के बाद

अधीनता समाप्त हो जाती है।

 

 

तो राज्य अधिकारी हो ना!

कोई कर्मेन्द्रिय अर्थात्

कार्यकर्त्ता आपके ऊपर

राज्य तो नहीं करता?

 

 

 

जैसे आजकल की दुनिया में

प्रजा का प्रजा पर राज्य है,

वैसे आपके जीवन में

प्रजा का राज्य तो नहीं है ना?

प्रजा हैं यह कर्मेन्द्रियाँ।

 

 

प्रजा के राज्य में

सदा हलचल रहती है

और राजा के राज्य में

अचल राज्य चलता।

तो अचल राज्य चल रहा है ना? ..."

 

 


 

09.01.1980

"...अमृतवेले से श्रेष्ठ श्रृंगार

का सेट धारण करो।

जब श्रेष्ठ टाइटल्स की ड्रैस पहनेंगे,

गुणों का श्रृंगार धारण करेंगे तो

जैसे सतयुग में विश्व महाराजा

व विश्व महारानी की राजाई ड्रैस

के पीछे दास-दासियाँ

ड्रैस को उठाते हैं,

 

 

वैसे अब मायाजीत

संगमयुगी स्वराज्य अधिकारीयों के

टाइटल्स रूपी ड्रैस में

स्थित होने के समय

ये 5 तत्व, ये 5 विकार

आपकी ड्रैस को

पीछे उठायेंगे अर्थात्

अधीन होकर चलेंगे।..."

 


 

07.02.1980

"...बाप-दादा हरेक संगमयुगी

कर्मेन्द्रियों-जीत स्वराज्यधारी,

राज्य अधिकारी राजाओं से

पूछते है कि

हरेक की राज्य कारोबार

ठीक चल रही है?

 

 

हरेक राज्य-अधिकारी रोज

अपनी राज-दरबार लगाते हैं?

राज्य दरबार में

राज्य कारोबारी

अपने कार्य की रिजल्ट देता है?

हरेक कारोबारी आप

राज्य अधिकारी के

ऑर्डर में है?

 

 

कोई भी कारोबारी

ख्यानत व मिलावट

(अमानत में ख्यानत)

व किसी भी प्रकार की

खिटखिट तो नहीं करते हैं?

 

 

कभी आप राज्य अधिकारी को

धोखा तो नहीं देते हैं?

चलने के बजाए

चलाने तो नहीं लग जाते हैं?

 

 

आप राज्य-अधिकारियों का

राज्य है या प्रजा का राज्य है?

ऐसी चेकिंग करते हो

या जब दुश्मन आता है तब

होश आता है?

 

 

 

रोज अपनी दरबार लगाते हो

या कभी-कभी दरबार लगाते हो?

क्या हाल है

आपके राज्य-दरबारियों का?

 

 

राज्य-कारोबार ठीक है?

इतना अटेन्शन देते हो?

अभी के राजा ही

जन्म-जन्मान्तर के राजा बनेंगे।

आपकी दासी

ठीक कार्य कर रही है?

सबसे बड़े-से-बड़ी दासी है - प्रकृति।

 

 

प्रकृति रूपी दासी

ठीक कार्य कर रही है?

प्रकृतिजीत के ऑर्डर प्रमाण

अपना कार्य कर रही है?

 

 

प्रकृतिजीत - प्रकृति के ऑर्डर में

तो नहीं आ जाते?

आपके राज्य-दरबार की

मुख्य 8 सहयोगी शक्तियाँ

आपके कार्य में सहयोग दे रही हैं?

 

 

 

राज्य कारोबार की शोभा हैं

- ये अष्ट शक्तियाँ

अर्थात् अष्ट रतन,

अष्ट सहयोगी - तो आठों ही ठीक हैं?

अपनी रिजल्ट चेक करो।

 

 

 

राज्य कारोबार चलाना आता है?

अगर राज्य-अधिकारी

अलबेलेपन की नींद में

व अल्पकाल की प्राप्ति के

नशे में व व्यर्थ संकल्पों के

नाच में मस्त होंगे तो

सहयोगी शक्तियाँ भी

समय पर सहयोग नहीं देंगी।

 

 

 

तो रिजल्ट क्या समझें?

आजकल बाप-दादा

हरेक बच्चे की भिन्नभिन्न रूप से

रिजल्ट चेक कर रहे हैं।

 

 

आप अपनी रिजल्ट भी

चेक करते हो?

पहले तो संकल्प शक्ति,

निर्णय शक्ति और

संस्कार शक्ति -

तीनों ही शक्तियाँ ऑर्डर में है?

फिर 8 शक्तियाँ आर्डर में हैं?

यह तीन शक्तियाँ हैं महामन्त्री। ..."

 

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