03.02.1988


"...किसके पास दो सेन्टर हैं,

देखने में

दो सेन्टर की इन्चार्ज आती है,

 

और कोई 50 सेन्टर्स की

इन्चार्ज दिखाई देती है,

लेकिन अगर दो सेवाकेन्द्र भी

निर्विघ्न हैं, माया से,

हलचल से, स्वभाव - संस्कार के

टक्कर के टक्कर से मुक्त हैं तो

दो सेन्टर वाले का भी

50 सेवाकेन्द्र वाले से ज्यादा

सेवा का खाता जमा है।

 

इसमें खुश नहीं हो जाओ कि

मेरे 30 सेन्टर्स हैं,

40 सेन्टर्स हैं।

लेकिन माया से मुक्त

कितने सेन्टर्स हैं?

 

सेन्टर भी बढ़ाते जाओ,

माया भी बढ़ाते जाओ

ऐसी सेवा

बाप के रजिस्टर में

जमा नहीं होती है।

 

आप सोचेंगे - हम तो

बहुत सेवा कर रहे हैं,

दिन - रात नींद भी

नहीं करते, खाना भी एक बार

बनाके रात को खा लेते

इतना बिजी रहते!

 

लेकिन सेवा के साथ - साथ

माया में भी

बिजी तो नहीं रहते?

 

यह क्यों हुआ,

यह कैसे हुआ,

इसने क्यों किया,

मैंने क्यों नहीं किया,

मेरा हक,

तेरा हक

लेकिन बाप का हक कहाँ गया?

समझा?

 

सेवा अर्थात् जिसमें स्व के

और सर्व के सहयोग वा

सन्तुष्टता का फल

प्रत्यक्ष दिखाई दे।

 

अगर सर्व की

शुभ भावना - शुभ कामना का

सहयोग वा सन्तुष्टता

प्रत्यक्ष फल के रूप में

नहीं प्राप्त होती है तो

चेक करो - क्या कारण है,

 

फल क्यों नहीं मिला?

और विधि को चेक करके

चेन्ज करो।..."

 

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