ShivBaba
Lucky Kushnaseeb

साथ तुम्हारा प्रभु कितना है प्यारा...


16.06.1969/01


"पहला पाठ -

पिछली बातें भी खत्म होनी चाहिए"


"...पाठशाला में जाते हो।

पाठशाला का पहला पाठ क्या है?

अपने को मरजीवा

बनाना मरजीवा अर्थात्

अपने देह से, मित्र सम्बन्धियों से,

पुरानी दुनिया से मरजीवा।

 

 

यह पहला पाठ पक्का किया है?

(संस्कार से मरजीवा नहीं हुए हैं) जब

कोई मर जाता है तो

पिछले संस्कार भी

खत्म हो जाते हैं।

 

तो यहाँ भी पिछले

संस्कार क्यों याद आना चाहिए।

जबकि जन्म ही दूसरा तो

पिछली बातें भी खत्म

होनी चाहिए।

 

यह पहला पाठ है

मरजीवा बनने का।

वह पक्का करना है।..."

 


 

16.06.1969/2


"...दृष्टि और सृष्टि का ही

गायन क्यों है,

मुख का गायन क्यों नहीं हैं?

 

काम पर पहले-पहले

क्या बदली करते हैं?

पहला पाठ क्या पढ़ाते हैं?

 

भाई-भाई की दृष्टि से देखो।

भाई-भाई की दृष्टि अर्थात्

पहले दृष्टि को बदलने से

सब बातें बदल जाती हैं।

 


इसलिए गायन है कि

दृष्टि से सृष्टि बनती है।

 

जब आत्मा को देखते हैं तब यह

सृष्टि पुरानी देखने में आती है।

 

पुरुषार्थ भी मुख्य इस चीज का

ही है दृष्टि बदलने का।

 

जब यह दृष्टि बदल जाती है तो

स्थिति और परिस्थिति भी

बदल जाती है।


दृष्टि बदलने से गुण और

कर्म आप ही बदल जाते हैं।

 

यह आत्मिक दृष्टि नैचुरल हो

जाये। ..."

 


 

19.07.1969


"पहला पाठ पक्का करना पड़ेगा"

- "आत्मिक दृष्टि की अवस्था"


"...बापदादा तो आये ही हैं देखने कि

कौन सा जेवर

बापदादा के सृष्टि के श्रृंगार

करने लिये तैयार हुये हैं।

 

अभी जेवर तो तैयार हो गये।

लेकिन तैयार होने वाला

क्या होता है?

पालिश।

 

अभी सिर्फ पालिश होनी है।

 

मुख्य बात जिसकी पालिश

होनी है

वह यही है, सभी को

ज्यादा से ज्यादा

अव्यक्त स्थिति में रहने का

विशेष समय देना है।

 

अव्यक्त स्थिति की

पालिश ही बाकी रही है।

 

आपस में बातचीत करते

समय आत्मा रूप में देखो।

 

शरीर में होते हुए भी

आत्मा को देखो।

 

यह पहला पाठ है

इसकी ही आवश्यकता है।

 

जो भी सभी धारणायें सुनी है

उन सभी को जीवन में

लाने लिये यही पहला पाठ

पक्का करना पड़ेगा।

 

यह आत्मिक दृष्टि की अवस्था
प्रैक्टिकल में कम रहती है।

 

सर्विस की सफलता ज्यादा निकले,

उसका भी मुख्य

साधन यह है कि

आत्म-स्थिति में रह

सर्विस करनी है।

 

पहला पाठ ही पालिश है।

इसकी ही आवश्यकता है।

 

कब नोट किया है

सारे दिन में यह आत्मिक दृष्टि,

स्मृति कितनी रहती है?

 

इस स्थिति की परख

अपनी सर्विस की रिजल्ट से

भी देख सकते हो।

 

यह अवस्था शमा है।

शमाँ पर परवाने

न चाहते हुए भी जाते हैं।..."

 


 

23.07.1969


"...बिन्दु रूप में

स्थित रहने की कमी का कारण

यही हैं कि पहला पाठ ही कच्चा हैं।

 

कर्म करते हुए

अपने को

अशरीरी आत्मा महसूस करें।

 

यह सारे दिन में बहुत

प्रैक्टिस चाहिए।

 

प्रैक्टिकल में न्यारा होकर

कर्तव्य में आना।

 

यह जितना-जितना अनुभव करेंगे

उतना ही बिन्दु रूप में

स्थित होते जावेंगे। ..."

 


 

18.09.1969


"...बाप ने तो कहा नहीं है कि

व्यक्त वतन में बैठो।

 

व्यक्त में होते

अव्यक्त में रहो।

 

पहला-पहला पाठ ही

भूल जायेंगे तो

फिर ट्रेनिंग क्या करेंगे। ..."

 



31.12.1970


"...पहला परिवर्तन –

“मैं कौन!”

तो यही फाउंडेशन

परिवर्तन शक्ति का आधार है। ..."

 



28.07.1971/1


"...‘आकार में

निराकार देखने की बात’

पहला पाठ पूछ रहे हैं।

 

अभी आकार को

देखते निराकार को देखते हो?

 

बातचीत किस से करते हो?

(निराकार से) आकार में

निराकार देखने आये-

इसमें अन्त तक भी

अगर अभ्यासी रहेंगे तो

देही-अभिमानी का अथवा

अपने असली स्वरूप का

जो आनन्द वा सुख है

वह संगमयुग पर नहीं करेंगे।


संगमयुग का वर्सा

कब प्राप्त होता है?

 

संगमयुग का वर्सा कौनसा है?

(अतीन्द्रिय सुख)

यह अन्त में मिलेगा क्या,

जब जाने वाले होंगे?

 

आत्मिक- स्वरूप हो चलना

वा देही हो चलना

-यह अभ्यास नहीं है?

 

अभी साकार को वा

आकार को देखते

आकर्षण इस तरफ जाती है वा

आत्मा तरफ जाती है?

 

आत्मा को देखते हो ना।

आकार में निराकार को देखना

- यह प्रैक्टिकल और

नेचरल स्वरूप हो ही

जाना चाहिए। ..."

 


 

28.07.1971/2


"...यह आत्मिक-स्वरूप का

अनुभव अन्त के पहले

ही करना है।

 

जैसे अनेक जन्म

अपनी देह के स्वरूप की स्मृति

नेचरल रही है,

 

वैसे ही अपने असली स्वरूप की

स्मृति का

अनुभव भी थोड़ा समय भी

नहीं करेंगे क्या?

 

यह होना चाहिए?
यह पहला पाठ

कम्पलीट हो ही जायेगा।

 

इस आत्म-अभिमानी की

स्थिति में ही

सर्व आत्माओं को साक्षात्कार

कराने के निमित्त बनेंगे।

 

तो यह अटेन्शन रखना पड़े।

आत्मा समझना -

यह तो अपने स्वरूप की

स्थिति में स्थित होना है ना। ..."

 


 

28.07.1971/3


"...अन्त के समय

नई-नई परीक्षायें आयेंगी,

जिन परीक्षाओं को

पास कर सम्पूर्णता

की डिग्री लेंगे।

 

अगर यह पहला पाठ ही

स्मृति में नहीं होगा तो

सम्पूर्णता की डिग्री

भी नहीं ले सकेंगे।

 

डिग्री न मिलेगी तो

क्या होगा?

 

धर्मराज की

डिक्री निकलेगी।

तो यह अभ्यास

बहुत पक्का करो। ..."

 

 

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