आज की साकार मुरली

के संदर्भ में

बाबा के

अव्यक्त महावाक्य

( 01.12.1989 )

 

"...पाण्डवों को

लाख वा पद्म चाहिए?

 

करोड़ चाहिए?

नहीं चाहिए?

 

क्योंकि अब के करोड़पति बनना

अर्थात् सदा के करोड़ गँवाना।

 

अभी क्या करेंगे?

यह झूठी माया,

झूठी काया - झूठा क्या करेंगे!

 

शरीर निर्वाह के लिए,

दाल-रोटी के लिए तो

बहुत मिल रहा है

और मिलता रहेगा।

 

बाकि क्या चाहिए?

लॉटरी वगैरह चाहिए?

 

कई बच्चे समझते हैं

लॉटरी आयेगी तो

यज्ञ में लगा देंगे।

 

लेकिन ऐसा पैसा

यज्ञ में नहीं लगता।

 

होती अपनी इच्छा है

लेकिन कहते हैं

लॉटरी आयेगी तो

सेवा करेंगे!

 

अभी तो

सच्ची कमाई

जमा कर रहे हो,

इसलिए

- ‘इच्छा मात्रम् अविद्या।'

 

क्योंकि इच्छा में

अगर गये तो

इच्छा के पीछे भागना

ऐसे ही है

जैसे मृगतृष्णा।

 

तो इच्छा समाप्त हो गई,

अच्छे बन गये!

 

जब रचयिता ही

आपका हो गया तो

रचना क्या करेंगे!

 

बेहद के आगे

हद क्या लगती है?

कुछ भी नहीं है।

हद में फँस गये तो

बेहद गया।..."

गीत:- कर लो कमाई 21 जन्मों की...


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